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Mental Health Awareness : भारत में 21% युवा मानते हैं कि वर्क-लाइफ इम्बैलेंस से मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है, सर्वे रिपोर्ट
Mental Health Awareness : भारत में 21% युवा मानते हैं कि वर्क-लाइफ इम्बैलेंस से मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है, सर्वे रिपोर्ट
Authored By: स्मिता
Published On: Monday, October 14, 2024
Last Updated On: Monday, October 14, 2024
जेन जेड के 21% लोगों ने कार्य-जीवन असंतुलन को अपने मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं का एक प्रमुख कारण बताया है। जुलाई 2024 में वर्क लोड के कारण एक 26 वर्षीय कर्मचारी की मृत्यु के बाद, कार्यस्थल पर स्वास्थ्य और श्रम कानूनों की जरूरत के बारे में सोशल मीडिया पर काफ़ी बहस हुई।
Authored By: स्मिता
Last Updated On: Monday, October 14, 2024
मानसिक स्वास्थ्य यह एक ऐसा विषय है, जिस पर देश में बहुत कम चर्चा होती है। इस पर चर्चा होना बेहद जरूरी है। मन की तुलना शरीर के ऑपरेटिंग सिस्टम से किया जा सकता है। कंप्यूटर की तरह मन भी तनाव, बग और वायरस का सामना कर सकता है। ये मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारक हो सकते हैं। मेंटल हेल्थ खराब होने पर शरीर के ऑपरेटिंग सिस्टम में खराबी आ सकती है। जो अंत में इसके शारीरिक कामकाज को प्रभावित कर देगा। आज भी भारतीय आबादी का एक बड़ा प्रतिशत पूरी तरह से नहीं समझता है कि बढ़िया मानसिक स्वास्थ्य कितना महत्वपूर्ण है। यह दैनिक कामकाज को कैसे प्रभावित करता है। नीलसन के सहयोग से आईटीसी के फियामा मेंटल वेलबीइंग सर्वे 2024 के डेटा के अनुसार, भारत में 21% युवा मानते हैं कि वर्क-लाइफ इम्बैलेंस से मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित (Mental Health Awareness ) होता है।
वर्क लाइफ बैलेंस में संतुलन जरूरी (Work Life Imbalance for Mental Health)
अधिकांश भारतीयों के लिए काम दिन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है काम (Office Work)। यह सीधे उनके मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) को भी प्रभावित करता है। सर्वेक्षण में ऐसे व्यक्ति शामिल हुए, जिन्होंने कार्यस्थल पर तनाव का अनुभव किया । उनमें से 90% बेहतर कार्य-जीवन संतुलन को जरूरी मानते हैं। भारत में भाग लेने वाले जेन जेड के 21% लोगों ने कार्य-जीवन असंतुलन को अपने मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं का एक प्रमुख कारण बताया है। जुलाई 2024 में वर्क लोड के कारण एक 26 वर्षीय कर्मचारी की मृत्यु के बाद, कार्यस्थल पर स्वास्थ्य और श्रम कानूनों की जरूरत के बारे में सोशल मीडिया पर काफ़ी बहस हुई।
नींद पर नकारात्मक प्रभाव ( Mental Health effect on sound sleep)
कार्यस्थल पर तनाव का अनुभव करने वालों में से 71% को लगता है कि सफलता के सामाजिक मानकों पर खरा उतरने के लिए उन्हें बर्नआउट का सामना करना पड़ता है। 69% लोगों को लगता है कि मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का उनके स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जबकि 65% लोगों को लगता है कि मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का उनकी नींद पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। भारत में थेरेपी लेने का समाधान कहना जितना आसान है, करना उतना आसान नहीं है। लागत, सोशल स्टिग्मा और जागरूकता की कमी जैसे कारकों ने इसे पहुंच से बाहर कर दिया है। सर्वेक्षण किए गए 77% व्यक्तियों को थेरेपी महंगी लगती है और 74% लोग थेरेपी नहीं चुनते हैं। स्वास्थ्य बीमा मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को कवर नहीं करता है।
जानकारी और जागरूकता की कमी (Lack of Mental Health Awareness )
जब स्टिग्मा की बात आती है, तो 55% का मानना है कि थेरेपी कमज़ोर लोगों के लिए है, जो मानसिक स्वास्थ्य सहायता की कमी को उजागर करता है। जब किसी का ऑपरेटिंग सिस्टम खराब हो जाता है, तो एक मजबूत सहायता प्रणाली होना जरूरी है, जो मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की पहचान कर सके। भारत में भाग लेने वाले जेन जेड के 82% लोगों का मानना है कि लोग मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं के लक्षणों को पहचानने से चूक जाते हैं। इस तरह से भारत में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति अधिक जागरूकता और जानकारी बहुत जरूरी है। तभी वास्तविक समाधान हो सकेगा।
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