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World Mental Health Day: मानसिक स्वास्थ्य पूरे विश्व के लिए बना एक चुनौती, भारत के 13.7 फीसदी लोगों के जीवन भर का है संघर्ष
Authored By: अंशु सिंह
Published On: Friday, October 10, 2025
Last Updated On: Friday, October 10, 2025
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर आज मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है. दुनियाभर में यह एक गंभीर चुनौती बन चुकी है, खासकर भारत में जहां लगभग 13.7 फीसदी लोग जीवनभर मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझते हैं.
Authored By: अंशु सिंह
Last Updated On: Friday, October 10, 2025
World Mental Health Day: दुनिया में आज एक अरब से ज्यादा लोग (वैश्विक जनसंख्या का 13%) मानसिक बीमारियों से पीड़ित हैं. साल 2023 का एक अध्ययन बताता है कि विश्व भर में हर दो में से एक व्यक्ति अपने जीवनकाल में मानसिक स्वास्थ्य विकार से ग्रस्त हो जाएगा. भारत भी इसका एक हिस्सा है, जहां करीब 13.7% लोग जीवन भर मानसिक विकारों से ग्रस्त रहते हैं. निमहंस द्वारा किए गए राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NMHS) 2015-16 में पाया गया कि भारत में 10.6% वयस्क मानसिक विकारों से पीड़ित हैं. राष्ट्रीय अध्ययनों से पता चलता है कि भारत की 15% वयस्क आबादी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का अनुभव करती है जिनके लिए हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है. ग्रामीण क्षेत्रों (6.9%) की तुलना में शहरी क्षेत्रों (13.5%) में यह प्रसार अधिक है. जानकारों की मानें, तो मानसिक समस्याओं के बढ़ने के विशेष रूप से कई कारण हैं. दुनिया भर में प्राकृतिक आपदाएं बढ़ रही हैं, पुरानी बीमारियां लगातार बढ़ रही हैं और एआई (AI) जीवन के सभी पहलुओं के बारे में भय और चिंता पैदा कर रही है. लोगों को डर है कि वे एआई के कारण अपनी नौकरी खो देंगे. उनके बच्चों पर इसका निगेटिव प्रभाव पड़ेगा. इतना ही नहीं, एआई का लगातार बढ़ता विकास मानव नियंत्रण से बाहर हो जाएगा.
मानसिक स्वास्थ्य है हर नागरिक का मौलिक अधिकार
भारत ने ऐतिहासिक मानसिक स्वास्थ्य सेवा अधिनियम, 2017 के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य को कानूनी रूप से प्राथमिकता दी है. यह अधिनियम मानसिक स्वास्थ्य देखभाल के अधिकार की गारंटी देता है. आत्महत्या को अपराध की श्रेणी से बाहर करता है. बीमा कवरेज को अनिवार्य बनाता है और रोगी की गरिमा और स्वायत्तता को सुनिश्चित करता है. यह कानून मानसिक बीमारी से प्रभावित लगभग 20 करोड़ भारतीयों को कवर करता है. सुखदेव साहा बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 21 के तहत मानसिक स्वास्थ्य को एक मौलिक अधिकार के रूप में सुदृढ़ किया, जिससे सरकार सुलभ, सस्ती और गुणवत्तापूर्ण मानसिक स्वास्थ्य देखभाल सुनिश्चित करने के लिए कानूनी रूप से बाध्य हो गई. सरकार का जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (DMHP) लगभग 767 जिलों को कवर करता है, जो परामर्श,बाह्य रोगी सेवाओं और आत्महत्या रोकथाम तक पहुंच का विस्तार करता है और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के विकेंद्रीकरण के एक महत्वपूर्ण प्रयास का संकेत भी देता है.
आध्यात्मिकता में ही छिपा है समाधान
थ्राइव ग्लोबल कंपनी की सीईओ एवं फाउंडर एरिआना हफिंग्टन के अनुसार, हम जिस समय में रह रहे हैं, उसकी परिस्थितियों से परे एक और भी जटिल अस्तित्वगत संकट छिपा है. वे अपने एक ब्लॉग में लिखती हैं, ‘जैसा कि फ्रांसीसी दार्शनिक टेइलहार्ड डी शार्डिन ने एक बार कहा था, ‘हम आध्यात्मिक प्राणी हैं, जो मानवीय अनुभव प्राप्त कर रहे हैं. जब हम अपनी प्रकृति के आध्यात्मिक तत्व को नकारते हैं, तो हम खुद को उस सहायक ढांचे से वंचित कर देते हैं, जो हमें इस ऐतिहासिक व्यवधान के क्षण की चिंताओं से निपटने में मदद कर सकता है.’ कोलंबिया की मनोविज्ञान की प्रोफेसर लिसा मिलर बताती हैं कि लोगों के लिए अपनी आध्यात्मिकता को अपनाने के कई तरीके हैं. हर इंसान के मस्तिष्क का एक आध्यात्मिक हिस्सा होता है, जिससे हम कहीं भी, कभी भी जुड़ सकते हैं. मास्लो के शब्दों में समझें, तो आध्यात्मिक जीवन मानव सार का एक अभिन्न अंग है. यह मानव स्वभाव की एक विशिष्ट विशेषता है, जिसके बिना मानव स्वभाव पूर्णतः मानवीय नहीं है. आध्यात्मिकता की यही प्रेरणा हमें आत्मकेंद्रितता से परे ले जाती है और हमें निराशा और अर्थहीनता का प्रतिरोध करने की क्षमता प्रदान करती है. अपने संघर्षों में अर्थ खोजने की इस क्षमता ने पूरे इतिहास में मनुष्यों को तनाव, उथल-पुथल और संकट के दौर से निपटने में मदद की है. अब नवीनतम विज्ञान द्वारा भी इसकी पुष्टि की गई है.
राजयोग मेडिटेशन ने निकाला डिप्रेशन से
क समय था जब गुजरात के भरुच निवासी एवं सर्व हैप्पीनेस फाउंडेशन के संस्थापक नितिन टेलर गहरे डिप्रेशन के अंधकार से जूझ रहे थे. उस दौर में आध्यात्मिकता, राजयोग मेडिटेशन, प्रकृति प्रेम और समाजसेवा ने उन्हें फिर से जीना सिखाया. उन्होंने उस अंधेरे को प्रकाश में बदला और आज हर मंच पर लोगों से आग्रह करते हैं कि डिप्रेशन को छिपाएं नहीं. उसके बारे में बोलें, एक-दूसरे को सुनें और सहारा बनें, कहते हैं नितिन, ‘अभी भी समाज में मानसिक स्वास्थ्य को एक कलंक माना जाता है, परंतु हम सब मिलकर इस अदृश्य राक्षस को हरा सकते हैं जिसने कई जिंदगियों को तोड़ा है. मेरी कोशिश है कि हर व्यक्ति भीतर से मजबूत बने और हर किसी के दिल में खुशियों के दीप जले. आध्यात्मिकता से जुड़ने के पश्चात् ही मेरे भीतर की शांति और शक्ति पुनः जाग्रत हो सकी. अंधेरों से डरना कैसा, जब भीतर दीप जलाना है. गिरकर भी मुस्कराना है. दूसरों को राह दिखाना है. प्रकृति की गोद, सेवा का भाव. यही है सच्ची थेरेपी. सुनें एक-दूसरे को दिल से, फिर हर दिल में खिलेगा आशा का फूल, हर दिन बनेगा नया दीपोत्सव.’
अपनी आदतों को होगा बदलना
‘एक मॉमप्रेन्योर के रूप में आप मानसिक रूप से कितनी समृद्ध हैं? यह विचार मेरे मन में तब से है, जब मैंने एक किताब का वह अध्याय पढ़ा था जिसमें ‘धन’ की मेरी परिभाषा को चुनौती दी गई थी. एक सामुदायिक संस्थापक और मॉमप्रेन्योर होने के नाते जिन्दगी अक्सर तेजी से आगे बढ़ती है समय-सीमाओं, फ़ैसलों और मातृत्व की खूबसूरत उथल-पुथल के बीच. हम जीत का जश्न मनाते हैं, लक्ष्यों का पीछा करते हैं और समस्याओं का तुरंत समाधान करते हैं. लेकिन इन सब कामों में हम कितनी बार अपने मन की समृद्धि को जांचने के लिए रुकते हैं?’, पूछती हैं महिला उद्यमी लतिका वाधवा. वे कहती हैं कि मेडिटेशन हमें शांति का एक पल प्रदान करता है. लेकिन ये मानसिक आदतें हैं, जिन्हें हम रोजाना विकसित करते हैं. जो वास्तव में हमारे भावनात्मक लचीलेपन और दीर्घकालिक कल्याण को आकार देती हैं.
जागरूक हों, खुलकर करें बातें
यह कहना गलत नहीं होगा कि मानसिक स्वास्थ्य के प्रति पहले कभी इतने जागरूक नहीं थे लोग. फिर भी कुछ लोगों को डर है कि जैसे-जैसे मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ी है, मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति में गिरावट आई है. सच भी है. जागरूकता न होने के अलावा कलंक और पेशेवरों की कमी के कारण मानसिक विकार वाले 70% से 92% लोगों को उचित उपचार नहीं मिल पाता है. इंडियन जर्नल ऑफ साइकियाट्री के अनुसार, देश में प्रति 100,000 लोगों पर 0.75 मनोचिकित्सक हैं, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन प्रति 100,000 लोगों पर कम से कम 3 मनोचिकित्सकों की सिफारिश करता है. ऐसे में यह इस विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस एक महत्वपूर्ण अनुस्मारक है कि मानसिक स्वास्थ्य, शारीरिक स्वास्थ्य जितना ही महत्वपूर्ण है. क्योंकि लाखों लोग तनाव, चिंता और अवसाद जैसी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. फिर भी डिप्रेशन को कलंक मानकर अक्सर अपने संघर्षों को छिपाए रखते हैं. अब समय आ गया है कि बातचीत शुरू की जाए, सहायता प्रदान की जाए और ऐसे कार्यस्थल और समुदाय बनाए जाएं, जहां मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी जाए, हर छोटा कदम, किसी को सुनना, जांच-पड़ताल करना, मदद के लिए प्रोत्साहित करना, एक बड़ा बदलाव ला सकता है.
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