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Parliament Winter Session: एक से 19 दिसंबर तक गूंजेगी संसद: राष्ट्रपति मुर्मू ने दी शीतकालीन सत्र को मंजूरी
Authored By: Nishant Singh
Published On: Saturday, November 8, 2025
Last Updated On: Saturday, November 8, 2025
Parliament Winter Session: सर्दी की दस्तक के साथ देश की राजनीति में भी हलचल तेज हो गई है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संसद के शीतकालीन सत्र को मंजूरी दे दी है, जो 1 दिसंबर से 19 दिसंबर 2025 तक चलेगा. इस दौरान कई अहम विधेयक पेश होंगे और सियासी टकराव भी देखने को मिल सकते हैं. अब सवाल है - क्या ये सत्र रचनात्मक होगा या फिर फिर से हंगामे की भेंट चढ़ेगा? जानिए पूरी जानकारी.
Authored By: Nishant Singh
Last Updated On: Saturday, November 8, 2025
Parliament Winter Session: सर्दी की दस्तक के साथ ही अब संसद में भी “शीतकालीन सत्र” की गूंज सुनाई देने लगी है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सरकार के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है, जिसके बाद यह तय हो गया है कि 1 दिसंबर से 19 दिसंबर 2025 तक संसद का शीतकालीन सत्र आयोजित किया जाएगा. देश की राजनीति के लिए ये 19 दिन बेहद अहम माने जा रहे हैं- क्योंकि कई बड़े विधेयक, बहसें और राजनीतिक टकराव इन्हीं दिनों तय करेंगे आने वाले महीनों की दिशा.
राष्ट्रपति मुर्मू की मंजूरी के साथ तय हुई तारीखें
केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर जानकारी साझा करते हुए बताया कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सरकार के प्रस्ताव को स्वीकृति प्रदान कर दी है. रिजिजू ने लिखा,
“भारत की राष्ट्रपति ने 1 दिसंबर 2025 से 19 दिसंबर 2025 तक संसद का शीतकालीन सत्र बुलाने की मंजूरी दे दी है. आशा है यह सत्र रचनात्मक और सार्थक रहेगा, जिससे लोकतंत्र और मजबूत होगा और जनता की आकांक्षाओं को पूरा करने में मदद मिलेगी.”
इस ऐलान के साथ अब राजनीतिक दलों की तैयारी भी तेज हो गई है, विपक्ष अपनी रणनीति बनाने में जुटा है, तो सरकार कानूनों को पारित कराने की रूपरेखा तय कर रही है.
मानसून सत्र से सबक – 166 घंटे बर्बादी की कीमत
इससे पहले संसद का मानसून सत्र 21 अगस्त 2025 को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया था. उस सत्र में लगातार हंगामे और बहिष्कार की वजह से कुल 166 घंटे का कामकाज ठप रहा. रिपोर्ट्स के अनुसार, हर मिनट की संसदीय कार्यवाही पर लगभग 2.5 लाख रुपये खर्च होते हैं – यानी एक घंटे में करीब 1.5 करोड़ रुपये. इस हिसाब से जनता के टैक्स का लगभग 248 करोड़ रुपये सिर्फ हंगामे में बर्बाद हो गए.
लोकसभा में 84.5 घंटे और राज्यसभा में 81 घंटे से ज्यादा समय व्यर्थ चला गया. नतीजा ये हुआ कि जनता से जुड़े कई अहम विधेयक चर्चा के बिना ही अटके रह गए. हालांकि अंतिम नौ दिनों में संसद ने ताबड़तोड़ गति पकड़ी और राज्यसभा में 15 तथा लोकसभा में 12 विधेयक पारित किए गए.
सर्दी के सत्र से क्या हैं उम्मीदें?
शीतकालीन सत्र को लेकर उम्मीद की जा रही है कि इसमें सरकार कई बड़े बिल पेश कर सकती है, जिनमें आर्थिक सुधार, डिजिटल लेनदेन से जुड़े कानून, और राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी संशोधन प्रमुख हैं. विपक्ष की नजर हालांकि सरकार को घेरने पर होगी – खासकर उन मुद्दों पर जिन पर मानसून सत्र में टकराव देखने को मिला था, जैसे कि SIR विवाद और ऑपरेशन सिंदूर.
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सर्दी की ठिठुरन में भी संसद का माहौल गर्म रहेगा, क्योंकि ये सत्र कई राज्यों के विधानसभा चुनावों के ठीक बाद आ रहा है, जहां सरकार और विपक्ष दोनों ही अपने-अपने राजनीतिक संदेश देने की कोशिश करेंगे.
साल में कितने सत्र होते हैं संसद के?
भारत की संसद में हर वर्ष तीन प्रमुख सत्र आयोजित किए जाते हैं:
- बजट सत्र – फरवरी से मई के बीच चलता है. इस दौरान देश का वार्षिक बजट पेश होता है और मंत्रालयों की अनुदान मांगों पर विचार किया जाता है.
- मानसून सत्र – आमतौर पर जुलाई से अगस्त के बीच होता है, जिसमें नीतिगत मुद्दों और लंबित विधेयकों पर चर्चा होती है.
- शीतकालीन सत्र – नवंबर से दिसंबर के बीच आयोजित किया जाता है, जो साल के विधायी एजेंडे का समापन करता है.
हर सत्र लोकतंत्र का एक नया अध्याय लिखता है, जहां सरकार और विपक्ष जनता की आवाज़ को संसद के गलियारों तक पहुंचाते हैं.
उम्मीदों से भरा सत्र
अब जब तारीखें तय हो चुकी हैं और राष्ट्रपति की मुहर लग चुकी है, तो देश की निगाहें 1 दिसंबर पर टिकी हैं. शीतकालीन सत्र सिर्फ बहस और बिल पारित करने का मंच नहीं बल्कि यह जनता के विश्वास और लोकतंत्र की मजबूती की परीक्षा भी है.
उम्मीद की जा रही है कि इस बार संसद में सिर्फ आवाज़ें नहीं गूंजेंगी, बल्कि फैसले भी लिए जाएंगे. ऐसे फैसले जो आने वाले साल के राजनीतिक तापमान को तय करेंगे.
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