South Korean Brushing Culture: दिन में तीन बार ब्रश! आखिर क्यों ऐसा करते हैं दक्षिण कोरिया के लोग?

Authored By: Ranjan Gupta

Published On: Thursday, November 13, 2025

Last Updated On: Thursday, November 13, 2025

दक्षिण कोरिया में दिन में तीन बार ब्रश करने की अनोखी आदत, जानें इस South Korean Brushing Culture के पीछे की दिलचस्प वजह और इसके स्वास्थ्य लाभ.
दक्षिण कोरिया में दिन में तीन बार ब्रश करने की अनोखी आदत, जानें इस South Korean Brushing Culture के पीछे की दिलचस्प वजह और इसके स्वास्थ्य लाभ.

South Korean Brushing Culture: दक्षिण कोरिया में ब्रश करना सिर्फ एक हाइजीन आदत नहीं, बल्कि एक सामाजिक शिष्टाचार है. यहां लोग दिन में तीन बार, खाने के तीन मिनट के भीतर और पूरे तीन मिनट तक ब्रश करते हैं. यह “ट्रिपल थ्री फॉर्मूला” अब कोरियाई जीवनशैली का हिस्सा बन चुका है, जो साफ मुस्कान को आत्म-अनुशासन और अच्छे व्यवहार की पहचान मानता है.

Authored By: Ranjan Gupta

Last Updated On: Thursday, November 13, 2025

South Korean Brushing Culture: अगर आप लंच के बाद किसी दक्षिण कोरियाई ऑफिस में जाएं, तो आपको एक अनोखा दृश्य देखने को मिलेगा. हर कर्मचारी अपने टूथब्रश और मिंट पेस्ट के साथ वॉशरूम की ओर जाता है. यह कोई विज्ञापन शूट नहीं, बल्कि वहां की वास्तविक जीवनशैली है. दक्षिण कोरिया में दांत साफ करना केवल व्यक्तिगत स्वच्छता नहीं, बल्कि पब्लिक एटीकेट का प्रतीक माना जाता है. यहां की “ट्रिपल थ्री” ब्रशिंग संस्कृति (South Korean Brushing Culture), दिन में तीन बार, हर भोजन के तीन मिनट के भीतर और पूरे तीन मिनट तक ब्रश करना न केवल डेंटल हेल्थ (Korean Dental Hygiene Practices) को बेहतर बनाती है, बल्कि आत्मविश्वास और सामाजिक शालीनता का हिस्सा भी बन चुकी है.

आमतौर पर लोग दिन में दो बार ब्रश करते हैं, लेकिन दक्षिण कोरिया में ऐसा नहीं है. यहां लोग दिन में तीन बार ब्रश करते हैं. यहां दांत साफ करना केवल पर्सनल हाइजीन नहीं, बल्कि पब्लिक एटीकेट माना जाता है. यानी यहां साफ-सुथरी मुस्कान को अच्छे व्यवहार और आत्म-अनुशासन की पहचान समझा जाता है.

क्या है ‘ट्रिपल थ्री फॉर्मूला’?

दक्षिण कोरिया में ब्रश करना अब एक तरह की रोज़मर्रा की परंपरा बन चुका है. वहां के लोग एक खास नियम का पालन करते हैं दिन में तीन बार ब्रश करना, हर बार खाने के तीन मिनट के भीतर, और कम से कम तीन मिनट तक. इसे ही ‘ट्रिपल थ्री फॉर्मूला’ कहा जाता है. यह फॉर्मूला दांतों को मजबूत रखता है और सांसों की बदबू से भी बचाता है.

स्कूलों से ही सिखाई जाती है ब्रशिंग की आदत

कोरिया में बच्चों को यह आदत बचपन से सिखाई जाती है. किंडरगार्डन और डे-केयर सेंटर्स में बच्चे समूह में ब्रश करना सीखते हैं. टीचर्स उन्हें बताते हैं कि ब्रश कितनी देर और किस तरीके से करना चाहिए. स्कूलों में खास टूथब्रशिंग जोन बने होते हैं, जहां बच्चे साथ-साथ ब्रश करते हैं. यह सिर्फ दांतों की सफाई नहीं, बल्कि अनुशासन और जिम्मेदारी सिखाने का तरीका भी है.

ऑफिस और सार्वजनिक जगहों पर भी दिखता है यह कल्चर

यह आदत सिर्फ स्कूलों तक सीमित नहीं है. कोरिया के ऑफिसों, मॉल्स, कैफे, बस स्टेशनों और रेलवे प्लेटफॉर्म्स पर भी लोग लंच या स्नैक्स के बाद ब्रश करते नजर आते हैं. वॉशरूम में लंबे सिंक और कई नल लगाए जाते हैं ताकि एक साथ कई लोग ब्रश कर सकें. वहां ब्रश करना उतना ही जरूरी माना जाता है जितना कॉफी ब्रेक लेना.

कैसे शुरू हुआ यह ट्रेंड?

यह ट्रेंड 1980 के दशक में शुरू हुआ. तब कोरियन डेंटल एसोसिएशन ने देशभर में ओरल हेल्थ अवेयरनेस कैंपेन चलाया था. उद्देश्य था लोगों को दांतों की सफाई के प्रति जागरूक बनाना. कोरियाई भोजन में लहसुन का उपयोग काफी होता है, जिससे सांसों में बदबू आने की समस्या रहती थी. इसे देखते हुए विशेषज्ञों ने दिन में तीन बार ब्रश करने की सलाह दी. धीरे-धीरे यह कैंपेन लोगों की दिनचर्या का हिस्सा बन गया और अब उनकी संस्कृति में गहराई से जुड़ चुका है.

ट्रिपल थ्री फॉर्मूला क्यों अपनाया गया?

यह फॉर्मूला सिर्फ दांतों को साफ रखने के लिए नहीं, बल्कि आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए भी अपनाया गया. साफ दांत और ताजा सांसें बातचीत में सहजता लाती हैं. यही वजह है कि आज दक्षिण कोरिया में ब्रश करना सिर्फ हाइजीन हैबिट नहीं, बल्कि कल्चर कोड बन चुका है.

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About the Author: Ranjan Gupta
रंजन कुमार गुप्ता डिजिटल कंटेंट राइटर हैं, जिन्हें डिजिटल न्यूज चैनल में तीन वर्ष से अधिक का अनुभव प्राप्त है. वे कंटेंट राइटिंग, गहन रिसर्च और SEO ऑप्टिमाइजेशन में माहिर हैं. शब्दों से असर डालना उनकी कला है और कंटेंट को गूगल पर रैंक कराना उनका जुनून! वो न केवल पाठकों के लिए उपयोगी और रोचक लेख तैयार करते हैं, बल्कि गूगल के एल्गोरिदम को भी ध्यान में रखते हुए SEO-बेस्ड कंटेंट तैयार करते हैं. रंजन का मानना है कि "हर जानकारी अगर सही रूप में दी जाए, तो वह लोगों की जिंदगी को प्रभावित कर सकती है." यही सोच उन्हें हर लेख में निखरने का अवसर देती है.
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