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क्या है ‘वंदे मातरम्’ विवाद? जानें बीजेपी और कांग्रेस के बीच कैसे फिर गर्माया राष्ट्रगीत का मुद्दा
Authored By: Ranjan Gupta
Published On: Saturday, November 8, 2025
Last Updated On: Saturday, November 8, 2025
‘वंदे मातरम्’ भारत का राष्ट्रगीत एक बार फिर राजनीतिक विवाद के केंद्र में है. महाराष्ट्र से उठे इस मुद्दे ने बीजेपी और कांग्रेस को आमने-सामने ला दिया है. जहां भाजपा का आरोप है कि कांग्रेस ने 1937 में तुष्टिकरण की राजनीति के तहत राष्ट्रगीत के कुछ हिस्से हटाए, वहीं कांग्रेस का कहना है कि इस गीत को स्वतंत्रता संग्राम में कांग्रेस ने ही सम्मान दिलाया था. जानिए आखिर क्या है ‘वंदे मातरम्’ विवाद, क्यों फिर से जीवित हुआ यह मुद्दा और कौन-कौन से ऐतिहासिक संदर्भ इससे जुड़े हैं.
Authored By: Ranjan Gupta
Last Updated On: Saturday, November 8, 2025
Vande Matram Controversy: ‘वंदे मातरम्’ यह सिर्फ एक राष्ट्रगीत नहीं, बल्कि भारत की स्वतंत्रता संग्राम की आत्मा का प्रतीक है. लेकिन आज वही राष्ट्रगीत भारतीय राजनीति के लिए एक नया विवाद बन गया है. महाराष्ट्र में भाजपा नीत एनडीए सरकार के हालिया निर्णय से यह मुद्दा फिर सुर्खियों में है. भाजपा का दावा है कि 1937 में कांग्रेस ने अपनी “तुष्टिकरण की राजनीति” के चलते ‘वंदे मातरम्’ के पूर्ण रूप को स्वीकार नहीं किया और इसके कुछ हिस्सों को ही राष्ट्रगीत बनाया. वहीं, कांग्रेस का कहना है कि यह गीत तो उसी पार्टी के कार्यकर्ताओं की आवाज़ था, जिसने आज़ादी की लड़ाई को ऊर्जा दी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा वंदे मातरम् की 150वीं वर्षगांठ पर पूरे गीत का पाठ करने और नेहरू के पुराने पत्रों को फिर से सामने लाने से यह बहस और तीव्र हो गई है. आइए विस्तार से जानते हैं कि आखिर ‘वंदे मातरम्’ विवाद है क्या, इसका इतिहास क्या कहता है, और भाजपा-कांग्रेस की दलीलों के बीच सच्चाई कहां छिपी है.
कांग्रेस ने क्या कहा?
दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वंदे मातरम् की 150वीं वर्षगांठ पर आयोजित एक कार्यक्रम में पूरा गीत गाया. इस दौरान उन्होंने कहा, “कांग्रेस ने इस कविता के टुकड़े-टुकड़े कर दिए.” इसके बाद भाजपा ने सितंबर और अक्टूबर 1937 में पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा नेताजी सुभाष चंद्र बोस को लिखे गए पत्र साझा किए. उन पत्रों में कहा गया था कि “वंदे मातरम् की कुछ पंक्तियां मुसलमानों को असहज कर सकती हैं.”
कांग्रेस ने इस पर पलटवार किया. पार्टी ने कहा कि भाजपा और आरएसएस खुद इस गीत से बचते रहे हैं. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा, “विडंबना यह है कि जो लोग खुद को राष्ट्रवाद का रक्षक बताते हैं, उन्होंने कभी वंदे मातरम् नहीं गाया.”
क्या है वंदे मातरम् विवाद?
बंकिम चंद्र चटर्जी ने वंदे मातरम् रचना में भारत माता को एक देवी के रूप में चित्रित किया. उन्होंने इसमें मां की शक्ति और करुणा दोनों का वर्णन किया. कभी तलवार थामे आक्रामक रूप में, तो कभी सौम्य और दयालु रूप में.
गीत के अंतिम हिस्से में उन्होंने देवी दुर्गा, लक्ष्मी (कमला) और सरस्वती का उल्लेख किया, जो देश की रक्षक और पवित्रता का प्रतीक मानी गईं.
लेकिन 1937 में, नेहरू के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने फैसला किया कि राष्ट्रीय कार्यक्रमों में केवल पहले दो छंद ही गाए जाएंगे. कारण था गीत के धार्मिक संदर्भ मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों को आपत्तिजनक लगे. उन्हें लगा कि ये पंक्तियां सभी धर्मों को साथ नहीं लातीं.
भाजपा का तर्क क्या है?
भाजपा का कहना है कि कांग्रेस ने गीत के मूल रूप से छेड़छाड़ कर देश में विभाजन की सोच बोई. प्रधानमंत्री मोदी ने भी कहा, “जब गीत के कुछ हिस्से हटाए गए, तभी विभाजन के बीज पड़ गए.”
भाजपा प्रवक्ता सी.आर. केसवन ने नेहरू का वह पत्र साझा किया जिसमें उन्होंने लिखा था कि वंदे मातरम् को देवी-देवताओं से जोड़ना गलत है. नेहरू ने कहा था, “गीत पूरी तरह हानिरहित है, किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए.” हालांकि उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि मुस्लिम समुदाय के कुछ लोग इससे असहज थे और विवाद “सांप्रदायिक सोच रखने वालों” ने बढ़ाया था.
अंत में दिसंबर 1937 के फैजपुर अधिवेशन में कांग्रेस ने निर्णय लिया- वंदे मातरम् को राष्ट्रीय गीत माना जाएगा, लेकिन केवल पहले दो छंद ही गाए जाएंगे.
उस प्रस्ताव में लिखा गया, “सभी परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, समिति यह सिफारिश करती है कि जब भी वंदे मातरम् राष्ट्रीय कार्यक्रमों में गाया जाए, तो केवल इसकी पहली दो पंक्तियां ही गाई जाएं.”
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