उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता ‘मिशन 400’ पार

Authored By: Preeti Singh, Senior Writer and Journalist

Published On: Wednesday, April 10, 2024

Categories: Loksabha Election

Updated On: Thursday, June 20, 2024

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अगर बीजेपी को 400 सीटें हासिल करनी हैं, तो उसे उत्तर प्रदेश की सभी 80 सीटों को फतह करना ही होगा, पर क्या यह इतना आसान होगा...

भारतीय जनता पार्टी ने अबकी बार-400 पारका नारा देकर जिस तरह अपना एजेंडा सेट किया है, उसने विभिन्न मुद्दों, समीकरणों और विपक्षी रणनीति को लेकर चर्चाएं शुरू कर दी हैं। इस मिशन ने उत्तर प्रदेश की राजनीति को बेहद रोचक बना दिया हैक्योंकि अगर बीजेपी  को 400 सीटें हासिल करनी हैं, तो उसे उत्तर प्रदेश की सभी 80 सीटों पर को फतह करना ही होगा।ऐसे में यहां मुद्दों के साथ साथ अलग अलग समीकरणों की भूमिका पर चर्चा होना लाजमी है. तो चलिए बात करते हैं उन मुद्दों की जिनके आधार पर भाजपा की स्थापना हुई थी और जिसकी वजह से पिछले 10 साल से सत्ता में है और फिर अगले 5 साल काबिज होने के लिए मैदान में है। ये मुद्दे भले ही आज की राजनीति में बहुत बड़े न लगें, लेकिन इनका प्रभाव बहुत गहरा रहेगा। 

राम मंदिर : बीजेपी के लिए राम मंदिर क्या है ये बताने की जरूरत नहीं। राम मंदिर के सहारे बीजेपी कहां से कहां पहुंच गई ये सभी देख रहे है। इस बार बीजेपी के लिए चुनाव खास है क्योंकि उसका वर्षों पुराना वादा पूरा हो गया है। भगवान राम अयोध्या लौट आए हैं। राम मंदिर भले ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बना हो लेकिन इसके निर्माण में बीजेपी की भूमिका को कोई नकार नहीं सकता। बीजेपी ने भी विगत 22 जनवरी को जिस उत्साह से अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा समारोह मनाया वो देखने लायक था। 

समारोह का नेतृत्व खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी किया। ऐसे में भाजपा नेताओं के साथ-साथ विपक्षी नेता भी मानते हैं कि राम मंदिर के मुद्दे को जिस तरह से भुनाया गया है उससे उत्तर प्रदेश में बीजेपी को बड़ा फायदा होगा। विशेषज्ञों का भी ऐसा ही मानना है। वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र दुबे का मानना है कि इसी आधार पर ही भाजपा 400 पारके मिशन को पूरा करने का दम भर रही है। इसका प्रभाव दिख भी रहा है। खुद को आंबेडकरवादी साबित करने वाली जातियों और मुस्लिमों को छोड़कर हर वर्ग में राम मंदिर के निर्माण को बड़ी विजय प्राप्ति के रूप में देखा जा रहा है.

मनोवैज्ञानिक बढ़त : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में भाजपा का मनोबल सातवें आसमान पर है। यही वजह है पार्टी प्रदेश में मिशन-400 के लक्ष्य को पूरा करते हुए 65 से 72 लोकसभा सीटें जीतती दिखाई दे रही है, ऐसा कहना है वरिष्ठ पत्रकार मनीष पाठक का। उनका कहना है कि हम ऐसा इसलिए भी कह रहे हैं कि क्योंकि कांग्रेस के शीर्ष नेताओं की चुनावी रणनीति ने भी भाजपा की जीत को सुनिश्चित किया है। दरअसल गठबंधन के बावजूद लोकसभा चुनाव से ऐन पहले अपनी परंपरागत सीट रायबरेली को छोड़कर सोनिया गांधी ने राजस्थान से राज्यसभा जाने का निश्चय किया, जबकि राहुल गांधी ने अमेठी की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। इसके उलट राहुल गांधी खुद के अमेठी से चुनाव लड़ने की घोषणा करते तो निश्चित ही प्रदेश की सोयी हुई कांग्रेस में नयी जान पड जाती। 

गठबंधन के साथी चुनने में भी आगे : भाजपा ने प्रदेश की 80 सीटों पर जीत का लक्ष्य रखा है यानी उसे हर सीट पर जीत हासिल करनी है। इसी के तहत उसने अपने पुराने साथियों पर भरोसा जताया है। यही कारण है कि ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा, अनुप्रिया पटेल की अपना दल (एस) और निषाद पार्टी एनडीए गठबंधन में शामिल हैं। 

इसके अलावा सपा को झटका देते हुए और पश्चिम यूपी को साधने के लिए जयंत चौधरी की रालोद को भी भाजपा नेतृत्व ने अपने पाले में कर लिया है। अगर 2019 के आधार पर नजर डालें तो इन सभी दलों का वोट शेयर 52% के करीब पहुंच रहा है, जबकि जिस लक्ष्य को भाजपा हासिल करना चाहती है, उसे पाने के लिए 50% से अधिक वोट शेयर ही चाहिए। इस तरह से न केवल मुद्दों को भुनाने में बल्कि बेहतर रणनीति बनाने में भाजपा बहुत आगे निकल चुकी है। तीन लोकसभा चुनावों पर नजर डालें तो भाजपा 17% से 50% वोट शेयर पर पहुंच चुकी है।

क्या कहता है जातिगत समीकरण: प्रदेश की राजनीति में जातिवाद का बहुत गहरा प्रभाव है। ऐसे में सोशल इंजीनियरिंग का यहां बड़ा योगदान है। एक समय में बसपा सुप्रीमो मायावती की सोशल इंजीनियरिंग का कोई जवाब नहीं था, लेकिन अब भाजपा इस मामले में बहुत आगे दिखाई देती है। 

2019 में वोट शेयर

पार्टी वोट शेयर सीटें
भाजपा 50% 62
 सपा 18.1% 5
बसपा 19.4% 10
कांग्रेस 6.4% 1
अपना दल 6.1% 2
लगभग एक दशक के अनुभव के साथ विभिन्न विषयों पर रचनात्मक और तथ्यपरक लेखन करने में पारंगत। प्रिंट और डिजिटल मीडिया दोनों मंचों के लिए लिखने की अपार क्षमता। शोध आधारित गहन विश्लेषण और तार्किक प्रस्तुतिकरण कौशल। साथ ही मल्टीमीडिया पत्रकारिता अभियानों में भाग लेने का अनुभव।

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