Mahadevi verma Best Poems: महादेवी वर्मा की बेस्ट कविताएं जो कर देगी आपको भावुक

Authored By: Ranjan Gupta

Published On: Thursday, August 21, 2025

Updated On: Thursday, August 21, 2025

Mahadevi verma Best Poems

महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma), जिन्हें आधुनिक मीरा के नाम से भी जाना जाता है, हिंदी साहित्य के छायावादी युग की एक अप्रतिम कवयित्री थीं. Mahadevi verma poems मानवीय संवेदनाओं, विशेषकर विरह और वेदना, को अत्यंत गहराई और मार्मिकता से व्यक्त करती हैं. प्रकृति के सूक्ष्म अवलोकन और दार्शनिक चिंतन का अद्भुत संगम उनकी काव्य-यात्रा को विशिष्ट बनाता है. Mahadevi verma ki rachnayen न केवल साहित्यिक सौंदर्य से परिपूर्ण हैं, बल्कि उनमें एक शाश्वत सत्य और आध्यात्मिक ऊँचाई भी विद्यमान है. आइए इस लेख में पढ़ते हैं Mahadevi Verma Best Poems in Hindi जो आपको भावुक कर देगी.



Authored By: Ranjan Gupta

Updated On: Thursday, August 21, 2025

इस लेख में:

हिंदी साहित्य (Hindi Literature) में छायावाद एक ऐसा स्वर्ण युग था जिसने चार स्तंभ दिए – जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा. इन चारों में, महादेवी वर्मा का स्थान अद्वितीय है, विशेषकर उनकी वेदना प्रधान कविताओं के लिए. उन्हें ‘आधुनिक मीरा’ की उपाधि से नवाजा गया, यह उपाधि उनके काव्य में मीरा के समान ही गहन प्रेम, विरह और अलौकिक सत्ता के प्रति समर्पण की भावना को दर्शाती है.

Mahadevi ji ki kavitayen में एक ऐसी उदासी और करुणा है जो व्यक्ति को भीतर तक छू जाती है, फिर भी वह निराशावादी नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक खोज की ओर प्रेरित करती है. महादेवी वर्मा की कविताओं में प्रकृति के विविध रूप, मानवीय भावनाएँ, दार्शनिक चिंतन और एक Esoteric mysticism का सुंदर समन्वय मिलता है. आइए देखते हैं Mahadevi Verma Famous Poems in Hindi. साथ ही हम उनके जीवन के बारे में भी पढ़ेंगे.

Mahadevi Verma Best Poems in Hindi| महादेवी वर्मा की श्रेष्ठ कविताएं

रश्मि / महादेवी वर्मा

चुभते ही तेरा अरुण बान! बहते कन कन से फूट फूट, मधु के निर्झर से सजल गान.

“चुभते ही तेरा अरुण बान!
बहते कन कन से फूट फूट,
मधु के निर्झर से सजल गान.

इन कनक रश्मियों में अथाह,
लेता हिलोर तम-सिन्धु जाग;
बुदबुद से बह चलते अपार,
उसमें विहगों के मधुर राग;
बनती प्रवाल का मृदुल कूल,
जो क्षितिज-रेख थी कुहर-म्लान.

नव कुन्द-कुसुम से मेघ-पुंज,
बन गए इन्द्रधनुषी वितान;
दे मृदु कलियों की चटक, ताल,
हिम-बिन्दु नचाती तरल प्राण;
धो स्वर्णप्रात में तिमिरगात,
दुहराते अलि निशि-मूक तान.

सौरभ का फैला केश-जाल,
करतीं समीरपरियां विहार;
गीलीकेसर-मद झूम झूम,
पीते तितली के नव कुमार;
मर्मर का मधु-संगीत छेड़,
देते हैं हिल पल्लव अजान!

फैला अपने मृदु स्वप्न पंख,
उड़ गई नींदनिशि क्षितिज-पार;
अधखुले दृगों के कंजकोष–
पर छाया विस्मृति का खुमार;
रंग रहा हृदय ले अश्रु हास,
यह चतुर चितेरा सुधि विहान!”

मैं नीर भरी दु:ख की बदली!

Mahadevi verma Best Poems

“स्पंदन में चिर निस्पंद बसा,
क्रन्दन में आहत विश्व हंसा,
नयनों में दीपक से जलते,
पलकों में निर्झरिणी मचली!

मेरा पग-पग संगीत भरा,
श्वासों में स्वप्न पराग झरा,
नभ के नव रंग बुनते दुकूल,
छाया में मलय बयार पली,

मैं क्षितिज भॄकुटि पर घिर धूमिल,
चिंता का भार बनी अविरल,
रज-कण पर जल-कण हो बरसी,
नव जीवन अंकुर बन निकली!

पथ को न मलिन करता आना,
पद चिन्ह न दे जाता जाना,
सुधि मेरे आगम की जग में,
सुख की सिहरन बन अंत खिली!

विस्तृत नभ का कोई कोना,
मेरा न कभी अपना होना,
परिचय इतना इतिहास यही
उमड़ी कल थी मिट आज चली!”

जो तुम आ जाते एक बार

“कितनी करूणा कितने संदेश
पथ में बिछ जाते बन पराग
गाता प्राणों का तार तार
अनुराग भरा उन्माद राग

आँसू लेते वे पथ पखार
जो तुम आ जाते एक बार

हँस उठते पल में आर्द्र नयन
धुल जाता होठों से विषाद
छा जाता जीवन में बसंत
लुट जाता चिर संचित विराग

आँखें देतीं सर्वस्व वार
जो तुम आ जाते एक बार.”

पंथ होने दो अपरिचित प्राण रहने दो अकेला

Mahadevi verma Best Poems

“घेर ले छाया अमा बन
आज कंजल-अश्रुओं में रिमझिमा ले यह घिरा घन

और होंगे नयन सूखे
तिल बुझे औ’ पलक रूखे
आर्द्र चितवन में यहां
शत विद्युतों में दीप खेला

अन्य होंगे चरण हारे
और हैं जो लौटते, दे शूल को संकल्प सारे

दुखव्रती निर्माण उन्मद
यह अमरता नापते पद
बांध देंगे अंक-संसृति
से तिमिर में स्वर्ण बेला

दूसरी होगी कहानी
शून्य में जिसके मिटे स्वर, धूलि में खोई निशानी

आज जिस पर प्रलय विस्मित
मैं लगाती चल रही नित
मोतियों की हाट औ’
चिनगारियों का एक मेला

हास का मधु-दूत भेजो
रोष की भ्रू-भंगिमा पतझार को चाहे सहे जो

ले मिलेगा उर अचंचल
वेदना-जल, स्वप्न-शतदल
जान लो वह मिलन एकाकी
विरह में है दुकेला!”

मैं पलकों में पाले हूँ

Mahadevi verma Best Poems (

“जाने क्यों कहता है कोई,
मैं तम की उलझन में खोई,
धूममयी वीथी-वीथी में,
लुक-छिप कर विद्युत् सी रोई;
मैं कण-कण में ढाल रही अलि आँसू के मिस प्यार किसी का!
रज में शूलों का मृदु चुम्बन,
नभ में मेघों का आमंत्रण,
आज प्रलय का सिन्धु कर रहा
मेरी कम्पन का अभिनन्दन!
लाया झंझा-दूत सुरभिमय साँसों का उपहार किसी का!
पुतली ने आकाश चुराया,
उर विद्युत्-लोक छिपाया,
अंगराग सी है अंगों में
सीमाहीन उसी की छाया!
अपने तन पर भासा है अलि जाने क्यों श्रृंगार किसी का!
मैं कैसे उलझूँ इति-अथ में,
गति मेरी संसृति है पथ में,
बनता है इतिहास मिलन का
प्यास भरे अभिसार अकथ में!
मेरे प्रति पग गर बसता जाता सूना संसार किसी का!”

सब बुझे दीपक जला लूं

“सब बुझे दीपक जला लूं
घिर रहा तम आज दीपक रागिनी जगा लूं

क्षितिज कारा तोडकर अब
गा उठी उन्मत आंधी,
अब घटाओं में न रुकती
लास तन्मय तडित बांधी,
धूल की इस वीणा पर मैं तार हर त्रण का मिला लूं!

भीत तारक मूंदते द्रग
भ्रान्त मारुत पथ न पाता,
छोड उल्का अंक नभ में
ध्वंस आता हरहराता
उंगलियों की ओट में सुकुमार सब सपने बचा लूं!

लय बनी मृदु वर्तिका
हर स्वर बना बन लौ सजीली,
फैलती आलोक सी
झंकार मेरी स्नेह गीली
इस मरण के पर्व को मैं आज दीवाली बना लूं!

देखकर कोमल व्यथा को
आंसुओं के सजल रथ में,
मोम सी सांधे बिछा दीं
थीं इसी अंगार पथ में
स्वर्ण हैं वे मत कहो अब क्षार में उनको सुला लूं!

अब तरी पतवार लाकर
तुम दिखा मत पार देना,
आज गर्जन में मुझे बस
एक बार पुकार लेना
ज्वार की तरिणी बना मैं इस प्रलय को पार पा लूं!
आज दीपक राग गा लूं!”

Mahadevi verma Best Poems

बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ!

“नींद थी मेरी अचल निस्पन्द कण कण में,
प्रथम जागृति थी जगत के प्रथम स्पन्दन में,
प्रलय में मेरा पता पदचिन्ह जीवन में,
शाप हूँ जो बन गया वरदान बन्धन में,
कूल भी हूँ कूलहीन प्रवाहिनी भी हूँ!

नयन में जिसके जलद वह तुषित चातक हूँ,
शलभ जिसके प्राण में वह ठिठुर दीपक हूँ,
फूल को उर में छिपाये विकल बुलबुल हूँ,
एक हो कर दूर तन से छाँह वह चल हूँ;
दूर तुमसे हूँ अखण्ड सुहागिनी भी हूँ!

आग हूँ जिससे ढुलकते बिन्दु हिमजल के,
शून्य हूँ जिसको बिछे हैं पाँवड़े पल के,
पुलक हूँ वह जो पला है कठिन प्रस्तर में,
हूँ वही प्रतिबिम्ब जो आधार के उर में;
नील घन भी हूँ सुनहली दामिनी भी हूँ!

नाश भी हूँ मैं अनन्त विकास का क्रम भी,
त्याग का दिन भी चरम आसक्ति का तम भी
तार भी आघात भी झंकार की गति भी
पात्र भी मधु भी मधुप भी मधुर विस्मृत भी हूँ;
अधर भी हूँ और स्मित की चाँदनी भी हूँ!”

तुम मुझमें प्रिय, फिर परिचय क्या!

Mahadevi verma Best Poems

“तारक में छवि, प्राणों में स्मृति
पलकों में नीरव पद की गति
लघु उर में पुलकों की संस्कृति
भर लाई हूँ तेरी चंचल
और करूँ जग में संचय क्या?

तेरा मुख सहास अरूणोदय
परछाई रजनी विषादमय
वह जागृति वह नींद स्वप्नमय,
खेल-खेल, थक-थक सोने दे
मैं समझूँगी सृष्टि प्रलय क्या?

तेरा अधर विचुंबित प्याला
तेरी ही विस्मत मिश्रित हाला
तेरा ही मानस मधुशाला
फिर पूछूँ क्या मेरे साकी
देते हो मधुमय विषमय क्या?

चित्रित तू मैं हूँ रेखा क्रम,
मधुर राग तू मैं स्वर संगम
तू असीम मैं सीमा का भ्रम
काया-छाया में रहस्यमय
प्रेयसी प्रियतम का अभिनय क्या?”

अश्रु यह पानी नहीं है

Mahadevi verma Best Poems

“अश्रु यह पानी नहीं है, यह व्यथा चंदन नहीं है!
यह न समझो देव पूजा के सजीले उपकरण ये,
यह न मानो अमरता से माँगने आए शरण ये,
स्वाति को खोजा नहीं है औ’ न सीपी को पुकारा,
मेघ से माँगा न जल, इनको न भाया सिंधु खारा!
शुभ्र मानस से छलक आए तरल ये ज्वाल मोती,
प्राण की निधियाँ अमोलक बेचने का धन नहीं है.

अश्रु यह पानी नहीं है, यह व्यथा चंदन नहीं है!
नमन सागर को नमन विषपान की उज्ज्वल कथा को
देव-दानव पर नहीं समझे कभी मानव प्रथा को,
कब कहा इसने कि इसका गरल कोई अन्य पी ले,
अन्य का विष माँग कहता हे स्वजन तू और जी ले.
यह स्वयं जलता रहा देने अथक आलोक सब को
मनुज की छवि देखने को मृत्यु क्या दर्पण नहीं है.

अश्रु यह पानी नहीं है, यह व्यथा चंदन नहीं है!
शंख कब फूँका शलभ ने फूल झर जाते अबोले,
मौन जलता दीप, धरती ने कभी क्या दान तोले?
खो रहे उच्छ्‌वास भी कब मर्म गाथा खोलते हैं,
साँस के दो तार ये झंकार के बिन बोलते हैं,
पढ़ सभी पाए जिसे वह वर्ण-अक्षरहीन भाषा
प्राणदानी के लिए वाणी यहाँ बंधन नहीं है.

अश्रु यह पानी नहीं है, यह व्यथा चंदन नहीं है!
किरण सुख की उतरती घिरतीं नहीं दुख की घटाएँ,
तिमिर लहराता न बिखरी इंद्रधनुषों की छटाएँ
समय ठहरा है शिला-सा क्षण कहाँ उसमें समाते,
निष्पलक लोचन जहाँ सपने कभी आते न जाते,
वह तुम्हारा स्वर्ग अब मेरे लिए परदेश ही है.
क्या वहाँ मेरा पहुँचना आज निर्वासन नहीं है?

अश्रु यह पानी नहीं है, यह व्यथा चंदन नहीं है!
आँसुओं के मौन में बोलो तभी मानूँ तुम्हें मैं,
खिल उठे मुस्कान में परिचय, तभी जानूँ तुम्हें मैं,
साँस में आहट मिले तब आज पहचानूँ तुम्हें मैं,
वेदना यह झेल लो तब आज सम्मानूँ तुम्हें मैं!
आज मंदिर के मुखर घड़ियाल घंटों में न बोलो
अब चुनौती है पुजारी में नमन वंदन नहीं है.

अश्रु यह पानी नहीं है, यह व्यथा चंदन नहीं है!”

अधिकार

“वे मुस्काते फूल, नहीं
जिनको आता है मुर्झाना,
वे तारों के दीप, नहीं
जिनको भाता है बुझ जाना;

वे नीलम के मेघ, नहीं
जिनको है घुल जाने की चाह
वह अनन्त रितुराज,नहीं
जिसने देखी जाने की राह.

वे सूने से नयन,नहीं
जिनमें बनते आँसू मोती,
वह प्राणों की सेज,नही
जिसमें बेसुध पीड़ा सोती;

ऐसा तेरा लोक, वेदना
नहीं,नहीं जिसमें अवसाद,
जलना जाना नहीं, नहीं
जिसने जाना मिटने का स्वाद!

क्या अमरों का लोक मिलेगा
तेरी करुणा का उपहार?
रहने दो हे देव! अरे
यह मेरा मिटने का अधिकार!”

मैं प्रिय पहचानी नहीं

“पथ देख बिता दी रैन
मैं प्रिय पहचानी नहीं!

तम ने धोया नभ-पंथ
सुवासित हिमजल से;
सूने आँगन में दीप
जला दिये झिल-मिल से;
आ प्रात बुझा गया कौन
अपरिचित, जानी नहीं!
मैं प्रिय पहचानी नहीं!

धर कनक-थाल में मेघ
सुनहला पाटल सा,
कर बालारूण का कलश
विहग-रव मंगल सा,
आया प्रिय-पथ से प्रात-
सुनायी कहानी नहीं!
मैं प्रिय पहचानी नहीं !

नव इन्द्रधनुष सा चीर
महावर अंजन ले,
अलि-गुंजित मीलित पंकज-
-नूपुर रूनझुन ले,
फिर आयी मनाने साँझ
मैं बेसुध मानी नहीं!
मैं प्रिय पहचानी नहीं!

इन श्वासों का इतिहास
आँकते युग बीते;
रोमों में भर भर पुलक
लौटते पल रीते;
यह ढुलक रही है याद
नयन से पानी नहीं!
मैं प्रिय पहचानी नहीं!

अलि कुहरा सा नभ विश्व
मिटे बुद्‌बुद्‌‌-जल सा;
यह दुख का राज्य अनन्त
रहेगा निश्चल सा;
हूँ प्रिय की अमर सुहागिनि
पथ की निशानी नहीं!
मैं प्रिय पहचानी नहीं!”

महादेवी वर्मा: जीवन परिचय (Mahadevi Verma Jivan Parichay)

महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च 1907 को फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ था. उनके पिता गोविंद प्रसाद वर्मा भागलपुर के एक कॉलेज में प्राध्यापक थे और माता हेमरानी देवी धार्मिक प्रवृत्ति की थीं. महादेवी जी पर अपनी माता का गहरा प्रभाव पड़ा, जिन्होंने उन्हें संस्कृत और हिंदी साहित्य की शिक्षा दी तथा धार्मिक कथाएँ सुनाईं.

प्रारंभिक शिक्षा और वैवाहिक जीवन: महादेवी वर्मा की प्रारंभिक शिक्षा इंदौर के मिशन स्कूल में हुई. बाद में उन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.ए. की डिग्री प्राप्त की. उनका विवाह मात्र 9 वर्ष की आयु में डॉ. स्वरूप नारायण वर्मा से हो गया था, लेकिन उन्होंने विवाह उपरांत भी अपनी शिक्षा जारी रखी. उन्होंने गृहस्थ जीवन को त्याग कर साहित्य और समाज सेवा को अपना लक्ष्य बनाया. वे आजीवन अविवाहित रहीं और अपना जीवन साहित्य-साधना तथा समाज-सेवा में समर्पित कर दिया.

कर्मभूमि प्रयाग: महादेवी वर्मा की कर्मभूमि प्रयाग (इलाहाबाद) रही. उन्होंने प्रयाग महिला विद्यापीठ की स्थापना की और उसकी प्रधानाचार्या के रूप में कार्य किया. उन्होंने नारी शिक्षा और उत्थान के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए. वे महात्मा गांधी के विचारों से भी प्रभावित थीं और स्वतंत्रता आंदोलन में भी सक्रिय रहीं.
निधन: 11 सितंबर 1987 को इलाहाबाद में महादेवी वर्मा का निधन हो गया. वे हिंदी साहित्य में अपनी अमिट छाप छोड़ गईं.

  • सम्मान और पुरस्कार: महादेवी वर्मा को उनके साहित्यिक योगदान के लिए अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया.
  • ज्ञानपीठ पुरस्कार: 1982 में उनके काव्य-संग्रह ‘यामा’ के लिए उन्हें सर्वोच्च भारतीय साहित्यिक सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
  • पद्म भूषण: 1956 में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया.
  • पद्म विभूषण: 1988 में (मरणोपरांत) पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया.
  • साहित्य अकादेमी फेलोशिप: 1979 में साहित्य अकादेमी फेलोशिप से सम्मानित किया गया.
    अन्य सम्मानों में द्विवेदी पदक, मंगला प्रसाद पारितोषिक, भारत भारती पुरस्कार आदि शामिल हैं.

निष्कर्ष

महादेवी वर्मा का काव्य हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोहर है. उनकी कविताओं में वेदना का जो स्वरूप मिलता है, वह उन्हें ‘आधुनिक मीरा’ बनाता है, पर यह वेदना उन्हें कमजोर नहीं करती, बल्कि उन्हें एक आध्यात्मिक ऊँचाई प्रदान करती है. प्रकृति के मानवीकरण, प्रतीकात्मकता, संस्कृतनिष्ठ भाषा और गेयता ने उनकी कविताओं को अद्वितीय बना दिया है. आज भी उनकी कविताएँ प्रासंगिक हैं क्योंकि वे मानवीय भावनाओं के शाश्वत पहलुओं – प्रेम, विरह, करुणा, आशा और आध्यात्मिक खोज – को छूती हैं. महादेवी वर्मा का साहित्यिक अवदान उन्हें हिंदी साहित्य के इतिहास में एक अविस्मरणीय स्थान दिलाता है, और उनकी कविताएँ आज भी पाठकों के हृदय में उसी कोमलता और गहराई से उतरती हैं.

FAQ

महादेवी वर्मा की कविताओं की प्रमुख विशेषताओं में गहन भावनात्मकता, रहस्यवाद, प्रकृति प्रेम, नारीवादी चेतना और दुःख एवं वेदना का चित्रण शामिल है। उनकी भाषा अत्यंत Symbolic, Figurative & Musical होती है.
महादेवी वर्मा को ‘आधुनिक मीरा’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि मीराबाई की तरह ही उनकी कविताओं में भी प्रेम, विरह और अलौकिक सत्ता के प्रति गहन समर्पण का भाव प्रमुख है.
महादेवी वर्मा की कविताओं में प्रकृति एक सजीव और संवेदनशील सत्ता के रूप में चित्रित हुई है, जो कवयित्री के दुःख-सुख में सहभागी है.
महादेवी वर्मा की कई कविताएँ उनके रहस्यवाद का सर्वोत्तम उदाहरण प्रस्तुत करती हैं, जिनमें ‘मैं नीर भरी दुख की बदली’, ‘पंथ होने दो अपरिचित’, ‘जो तुम आ जाते एक बार’, ‘बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ’ और ‘दीपशिखा’ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं.
महादेवी वर्मा की कविताओं का हिंदी साहित्य में अविस्मरणीय योगदान है. उन्होंने छायावादी काव्यधारा को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया और उसे भावनात्मक गहराई व दार्शनिक चिंतन प्रदान किया. उनके योगदान के लिए उन्हें ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ सहित कई सम्मानों से नवाजा गया, जो हिंदी साहित्य में उनके अद्वितीय स्थान को दर्शाता है.


About the Author: Ranjan Gupta
रंजन कुमार गुप्ता डिजिटल कंटेंट राइटर हैं, जिन्हें डिजिटल न्यूज चैनल में तीन वर्ष से अधिक का अनुभव प्राप्त है. वे कंटेंट राइटिंग, गहन रिसर्च और SEO ऑप्टिमाइजेशन में माहिर हैं. शब्दों से असर डालना उनकी कला है और कंटेंट को गूगल पर रैंक कराना उनका जुनून! वो न केवल पाठकों के लिए उपयोगी और रोचक लेख तैयार करते हैं, बल्कि गूगल के एल्गोरिदम को भी ध्यान में रखते हुए SEO-बेस्ड कंटेंट तैयार करते हैं. रंजन का मानना है कि "हर जानकारी अगर सही रूप में दी जाए, तो वह लोगों की जिंदगी को प्रभावित कर सकती है." यही सोच उन्हें हर लेख में निखरने का अवसर देती है.
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