क्रोध को दबाएं नहीं सकारात्मक तरीके से बाहर निकालें, मन होगा शांत

Authored By: स्मिता

Published On: Thursday, August 22, 2024

Updated On: Thursday, August 22, 2024

express your anger positively

मन के अंदर दबा क्रोध कुंठा पैदा करता है। अंदर दबे क्रोध को बाहर निकालना जरूरी है। दूसरों द्वारा किए गए अन्याय के बोझ से दबना ठीक नहीं है। मन को शांत करने और खुद को ध्यान से जोड़ने के लिए मन के अंदर दबे क्रोध को सकारात्मक तरीके से बाहर निकालना जरूरी है।

कभी-कभी किसी व्यक्ति पर इतना क्रोध आता है कि उसे मन ही मन ढेर सारी गालियां लोग देने लगते हैं। उन्हें कोसते हैं। कई बार तो जिनसे विरोध रहता है, उन्हें शारीरिक कष्ट पहुंचाने का भी मेरा मन करता है। यह जरूरी नहीं कि क्रोध किसी व्यक्ति पर ही आए, कभी-कभी देश और समाज के हालात पर भी मन अधीर होने लगता है। उद्विग्न मन कुछ भी नकारात्मक करने के लिए तैयार हो जाता है। ऐसी स्थिति में ज्यादातर इंसान दो उपायों को अपनाते हैं। या तो अपने से कमजोर व्यक्ति पर अपना क्रोध (तेज आवाज में बोलना या हिंसा करना) उतार देते हैं। या फिर सामान को उठाकर इधर-उधर फेंक कर अपने दिल की भड़ास निकालते हैं। दूसरे उपाय के तहत क्रोध को दबा देते हैं। हम अपनी हताशा, बेचैनी को दिल और दिमाग के कई पर्तों में छुपा देते हैं और इसे मौनं सवार्थ साधनं की संज्ञा दे देते हैं। वास्तव में यह मौन नहीं, कुंठा है। हम जबरन गंभीरता व तटस्थता का आवरण ओढ़ लेते हैं, पर वक्त-बेवक्त दबा हुआ क्रोध मन के घाव के रूप में रिसता रहता है। कुंठित मन दिशाहीन हो जाता है। यदि उत्तर दिशा की ओर जाना है, तो हम अकारण ही दक्षिण दिशा की ओर चलने लगते हैं। आइये जानते हैं कैसे निकालें दबे क्रोध को।

तनाव निकालने का मजेदार तरीका

मनोचिकित्स्क कार्ल जुंग (Psychiatrist Carl Jung) ने अपने लेखन में एक मजेदार घटना की चर्चा की है। एक मालिक अपने यहां काम करने वाले को अक्सर अपशब्द कह देता और उसका अपमान करता। इससे एम्प्लॉई बड़ा परेशान होता, लेकिन अपने क्रोध को दबा देता। वह सोचता कि यदि उसने कुछ बोला, तो नौकरी चली जाएगी। वह ऊपर- ऊपर मुस्कराता रहता, लेकिन भीतर से उसका मन होता कि जूते से मालिक को पिटाई कर दूं। आखिर में उसे शक होने लगा कि कहीं सचमुच वह किसी दिन जूता निकालकर मार न दे। उसने जूता पहनना छोड़ दिया। एक मनोवैज्ञानिक ने उसे सलाह दी कि तुम अपने मालिक की एक फोटो घर ले आओ और उस फोटो को सुबह-शाम पांच-पांच जूते मारो। फोटो पर जूते मारते ही उसके भीतर से जैसे बादल फट गया। उसका तनाव जाता रहा। अगले दिन कार्यालय में पहली बार उसे अपने मालिक पर दया आई। उसे लगा कि इस बेचारे को तो कुछ पता भी नहीं है, पांच जूते खाकर बैठा है शान से। 15 दिनों तक यही चलता रहा। वह पूरी तरह से हलका हो गया। उसका अंतर्मन शांत और सुकून से भर गया।

प्रकृति की तरह अपनायें सकारात्मक उपाय

वातावरण में जब बहुत शांति दिखती है, तो हम आने वाले तूफान की आशंका जताते हैं। पृथ्वी के अंदर जब टेक्टोनिकल प्लेटों पर दबाव बढ़ता है, तभी भूकंप आता है। पृथ्वी की कमजोर सतह पाकर ज्वालामुखी फूट पड़ता है। तूफान या भूकंप की साम्यता हमारे मन से है। क्रोध को दबाने में हम अस्थायी तौर पर भले ही सफल हो जाएं, लेकिन मन के ज्वालामुखी रूपी गुबार फूटने की आशंका बराबर बनी रहती है। महान मनोवैज्ञानिक कार्ल गुस्ताव जुंग ने कहा है कि अक्सर हम जो बुरा मानते हैं, उसे अचेतन में दबा देते हैं। यह दबा हुआ हिस्सा भीतर ही भीतर घुमड़ता रहता है। यदि उसे सही निकास नहीं मिलता है, तो वह एक विस्फोट की तरह फट पड़ता है। इस यदि समाज की हिंसा कम करनी है, तो दबे हुए क्रोध को सकारात्मक तरीके से बाहर निकालना बेहद जरूरी है।

अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने की कोशिश

लेखक जयशंकर प्रसाद ने कहा है कि अन्याय सहना अन्याय करने से अधिक गलत है। भारत को आजादी कभी नहीं मिलती, यदि हम सब अंग्रेजों का अत्याचार सिर झुकाकर सहते जाते। यही बात रोजमर्रा के जीवन पर भी लागू होती है। हर छोटी बातों पर क्रोधपूर्ण प्रतिक्रिया देना तो उचित नहीं है, लेकिन यदि किसी अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने या प्रतिकार करने से किसी का हित हो रहा हो या फिर समूह को फायदा पहुंच रहा हो, तो हमें ऐसा करने से हिचकना नहीं चाहिए। अंदर दबे क्रोध को बाहर निष्काषित करने के बाद ही चित्त शांत हो सकता है। बशर्ते कि यह ऊर्जा सकारात्मक रूप में सामने आए।

गुस्से की सही अभिव्यक्ति सुरक्षा देती है

सम्राट अशोक जब छोटी उम्र में अपने भाई और दोस्तों की ईष्र्यापूर्ण बातों से आहत होते, तो अत्यंत क्रोधित हो जाते। तब उनके गुरु उन्हें तुरंत प्रतिक्रिया देने की बजाय क्रोध की ऊर्जा को सकारात्मक मोड़ देने की सलाह देते। वे कहते कि गुस्से की सही अभिव्यक्ति सुरक्षा भी देती है और अनावश्यक भावों से मुक्ति भी। गुस्से के क्षणों में लक्ष्य प्राप्ति की इच्छा प्रबल होती है। समाधान की दिशा में किया गया गुस्सा लक्ष्य की ओर ले जाता है। लक्ष्य पाने के लिए क्रोध की ऊर्जा को ध्यान और समाधि की तरफ मोडऩा होगा। ध्यान के अभ्यास से चेतन मन के अतिरिक्त अचेतन मन में छुपे तनाव को भी सतह पर लाकर दूर किया जा सकता है। इसलिए प्रतिदिन दस से पंद्रह मिनट तक किसी एक विषय पर आंखें बंद कर मन को एकाग्र करने का अभ्यास करें।

नकारात्मक ऊर्जा (Negative Energy) को बाहर निकालें

दार्शनिक और लेखक ओशो (Philosopher and Author Osho) ने दबे क्रोध को बाहर निकालने के लिए रोचक, लेकिन महत्वपूर्ण उपाय बताया है। वे कहते हैं कि कमरा बंद कर अकेले बैठ जाएं। जितना क्रोध मन में आए, आने दें। यदि किसी को मारने-पीटने का भाव आ रहा है, तो किसी एक तकिए को मारें-पीटें। वह कभी मना नहीं करेगा। यह क्रिया बेतुकी लग सकती है, लेकिन यह कारगर है। क्रोध को होने दें और ऊर्जा की एक घटना के रूप में उसका आनंद लें। दरअसल, क्रोध ऊर्जा का नकारात्मक रूप है। रोज सुबह केवल बीस मिनट इस पर समय दें। इसे रोज का ध्यान बना लें। कुछ दिनों बाद आप शांत होने लगेंगे, क्योंकि जो ऊर्जा क्रोध बन रही थी, वह बाहर फेंक दी गई। किसी को पीड़ा देने का भाव धीरे-धीरे विलीन हो जाएगा और किसी भी परिस्थिति में आपको क्रोध नहीं आएगा।

About the Author: स्मिता
धर्म-अध्यात्म, संस्कृति-साहित्य और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर शोध परक पत्रकारिता का लंबा अनुभव। समसामयिक मुद्दों पर आम और ख़ास से बातचीत करना और उन्हें नए नजरिये के साथ प्रस्तुत करना यूएसपी है।

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