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Guru Purnima 2025: कब है गुरु पूर्णिमा? जानें तिथि, शुभ मुहूर्त, इतिहास और आध्यात्मिक महत्व
Guru Purnima 2025: कब है गुरु पूर्णिमा? जानें तिथि, शुभ मुहूर्त, इतिहास और आध्यात्मिक महत्व
Authored By: Nishant Singh
Published On: Wednesday, July 9, 2025
Last Updated On: Wednesday, July 9, 2025
10 जुलाई 2025, गुरुवार को आषाढ़ पूर्णिमा का चांद चमकेगा गुरु के सम्मान में. यह दिन केवल तारीख नहीं, बल्कि ज्ञान के उस प्रकाश का जश्न है, जो हमारे जीवन को अंधेरों से बाहर लेकर आता है. गुरु, जो सिर्फ शिक्षक नहीं, बल्कि जीवन के रास्ते दिखाने वाले प्रकाश स्तम्भ हैं, उनका सम्मान करने का यह पावन अवसर हमें उनके अनमोल उपदेशों को दिल से अपनाने की प्रेरणा देता है. गुरु पूर्णिमा पर हम आभार के फूल चढ़ाकर, अपने जीवन को सही दिशा देने वाले उन गुरुओं को याद करते हैं, जिनके बिना यह सफर अधूरा है.
Authored By: Nishant Singh
Last Updated On: Wednesday, July 9, 2025
हर वर्ष आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाई जाने वाली गुरु पूर्णिमा भारतीय संस्कृति का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और आध्यात्मिक पर्व है. यह दिन उन गुरुओं को समर्पित होता है जो हमारे जीवन में अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाते हैं. इस वर्ष यह पर्व 10 जुलाई 2025, गुरुवार को मनाया जाएगा. गुरु न केवल शैक्षिक मार्गदर्शक होते हैं, बल्कि जीवन के हर मोड़ पर सही दिशा दिखाने वाले प्रेरणास्त्रोत भी होते हैं. इस लेख में हम जानेंगे गुरु पूर्णिमा का इतिहास, धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व, साथ ही यह पर्व आज के आधुनिक युग में कैसे प्रासंगिक बना हुआ है. आइए इस अवसर पर हम सभी अपने गुरुओं के प्रति आभार प्रकट करें और उनके बताए मार्ग पर चलने का संकल्प लें.
गुरु शब्द का अर्थ और महत्त्व (Meaning and Importance of the Word “Guru”)

“गुरु” केवल एक शब्द नहीं, बल्कि एक भावना है – एक ऐसा दीपक जो जीवन की राह में उजाला करता है. संस्कृत में ‘गु’ का अर्थ है अंधकार और ‘रु’ का अर्थ है प्रकाश. यानी गुरु वह होता है जो अज्ञान के अंधेरे को मिटाकर ज्ञान का प्रकाश फैलाता है. चाहे वह माता-पिता हों, शिक्षक, आध्यात्मिक मार्गदर्शक या कोई ऐसा व्यक्ति जो हमें सही राह दिखाए – वह सब हमारे जीवन के गुरु हैं. आज के समय में जब जीवन की गति तेज हो गई है और भ्रम बढ़ते जा रहे हैं, गुरु की भूमिका और भी अहम हो जाती है. गुरु पूर्णिमा पर हम न केवल अपने गुरुओं को याद करते हैं, बल्कि आत्मनिरीक्षण कर यह समझते हैं कि हम उनकी सीख को अपने जीवन में कितना उतार पा रहे हैं.
सत्यनारायण की कथा और गुरु पूर्णिमा का विशेष पूजन

गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर जगत के पालनहार भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करना अत्यंत शुभ माना जाता है. इस दिन सत्यनारायण भगवान की कथा सुनना और उनका विधानपूर्वक पूजन करने से घर में सुख, समृद्धि और शांति का वास होता है. पूर्णिमा तिथि में सत्संग, पुराण और भगवद गीता का पाठ विशेष फलदायी होता है, क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु का आशीर्वाद और माता लक्ष्मी की कृपा अत्यधिक प्रबल होती है. साथ ही, विष्णु सहस्रनाम का पाठ भी इस दिन करने से आध्यात्मिक उन्नति मिलती है.
देवगुरु बृहस्पति को करें विशेष सम्मान
गुरु पूर्णिमा को देवताओं के गुरु माने जाने वाले बृहस्पति देव को भी सम्मानित किया जाता है. इस दिन घर के उत्तर-पूर्व दिशा को हल्दी मिले जल से स्वच्छ करें और वहां घी का दीपक प्रज्वलित करना शुभ फल देता है. यह परंपरा बृहस्पति देव की कृपा पाने का मार्ग है और जीवन में ज्ञान और समृद्धि लाती है.
गुरु पूर्णिमा 2025 शुभ मुहूर्त
- ब्रह्म मुहूर्त: प्रातः 4:10 से 4:50 बजे तक
- अभिजीत मुहूर्त: प्रातः 11:59 से दोपहर 12:54 बजे तक
- विजय मुहूर्त: दोपहर 12:45 से 3:40 बजे तक
- गोधूलि मुहूर्त: सायं 7:21 से 7:41 बजे तक
गुरु पूर्णिमा का इतिहास और उत्पत्ति (History and Origin of Guru Purnima)
गुरु पूर्णिमा का पर्व भारतीय संस्कृति में वेदव्यास जी के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है. वेदव्यास ने चारों वेदों का संकलन, 18 पुराणों की रचना और महाभारत जैसे महान ग्रंथ की रचना की. उन्हें प्रथम गुरु माना जाता है, जिन्होंने ज्ञान की परंपरा को आगे बढ़ाया. इसी कारण यह दिन “व्यास पूर्णिमा” भी कहलाता है. प्राचीन भारत की ऋषि परंपरा में गुरु को जीवन का मार्गदर्शक, चिंतन और संस्कारों का वाहक माना गया है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन शिष्य अपने गुरु के चरणों में उपस्थित होकर उन्हें कृतज्ञता अर्पित करते थे. इस परंपरा की शुरुआत वैदिक काल में हुई, जो आज भी श्रद्धा और भक्ति के साथ जीवित है. गुरु पूर्णिमा केवल एक पर्व नहीं, बल्कि ज्ञान, अनुशासन और समर्पण का प्रतीक है.
हिंदू धर्म में गुरु की भूमिका (Role of the Guru in Hinduism)

हिंदू धर्म में गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊंचा माना गया है. ऐसा इसलिए क्योंकि गुरु ही वह माध्यम हैं, जो शिष्य को ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग दिखाते हैं. एक प्रसिद्ध श्लोक इसे बहुत सुंदर ढंग से व्यक्त करता है:
“गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः.
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥”
इस श्लोक में गुरु को ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता), विष्णु (पालक), और महेश (संहारक) के रूप में दर्शाया गया है. गुरु को ‘परब्रह्म’, यानी सर्वोच्च सत्य माना गया है. वह न केवल ज्ञान देते हैं, बल्कि आत्मा को जागृत करने का कार्य भी करते हैं. एक सच्चा गुरु शिष्य के जीवन को दिशा देता है, उसके विचारों को संस्कारित करता है और उसे अज्ञानता से मुक्ति की ओर ले जाता है.
गुरु पूर्णिमा के धार्मिक और आध्यात्मिक आयाम (Religious and Spiritual Dimensions of Guru Purnima)
गुरु पूर्णिमा न केवल एक सांस्कृतिक पर्व है, बल्कि इसका गहरा धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व भी है. यह पर्व मुख्यतः हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म में विशेष श्रद्धा से मनाया जाता है. हिंदू धर्म में इसे वेदव्यास जी के जन्मदिवस और गुरु की महिमा के प्रतीक रूप में मनाया जाता है. बौद्ध धर्म में इस दिन को विशेष माना जाता है क्योंकि इसी दिन भगवान गौतम बुद्ध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया था, जिसे धर्मचक्र प्रवर्तन कहा गया. वहीं जैन धर्म में यह दिन भगवान महावीर के मुख्य शिष्य इंद्रभूति गौतम को ज्ञान प्राप्त होने के उपलक्ष्य में श्रद्धा से मनाया जाता है. इन तीनों धर्मों में गुरु पूर्णिमा एक आध्यात्मिक जागरण और आत्मचिंतन का दिन होता है, जो आंतरिक शांति और मार्गदर्शन की प्रेरणा देता है.
बौद्ध धर्म में गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima in Buddhism)

बौद्ध धर्म में गुरु पूर्णिमा का विशेष महत्त्व है, क्योंकि इसी दिन भगवान गौतम बुद्ध ने बोधगया में ज्ञान प्राप्ति के बाद अपना पहला उपदेश दिया था. यह उपदेश उन्होंने सारनाथ में अपने पांच पुराने साथियों को दिया, जिसे धर्मचक्र प्रवर्तन कहा जाता है. यह बौद्ध धर्म का पहला प्रचार और आधिकारिक शुरुआत मानी जाती है. बुद्ध ने इस उपदेश में “मध्यम मार्ग”, चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग की शिक्षा दी, जो बाद में पूरे बौद्ध दर्शन का मूल आधार बना. इस दिन को बौद्ध अनुयायी न केवल गुरु के प्रति आभार प्रकट करने के लिए मनाते हैं, बल्कि ध्यान, व्रत और धर्मोपदेश सुनने जैसे आध्यात्मिक कार्यों में भी संलग्न रहते हैं. बौद्ध मठों में विशेष पूजा-अर्चना और प्रवचन का आयोजन होता है, जिससे यह दिन पूरी तरह आध्यात्मिक जागरूकता से भर जाता है.
आधुनिक युग में गुरु की भूमिका (Role of the Guru in the Modern Era)
आज के तेज़ और तकनीकी युग में गुरु की भूमिका पहले से कहीं अधिक व्यापक और बहुआयामी हो गई है. अब गुरु केवल धार्मिक या आध्यात्मिक व्यक्ति नहीं होते, बल्कि शिक्षक, माता-पिता, जीवन-कोच, मेंटर, खेल प्रशिक्षक या कोई भी ऐसा व्यक्ति गुरु बन सकता है, जो हमें सही दिशा दिखाता है. डिजिटल प्लेटफॉर्म्स और ऑनलाइन लर्निंग के दौर में अब मार्गदर्शन किसी स्थान या स्थिति तक सीमित नहीं रहा. एक सच्चा गुरु आज भी वही है जो अनुभव, ज्ञान और मूल्यों से शिष्य के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाए. आधुनिक जीवन की उलझनों में गुरु एक संयम, प्रेरणा और नैतिकता का प्रकाशस्तंभ बनकर उभरता है. गुरु पूर्णिमा के दिन हमें यह याद करना चाहिए कि जीवन में सच्चे मार्गदर्शक की आवश्यकता कभी कम नहीं होती.
गुरु पूर्णिमा कैसे मनाई जाती है? (How is Guru Purnima Celebrated?)

गुरु पूर्णिमा का दिन श्रद्धा, भक्ति और आभार प्रकट करने का पावन अवसर होता है. इस दिन मंदिरों में विशेष पूजा और हवन आयोजित किए जाते हैं, जहां गुरु की महिमा का गुणगान किया जाता है. आश्रमों और मठों में प्रवचन, ध्यान और भक्ति-संकीर्तन होते हैं. स्कूलों और कॉलेजों में शिक्षक सम्मान समारोह होते हैं, जहां विद्यार्थी अपने शिक्षकों को पुष्प, उपहार और धन्यवाद पत्र देकर सम्मानित करते हैं. कुछ लोग व्रत और ध्यान करके आत्मचिंतन भी करते हैं. शिष्य अपने गुरुओं के चरणों में उपस्थित होकर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और उनके उपदेशों को जीवन में अपनाने का संकल्प लेते हैं. सोशल मीडिया पर भी आज के युग में लोग अपने गुरुओं के लिए संदेश लिखते हैं. यह दिन गुरु और शिष्य के पवित्र रिश्ते को और मजबूत करता है.
गुरु पूर्णिमा पर विशेष अनुष्ठान और परंपराएं (Special Rituals and Traditions on Guru Purnima)
गुरु पूर्णिमा के दिन कई धार्मिक और आध्यात्मिक अनुष्ठान संपन्न होते हैं, जो इस पर्व को और भी पावन बना देते हैं. इस दिन लोग व्रत रखते हैं और सुबह-सुबह स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण कर पूजा-पाठ करते हैं. घरों और मंदिरों में गुरु की तस्वीर या चरण पादुका की विशेष पूजा की जाती है. ध्यान और जप के माध्यम से लोग आत्मिक शांति और गुरु से आशीर्वाद प्राप्त करने का प्रयास करते हैं. आश्रमों, मठों और साधना केंद्रों में विशेष सत्संग, प्रवचन और भंडारे का आयोजन होता है, जिसमें सैकड़ों श्रद्धालु भाग लेते हैं. कई शिष्य अपने गुरुओं के चरणों में विशेष भेंट या सेवा अर्पित करते हैं. ये परंपराएं न केवल श्रद्धा व्यक्त करती हैं, बल्कि जीवन में विनम्रता, अनुशासन और समर्पण की भावना भी जगाती हैं.
गुरु-शिष्य परंपरा का महत्व और वर्तमान स्थिति (Importance and Current Status of the Guru-Shishya Tradition)

भारतीय संस्कृति की एक अनमोल धरोहर है गुरु-शिष्य परंपरा, जो सदियों से ज्ञान, संस्कार और अनुभव के आदान-प्रदान का माध्यम रही है. इतिहास में गुरु-शिष्य संबंध केवल शिक्षा तक सीमित नहीं था, बल्कि यह जीवन के हर पहलू में मार्गदर्शन और अनुशासन की नींव था. वेद, उपनिषद और महाभारत जैसी ग्रंथों का ज्ञान इसी परंपरा से पीढ़ी-दर-पीढ़ी पहुंचा. आज के आधुनिक युग में तकनीक और डिजिटल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के बावजूद गुरु-शिष्य का संबंध जड़ें मजबूत रखता है. हालांकि गुरु की भूमिका बदल गई है, परन्तु उनका मार्गदर्शन, अनुभव और प्रेरणा आज भी उतनी ही महत्वपूर्ण है. गुरु पूर्णिमा हमें यह याद दिलाती है कि ज्ञान की असली शक्ति गुरु-शिष्य के गहरे संबंध में निहित है.
गुरु पूर्णिमा क्यों है एक प्रेरणादायक पर्व?
गुरु पूर्णिमा हमें ज्ञान, श्रद्धा और समर्पण की शक्ति से अवगत कराता है. यह पर्व केवल गुरुओं का सम्मान करने का दिन नहीं, बल्कि जीवन में सही मार्ग चुनने, सीखने और बढ़ने का संदेश भी देता है. गुरु की दी हुई शिक्षा हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाती है और जीवन को सार्थक बनाती है. इस दिन हम अपने गुरुओं के प्रति आभार व्यक्त करते हैं और उनके दिखाए मार्ग पर चलने का संकल्प लेते हैं. गुरु पूर्णिमा हमें यह भी सिखाती है कि जीवन में सच्चे गुरु वे ही होते हैं जो हमें आत्मनिर्भर बनाते हैं और सच्चाई का सामना करने की हिम्मत देते हैं. इसलिए यह पर्व हर व्यक्ति के लिए प्रेरणा और आशा का स्रोत है.