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Mallikarjuna Jyotirlinga: जानें मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का इतिहास, कथा और यात्रा मार्ग
Mallikarjuna Jyotirlinga: जानें मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का इतिहास, कथा और यात्रा मार्ग
Authored By: Nishant Singh
Published On: Saturday, July 12, 2025
Last Updated On: Saturday, July 12, 2025
Mallikarjuna Jyotirlinga Temple: मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग, आंध्र प्रदेश के श्रीशैलम पर्वत पर स्थित एक पवित्र स्थल है, जहां भगवान शिव और देवी पार्वती एक साथ पूजे जाते हैं. यह ज्योतिर्लिंग धार्मिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है. यहां की पौराणिक कथा, द्रविड़ स्थापत्य, पर्वतीय सौंदर्य और शक्तिपीठ का संगम इसे अद्वितीय बनाता है. यह मंदिर न केवल भक्ति का केंद्र है, बल्कि श्रद्धा, एकता और भारतीय संस्कृति का भी जीवंत प्रतीक है. जानिए मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग से जुड़ी खास बातें…
Authored By: Nishant Singh
Last Updated On: Saturday, July 12, 2025
भारत की आध्यात्मिक भूमि पर फैले बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक, मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग एक ऐसा दिव्य स्थल है जहां शिव और शक्ति का अनोखा संगम देखने को मिलता है. यह मंदिर आंध्र प्रदेश के श्रीशैलम पर्वत पर स्थित है, और इसे ‘दक्षिण का कैलाश’ भी कहा जाता है. यहां की हवाओं में भक्ति की सुगंध है, और हर पत्थर मानो शिव का मंत्र जपता है.
इस स्थान की विशेषता यह है कि यहां भगवान शिव मल्लिकार्जुन और माता पार्वती ब्रह्मरंभा के रूप में एक साथ विराजमान हैं. यही कारण है कि यह स्थान केवल शिवभक्तों के लिए नहीं, बल्कि शक्ति उपासकों के लिए भी अत्यंत पावन है.
प्राचीन कथाओं, भव्य स्थापत्य और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि आस्था का जीवित प्रतीक है, जहां हर भक्त को दिव्यता का अनुभव होता है.
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का परिचय

- स्थान: आंध्र प्रदेश के श्रीशैल पर्वत पर, नल्लामला पर्वतमाला में, कृष्णा नदी के तट पर स्थित.
- महत्व: भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में दूसरा स्थान.मल्लिकार्जुन’ बना है.
- विशेषता: यहां शिव और शक्ति (पार्वती) की संयुक्त पूजा होती है, जो अन्य ज्योतिर्लिंगों में दुर्लभ है.
- नाम की उत्पत्ति: ‘मल्लिका’ (पार्वती) और ‘अर्जुन’ (शिव) के नाम से मिलकर ‘
पौराणिक कथा
बहुत समय पहले की बात है. भगवान शिव और माता पार्वती अपने पुत्रों – श्री गणेश और कार्तिकेय के विवाह की तैयारी कर रहे थे. माता-पिता ने शर्त रखी कि जो पहले तीनों लोकों की परिक्रमा कर लौटेगा, उसका विवाह पहले होगा.
कार्तिकेय तुरंत अपने वाहन मयूर पर बैठकर निकल पड़े. परंतु बुद्धिमान गणेश जी ने अपने माता-पिता की परिक्रमा कर कहा, “मेरे लिए आप ही तीनों लोक हैं.” इससे प्रसन्न होकर शिव-पार्वती ने गणेश का विवाह पहले कर दिया.
कार्तिकेय लौटे तो यह जानकर बहुत आहत हुए. वे क्रोधित होकर दक्षिण दिशा की ओर निकल पड़े और श्रीशैल पर्वत पर तपस्या में लीन हो गए. अपने पुत्र की पीड़ा देख शिव और पार्वती स्वयं वहां आए.
वहीं भगवान शिव मल्लिकार्जुन और माता पार्वती ब्रह्मरंभा के रूप में प्रकट हुए. उसी दिन से यह स्थान बन गया मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग—जहां शिव और शक्ति दोनों एक साथ पूजे जाते हैं.
ऐतिहासिक महत्व
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का ऐतिहासिक महत्व अत्यंत गौरवपूर्ण है. यह मंदिर भारत के प्राचीनतम शिव मंदिरों में से एक माना जाता है और इसका उल्लेख शिवपुराण, स्कंदपुराण, और महाभारत जैसे ग्रंथों में मिलता है.
ऐसा कहा जाता है कि सातवीं शताब्दी में चालुक्य राजाओं ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया, जबकि विजयनगर सम्राट कृष्णदेव राय ने इसकी भव्यता को और बढ़ाया. यह मंदिर न केवल धार्मिक केंद्र रहा, बल्कि शैव और शक्त उपासकों का मिलन स्थल भी बना.
यहां होने वाले यज्ञ, तप और साधना ने इस स्थान को धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र बना दिया. मल्लिकार्जुन का यह तीर्थस्थल सदियों से श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक रहा है.
धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व

- मोक्ष का द्वार: यहां के दर्शन मात्र से मोक्ष की प्राप्ति होती है, ऐसा पुराणों में उल्लेख है.
- सभी कष्टों का नाश: यहां सच्चे मन से पूजा करने से जीवन के सभी दुख, रोग और परेशानियां दूर हो जाती हैं.
- अश्वमेध यज्ञ के बराबर पुण्य: यहां पूजा करने से अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य प्राप्त होता है.
- शिव-शक्ति का संगम: यह मंदिर शिव और शक्ति की संयुक्त उपासना का केंद्र है, जहां दोनों की पूजा एक साथ होती है.
मंदिर का भौगोलिक और प्राकृतिक सौंदर्य
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर आंध्र प्रदेश के श्रीशैलम पर्वत पर स्थित है, जो नल्लामला पर्वत श्रृंखला का हिस्सा है. यह क्षेत्र घने जंगलों, गहरी घाटियों और ऊंची पहाड़ियों से घिरा हुआ है, जिससे यहां का वातावरण शुद्ध, शांत और आध्यात्मिक ऊर्जा से भरपूर रहता है. मंदिर कृष्णा नदी के तट के समीप स्थित है, जो इसके प्राकृतिक सौंदर्य को और भी मनमोहक बनाती है.
सुबह और शाम को जब सूर्य की किरणें पहाड़ियों पर पड़ती हैं, तो मंदिर की भव्यता स्वर्गिक प्रतीत होती है. चारों ओर हरियाली, पक्षियों की चहचहाहट और मंद हवाएं इस स्थल को प्राकृतिक तीर्थ का अनुभव कराती हैं. यह स्थान केवल भक्ति का केंद्र नहीं, बल्कि प्रकृति की गोद में बसा एक स्वर्ग है.
मंदिर की वास्तुकला और संरचना

श्रीशैलम मंदिर का निर्माण दक्षिण भारतीय द्रविड़ शैली में हुआ है, जिसमें विशाल गोपुरम, नक्काशीदार स्तंभ, और भव्य मंडप हैं. मंदिर के गर्भगृह में मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग स्थित है, जिसके समीप माता भ्रामराम्बिका (पार्वती) का मंदिर भी है. मंदिर परिसर में कई छोटे-बड़े मंदिर, जलकुंड, और तीर्थ स्थल भी हैं, जहां भक्त स्नान और पूजा करते हैं.
पूजा विधि और परंपराएं
- अभिषेक: शिवलिंग का अभिषेक गंगाजल, दूध, शहद, और पंचामृत से किया जाता है.
- अर्पण: त्रिदली बेलपत्र, सफेद फूल, चंदन, और भस्म चढ़ाई जाती है.
- मंत्र: ‘ॐ नमः शिवाय’ और महामृत्युंजय मंत्र का जाप विशेष फलदायी माना जाता है.
- आरती: पूजा के अंत में दीप जलाकर आरती की जाती है, और भगवान को फल, मिष्ठान्न, नारियल का भोग अर्पित किया जाता है.
- त्योहार: महाशिवरात्रि, सावन, और कार्तिक मास में यहां विशेष उत्सव और मेले का आयोजन होता है.
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की यात्रा और दर्शन

- कैसे पहुंचें: श्रीशैलम, आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में स्थित है. यहां सड़क, रेल और हवाई मार्ग से पहुंचा जा सकता है. निकटतम रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डा हैदराबाद में है, जहां से सड़क मार्ग द्वारा श्रीशैलम पहुंचा जा सकता है.
- दर्शन और आरती समय: मंदिर प्रातः 4 बजे से रात्रि 10 बजे तक खुला रहता है. आरती और विशेष पूजा के समय अलग-अलग होते हैं, जिन्हें मंदिर की वेबसाइट या सूचना केंद्र से जाना जा सकता है.
- ड्रेस कोड: मंदिर में पारंपरिक भारतीय वस्त्र पहनना अनिवार्य है, विशेषकर पूजा के समय.
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग से जुड़ी रोचक बातें
- यह एकमात्र ज्योतिर्लिंग है जहां शिव और शक्ति दोनों की संयुक्त पूजा होती है.
- यहां के दर्शन से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है.
- मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग के साथ माता पार्वती का भी विग्रह स्थापित है, जिससे यह स्थल परिवारिक एकता और प्रेम का प्रतीक बन गया है.
- यहां प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु देश-विदेश से दर्शन करने आते हैं, विशेषकर महाशिवरात्रि और श्रावण मास में.
- श्रीशैलम का यह क्षेत्र वन्यजीव अभयारण्य और प्राकृतिक पर्यटन स्थल के रूप में भी प्रसिद्ध है.
आध्यात्मिक अनुभव और साधना
श्रीशैलम का वातावरण साधना, ध्यान और आत्मिक विकास के लिए अत्यंत अनुकूल है. यहां आकर भक्त अपने मन की शांति, संतोष और आत्मिक ऊर्जा का अनुभव करते हैं. मंदिर परिसर में कई साधु-संत, योगी और साधक साधना में लीन रहते हैं, जो इस स्थान की आध्यात्मिक ऊर्जा को और भी प्रबल बनाते हैं.
सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है. यह मंदिर समरसता, एकता और सेवा भावना का प्रतीक माना जाता है. यहां हर जाति, वर्ग और भाषा के लोग एक साथ पूजा-अर्चना करते हैं, जिससे सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल बनती है.
वर्षभर आयोजित होने वाले उत्सव, मेलों और रथ यात्राओं में लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं, जो भारत की विविध संस्कृति को एक सूत्र में बांधते हैं. मंदिर परिसर में भजन, कीर्तन, नाटक, और शास्त्रीय संगीत के आयोजन होते हैं, जो परंपरा और लोक संस्कृति को जीवंत बनाए रखते हैं. यह स्थान केवल भक्ति का नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और सामाजिक मूल्यों का सजीव केंद्र है.
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग न केवल शिवभक्तों के लिए, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए एक प्रेरणा है, जो जीवन में शांति, प्रेम, और आध्यात्मिकता की खोज में है. यहां की पौराणिक कथा, भव्यता, प्राकृतिक सौंदर्य, और आध्यात्मिक ऊर्जा हर किसी को आकर्षित करती है. यह स्थल हमें परिवार, प्रेम, त्याग, और भक्ति का महत्व सिखाता है. यदि आप जीवन में सच्ची शांति, मोक्ष, और आत्मिक संतोष की तलाश में हैं, तो मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की यात्रा अवश्य करें – यह अनुभव आपके जीवन को नई दिशा और ऊर्जा देगा.