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अधीरता और क्रोध जैसे दुर्गुणों को त्यागकर करें पूर्णता प्राप्त करने का प्रयास : श्री श्री रविशंकर
अधीरता और क्रोध जैसे दुर्गुणों को त्यागकर करें पूर्णता प्राप्त करने का प्रयास : श्री श्री रविशंकर
Authored By: स्मिता
Published On: Monday, December 30, 2024
Updated On: Monday, December 30, 2024
नव वर्ष के अवसर पर हर कार्य में पूर्णता को पाना अच्छा विचार है, लेकिन अधीरता, क्रोध और अत्यधिक चिंता करने जैसे दुर्गुणों के साथ पूर्णता पाने का विचार सही नहीं है। आर्ट ऑफ़ लिविंग के संस्थापक और आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर बताते हैं कि दुर्गुणों को त्यागकर पूर्णता पाने का प्रयास (New Year 2025 Resolution) करना चाहिए।
Authored By: स्मिता
Updated On: Monday, December 30, 2024
नया साल आने को है। हम पुराने का परित्याग कर नए को अपनाना चाहते हैं। नए साल के अवसर पर हम पूर्णता को पाना चाहते हैं। पूर्णता को पाने के लिए हम जल्दबाजी दिखाने लगते हैं। पूर्णता के लिए हम अकसर दुखी भी रहने लगते हैं। सतर्कता अच्छी है, लेकिन किसी चीज़ को पाने के लिए चिंतित और क्रोधित होना गलत है। नए साल में इन दोनों अवगुणों का परित्याग करने की कोशिश करें। नव वर्ष के अवसर पर इस आलेख के जरिए जानें आर्ट ऑफ़ लिविंग के संस्थापक और आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर के विचार…
बुरी प्रवृति के प्रति रहें अछूते
हर समय सभी चीजों का सही होना संभव नहीं है। यहां तक कि सर्वोत्तम और शुभ इच्छाओं के साथ किए गए महानतम कार्यों में भी खामियां हो सकती हैं। हम किसी भी कार्य में पूर्णता पाना चाहते हैं, लेकिन मन की बुरी प्रवृत्ति हमारी भावनाओं और मन को अपूर्ण और नकारात्मक बना सकती है। हमें अधीरता और क्रोध जैसे दुर्गुणों को त्यागकर पूर्णता पाने की कोशिश करनी चाहिए। किसी भी बुरी प्रवृति के प्रति भीतर से अछूते और मजबूत रहना ही ज्ञान में स्थित होना है।
अपूर्णता दिखावा करती है
यदि दुख न होता, तो आनंद का कोई मूल्य नहीं होता। कोई न कोई कारण हमेशा हमें परेशान करता रहता है। कभी-कभी यह परिवार के किसी सदस्य या मित्र का व्यवहार भी हो सकता है। पड़ोसी भी समस्या पैदा कर सकते हैं। अगर आपने निराश होने की आदत बना ली है, तो दुखी होने से आपको कोई नहीं बचा सकता है। जगह कितनी भी अच्छी क्यों न हो, अगर आप नकारात्मकता में फंस गए हैं तो आप दुखी रहेंगे। आप अपने स्वयं के प्रयास और जीवन के ज्ञान की मदद से ही इससे बाहर निकल सकते हैं। दुनिया सतह पर अपूर्ण दिखाई देती है, लेकिन गहराई में सभी सही है। पूर्णता छिपती है, अपूर्णता दिखावा करती है। अज्ञान की स्थिति में अपूर्णता स्वाभाविक है और पूर्णता एक प्रयास है। ज्ञान की स्थिति में अपूर्णता एक प्रयास है, पूर्णता अपरिहार्य है।
अपनी धारणाओं को बदलें
आपको अपने जीवन में मिलने वाले लोगों या परिस्थितियों को बदलने की कोशिश करने की बजाय अपनी धारणाओं को बदलने की जरूरत है। पूर्णता पाने के लिए किसी भी तरह की हड़बड़ी सही नहीं है। धीरे-धीरे ही बदलाव लाया जा सकता है। इसके लिए क्रोध की नहीं, बल्कि प्रेम की जरूरत है। आगे बढ़ने का एकमात्र तरीका यह है कि हम अच्छे कार्य करें और लोगों और स्थितियों को उसी तरह स्वीकार करें, जैसे वे हैं।
खुद के प्रति निराश नहीं हों
जिस क्षण आप किसी स्थिति या व्यक्ति को स्वीकार करते हैं, मन शांत हो जाता है। स्वीकार करने का अर्थ है कि अपूर्णता के लिए उसी तरह स्थान रखें, जिस तरह हम अपने घरों में कूड़ा रखने के लिए जगह बनाते हैं। न तो लोगों से निराश हों और न ही खुद से। अपना उत्साह बनाए रखें और जहां व जब जरूरत हो, वहां काम करें। इसी के माध्यम से एक दिन आप पूर्ण हो जाएंगे।
मन की बुरी प्रवृत्ति पर लगाम
आपका शरीर एक कठोर खोल की तरह है। और आपका मन, भीतर का स्व पानी जैसा है। आप अंदर पानी की तरह हैं। पानी की प्रकृति ठंडी और बहने वाली है, लेकिन जब पानी के समान अंतरतम, ईर्ष्या, क्रोध, हताशा और आपके द्वारा डाली जाने वाले सभी तरह के तापों से जल रहा होता है, तो पानी उबलता है और इसकी शीतल प्रकृति गायब हो जाती है। जल को ठंडा करने के लिए आपको इन लकड़ियों को हटाना होगा। अपनी बुरी प्रवृत्ति पर लगाम लगानी होगी।
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