Shani Sade Sati: न्यायप्रिय देव हैं शनि, कर्मयोगी व्यक्ति हैं उन्हें विशेष प्रिय

Shani Sade Sati: न्यायप्रिय देव हैं शनि, कर्मयोगी व्यक्ति हैं उन्हें विशेष प्रिय

Authored By: स्मिता

Published On: Friday, December 27, 2024

Last Updated On: Friday, December 27, 2024

shani saadhe sati nyaayapriya devata shani karmayogee vyaktiyon ka paksh lete hain
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शनि देव से ज्यादातर भक्तगण भय खाते हैं। उन्हें लगता है कि शनि की उन पर वक्र दृष्टि (Shani Sade Sati) पड़ सकती है, जबकि ऐसा नहीं है। धर्म ग्रंथ बताते हैं कि शनि न्यायप्रिय देव हैं। उनके लिए कर्म प्रधान है और कर्मयोगी व्यक्ति उन्हें विशेष प्रिय हैं।

Authored By: स्मिता

Last Updated On: Friday, December 27, 2024

जानकारी के अभाव में शनि देव (Shani Dev) के प्रति भक्तगण आशंका से भरे होते हैं। उन्हें लगता है कि शनि देव की वक्र दृष्टि उनपर पड़ेगी और उनका कुछ न कुछ बुरा हो जाएगा। उनका जीवन नकारात्मक ऊर्जा से भर सकता है। खासकर शनि की साढ़ेसाती से लोग भय खाते हैं। यदि हम धर्म ग्रंथों को पढ़ें, तो हमारा सारा भय समाप्त हो जाए। हम शनि देव के प्रति श्रद्धा से नत हो जाएं। शनि देव को खुद कर्म करना पसंद है और वे कर्मयोगी लोगों को पसंद भी करते हैं। आइये जानते हैं शनि देव और उनकी साढ़ेसाती (Shani Sade Sati) के बारे में।

नौ स्वर्गीय नवग्रह में से एक है शनि

शनि महिमा ग्रंथ में उल्लेख है कि हिंदू धर्म में शनि या शनैश्चर (Shanaishchara) का व्यक्तित्व दिव्य है। शनि एक ग्रह भी है। हिंदू ज्योतिष में नौ स्वर्गीय नवग्रह में से एक है शनि। शनि पुराणों में एक पुरुष हिंदू देवता का वर्णन है। उनकी प्रतिमा गहरे रंग की होती है, जो तलवार या राजदंड लिए हुए हैं। वे भैंस पर या कभी-कभी कौवे पर बैठे होते हैं। वह कर्म, न्याय और अत्याचार का विरोध करने वाले देवता हैं।

विचारों और कर्मों के आधार पर नियति

शनि देव पुस्तक के अनुसार, शनि व्यक्ति के विचारों, भाषण और कर्मों के आधार पर उनकी नियति तय करते हैं। शनि दीर्घायु, दुख, शोक, बुढ़ापे, अनुशासन, प्रतिबंध, जिम्मेदारी, देरी, महत्वाकांक्षा, नेतृत्व, अधिकार, विनम्रता, अखंडता और अनुभव से पैदा हुए ज्ञान के नियंत्रक हैं। वे दो पत्नियों से जुड़े हुए हैं। नीलम रत्न का मानवीकरण नीलम और मंदा, एक गंधर्व राजकुमारी।

कठोर अनुशासनकर्ता

ग्रह के रूप में यह विभिन्न हिंदू खगोलीय ग्रंथों में दिखाई देता है। आर्यभट्ट द्वारा आर्यभटीय, लतादेव द्वारा रोमक और वराहमिहिर द्वारा पंच सिद्धांतिका, ब्रह्मगुप्त द्वारा खंडखाद्यक और लल्ला द्वारा शिष्यधिवृद्ध ग्रंथ शनि को ग्रहों में से एक के रूप में प्रस्तुत करते हैं। इनमें संबंधित ग्रहों की गति की विशेषताओं का अनुमान लगाया जाता है। सूर्य देव और उनकी पत्नी छाया के पुत्र शनि देव को देवताओं या नवग्रहों में कठोर अनुशासनकर्ता के रूप में जाना जाता है। वैदिक ज्योतिष में उनका प्रभाव धैर्य, कड़ी मेहनत और दृढ़ता के पाठों से जुड़ा है।

शनि साढ़ेसाती आध्यात्मिक विकास का समय

शनि महिमा ग्रंथ में उल्लेख है कि हिंदू ज्योतिष में साढ़ेसाती ( Shani Sade Sati) शनि की 71⁄2 साल लंबी अवधि है। यह कई चुनौतियों वाला समय है। यह महान उपलब्धियों और मान्यता का समय भी है। शनि द्वारा लाए गए संघर्ष और आत्मनिरीक्षण अक्सर व्यक्ति को अपने उद्देश्य की गहरी समझ और ध्यान, योग और आत्म-चिंतन जैसे आध्यात्मिक कार्यों की ओर ले जाते हैं।

हनुमान जी ने तोड़ा अहंकार

न्याय के देवता शनिदेव पुस्तक के अनुसार, एक बार शनिदेव को अपनी क्षमताओं पर घमंड हो गया था। तब हनुमान जी ने शनिदेव का अहंकार चूर कर दिया था। इसके बाद शनिदेव ने हनुमान जी से यह वचन लिया कि वे कभी-भी उनके अनुयायियों को परेशान नहीं करेंगे। इसलिए साढ़ेसाती और ढैय्या के दौरान यदि भक्तगण हनुमान की पूजा करते हैं, तो शनि उनको कभी-भी नुकसान नहीं पहुंचाएंगे।

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About the Author: स्मिता
स्मिता धर्म-अध्यात्म, संस्कृति-साहित्य, और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर शोधपरक और प्रभावशाली पत्रकारिता में एक विशिष्ट नाम हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में उनका लंबा अनुभव समसामयिक और जटिल विषयों को सरल और नए दृष्टिकोण के साथ प्रस्तुत करने में उनकी दक्षता को उजागर करता है। धर्म और आध्यात्मिकता के साथ-साथ भारतीय संस्कृति और साहित्य के विविध पहलुओं को समझने और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने में उन्होंने विशेषज्ञता हासिल की है। स्वास्थ्य, जीवनशैली, और समाज से जुड़े मुद्दों पर उनके लेख सटीक और उपयोगी जानकारी प्रदान करते हैं। उनकी लेखनी गहराई से शोध पर आधारित होती है और पाठकों से सहजता से जुड़ने का अनोखा कौशल रखती है।
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