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Nitish Kumar के बाद किसका दौर? क्या गूंजेगा निशांत कुमार का नारा!
Nitish Kumar के बाद किसका दौर? क्या गूंजेगा निशांत कुमार का नारा!
Authored By: सतीश झा
Published On: Tuesday, February 25, 2025
Updated On: Tuesday, February 25, 2025
कभी परिवारवाद के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले नीतीश कुमार यदि परिवार को ही आगे कर दें, तो चौंकिएगा नहीं! यह राजनीति है. यहां अपने बनाए नियम अपनों के लिए ही तोड़े जाते हैं. वैसे भी राजनीति की प्रयोगशाला बिहार रही है. ऐसे में जदयू के तमाम नेता न चाहते हुए भी यदि आइए निशांत कुमार कहें, तो अचरज नहीं होना चाहिए.
Authored By: सतीश झा
Updated On: Tuesday, February 25, 2025
असल में, बिहार की राजधानी पटना में जदयू दफ्तर के बाहर एक पोस्टर भी लगा दिया गया है, जिसमें लिखा है ’बिहार करे पुकार, आइए निशांत कुमार’. इसके बाद से ही चर्चाएं तेज हो चली हैं. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar), जो परिवारवाद के खिलाफ अपनी स्पष्ट और दृढ़ राजनीतिक पहचान रखते हैं, अब खुद इसी मुद्दे पर चर्चा के केंद्र में आ गए हैं. वजह है उनके बेटे निशांत कुमार का संभावित राजनीतिक पदार्पण.
नीतीश कुमार के बाद निशांत
’परिवारवाद’ के खिलाफ अग्रणी भूमिका निभाने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार के ’राजनीतिक पदार्पण’ की अटकलें तेज हो गई हैं. चर्चा यही है कि होली बाद नीतीश कुमार अपने एकमात्र पुत्र निशांत की पॉलिटिकल एंट्री करवा देंगे. इस बात में दम इसलिए भी है कि आलाकमान से अबतक इसपर कोई खंडन नहीं आया है. एक सच यह भी है कि जदयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा अपने पार्टी के अध्यक्ष नीतीश कुमार की हर इच्छा किसी भी कीमत पर पूरी करते आए हैं.
कौन हैं निशांत कुमार?
निशांत कुमार अब तक सार्वजनिक जीवन से दूर रहे हैं और राजनीति में उनकी कोई सक्रिय भूमिका नहीं रही है. वे बेहद साधारण जीवन जीते हैं और अपनी निजी जिंदगी को लेकर सुर्खियों से दूर रहते आए हैं. लेकिन अब, अगर वे राजनीति में कदम रखते हैं, तो यह बिहार की राजनीति में एक बड़ा बदलाव साबित हो सकता है.
विपक्ष के लिए बड़ा मुद्दा?
अगर निशांत कुमार की एंट्री होती है, तो विपक्ष निश्चित रूप से इसे निशाना बनाएगा। खासकर राजद, जो नीतीश कुमार को “संघर्ष से उठे नेता” की बजाय “यू-टर्न लेने वाले” के रूप में प्रचारित करता रहा है, इस मुद्दे को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा.
अब तक जदयू के किसी बड़े नेता ने इस मुद्दे पर खुलकर बयान नहीं दिया है, लेकिन अंदरखाने चर्चा जोरों पर है कि पार्टी का एक बड़ा धड़ा निशांत को राजनीति में उतारने के पक्ष में है.
नया नहीं है बिहार में परिवारवाद
राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज है कि नीतीश कुमार की राजनीतिक विरासत उनके बेटे निशांत कुमार के हाथों में जाएगी. जेडीयू के बड़े नेताओं के लिए यह अब अनिवार्यता बनता जा रहा है. संजय झा हों या ललन सिंह, जेडीयू में बने रहना है, तो ‘निशांत कुमार जिंदाबाद’ कहना होगा. यह स्थिति राजद के जगदानंद सिंह और तेजस्वी यादव की तरह हो सकती है, जहां नेताओं को पार्टी नेतृत्व का जयकारा लगाना ही पड़ता है.
बिहार की राजनीति में वंशवाद अब नई हकीकत बन चुका है. चिराग पासवान को समर्थन न देने की वजह से चाचा पशुपति पारस हाशिए पर चले गए, क्योंकि वे अपने भाई रामविलास पासवान की तरह भतीजे का जयकारा नहीं लगा सके. सम्राट चौधरी, जो अब बिहार के उपमुख्यमंत्री हैं, कभी नीतीश कुमार के करीबी शकुनी चौधरी के पुत्र के रूप में जाने जाते थे. बीजेपी नेता डॉ. संजय जायसवाल भी राजद में रहे मदन मोहन जायसवाल के बेटे हैं. जीतन राम मांझी के परिवार में भी राजनीति विरासत बन गई है—उनके बेटे संतोष मांझी और बहू ही राजनीतिक उत्तराधिकारी माने जा रहे हैं.