बिहार में 15% यादव आबादी: क्या लालू परिवार को फिर मिलेगा पूरा समर्थन?

बिहार में 15% यादव आबादी: क्या लालू परिवार को फिर मिलेगा पूरा समर्थन?

Authored By: सतीश झा

Published On: Thursday, June 12, 2025

Last Updated On: Thursday, June 12, 2025

बिहार में 15% यादव वोट बैंक: क्या एक बार फिर लालू परिवार को मिलेगा पूरा साथ? जानिए आगामी चुनावों में यादव समाज का रुख.
बिहार में 15% यादव वोट बैंक: क्या एक बार फिर लालू परिवार को मिलेगा पूरा साथ? जानिए आगामी चुनावों में यादव समाज का रुख.

बिहार की राजनीति में यादव समुदाय की भूमिका हमेशा से निर्णायक रही है. राज्य की कुल जनसंख्या में करीब 15% हिस्सेदारी रखने वाले यादव लंबे समय से राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के मजबूत समर्थक माने जाते रहे हैं. खासकर लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) और उनके परिवार को यादव समुदाय का सबसे बड़ा प्रतिनिधि चेहरा माना जाता है. लेकिन 2025 के विधानसभा चुनाव और आगामी राजनीतिक घटनाक्रमों को देखते हुए एक बड़ा सवाल उठ रहा है — क्या यादव मतदाता इस बार भी लालू परिवार के साथ खड़े रहेंगे?

Authored By: सतीश झा

Last Updated On: Thursday, June 12, 2025

Yadav Population In Bihar 15: बिहार की राजनीति में यादव समुदाय की भूमिका हमेशा से निर्णायक रही है. करीब 14–15% आबादी के साथ यादव मतदाता लंबे समय से चुनावी समीकरणों को प्रभावित करते आए हैं. खासकर RJD के संस्थापक लालू प्रसाद यादव के उदय के बाद से यह समुदाय एकजुट होकर राजद के साथ खड़ा रहा है. पिछले तीन दशकों के चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो यादवों ने आमतौर पर लालू परिवार पर ही भरोसा जताया है. 1990 के दशक से लेकर 2020 के विधानसभा चुनाव तक, RJD का यादव मतदाताओं पर मजबूत पकड़ बनी रही है. 2020 के विधानसभा चुनावों में भी यादव बहुल इलाकों में राजद को बड़ी सफलता मिली थी. यह भी देखा गया कि जिन सीटों पर यादवों की आबादी अधिक थी, वहां तेजस्वी यादव के नेतृत्व को जमकर समर्थन मिला.

बिहार सरकार के जातिगत‌ सर्वे का आंकड़ा के मुताबिक राज्य में कुल 209 जातियां हैं. इनकी कुल आबादी 13 करोड़ 7 लाख 25 हजार 310 है. हिंदुओं में सबसे ज्यादा आबादी यादवों की है. जातीय सर्वे के आंकड़ों के मुताबिक यादव 14.266 फीसदी हैं, जबकि दूसरे नंबर पर पासवान (दुसाध) जाति के लोग हैं. राजनीति में कोई वोट बैंक स्थायी नहीं होता. यादवों का 15% जनसंख्या वाला यह बड़ा वर्ग यदि एकमुश्त किसी एक पार्टी के साथ खड़ा होता है, तो सत्ता का समीकरण पूरी तरह से बदल सकता है. अब सवाल यही है — क्या यादव फिर से लालू परिवार पर भरोसा जताएंगे, या बिहार की राजनीति में एक नया मोड़ आएगा?

यादवों का रुझान: किसके साथ रहा भरोसा?

2020 के बाद बदले राजनीतिक समीकरणों में कुछ बदलाव देखने को मिले. एनडीए (BJP + JDU) ने यादव समुदाय में सेंध लगाने की कोशिश की. भाजपा ने ओबीसी नेताओं को आगे बढ़ाकर सामाजिक समीकरणों को संतुलित करने का प्रयास किया. जदयू ने भी नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) की “समावेशी राजनीति” के जरिए कुछ क्षेत्रों में यादव वोटों को अपनी ओर खींचने की रणनीति अपनाई.

2024 के लोकसभा चुनावों में भी यादव मतदाताओं के झुकाव को लेकर चर्चा रही, हालांकि बड़ा वर्ग अब भी राजद के साथ ही नजर आया. भाजपा को कुछ इलाकों में यादव मतदाताओं का आंशिक समर्थन मिला, लेकिन वह निर्णायक प्रभाव नहीं डाल सका. राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यादव समुदाय का रुझान अब भी RJD के साथ है, लेकिन नई पीढ़ी के बीच कुछ बदलाव की शुरुआत देखी जा रही है. यदि अन्य दल सामाजिक न्याय, शिक्षा और रोजगार जैसे मुद्दों को लेकर ठोस रणनीति बनाएं, तो भविष्य में यह रुझान प्रभावित हो सकता है.

सामाजिक समीकरण और राजनीतिक बदलते रुझान

पिछले कुछ वर्षों में बिहार की राजनीति में जातीय आधार से इतर विकास, कानून-व्यवस्था और नेतृत्व क्षमता जैसे मुद्दों ने भी जगह बनाई है. वहीं, तेजस्वी यादव (Tejaswi Yadav) को लालू प्रसाद (Lalu Yadav) के उत्तराधिकारी के रूप में सामने लाया गया है, जिनकी छवि एक युवा नेता के रूप में उभरी है. हालांकि, विपक्षी दलों की ओर से यह लगातार उठाया जाता रहा है कि राजद (RJD) यादवों और मुसलमानों तक ही सीमित रह गया है.

भाजपा और जदयू की नजर भी यादव वोट बैंक पर

भारतीय जनता पार्टी (BJP) और जनता दल यूनाइटेड (JDU) जैसे दल अब यादव समुदाय में भी अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रहे हैं. केंद्र और राज्य में किए गए कुछ सामाजिक-आर्थिक प्रयासों, लाभकारी योजनाओं और स्थानीय नेताओं की नियुक्तियों के माध्यम से ये पार्टियाँ यादवों को साधने की कोशिश में हैं.

क्या बदलेगा पारंपरिक वोटिंग पैटर्न?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भले ही यादव समुदाय का बड़ा हिस्सा अब भी लालू परिवार के प्रति भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ है, लेकिन नई पीढ़ी के वोटर विकास और रोजगार जैसे मुद्दों को भी तवज्जो दे रहे हैं. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या इस बार भी यादव समुदाय पारंपरिक निष्ठा निभाएगा या कुछ नया राजनीतिक रुझान सामने आएगा.

बिहार चुनाव में जातिगत जनगणना बनेगी बड़ा मुद्दा?

आगामी विधानसभा चुनावों (Bihar Assembly Election 2025) की आहट के बीच यह सवाल उठने लगा है कि क्या जातिगत जनगणना एक बड़ा चुनावी मुद्दा बनेगी? सत्तारूढ़ दलों से लेकर विपक्ष तक, सभी इस मुद्दे पर अपनी-अपनी रणनीति बनाने में जुटे हैं.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) की सरकार ने पिछले साल राज्य में जातिगत गणना कराई थी और उसकी रिपोर्ट भी सार्वजनिक की गई थी. रिपोर्ट में बताया गया कि यादव समुदाय की आबादी 14.26%, कुर्मी 2.87%, कोइरी 4.21%, अनुसूचित जातियां 19.65% और अनुसूचित जनजातियां 1.68% हैं. इस रिपोर्ट के बाद राज्य में सामाजिक न्याय को लेकर बहस तेज हो गई थी.

RJD प्रमुख लालू प्रसाद यादव और उनके बेटे तेजस्वी यादव इस मुद्दे को लगातार हवा दे रहे हैं. तेजस्वी ने कहा है कि जनगणना ही सामाजिक न्याय की नींव है. अगर हमें सही आंकड़े नहीं मिलेंगे तो नीतियां कैसे बनेंगी? वहीं कांग्रेस और वाम दल भी इस पर केंद्र सरकार को घेरने की कोशिश कर रहे हैं. BJP ने इस मुद्दे पर संतुलित रुख अपनाया है। हालांकि कुछ नेता इसे विभाजनकारी राजनीति का औजार बता रहे हैं, लेकिन प्रदेश इकाई ने खुलकर विरोध भी नहीं किया है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जातिगत जनगणना एक भावनात्मक मुद्दा है और यह खासकर ओबीसी और ईबीसी समुदायों के बीच प्रभाव डाल सकता है. ऐसे में इस मुद्दे को लेकर चुनावी माहौल गर्म होना तय है.

About the Author: सतीश झा
सतीश झा की लेखनी में समाज की जमीनी सच्चाई और प्रगतिशील दृष्टिकोण का मेल दिखाई देता है। बीते 20 वर्षों में राजनीति, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय समाचारों के साथ-साथ राज्यों की खबरों पर व्यापक और गहन लेखन किया है। उनकी विशेषता समसामयिक विषयों को सरल भाषा में प्रस्तुत करना और पाठकों तक सटीक जानकारी पहुंचाना है। राजनीति से लेकर अंतरराष्ट्रीय मुद्दों तक, उनकी गहन पकड़ और निष्पक्षता ने उन्हें पत्रकारिता जगत में एक विशिष्ट पहचान दिलाई है
Leave A Comment

अन्य खबरें

अन्य राज्य खबरें