States News
दिल्ली की सियासत में क्यों असरदार नहीं दिख रही है अब तक भाजपा
दिल्ली की सियासत में क्यों असरदार नहीं दिख रही है अब तक भाजपा
Authored By: सतीश झा
Published On: Sunday, December 15, 2024
Updated On: Sunday, December 15, 2024
दिल्ली की सियासत में भारतीय जनता पार्टी (BJP) का असरदार नहीं दिखना एक दिलचस्प और जटिल विषय है। दिल्ली में भाजपा के लिए यह चुनौती इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यहाँ का राजनीतिक परिपेक्ष्य और चुनावी माहौल अलग और खास है। नीचे कुछ प्रमुख कारण दिए गए हैं जिनकी वजह से दिल्ली में भाजपा का असर अब तक अपेक्षाकृत कम रहा है।
Authored By: सतीश झा
Updated On: Sunday, December 15, 2024
यह पहली बार दिख रहा है कि किसी चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) पिछड़ रही है और अन्य विपक्षी पार्टियां, जैसे आम आदमी पार्टी (AAP) और कांग्रेस, चुनावी तैयारियों में उससे काफी आगे निकल चुकी हैं। खासकर दिल्ली जैसे महत्वपूर्ण राज्य में, जहां भाजपा को सबसे ज्यादा मजबूत होकर चुनावी मुकाबला करना चाहिए था, वह अब पिछड़ती हुई नजर आ रही है।
दिल्ली एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां भाजपा ने 1993 में सरकार बनाई थी, लेकिन 1998 में सत्ता खोने के बाद वह लगातार 26 वर्षों से दिल्ली में सत्ता से बाहर रही है। इसके बावजूद, भाजपा ने कोई मजबूत रणनीति नहीं बनाई है। 2013 में पार्टी सत्ता के करीब पहुंची थी, लेकिन उसके बाद 2015 और 2020 के चुनावों में उसके विधायकों की संख्या दहाई में भी नहीं पहुंच सकी।
दिल्ली में आम आदमी पार्टी (AAP) ने 2015 से लेकर 2020 तक लगातार अपनी पकड़ मजबूत की है। दिल्ली की जनता ने विशेष रूप से अरविंद केजरीवाल की नेतृत्व शैली, उनके कामकाजी तरीके और ‘आप’ द्वारा दी जा रही सुविधाओं जैसे मुफ्त बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य को पसंद किया। इससे भाजपा के लिए एक चुनौती खड़ी हो गई है, क्योंकि AAP ने अपनी पहचान दिल्ली के स्थानीय मुद्दों और आम आदमी के दरवाजे तक पहुंचने की अपनी रणनीति से बनाई है।
दिल्ली की राजनीति में राष्ट्रीय मुद्दों की तुलना में स्थानीय मुद्दे ज्यादा प्रभावी होते हैं। भाजपा की केंद्रीय राजनीति और मोदी सरकार के मुद्दे भले ही देश के अन्य हिस्सों में चर्चा का विषय बने, लेकिन दिल्ली में शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी, बिजली और कानून-व्यवस्था जैसे स्थानीय मुद्दों ने AAP को फायदा पहुँचाया है। दिल्ली की जनता ने देखा कि AAP ने इन मुद्दों पर गंभीरता से काम किया, जबकि भाजपा का ध्यान इन पर कम ही केंद्रित रहा।
इसके बावजूद, भाजपा दिल्ली चुनाव की तैयारियों में पीछे दिखाई दे रही है। इसके मुकाबले, आम आदमी पार्टी ने पहले ही 31 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है और चुनावी तैयारियां जोरों पर हैं। AAP ने महिला सम्मान योजना के तहत महिलाओं को एक हजार रुपए देने की घोषणा की है, जो आगामी चुनाव का प्रमुख एजेंडा बन सकता है।
दूसरी ओर, कांग्रेस ने भी अपनी चुनावी तैयारी तेज कर दी है और 21 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की है। कांग्रेस ने उम्मीदवारों की घोषणा से पहले दिल्ली में एक महीने की न्याय यात्रा निकाली, जिसमें पार्टी नेता सभी 70 विधानसभा क्षेत्रों में पहुंचे। हालांकि, कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता इस यात्रा में शामिल नहीं हुए, फिर भी पार्टी ने पिछड़ी जाति के नेता देवेंद्र यादव को आगे कर चुनावी मैदान में मजबूती से उतरने का ऐलान किया है।
भा.ज.पा. के लिए यह आदर्श स्थिति हो सकती थी, क्योंकि AAP और कांग्रेस का वोट आधार लगभग एक जैसा है। अगर उनका वोट बंटता है तो इसका फायदा भाजपा को हो सकता है, क्योंकि भाजपा पिछले कई चुनावों से करीब 35 फीसदी वोट शेयर बनाए हुए है। इसके अलावा, AAP सरकार के 10 साल के शासन के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर भी है, जो भाजपा के पक्ष में जा सकती है। फिर भी, भाजपा चुनावी तैयारियों में पिछड़ी हुई है।
सूत्रों के अनुसार, भाजपा की परिवर्तन यात्रा निकलने वाली थी, जिसे अचानक किसी कारणवश टाल दिया गया है। अब यह कहा जा रहा है कि प्रदेश भाजपा में कुछ बदलाव की योजना बनाई जा रही है, लेकिन चुनाव से केवल दो महीने पहले ऐसे बदलावों का कोई खास असर नहीं होगा।
दिलचस्प यह है कि भाजपा ने अब तक दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए एक भी उम्मीदवार घोषित नहीं किया है, जबकि उसकी विपक्षी पार्टियां अपने उम्मीदवारों की सूची पहले ही जारी कर चुकी हैं। भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर भी चर्चा हो रही थी, लेकिन पार्टी ने इस पर कोई स्पष्ट घोषणा नहीं की है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा की दिल्ली में कोई खास पहचान नहीं है, ऐसे में अगर पार्टी मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं करती तो चुनावी मुकाबला और भी मुश्किल हो सकता है।
अभी यह भी कहा जा रहा है कि भाजपा नए सिरे से यात्रा की योजना बना रही है, और उसके बाद ही उम्मीदवारों की घोषणा की जाएगी। इस बीच, पार्टी के रणनीतिकारों के लिए यह सबसे बड़ा सवाल बन चुका है कि दिल्ली चुनाव में भाजपा की तैयारी किस स्तर तक पहुंचेगी, और क्या भाजपा विपक्षी दलों की बढ़त को पकड़ पाएगी।