यूक्रेन युद्ध के बीच पुतिन की जीत के मायने
Authored By: Dr. Archana Upadhyay
Published On: Tuesday, April 16, 2024
Updated On: Wednesday, April 24, 2024
पुतिन की वर्तमान जीत के भारत और ग्लोबल साउथ के लिए गहरे निहितार्थ हैं। इससे भारत-रूस संबंधों में सार्थक जुड़ाव के नए चरण का आरंभ होगा...
रूसी में राष्ट्रपति चुनाव का नतीजा सबको पहले से पता था। चुनावी फैसले ने 24 साल से कभी प्रधानमंत्री तो कभी राष्ट्रपति के तौर पर रूसी सत्ता पर काबिज पुतिन के पांचवें कार्यकाल को सुनिश्चित कर दिया। रूस में 2008 के दौरान कानून बदलकर राष्ट्रपति का कार्यकाल चार साल से बढा कर छह साल कर दिया गया था। इसके अलावा, 2020 में जो संवैधानिक परिवर्तन किया गया था उसने पुतिन के लिए पांचवें कार्यकाल और तकनीकी रूप से देखें तो छठें कार्यकाल का मार्ग प्रशस्त किया क्योंकि इसने उनकी सत्ता 2030 तक तकरीबन सुनिश्चित कर दी। फिर भी रूस-यूक्रेन युद्ध जो अपने तीसरे वर्ष में प्रवेश कर चुका है उसके बीच में होने वाला यह चुनाव महत्वपूर्ण था। पुतिन के लिए चुनावपूर्व कई प्रतिकूल परिस्थितियां आईं, चुनाव से महीने भर पहले आर्कटिक जेल में पुतिन के कट्टर आलोचक और प्रतिद्वंद्वी एलेक्सी नवालनी की मौत, इससे पहले पिछले साल जून में वैगनर विद्रोह और उसके बाद अगस्त 2023 में एक रहस्यमय विमान दुर्घटना में इसके प्रमुख येवगेनी प्रिगोझिन के मरने के अलावा बहुत से व्यापारियों धनिकों, पुतिन के आलोचकों, असंतुष्टों की मौतों ने क्रेमलिन के प्रति कई असहज सवाल खड़े कर दिए थे।
बात चाहे मतदान प्रतिशत की हो या फिर मतदाताओं के बाहर निकलने और रूस व दुनिया पर प्रभाव छोड़्ने वाले मौजूदा राष्ट्रपति पुतिन के पक्ष में मत देने की, सब कुछ धुआंधार रहा। चुनाव इस मायने में महत्वपूर्ण है कि यह न केवल यूक्रेन में रूस के ‘विशेष सैन्य अभियान’ की पृष्ठभूमि में हुआ, बल्कि इस अर्थ में भी कि युद्ध की इस प्रक्रिया में ‘नए क्षेत्र’ भी शामिल हुए जैसे-डोनेट्स्क, लुहान्स्क, खेरसॉन और जापोरीजिÞया। 2024 की चुनावी कवायद की एक प्रमुख विशेषता सार्थक विपक्ष की अनुपस्थिति भी रही। यहां युद्ध-विरोधी उम्मीदवारों के लिए कोई जगह नहीं थी।
पुतिन को चुनौती देने वाले मात्र तीन ही नेता थे-रूस की लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी से लियोनिद स्लटस्की, कम्युनिस्ट पार्टी के निकोलाई खारितोनोव और न्यू पीपल्स पार्टी से व्लादिस्लाव दावानकोव। तीनों उम्मीदवार मोटे तौर पर क्रेमलिन की नीतियों के समर्थक रहे हैं और चुनाव में उनकी भागीदारी को चुनावी प्रक्रिया को थोड़ी वैधता प्रदान करने का उपक्रम समझा जा सकता है। लगभग 76 मिलियन वोटों में से 87.97% मत पाकर पुतिन ने रिकार्ड जीत हासिल की। गौरतलब है कि एक गैर-सरकारी संगठन, लेवाडा सेंटर ने अपने सर्वे में पहले ही बता दिया था कि पुतिन को 80 प्रतिशत से ज्यादा मिल सकते हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि इन चुनावों को लेकर रूस और पूरे यूरोप में कई स्थानों पर विरोध प्रदर्शनों की व्यापक चर्चा हुई।
यह चुनावी फैसला रूस के लिए घरेलू और बाहरी दोनों स्तरों पर महत्वपूर्ण है। घरेलू स्तर पर इसे यूक्रेन से युद्ध के बारे में पुतिन की नीतियों का जबरदस्त समर्थन माना जा सकता है। यह फैसला उन्हें ‘राष्ट्रीय एकता’ को मजबूत करने और ‘भविष्य के कई कार्यों’ को आगे बढ़ाने में सक्षम बनाता है। यूक्रेन के अंदर ‘बफर जोन’ का निर्माण ऐसा ही एक कार्य है। रूसी शहरों और संस्थानों पर लगातार यूक्रेनी हमले और घुसपैठ इस सोच के पीछे प्रेरक शक्ति है। 22 मार्च को मास्को कॉन्सर्ट हॉल पर आतंकी हमला, जिसमें चुनावी फैसले के बमुश्किल कुछ ही दिन बाद सैकड़ों लोग मारे गए और घायल हुए, रूस की सीमाओं और उसके नागरिकों के जीवन को सुरक्षित करने के लिए क्रेमलिन द्वारा लिए जाने वाले ऐसे संकल्प को मजबूत करेगा।
तीसरे विश्व युद्ध से केवल ‘एक कदम दूर’ होने की राष्ट्रपति पुतिन की चेतावनी इस लोकप्रिय धारणा को बढ़ावा देती है कि रूस सभी मोर्चों पर बड़े पैमाने पर युद्ध लड़ रहा है। 2024 में रूस के बजट का 40% पहले से ही ‘रक्षा क्षमता और सेना को मजबूत करने’ के लिए प्रतिबद्ध है। पुतिन की इस जीत का भारत और ग्लोबल साउथ के लिए गहरे निहितार्थ हैं। रूस और भारत के रिश्ते में इधर कुछ तनाव आ गया था। दोनों देशों ने रिश्ते को पटरी पर लाने की कोशिशें के बाद अब भारत के लिए यह रूस के साथ सार्थक जुड़ाव के नए चरण का आरंभ है। पुतिन को उनकी प्रभावशाली चुनावी जीत पर पीएम मोदी बधाई देने वाले पहले नेताओं में से एक थे। दो साल के अंतराल के बाद 2024 में एनुअल लीडरशिप समिट की बहाली इस रिश्ते के लिए अच्छा संकेत है और ये कई परियोजनाओं, परमाणु सहयोग, संयुक्त सैन्य उत्पादन और यूरेशियन आर्थिक संघ के साथ मुक्त व्यापार जैसे क्षेत्रों में अधिक भागीदारी का मार्ग प्रशस्त करेगी। बहुध्रुवीय दुनिया में भारत और रूस दोनों का बहुत बड़ा हित निहित है। इसी गर्मी में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन- 2024 रूस में होगा जिनके कई सदस्य ग्लोबल साउथ के हैं, बेशक यह इन देशों को इससे बहुत उम्मीदें होंगी।
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