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RBI का धमाकेदार Repo Rate Cut (June 2025): EMI में कटौती, महंगाई पर लगेगा ब्रेक, जानिए सभी बदलाव
RBI का धमाकेदार Repo Rate Cut (June 2025): EMI में कटौती, महंगाई पर लगेगा ब्रेक, जानिए सभी बदलाव
Authored By: Nishant Singh
Published On: Saturday, June 7, 2025
Last Updated On: Saturday, June 7, 2025
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने 6 जून 2025 को मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक में रेपो रेट (Repo Rate) में 50 बेसिस पॉइंट यानी 0.50% की अप्रत्याशित कटौती (Cut) की घोषणा की है. अब यह दर घटकर 5.50% पर आ गई है. क्या आपको पता है कि यह लगातार तीसरी बार रेपो रेट में कटौती हुई है? क्या इसका सीधा फायदा आपको मिलने वाला है? ऋण लेने वालों के लिए यह एक राहत की खबर है, लेकिन क्या जमाकर्ताओं को अब कम ब्याज दरों से समझौता करना पड़ेगा?
Authored By: Nishant Singh
Last Updated On: Saturday, June 7, 2025
6 जून 2025 को RBI ने रेपो रेट (Repo Rate) में 0.50% की बड़ी कटौती कर इसे 5.50% कर दिया, जो 2025 की तीसरी लगातार कटौती है. इसका सीधा फायदा लोन लेने वालों को मिलेगा—Home Loan, Car Loan और Personal Loan की EMI घटेगी. महंगाई दर घटकर 3.16% पर आने और आर्थिक विकास को गति देने के उद्देश्य से यह फैसला लिया गया. हालांकि, जमाकर्ताओं को अब एफडी और सेविंग अकाउंट पर कम ब्याज दर से समझौता करना पड़ सकता है. यह कदम महंगाई नियंत्रण और निवेश बढ़ाने के संतुलन की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है.
रेपो रेट आखिर होता क्या है, और यह भारतीय अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित करता है? क्या यह बैंकों और आरबीआई के बीच के लेन-देन से आगे बढ़कर आपकी जेब तक असर डालता है? इस लेख में हम रेपो रेट की परिभाषा, उसकी कार्यप्रणाली, ऐतिहासिक बदलाव, मौजूदा स्थिति, इसके व्यापक प्रभाव और जरूरी आंकड़ों को विस्तार से जानेंगे.
रेपो रेट कटौती के मुख्य कारण (Major Reasons of Repo Rate Cut)

- मुद्रास्फीति में गिरावट: खुदरा महंगाई दर अप्रैल 2025 में 3.16% तक आ गई, जो आरबीआई के 4% के लक्ष्य से भी कम है.
- आर्थिक विकास को बढ़ावा: पहली तिमाही में जीडीपी ग्रोथ 7.4% रही, लेकिन आगे की ग्रोथ को गति देने के लिए यह कदम उठाया गया है.
- वैश्विक अनिश्चितता: व्यापारिक अस्थिरता और वैश्विक मंदी की आशंका के बीच घरेलू मांग और निवेश को प्रोत्साहित करना जरूरी था.
रेपो रेट में बदलाव का सीधा असर (Direct Impact)

लोन और ईएमआई पर प्रभाव:
- रेपो रेट घटने के साथ ही बैंक अपने रेपो-लिंक्ड लोन की ब्याज दरें घटा रहे हैं, जिससे होम लोन, कार लोन, पर्सनल लोन की ईएमआई कम होगी.
- उदाहरण: यदि किसी होम लोन पर 8.5% ब्याज दर थी, तो अब यह 8% या उससे भी कम हो सकती है, जिससे 50 लाख के लोन पर 30 साल के लिए मासिक ईएमआई में करीब 1,500-2,000 रुपये तक की बचत हो सकती है.
जमाकर्ताओं पर असर:
- एफडी और सेविंग्स अकाउंट पर ब्याज दरें घट सकती हैं, जिससे जमाकर्ताओं की आमदनी पर असर पड़ेगा.
रेपो रेट में 50 बेसिस पॉइंट की कटौती का असर: बैंकों की ब्याज दरें और ईएमआई
बैंक का नाम | पुरानी ब्याज दर (%) | नई ब्याज दर (%) | 50 लाख के होम लोन पर 30 साल की ईएमआई (पुरानी) | 50 लाख के होम लोन पर 30 साल की ईएमआई (नई) | मासिक बचत (रुपये) |
---|---|---|---|---|---|
SBI | 8.50 | 8.00 | ₹38,446 | ₹36,688 | ₹1,758 |
HDFC Bank | 8.60 | 8.10 | ₹38,936 | ₹37,192 | ₹1,744 |
ICICI Bank | 8.70 | 8.20 | ₹39,428 | ₹37,698 | ₹1,730 |
नोट: दरों में बदलाव बैंक की नीति और कर्जदार की प्रोफाइल पर निर्भर करेगा.
रेपो रेट कटौती के अन्य फायदे
- व्यापार और उद्योग: सस्ते कर्ज से व्यापार और उद्योगों को पूंजी मिलती है, जिससे उत्पादन और रोजगार में वृद्धि होती है.
- रियल एस्टेट सेक्टर: होम लोन सस्ते होने से घर खरीदने की मांग बढ़ती है, जिससे रियल एस्टेट सेक्टर को मजबूती मिलती है.
- ऑटो सेक्टर: कार लोन सस्ते होने से वाहन बिक्री में भी तेजी आ सकती है.
रेपो रेट क्या है? (What is Repo Rate?)
रेपो रेट वह दर है जिस पर भारत का केंद्रीय बैंक, यानी भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), वाणिज्यिक बैंकों को अल्पकालिक ऋण प्रदान करता है. इस ऋण के बदले बैंक अपनी सरकारी प्रतिभूतियाँ (Government Securities) RBI के पास गिरवी रखते हैं. इस पूरी प्रक्रिया को ‘रिपर्चेज एग्रीमेंट’ कहा जाता है, जिसमें बैंक RBI को प्रतिभूतियाँ बेचते हैं और तय अवधि के बाद उन्हें पूर्व निर्धारित मूल्य पर वापस खरीद लेते हैं. यह प्रणाली बैंकों को अस्थायी धन की जरूरतों को पूरा करने में मदद करती है और मौद्रिक नीति के संचालन में एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में कार्य करती है.
रेपो रेट की कार्यप्रणाली (How Repo Rate Works?)
- जब बैंकों को नकदी (Liquidity) की आवश्यकता होती है, तो वे आरबीआई से रेपो रेट पर पैसा उधार लेते हैं.
- बैंक इसके बदले सरकारी बॉन्ड या प्रतिभूतियां गिरवी रखते हैं.
- तय समय के बाद बैंक यह राशि ब्याज सहित वापस करते हैं और अपनी प्रतिभूतियां पुनः प्राप्त कर लेते हैं.
- यह आमतौर पर एक दिन (ओवरनाइट) के लिए होता है, लेकिन समय अवधि बढ़ भी सकती है.
रेपो रेट का महत्व (Importance of Repo Rate)
- मुद्रास्फीति नियंत्रण: रेपो रेट बढ़ने पर बैंकों के लिए उधारी महंगी हो जाती है, जिससे आम जनता तक कर्ज का प्रवाह कम होता है और महंगाई पर नियंत्रण रहता है.
- आर्थिक विकास: रेपो रेट घटने पर बैंक सस्ते में कर्ज ले सकते हैं, जिससे वे ग्राहकों को सस्ते लोन दे सकते हैं. इससे निवेश और खर्च बढ़ता है, जो आर्थिक विकास को गति देता है.
- ब्याज दरों पर प्रभाव: रेपो रेट में बदलाव सीधा होम लोन, कार लोन, पर्सनल लोन आदि की ब्याज दरों और ईएमआई को प्रभावित करता है.
रेपो रेट कटौती का हालिया इतिहास (2024-2025)-Recent History of Repo Rate Cuts (2024–2025)
तिथि | रेपो रेट (%) | कटौती (बेसिस पॉइंट) |
---|---|---|
जून 2025 | 5.50 | 50 |
अप्रैल 2025 | 6.00 | 25 |
फरवरी 2025 | 6.25 | 25 |
दिसंबर 2024 | 6.50 | 25 |
रेपो रेट और महंगाई: तुलनात्मक आंकड़े (Repo Rate vs Inflation)
वर्ष | रेपो रेट (%) | खुदरा महंगाई दर (%) |
---|---|---|
2023 | 6.50 | 5.4 |
2024 | 6.25 | 4.8 |
अप्रैल 2025 | 6.00 | 3.16 |
जून 2025 | 5.50 | 3.7 (अनुमानित) |
आरबीआई के अन्य फैसले
- कैश रिजर्व रेशियो (CRR) में 100 बेसिस पॉइंट की कटौती: बैंकों के पास अतिरिक्त 2.5 लाख करोड़ रुपये की नकदी उपलब्ध होगी, जिससे वे और अधिक लोन दे सकेंगे.
- नीतिगत रुख ‘न्यूट्रल’: अब आरबीआई का फोकस महंगाई के साथ-साथ आर्थिक विकास पर भी रहेगा.
मुख्य बिंदु संक्षेप में:
- रेपो रेट अब 5.50% (जून 2025).
- लगातार तीसरी बार कटौती; कुल 2025 में 100 बेसिस पॉइंट की कटौती.
- लोन और ईएमआई सस्ते, एफडी पर ब्याज घटेगा.
- महंगाई दर नियंत्रण में, आर्थिक विकास को प्रोत्साहन.
रेपो रेट में 50 बेसिस पॉइंट की कटौती से आम जनता, उद्योग, और बाजार सभी को राहत मिलेगी. लोन लेना सस्ता होगा, ईएमआई घटेगी, और बाजार में नकदी बढ़ेगी. हालांकि, जमाकर्ताओं को कम ब्याज दरों के लिए तैयार रहना होगा. कुल मिलाकर, आरबीआई का यह कदम आर्थिक विकास को गति देने और महंगाई को नियंत्रण में रखने की दिशा में एक संतुलित प्रयास है. यह नीति आम लोगों की जेब पर सीधा असर डालेगी और बाजार में नई ऊर्जा लाएगी.