About Author: अनुराग श्रीवास्तव ने विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजनों को कवर करते हुए अपने करियर में उल्लेखनीय योगदान दिया है। क्रिकेट, फुटबॉल, हॉकी, और अन्य खेलों पर उनके लेख और रिपोर्ट्स न केवल तथ्यपूर्ण होती हैं, बल्कि पाठकों को खेल की दुनिया में गहराई तक ले जाती हैं। उनकी विश्लेषणात्मक क्षमता और घटनाओं को रोचक अंदाज में प्रस्तुत करने का कौशल उन्हें खेल पत्रकारिता के क्षेत्र में विशिष्ट बनाता है। उनकी लेखनी खेलप्रेमियों को सूचनात्मक और प्रेरक अनुभव प्रदान करती है।
Posts By: अनुराग श्रीवास्तव
देश में खेल संस्कृति किस तरह खिलखिला रही है, इसका ताजा प्रमाण पेरिस में चल रहे पैरालिंपिक में हमारे खिलाड़ियों द्वारा जीते जा रहे पदक हैं। दिव्यांग खिलाड़ियों ने अपने हौसले से सबका ध्यान खींचा है...
महिला टी20 विश्व कप 3 अक्टूबर से शुरू होगा। 5-5 टीमों के दो ग्रुप हैं। भारत ए ग्रुप में है और 4 अक्टूबर को न्यूजीलैंड के साथ अभियान का आगाज करेगा। पाकिस्तान के साथ दूसरे मैच के बाद भारतीय टीम 9 अक्टूबर को श्रीलंका और फिर 13 अक्टूबर को आस्ट्रेलिया से भिड़ेगी। ग्रुप स्टेज के बाद सेमीफाइनल 17 व 18 अक्टूबर तथा फाइनल 20 अक्टूबर को खेला जाएगा।
विनेश फोगाट के लिए पूरा देश दुआ कर रहा था कि सीएएस उनके साथ न्याय करेगा और उन्हें कम से कम सिल्वर मेडल मिल जाएगा। पर ऐसा नहीं हुआ... लंबे इंतजार के बाद आखिर कैस ने एक लाइन में उनकी अपील खारिज कर दी। सवाल है कि अब आगे क्या होगा? क्या अभी भी विनेश के पास कोई विकल्प है...
पेरिस ओलंपिक (Paris Olympics) का समापन हो गया है। भारत में ओलंपिक दल के प्रदर्शन को लेकर मिश्रित प्रतिक्रिया है। पदक विजेताओं को सराहा तो जा रहा है, लेकिन एक भी स्वर्ण पदक न मिलने और टोक्यो की टैली को बेहतर न पाने की कसक भी दिख रही है। सोशल मीडिया मंच इस तरह की प्रतिक्रियाओं से भरे पड़े हैं। तो आखिर क्या माना जाए? क्या भारत अब भी वहीं है या बदलते समय के साथ हम ओलंपिक जैसे वैश्विक और प्रतिष्ठित आयोजनों में बेहतर हो रहे हैं? सवाल कई हैं, लेकिन जवाब एक ही है-हम निश्चित ही बेहतर हो रहे हैं। अब आप पूछेंगे कैसे? मेडल तो पिछली बार कम आए हैं। एक भी सोने का पदक तक नहीं मिला, फिर भला यह बात कैसे गले के नीचे उतरे कि हम बेहतर हो रहे हैं? 1996 अटलांटा से व्यक्तिगत पदक जीतने का सिलसिला पेरिस तक जारी है। यही सबसे बड़ा बदलाव है। कैसे?...आइए समझते हैं...
आजकल यूट्यूब, शार्ट्स और रील का जमाना है। मोटिवेशन भी रेडीमेड अवेलेबल है। हर तरह का मोटिवेशन मिल रहा है, लेकिन ज्यादातर किताबी है। सुनने में अच्छा लगता है, लेकिन रियलिज्म से दूर होता है। इसी बीच आई है मोटिवेशन की एक शानदार कहानी खेल के मैदान से जो बताती है कि जीवन मेहनत के साथ किस्मत का भी खेल है, वह भी खासा रोचक। बात हो रही गुरुवार देर रात पेरिस ओलंपिक के भालाफेंक इवेंट की। भारत ही नहीं, दुनिया की निगाह में स्वर्ण पदक के दावेदार थे नीरज चोपड़ा और बाजी मार ले गए पाकिस्तान के अरशद नदीम। वही अरशद जिन्हें पिछली बार टोक्यो ओलंपिक में नीरज ने दोस्त की तरह दिलासा दिया था, समझाया था, साथ बुलाया था। महज तीन साल बाद वही अरशद थे, वही नीरज, बस तस्वीर दूसरी थी। इस कहानी से बहुत कुछ सीखने लायक है।
पेरिस में बुधवार की शाम को चेहरे उदास थे, महज 24 घंटे बाद वही चेहरे उल्लास और गौरव से खिले हुए थे। भारत ने 52 साल बाद लगातार दो ओलंपिक में कांस्य पदक जीते थे। भारतीय हाकी को पुराने दिन लौटाने की इस शुरुआत के पटकथा लेखक हैं गोलकीपर पीआर श्रीजेश और कप्तान हरमनप्रीत सिंह...
यूं तो एक खिलाड़ी के हर मैच ही अहम होता है, लेकिन जब आप ओलंपिक के मंच पर हों तो खेल का महत्व चरम पर होता है। जाहिर है कि दबाव भी बहुत होता है। पूरी दुनिया देख रही होती है और देश के करोड़ों खेल प्रेमियों की उम्मीदों का दबाव भी होता है, किंतु अपने हाकी स्टार पी श्रीजेश इस दबाव को भी प्रेरणा मानते हैं।
पेरिस ओलंपिक में भी भारतीय हाकी टीम ने पुराने स्वर्णिम युग की याद दिला दी है। पदक नहीं जीता है, लेकिन पहले ही मैच में धुरंधर आस्ट्रेलिया को पटखनी देकर भारतीय हाकी टीम ने 140 करोड़ भारतीयों का दिल तो जीत ही लिया है।
मन बड़ा चंचल होता है। यह हम सबने सुना है। बड़े-बुजुर्ग अक्सर यह कहते रहे हैं कि मन को काबू कर लिया तो जग जीत लिया, लेकिन क्या यह वाकई सच भी होता है। मनु भाकर ने इसका लिविंग एग्जांपल पेश किया है। पेरिस ओलंपिक में 10 मीटर एयर पिस्टल इवेंट में हरियाणा की इस छोरी ने जो ब्रांज मेडल जीता है, उसका सिर्फ रंग ही कांसे जैसा है पदक तो वह सोने से भी ज्यादा खरा है।
आजाद भारत को ओलंपिक में पहला व्यक्तिगत पदक दिलाने वाले पहलवान खशाबा जाधव की राह बहुत आसान नहीं थी। बमुश्किल वह हेलसिंकी पहुंचे थे जहां इतिहास रचा।