World Mental Health Day 2025: Rhea Chakraborty ने साझा की PTSD से जंग की कहानी, बोलीं- ‘मानसिक स्वास्थ्य संकट एक महामारी…’

Authored By: Galgotias Times Bureau

Published On: Friday, October 10, 2025

Last Updated On: Friday, October 10, 2025

Rhea Chakraborty ने PTSD और मानसिक स्वास्थ्य संकट पर खुलकर बात की, World Mental Health Day 2025 पर साझा की अपनी कहानी.
Rhea Chakraborty ने PTSD और मानसिक स्वास्थ्य संकट पर खुलकर बात की, World Mental Health Day 2025 पर साझा की अपनी कहानी.

विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर रिया चक्रवर्ती ने बताया कि कैसे उन्होंने PTSD से लड़ाई लड़ी और मुश्किल दौर में खुद को संभाला. उन्होंने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य को लेकर समाज में अभी भी कई तरह की गलत धारणाएं हैं. रिया ने यह भी बताया कि अब उन्हें अपना पासपोर्ट वापस मिल गया है.

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World Mental Health Day 2025: पिछले पाँच साल रिया चक्रवर्ती के लिए बेहद कठिन रहे हैं. इस दौरान उन्होंने कई उतार-चढ़ाव देखे, जिनका असर उनकी निजी और पेशेवर ज़िंदगी दोनों पर पड़ा. इन घटनाओं ने उनके मानसिक स्वास्थ्य को भी गहराई से प्रभावित किया. बावजूद इसके, रिया ने हार मानने के बजाय खुद से लड़ने का हौसला दिखाया. उन्होंने अपनी ज़िंदगी को दोबारा सँभालने की कोशिश की और धीरे-धीरे मानसिक रूप से मजबूत बनकर सामने आईं. आज रिया मानसिक स्वास्थ्य के महत्व पर खुलकर बात करती हैं और लोगों को इससे जुड़ी गलत धारणाओं को तोड़ने के लिए प्रेरित कर रही हैं.

रिया ने मानसिक स्वास्थ्य को लेकर क्या कहा?

आज विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर रिया चक्रवर्ती ने अपने मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े अनुभव साझा किए. उन्होंने बताया, “मैं PTSD (पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर) से गुजर रही थी. छोटी-छोटी बातों पर भी मुझे बहुत घबराहट होने लगती थी जैसे अगर कोई अचानक दरवाज़ा खोलने के लिए मेरी तरफ दौड़ता, तो मुझे डर लगने लगता था. मेरे पैरों की मांसपेशियों में लैक्टिक एसिड जमा हो जाता था, क्योंकि PTSD शरीर की ‘फाइट या फ्लाइट’ यानी लड़ो या भागो वाली प्रतिक्रिया को लगातार सक्रिय रखता है. इससे शरीर हमेशा तनाव की स्थिति में रहता है. धीरे-धीरे इसका असर मेरी पाचन प्रणाली पर भी पड़ा, क्योंकि कहा जाता है कि आंतें हमारा दूसरा दिमाग होती हैं. उस समय मैंने अपनी पूरी जीवनशैली बदल दी, दो साल तक मैं शाकाहारी रही और सिर्फ खिचड़ी खाती थी. ”

वर्तमान परिदृश्य पर टिप्पणी करते हुए, रिया आगे कहती हैं, “मुझे लगता है कि मानसिक स्वास्थ्य संकट एक महामारी है और हर कोई इससे गुजर रहा है. मैं आपको बता सकती हूँ कि आज 15-16 साल का कोई भी बच्चा भागदौड़ भरी ज़िंदगी के चलते यही कहेगा कि ‘मुझे चिंता है’. हर समय बहुत कुछ करने का दबाव रहता है. ”

हालाँकि वह मानती हैं कि मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बातचीत और जागरूकता बढ़ी है, लेकिन लोगों में आशंकाएँ अभी भी बनी हुई हैं. “मानसिक स्वास्थ्य को लेकर अभी भी एक कलंक है. अपने अनुभवों के बारे में बात करना, चाहे वह चिंता हो, अवसाद हो, PTSD हो या कोई भी आघात हो, अभी भी नापसंद किया जाता है. हालाँकि समाज का एक वर्ग यह समझ गया है कि मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ वास्तविक हैं, लेकिन एक समाज के रूप में हमारे सामने सबसे बड़ी समस्या है, निर्णय लेना. ”

रिया ने कहा, “मैंने साढ़े तीन साल थेरेपी ली है और एक समय ऐसा भी था जब मैं हर हफ़्ते थेरेपी लेती थी. हर बुधवार शाम 4 बजे, दो साल चार महीने तक लगातार, मैंने एक भी सेशन मिस नहीं किया. थेरेपी ने वाकई मेरी जान बचाई, इसलिए जो लोग कहते हैं कि थेरेपी बकवास है, मैं उस पर यकीन नहीं करती. ”

मानसिक स्वास्थ्य सुधारने के लिए रिया का कहना है कि हमें बस ज्यादा जागरूक और समझदार बनना चाहिए. उनका मानना है कि मानसिक स्वास्थ्य को भी किसी शारीरिक बीमारी की तरह ही देखा जाना चाहिए. जैसे अगर किसी को कैंसर है तो हम उसका मूल्यांकन या आलोचना नहीं करते, वैसे ही मानसिक स्वास्थ्य को भी समझना चाहिए. रिया इसे ‘मन का कैंसर’ कहती हैं और कहती हैं कि अगर लोग इसे इसी तरह देखने लगें, तो मानसिक स्वास्थ्य के बारे में गलतफहमियाँ नहीं होंगी. हमें बस अपना नजरिया बदलना होगा.

पासपोर्ट मिलने पर रिया ने क्या कहा?

हाल ही में अपना पासपोर्ट वापस मिलने पर रिया चक्रवर्ती कहती हैं, “मैंने जीवन में इतना बड़ा आघात झेला है कि अब जो भी छोटी-छोटी चीज़ें होती हैं, वे मामूली लगती हैं. मेरे लिए पासपोर्ट वापस पाना एक तरह का उपहार जैसा है. यह अनुभव आपको भविष्य में किसी भी कठिन परिस्थिति का सामना करने के लिए तैयार करता है और छोटी-छोटी चीज़ों की कदर करना सिखाता है. आज मेरे लिए सबसे कीमती चीज सामान्य जीवन है. सिर्फ़ अपना पासपोर्ट वापस पाना,चाहे मैं यात्रा पर जाऊं या नहीं, मुझे यह महसूस कराता है कि मैं स्वतंत्र हूँ और अगर कभी अचानक किसी काम के लिए यात्रा करनी पड़े, तो मैं जा सकती हूँ.

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