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फैसला: छात्रों का जान देना राष्ट्रीय संकट, सुप्रीम कोर्ट ने जारी किए 15 अहम दिशा-निर्देश
Authored By: अनुराग श्रीवास्तव
Published On: Saturday, July 26, 2025
Last Updated On: Saturday, July 26, 2025
छात्रों की आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं को 'राष्ट्रीय संकट' मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने स्कूलों, कॉलेजों और कोचिंग संस्थानों के लिए 15 अहम दिशा-निर्देश जारी किए हैं. इनमें मानसिक स्वास्थ्य परामर्शदाताओं की नियुक्ति, आत्महत्या रोकथाम हेल्पलाइन नंबरों का प्रचार, स्टाफ को मानसिक स्वास्थ्य प्रशिक्षण, भेदभाव के खिलाफ सख्त तंत्र और कोचिंग संस्थानों में संवेदनशील व्यवहार जैसी महत्वपूर्ण बातें शामिल हैं. कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि अब शिक्षण संस्थानों की जिम्मेदारी केवल पढ़ाई तक सीमित नहीं रह सकती. छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य की सुरक्षा भी उतनी ही जरूरी है.
Authored By: अनुराग श्रीवास्तव
Last Updated On: Saturday, July 26, 2025
Student Suicide Guidelines India: नई दिल्ली | देशभर के स्कूलों, कॉलेजों और कोचिंग संस्थानों में आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं ने आखिरकार सुप्रीम कोर्ट को सख्त रुख अपनाने पर मजबूर कर दिया. न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने इस गंभीर समस्या को ‘राष्ट्रीय संकट’ करार देते हुए आत्महत्या रोकने के लिए व्यापक दिशा-निर्देश जारी किए. कोर्ट ने केंद्र और सभी राज्य सरकारों को इन दिशानिर्देशों का पालन सुनिश्चित करने और 90 दिनों के भीतर रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया है.
इन दिशा-निर्देशों का पालन तब तक अनिवार्य रहेगा जब तक इस मुद्दे पर संसद कानून या नियामक ढांचा तैयार नहीं कर लेती. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि मौजूदा समय में खासतौर से शैक्षिक संस्थानों में आत्महत्या की रोकथाम के लिए प्रभावी कानूनी ढांचे की कमी है. कोर्ट के इस आदेश को विशेषज्ञ छात्र कल्याण के क्षेत्र में ऐतिहासिक कदम मान रहे हैं.
आइए जानते हैं सुप्रीम कोर्ट के इन 15 महत्वपूर्ण दिशा-निर्देशों के बारे में, जो छात्रों की ज़िंदगियां बचाने की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकते हैंः
मानसिक स्वास्थ्य पर जोर: हर संस्थान में परामर्शदाता अनिवार्य
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि 100 या उससे अधिक विद्यार्थियों वाले सभी शैक्षिक संस्थानों को बाल एवं किशोर मानसिक स्वास्थ्य में प्रशिक्षित कम से कम एक योग्य परामर्शदाता, मनोवैज्ञानिक या सामाजिक कार्यकर्ता की नियुक्ति करनी होगी. छोटे संस्थानों के लिए भी निर्देश है कि वे मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों और अस्पतालों के साथ रेफरल तंत्र विकसित करें, ताकि ज़रूरत पड़ने पर छात्रों को उचित मदद मिल सके.
कोर्ट ने कहा कि यह परामर्शदाता केवल औपचारिक सलाह के लिए नहीं होंगे, बल्कि छात्रों के छोटे समूहों, परीक्षा के समय, परिणाम के बाद, कोर्स बदलाव या अन्य तनावपूर्ण स्थितियों में निरंतर, अनौपचारिक और गोपनीय परामर्श देंगे. इससे छात्रों को भावनात्मक सहारा मिलेगा और तनाव के गंभीर स्तर तक पहुंचने से पहले ही मदद मिल सकेगी.
हर जगह आत्महत्या रोकथाम हेल्पलाइन नंबर प्रदर्शित हों
सभी शिक्षण संस्थानों को निर्देश दिया गया है कि वे आत्महत्या रोकथाम हेल्पलाइन नंबर और टेली-मानस सेवाओं की जानकारी प्रमुखता से प्रदर्शित करें. इसका मकसद यह है कि छात्रों को तुरंत पता हो कि मानसिक संकट की स्थिति में वे कहां संपर्क कर सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संस्थानों को मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं और नज़दीकी अस्पतालों के साथ लिखित रेफरल प्रोटोकॉल तैयार करना होगा. इससे संकट के समय छात्र और स्टाफ असमंजस में न पड़ें और सही समय पर सही मदद मिल सके.
शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों का प्रशिक्षण
दिशा-निर्देशों में स्पष्ट कहा गया है कि सभी शिक्षण एवं गैर-शिक्षण कर्मचारियों को प्रमाणित मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों द्वारा प्रशिक्षण दिया जाएगा. यह प्रशिक्षण मनोवैज्ञानिक प्राथमिक उपचार, आत्महत्या या आत्म-क्षति के चेतावनी संकेतों की पहचान, संवेदनशील प्रतिक्रिया और रेफरल तंत्र के बारे में होगा. इसका उद्देश्य है कि शिक्षक, प्रिंसिपल, प्रशासनिक स्टाफ से लेकर गार्ड तक सभी यह समझ सकें कि कब किसी छात्र को गंभीर मदद की ज़रूरत है और उसे कैसे सहायता की तरफ़ ले जाया जाए.
कोचिंग संस्थानों के लिए सख्त निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को आदेश दिया है कि वे 60 दिनों के भीतर कोचिंग संस्थानों के लिए नियम बनाएं. कोर्ट ने कहा कि कोचिंग संस्थानों को छात्रों को बैच में बांटते समय सावधानी रखनी चाहिए. विशेष रूप से कहा गया है कि छात्रों को केवल शैक्षणिक प्रदर्शन के आधार पर या सार्वजनिक रूप से उनका मजाक उड़ाकर नीचा दिखाने जैसी प्रथाओं से बचा जाए. छात्रों पर उनकी वास्तविक क्षमताओं से परे लक्ष्य थोपना भी हानिकारक है. कोर्ट का मानना है कि यह मानसिक दबाव छात्रों को तोड़ देता है.
भेदभाव और उत्पीड़न के खिलाफ सख्त तंत्र
कोर्ट ने कहा कि सभी संस्थानों में ऐसी घटनाओं की रोकथाम, रिपोर्टिंग और निवारण के लिए गोपनीय, सुरक्षित और सुलभ तंत्र बनाया जाए, जो जाति, वर्ग, लिंग, विकलांगता, धर्म या जातीयता के आधार पर यौन हमले, रैगिंग या उत्पीड़न की घटनाओं से जुड़े मामलों को संभाल सके. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि छात्रों को भेदभाव से पूरी तरह सुरक्षित रखने के लिए यह कदम बेहद ज़रूरी है.
संवेदनशील और समावेशी वातावरण
सभी संस्थानों को अपने कर्मचारियों को इस तरह प्रशिक्षित करना होगा कि वे हाशिए पर रहने वाले समुदायों के छात्रों के साथ संवेदनशील, समावेशी और गैर-भेदभावपूर्ण तरीके से जुड़ सकें. कोर्ट का कहना है कि किसी भी छात्र को अपनी पृष्ठभूमि या पहचान के कारण अलग-थलग या कमतर महसूस नहीं होना चाहिए.
‘मनोदर्पण’ और ‘राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति’ से प्रेरित नीति
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी शैक्षणिक संस्थान शिक्षा मंत्रालय की ‘मनोदर्पण’ पहल, स्वास्थ्य मंत्रालय की राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति और ‘उम्मीद’ मसौदा दिशानिर्देशों से प्रेरित होकर अपनी-अपनी मानसिक स्वास्थ्य नीति बनाएं और लागू करें. यह नीति संस्थान के हर स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता बढ़ाने, सहायता उपलब्ध कराने और आत्महत्या रोकने के लिए समर्पित होगी.
अदालत ने क्यों कहा यह राष्ट्रीय संकट ?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि छात्रों की आत्महत्या के मामले सिर्फ व्यक्तिगत त्रासदी नहीं, बल्कि सामाजिक और राष्ट्रीय संकट हैं. आत्महत्या की घटनाओं के पीछे परीक्षा में असफलता, पढ़ाई का दबाव, सामाजिक भेदभाव, रैगिंग, परिवार से दूरी जैसे कई कारक काम करते हैं. कोर्ट ने यह भी माना कि आज के समय में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को कलंक की तरह देखा जाता है, जिससे छात्र खुलकर अपनी तकलीफ साझा नहीं कर पाते.
संस्थानों की ज़िम्मेदारी को रेखांकित किया
इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक कहा कि संस्थानों की ज़िम्मेदारी केवल पढ़ाई करवाना और परीक्षा लेना नहीं है. उन्हें छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए भी पूरी तरह सक्रिय रहना होगा. अदालत ने कहा कि जब तक इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए जाते, हर साल सैकड़ों युवा अनमोल ज़िंदगियां इस दबाव में आत्महत्या के रास्ते पर चली जाएंगी.
अब आगे क्या ?
अब सभी राज्य सरकारों और केंद्र सरकार को इन दिशा-निर्देशों के पालन की स्थिति पर 90 दिनों के भीतर रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को देनी है. कोर्ट के इस आदेश के बाद उम्मीद है कि स्कूल, कॉलेज और कोचिंग संस्थान मानसिक स्वास्थ्य को लेकर और ज्यादा गंभीर होंगे. विशेषज्ञ मानते हैं कि इन निर्देशों को ईमानदारी से लागू किया गया तो छात्रों के लिए पढ़ाई का माहौल ज्यादा सुरक्षित, संवेदनशील और सहयोगी बन सकेगा सुप्रीम कोर्ट का यह ऐतिहासिक फैसला न केवल एक कानूनी आदेश है, बल्कि एक चेतावनी और अपील भी है कि अब समय आ गया है जब हम छात्रों को सिर्फ अकादमिक नंबरों से न तौलें, बल्कि उनकी मानसिक भलाई को प्राथमिकता दें.