पूर्णता के अनुभव के लिए चिंता नहीं, बल्कि उत्साह है जरूरी : श्री श्री रवि शंकर

पूर्णता के अनुभव के लिए चिंता नहीं, बल्कि उत्साह है जरूरी : श्री श्री रवि शंकर

Authored By: स्मिता

Published On: Monday, April 21, 2025

Last Updated On: Monday, April 21, 2025

श्री श्री रवि शंकर द्वारा पूर्णता के अनुभव पर विचार
श्री श्री रवि शंकर द्वारा पूर्णता के अनुभव पर विचार

Sri Sri Ravi Shankar: पूर्णता पाने के लिए व्यक्ति अक्सर दुखी और चिंतित होता रहता है. यदि व्यक्ति पूर्णता पाना चाहता है, तो उसे दुख, चिंता, क्रोध, लोभ का परित्याग कर हर स्थिति में उत्साह से भरपूर होना होगा.

Authored By: स्मिता

Last Updated On: Monday, April 21, 2025

हर समय सभी चीजों को प्राप्त कर लेना संभव नहीं है. यहां तक कि उत्तम और शुभ इच्छाओं के (Sri Sri Ravi Shankar) साथ किए गए महान कार्य में भी खामी आ जाती है. खुद को अपूर्ण सोचने की मन की प्रवृत्ति भावनाओं और मन को अपूर्ण और नकारात्मक बना देती है. इन चक्रों से बाहर निकलना और भीतर से अछूते और मजबूत बने रहना ही पूर्णता का बोध करा सकता है.

परेशान होने का कारण

यह दुनिया विपरीत मूल्यों के माध्यम से कार्य करती है. दुख न होता तो आनंद का कोई मूल्य नहीं होता. कोई न कोई कारण हमेशा आपको परेशान करने के लिए मौजूद रह सकता है. कभी-कभी यह परिवार के किसी सदस्य या मित्र का व्यवहार हो सकता है, या यह पड़ोसी हो सकता है, जो आपके लिए समस्या पैदा कर सकता है. राह चलते कोई पशु भी आपको परेशान कर सकता है.

स्वयं करना होगा प्रयास

अगर आपने निराश होने की आदत बना ली है, तो आपको दुख से कोई नहीं बचा सकता है. जगह कितनी भी अच्छी क्यों न हो, अगर आप नकारात्मकता में फंस गए हैं, तो आप दुखी रहेंगे. आप अपने स्वयं के प्रयास और जीवन के ज्ञान की मदद से ही इससे बाहर निकल सकते हैं.

ज्ञान पाने की खोज

दुनिया सतह पर अपूर्ण दिखाई देती है, लेकिन गहराई में सभी सही है. पूर्णता छिपती है; अपूर्णता दिखावा करती है. दुनिया सतह पर अपूर्ण दिखाई देती है, लेकिन नीचे सभी सही है. ज्ञानी सतह पर नहीं रहेगा बल्कि गहराई में खोज करेगा. अज्ञान की स्थिति में अपूर्णता स्वाभाविक है और पूर्णता एक प्रयास है. ज्ञान की स्थिति में अपूर्णता एक प्रयास है, पूर्णता अपरिहार्य है.

धारणाओं को बदलने की जरूरत

आपको अपने जीवन में मिलने वाले लोगों या परिस्थितियों को बदलने की कोशिश करने के बजाय अपनी धारणाओं को बदलने की जरूरत है. लोगों को अपूर्ण होने का अधिकार है. उन्हें सही करना आपका काम नहीं है. यदि आप समाज में रहते हैं, तो यह स्वाभाविक है कि कभी आपको प्रशंसा मिलेगी और कभी निंदा का भागी होना पड़ेगा. आप किसी से भी सुविधाजनक बर्ताव पाने की उम्मीद नहीं कर सकते. जो व्यक्ति जिस रूप में है आपको उसी रूप में स्वीकार करना होगा. स्वीकार करने का अर्थ है कि अपूर्णता के लिए उसी तरह स्थान रखें, जिस तरह हम अपने घरों में कूड़ा रखने के लिए जगह बनाते हैं.

आगे बढ़ने का एकमात्र तरीका यह है कि हम अच्छा कार्य करें और लोगों और स्थितियों को उसी तरह स्वीकार करें, जैसे वे हैं. जिस क्षण आप किसी स्थिति या व्यक्ति को स्वीकार करते हैं, मन शांत हो जाता है और आपको प्रतिक्रिया की बजाय सकारात्मकता के साथ आगे बढ़ जाते हैं. कर्मों में संतुलन तभी संभव है जब शांत मन से सम्यक कर्म किये जाते हैं. इसलिए न तो लोगों से निराश हों और न ही खुद से. अपना उत्साह बनाए रखें और जहां व जब जरूरत हो, वहां काम करें.

About the Author: स्मिता
स्मिता धर्म-अध्यात्म, संस्कृति-साहित्य, और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर शोधपरक और प्रभावशाली पत्रकारिता में एक विशिष्ट नाम हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में उनका लंबा अनुभव समसामयिक और जटिल विषयों को सरल और नए दृष्टिकोण के साथ प्रस्तुत करने में उनकी दक्षता को उजागर करता है। धर्म और आध्यात्मिकता के साथ-साथ भारतीय संस्कृति और साहित्य के विविध पहलुओं को समझने और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने में उन्होंने विशेषज्ञता हासिल की है। स्वास्थ्य, जीवनशैली, और समाज से जुड़े मुद्दों पर उनके लेख सटीक और उपयोगी जानकारी प्रदान करते हैं। उनकी लेखनी गहराई से शोध पर आधारित होती है और पाठकों से सहजता से जुड़ने का अनोखा कौशल रखती है।
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