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Karwa Chauth 2024: पति-पत्नी के एक-दूसरे के प्रति प्रेम और सम्मान का पर्व है करवा चौथ
Karwa Chauth 2024: पति-पत्नी के एक-दूसरे के प्रति प्रेम और सम्मान का पर्व है करवा चौथ
Authored By: स्मिता
Published On: Monday, October 14, 2024
Updated On: Monday, January 20, 2025
पति-पत्नी के एक - दूसरे के प्रति प्रेम और सम्मान का पर्व है करवा चौथ। इन दिनों यह व्रत कुंवारी कन्याओं, पुरुषों द्वारा भी मनाया जाता है। यहां करवा या करक का मतलब मिट्टी के बर्तन से होता है। इसके माध्यम से चंद्रमा को जल का अर्घ्य दिया जाता है। शाम में गणेश, शिव-पार्वती की पूजा की जाती है। इसके बाद चंद्रमा का दर्शन कर व्रत खोल लिया (Karwa Chauth 2024) जाता है।
Authored By: स्मिता
Updated On: Monday, January 20, 2025
करक चतुर्थी यानी करवा चौथ (Karwa Chauth 2024) पति-पत्नी के प्रेम का त्योहार है। आजकल कुंवारी कन्याएं और पुरुष भी इसे मनाते हैं। मिट्टी के बर्तन से चंद्रमा को अर्घ्य देकर, गणेश और शिव-पार्वती की पूजा के बाद चंद्र दर्शन कर व्रत खोला जाता है।
मिट्टी के बर्तन का है बहुत महत्व (Karwa Significance)
मिट्टी के बर्तन को ‘करवा’ या ‘करक’ के नाम से भी जाना जाता है। इसका करवा चौथ उत्सव में बहुत महत्व है। यह मिट्टी का बर्तन प्रेम और भक्ति का प्रतीक है। मिट्टी का बर्तन पति के प्रति पत्नी के प्रेम और भक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। यह उसके द्वारा अपने साथी के लिए किए गए त्याग और उनके बीच के बंधन का प्रतीक है।मिट्टी के बर्तन का उपयोग चंद्रमा को जल अर्पित करने के लिए किया जाता है। यह अनुष्ठानजोड़े के लिए सौभाग्य और समृद्धि लाता है।
मिट्टी का बर्तन पत्नी के उपवास का भी प्रतिनिधित्व करता है, जिसे निर्जला व्रत के रूप में जाना जाता है। यह सूर्योदय से शुरू होता है और शाम को चंद्रमा के दिखने तक चलता है। यह बर्तन पत्नी की अपने पति के प्रति समर्पण और प्रतिबद्धता की याद दिलाता है।
करवा चौथ 2024: तिथि
करवा चौथ 2024 की तिथि है रविवार, 20 अक्टूबर 2024। करवा चौथ पूजा मुहूर्त शाम 06:23 बजे से शाम 07:45 बजे तक होगा। करवा चौथ उपवास समय सुबह 07:56 बजे से शाम 07:39 बजे तक रहेगा। 20 अक्टूबर, 2024 को सुबह 03:16 बजे से चतुर्थी तिथि प्रारंभ हो जाएगी, जो 21 अक्टूबर, 2024 को सुबह 12:46 बजे खत्म हो जाएगी।
करवा चौथ का इतिहास और महत्व (Karwa Chauth History)
यह त्योहार महाभारत की कहानी से जुड़ा है। द्रौपदी ने पांडवों पर आई विपत्ति को दूर करने के लिए कुछ दिनों तक नीलगिरी पर्वत पर प्रार्थना और ध्यान किया। इसके बाद भाई श्रीकृष्ण से सहायता मांगी। वहीं दूसरी ओर, एक पौराणिक कथा में सावित्री पति की आत्मा के लिए मृत्यु के देवता भगवान यम से प्रार्थना करती है।
करवा चौथ की रस्में (Karwa Chauth Rituals)
विवाहित स्त्रियां सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक बिना कुछ खाए-पिए कठोर व्रत रखती हैं। वे भगवान शिव और उनके परिवार, जिसमें भगवान गणेश भी शामिल हैं, की पूजा करती हैं। व्रत चंद्रमा को देखने और उसे अर्घ्य देने के बाद ही तोड़ा जाता है।
करवा चौथ मुख्य रूप से उत्तरी और पश्चिमी भारत में मनाया जाता है। बाजार सजावटी वस्तुओं, पारंपरिक कपड़ों और मिठाइयों से भरे होते हैं, जो उत्सव की भावना को दर्शाते हैं। क्षेत्र के अनुसार अनुष्ठान अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन सार एक ही रहता है- प्रेम, भक्ति और विवाह के पवित्र बंधन का उत्सव।
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