Makar Sankranti 2025: कब है मकर संक्रांति, 14 या 15 जनवरी को

Makar Sankranti 2025: कब है मकर संक्रांति, 14 या 15 जनवरी को

Authored By: स्मिता

Published On: Monday, January 6, 2025

Updated On: Friday, January 10, 2025

Makar Sankranti 2025: Kab hai Makar Sankranti, 14 ya 15 January ko?
Makar Sankranti 2025: Kab hai Makar Sankranti, 14 ya 15 January ko?

सूर्य के उत्तरायण होने और मकर राशि में प्रवेश करने पर मकर संक्रांति मनाई जाती है। इस समय फसल की कटाई शुरू हो जाती है। इसलिए यह एक फसल उत्सव (Makar Sankranti 2025) भी है, जिसे पूरे देश में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है।

Authored By: स्मिता

Updated On: Friday, January 10, 2025

मकर संक्रांति सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का जश्न मनाता है। यह उन कुछ पारंपरिक त्योहारों में से एक है, जो सौर चक्रों के अनुसार मनाए जाते हैं। यह सर्दियों के अंत और लंबे दिनों की शुरुआत का भी प्रतीक है। माघ महीने की शुरुआत भी यहीं से होती है। मकर संक्रांति एक फसल उत्सव भी है, जिसे पूरे देश में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। त्योहार मनाने वाले इस बात को लेकर उलझन में हैं कि मकरसंक्रांति 14 तारीख को मनाएं या 15 तारीख को। आइये विशेषज्ञ (Makar Sankranti 2025) से जानते हैं।

आध्यात्मिक साधना के लिए महत्वपूर्ण अवधि (Makar Sankranti Spiritual Significance)

सूर्य को समर्पित त्योहार है मकर संक्रांति। इसमें सूर्य उत्तरायण होते हैं। इसलिए यह छह महीने के शुभ काल की शुरुआत का भी प्रतीक है। इसे ही उत्तरायण काल भी कहा जाता है। इसे आध्यात्मिक साधना के लिए महत्वपूर्ण अवधि माना जाता है। ज्योतिषशास्त्री डॉ. अनिल शास्त्री के अनुसार, 2025 में मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाया जाएगा, जो मंगलवार को है।

14 जनवरी को है मकर संक्रांति (Makar Sankranti 2025 : 14 January)

डॉ. अनिल शास्त्री बताते हैं, ‘14 जनवरी को मकर संक्रांति के दिन सुबह 9 बजकर 3 मिनट से लेकर सुबह 10 बजकर 48 मिनट तक महा पुण्य काल रहेगा। गंगा स्नान और दान का शुभ मुहूर्त सुबह 9 बजकर 3 मिनट से लेकर शाम 5 बजकर 46 मिनट तक रहेगा। मकर संक्रांति के अवसर पर लाखों लोग महाकुंभ में गंगा- जमुना और सरस्वती के संगम पर पवित्र डुबकी लगाएंगे। भक्तगण सूर्यदेव की पूजा-अर्चना कर प्रार्थना करेंगे। मान्यता है कि इससे यश-बल, बुद्धि की वृद्धि और समृद्धि आती है।’

मकर संक्रांति की तिथि में बदलाव (Makar Sankranti 2025 Date)

सौर कैलेंडर के अनुसार, सटीक तिथि हर साल थोड़ी-बहुत बदलती रहती है। परंपरागत रूप से मकर संक्रांति 14 जनवरी को पड़ती है। यह कभी-कभी 15 जनवरी को पड़ता है। यह बदलाव सौर चक्र और पृथ्वी के अक्षीय अग्रगमन के कारण होता है। एक पृथ्वी वर्ष लगभग 365.24 दिन लंबा होता है।

क्योेें सबसे महत्वपूर्ण है मकर संक्रांति (Importance of Makar Sankranti )

एक वर्ष में 12 संक्रांति होती हैं। सभी संक्रांतियों में से मकर संक्रांति को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। इसे देश भर में मनाया जाता है। मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाने का भी महत्व है। कई जगहों पर पतंग उड़ाने की प्रतियोगिता भी आयोजित की जाती है। मान्यता है कि पतंगें आसमान में बहुत ऊपर तक जा सकती हैं। इसके माध्यम से देवताओं का आशीर्वाद मिलता है।

संक्रांति पर काले वस्त्र पहनने की मान्यता (Black Dress in Makar Sankranti)

भले ही काले रंग को त्योहारों और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए अशुभ रंग माना जाता है। पर मकर संक्रांति के अवसर पर काले कपड़े पहनने की मान्यता रही है। काले रंग को सूर्य की किरणों को सोखने वाला माना जाता है। मकर संक्रांति सूर्य के उत्तरी गोलार्ध की ओर यात्रा की शुरुआत का प्रतीक है। इसलिए काले कपड़े पहनने से सूर्य की सकारात्मक ऊर्जा को अवशोषित करने में मदद मिल सकती है। साथ ही ठंड के दिनों में गर्मी भी मिलती है।

किन नामों से देश भर में मनाई जाती है मकर संक्रांति

राज्य विवरण
तमिलनाडु यह तमिलनाडु का प्रमुख त्योहार है। यह चार दिनों तक मनाया जाता है और पोंगल (Pongal 2025) के नाम से जाना जाता है।
आंध्र प्रदेश कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति कहा जाता है।
पंजाब मकर संक्रांति से पहले की शाम को लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है।
गुजरात मकर संक्रांति को मिठाइयों के आदान-प्रदान के साथ मनाया जाता है। गुजराती में मकर संक्रांति को उत्तरायण कहा जाता है। यह 2 दिनों तक चलता है। 14 जनवरी को उत्तरायण और 15 जनवरी को बासी-उत्तरायण कह जाता है।
असम यह भोगाली बिहू के रूप में मनाया जाता है।
पश्चिम बंगाल बंगाल में पौष संक्रांति एक शुभ दिन है, जब किसान अपनी फसल की कटाई शुरू करते हैं।
दिल्ली दिल्ली और हरियाणा में इसे सुखरात के नाम से भी जाना जाता है।
झारखंड मकर संक्रांति के दिन झारखंड में धूमधाम से टुसू पर्व मनाया जाता है।
बिहार इसे तिल संक्रांति (Til Sankranti) के नाम से भी जाना जाता है।
About the Author: स्मिता
स्मिता धर्म-अध्यात्म, संस्कृति-साहित्य, और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर शोधपरक और प्रभावशाली पत्रकारिता में एक विशिष्ट नाम हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में उनका लंबा अनुभव समसामयिक और जटिल विषयों को सरल और नए दृष्टिकोण के साथ प्रस्तुत करने में उनकी दक्षता को उजागर करता है। धर्म और आध्यात्मिकता के साथ-साथ भारतीय संस्कृति और साहित्य के विविध पहलुओं को समझने और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने में उन्होंने विशेषज्ञता हासिल की है। स्वास्थ्य, जीवनशैली, और समाज से जुड़े मुद्दों पर उनके लेख सटीक और उपयोगी जानकारी प्रदान करते हैं। उनकी लेखनी गहराई से शोध पर आधारित होती है और पाठकों से सहजता से जुड़ने का अनोखा कौशल रखती है।
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