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Pitri Paksh 2024 : ‘कौओं’ के बगैर अधूरा है पितरों को अर्पित किया गया तर्पण
Pitri Paksh 2024 : ‘कौओं’ के बगैर अधूरा है पितरों को अर्पित किया गया तर्पण
Authored By: स्मिता
Published On: Friday, September 27, 2024
Last Updated On: Monday, January 20, 2025
प्राचीन परंपराओं के अनुसार, श्राद्ध में जो व्यंजन बनते हैं, उन्हें पितरों तक कौए ही पहुंचाते हैं। श्राद्ध में लोग अपने गुजरे पितरों को भोजन अर्पित करने के लिए उनका मनपसंद भोजन घरों की छतों, खेतों, चौक-चौराहों पर रखते हैं और कौओं के आने का इंतजार करते हैं। श्राद्ध का खाना कौआ खा लेता है, तो समझा जाता है कि श्राद्ध की आस्था पूरी हुई।
Authored By: स्मिता
Last Updated On: Monday, January 20, 2025
इन दिनों श्राद्ध पक्ष चल रहे हैं, जो 2 अक्टूबर को समाप्त हो जायेंगे। श्राद्ध पक्ष में अपने पूर्वजों को याद करना और उनका मनपसंद भोजन बनाकर तर्पण अर्पित करने की परंपरा सदियों से निभाई जा रही है। ऐसी मान्यता रही है कि हमारे पितरों तक अर्पित किया गया भोजन कौओं द्वारा पहुंचाया जाता है। श्राद्ध में कौआ को पितरों का वाहक माना जाता। अगर आप गौर करें, तो कौए इन दिनों दूर-दूर तक दिखाई नहीं पड़ते हैं। श्राद्ध का भोजन लेकर लोग उनके आगमन का लंबा इंतजार करते रहते हैं लेकिन वे नहीं आते। जब पर्यावरण में कौआ होगा, तभी तो वह आएगा न? उनकी संख्या हाल के कुछ सालों में बहुत अधिक घटी है। श्राद्ध में भोजन उन्हीं को ध्यान में रख कर तैयार किया जाता है। जाहिर है जब कौए ही नहीं होंगे, तो श्राद्ध की मान्यताएं कैसे पूरी होंगी? हमेशा से ऐसा होता आया है कि श्राद्ध में पितरों का भोजन जब तक कौए न खाएं श्राद्ध की मान्यताएं पूरी नहीं होती हैं। कौए आएंगे, खाना चुगेंगे और पितरों तक पहुंचाएंगे, लेकिन कौवे नहीं आते? ग्रामीण क्षेत्रों में तो ये थोड़े -बहुत दिख जाते हैं, लेकिन शहरों से कौवे पूरी तरह गायब (Crow for Shraddh) हो चुके हैं।
श्राद्ध से है कौआ का सीधा संबंध (Crow for Shraddh)
प्राचीन परंपराओं के अनुसार श्राद्ध से कौवों का सीधा संबंध है। श्राद्ध में जो व्यंजन बनते हैं, उन्हें पितरों तक कौए ही पहुंचाते हैं। श्राद्ध में लोग अपने गुजरे पितरों को भोजन अर्पित करने के लिए उनका मनपसंद भोजन घरों की छतों, खेतों, चौक-चौराहों पर रखते हैं और कौओं के आने का इंतजार करते हैं। श्राद्ध का खाना कौआ खा लेता है, तो समझा जाता है कि श्राद्ध की आस्था पूरी हुई। कौओं की संख्या लगातार कम होने से उनकी जगह गली-मोहल्ले के आवारा कुत्ते श्राद्ध के भोजन पर झपट्टा मारते देखे जाते हैं। कौए नहीं आते, तो लोग मजबूरन इन्हीं को कौवों का प्रतिरूप मान कर मन को समझा लेते हैं। इसके सिवा दूसरा कोई विकल्प भी नहीं है।
विष्णु पुराण में कौए की चर्चा (Crow in Vishnu puran)
दूषित पर्यावरण के चलते विलुप्त होती प्रजातियों में कौए भी शामिल हैं। कुछ वर्ष पहले तक घरों के आंगन और मुंडेरों पर कौओं की बहुतायत होती थी। उनकी आवाज सुनने को मिलती थी। दरअसल, कौए हमेशा से अन्य पक्षियों के मुकाबले तुच्छ माने गए हैं। कौए का शरीर औषधि के तौर पर भी प्रयुक्त किया गया है। कौए छोटे-छोटे जीव एवं अनेक प्रकार की गंदगी खाकर भी अपना पेट भर लेते हैं। श्राद्ध पक्ष में इस दुर्लभ पक्षी की भक्ति और विनम्रता से यथाशक्ति भोजन कराने की बात विष्णु पुराण में कही गई है। तभी कौओं को पितरों का प्रतीक मानकर श्राद्ध पक्ष में उन्हें भोजन दिया जाता है। श्राद्ध पक्ष में कौओं को खाना और पीपल को जल देकर पितरों को तृप्त किया जाता है।
कई संदेश जुड़े हैं कौए के साथ (Crow for Pitri Paksha)
कौओं के संबंध में एक और दिलचस्त बात प्रचलित है। किसी के आगमन की सूचना भी इनकी चहलकदमी से जोड़ी जाती रही है। एक वक्त वह भी था जब परिवार की महिलाएं शगुन मान कर कौवा को मामा कह कर घर में बुलाया करती थी, तो कभी उसकी बदलती हुई दिशा में कांव-कांव करने को अपशकुन मानते हुए उड़ जा कहके बला टालतीं थीं। इसके अलावा, घर की बहुएं कौए के जरिये अपने मायके से किसी के आने का संदेश पाती थीं। कौओं की तरह अब कई और बेजुबान पक्षियों की आबादी घट गई है। इसके पीछे मानवीय गलतियां प्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार हैं। पक्षियों के रहने और खाने की सभी जगहें नष्ट कर दिए गए हैं। पेड़ों पर भी इनका निवास होता था, वह भी लगातार खत्म किये जा रहे हैं।
पर्यावरण रक्षक कौआ (Environmental Protection Crow)
कौए को पर्यावरण रक्षक भी बताया गया है। पहले देखने में आता था कि सार्वजनिक स्थानों पर मरे जानवरों को गिद्ध और कौए खा जाते थे, लेकिन अब उनके न होने से मृत जानवरों के शरीर सड़ते रहते हैं। दुर्गंध दूर-दूर तक फैली रहती है, जिससे लोग संक्रमित भी हो जाते हैं। गंदगी को समेटने में गिद्ध, चील और कौओं का बड़ा योगदान होता था। कौए सिर्फ श्राद्धों में नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण के संतुलन में भी महत्वपूर्ण किरदार निभाते हैं। तब भी कौवों के बचाने में कोई कदम नहीं उठाए गए। कौए अब कितने बचे और कितने गायब हो गए, इसका सटीक आंकड़ा और कारण उपलब्ध नहीं है। पर्यावरणविद के अलावा देश के अनगिनत पशु-पक्षी प्रेमी सालों से चिंता जता रहे हैं कि कौआ, चील, गिद्ध, गौरैया, सारस के अलावा तमाम दुर्लभ किस्म के भारतीय पक्षी विलुप्त हो रहे हैं। लेकिन कोई भी इस ओर ध्यान नहीं देता। उसी का नतीजा है कि श्राद्व में कौओं का इंतजार करना पड़ता है।
इंसानी गलती से बेजुबान जीवों का जीवन तबाह
समय ज्यादा दूर नहीं, जब श्राद्ध तो दूर सामान्य दिनों में भी कई पक्षी दिखना बंद हो जाएंगे। आधुनिक सुख-सुविधाओं ने इंसानी जीवन को अपाहिज बना दिया है। प्रकृति से छेड़छाड़ और धरती के अत्यधिक दोहन ने बेजुबान जीवों का जीवन तबाह कर दिया। कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के संरक्षक वैज्ञानिक केनेथ रोजेनबर्ग के मुताबिक मोबाइलो टावर से निकलने वाले रेडिएशन ने पक्षियों को खत्म करने में बड़ी भूमिका निभाई है। विशेषकर कौए, तोते, गिद्ध, गोरैया जैसे पक्षी। समूची दुनिया में पक्षियों की आबादी लगभग एक तिहाई खत्म हो चुकी है। यूं ही रहा तो ये धरती कभी पक्षी विहीन हो जाएंगी।
(हिन्दुस्थान समाचार के इनपुट के साथ)
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