हिंदी बनाम मराठी: क्यों हो रही महाराष्ट्र में ‘महाभारत’
हिंदी बनाम मराठी: क्यों हो रही महाराष्ट्र में ‘महाभारत’
Authored By: JP Yadav
Published On: Friday, July 11, 2025
Updated On: Friday, July 11, 2025
बेशक हर भारतीय अपनी स्थानीय भाषा के प्रति अपने प्यार को दिखाता और जताता होगा, लेकिन अन्य भाषा के प्रति नफरत यह किसी भी व्यक्ति के मानसिक दिवालिया होने का प्रतीक है.
Authored By: JP Yadav
Updated On: Friday, July 11, 2025
Hindi vs Marathi: भाषा संवाद के साथ-साथ लोगों की संवेदना तक पहुंचने का भी पुल है. बावजूद इसके महाराष्ट्र में भाषा विवाद को लेकर तनाव जारी है. इस देश में भाषा कभी भी सामाजिक स्तर पर विवाद का मुद्दा नहीं रही है. महाराष्ट्र में मराठी भाषा को लेकर विवाद, पिटाई और गाली-गलौच तक पहुंच गया है. अब इसी क्रम में मराठी और गैर मराठी का एंगल भी जुड़ गया है. यही वजह है कि महाराष्ट्र में मराठी और हिंदी भाषा को लेकर उपजा विवाद बढ़ता जा रहा है. पिछले कुछ हफ्तों से मराठी भाषा के नाम पर हिंदी भाषी लोगों के साथ मारपीट और गाली-गलौज की घटनाएं सामने आ रही हैं. क्षेत्रवाद की बुनियाद पर महाराष्ट्र की राजनीति में अपना अस्तित्व बरकरार रखने वाली शिवसेना (उद्धव गुट) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) ने पूरे राज्य में हंगामा किया हुआ है और इसे मराठी और गैरमराठी का मुद्दा बना दिया है.
आखिर क्यों शुरू हुआ विवाद?
पिछले महीने महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में सत्तासीन महायुति सरकार ने नई शिक्षा नीति के तहत कक्षा एक से 5वीं कक्षा तक हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने का आदेश जारी किया. इसके बाद महाराष्ट्र की राजनीति में आग लग गई. राजनीतिक विरोध और भाषाई विवाद को देखते हुए सरकार ने बाकायदा इस फैसले को वापस ले लिया. बावजूद इसके विरोधी दल सक्रिय हो गए और इस पर राजनीति शुरू हो गई. वहीं, शिवसेना (उद्धव गुट) ने तुरंत यह मुद्दा लपक लिया और इसे मराठी अस्तिमता के खिलाफ बता दिया. उद्धव ठाकरे ने इसे मराठी अस्मिता का मुद्दा बताते हुए आंदोलन की बात कह दी तो छोटे भइया और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के मुखिया राज ठाकरे ने भी अपना सुर मिला दिया. इस फैसले का उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने एक साथ कड़ा विरोध किया था, इसलिए यह मौका दोनों के लिए मुफीद था और दोनों ने इसका इस्तेमाल भी किया.
दल मिले ना मिले ‘मन’ तो मिल ही गए!
हिंदी भाषा को लेकर उठा विवाद दरअसल ठाकरे परिवार की एकता का जरिया बन गया. तय तारीख पर शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) प्रमुख राज ठाकरे ने 5 जुलाई को एक संयुक्त रैली और बैठक की, जिसमें दो दशकों में पहली बार उन्होंने मंच साझा किया. वर्ली में एक रैली हुई, जिसमें शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने आगामी वृह्न मुंबई नगर निगम (BMC) चुनाव साथ मिलकर लड़ने का संकेत दिया. उद्धव ठाकरे ने मंच से एलान किया कि हम साथ रहने के लिए साथ आए हैं. हम मुंबई नगर निगम और महाराष्ट्र में मिलकर सत्ता हासिल करेंगे. 5 जुलाई को एनएससीआई डोम में खचाखच भरे लोगों ने ज़ोरदार जयकारे भी लगाए. कुल मिलाकर कहने के लिए मजबूरी में ही सही राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के दिल जरूर मिले. यह भी बड़ी बात है कि मराठी विवाद के बीच अब उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के तेवर नरम पड़ते नजर आ रहे हैं. उद्धव बार-बार यह सफाई दे रहे हैं कि हम हिंदी के खिलाफ नहीं हैं. वहीं, राज भी बैकफुट पर नजर आ रहे हैं. इसके बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे से दूरी बनाने वाली कांग्रेस स्थानीय निकाय चुनाव में दोनों भाइयों के ना केवल करीब जा सकती है बल्कि साथ मिलकर चुनाव भी लड़ सकती है.
भाषा पर हंगामा क्यों?
मनुष्य ने अपनी जरूरत, सहूलियत और एक-दूसरे को जोड़ने के लिए बोली-भाषा को बनाया. भाषा चाहे मराठी हो या फिर मलयालम या फिर बोली चाहे भोजपुरी हो या फिर अवधी. सभी भाषाओं और बोलियों का मकसद लोगों के साथ-साथ उनके दिलों को भी जोड़ना है. भोजपुरी भाषा की बात करें तो इसका फलक बहुत बड़ा है, लेकिन भारत में इसे संवैधानिक रूप से भाषा का दर्जा हासिल नहीं हुआ है. बावजूद इसके कि भोजपुरी 16 देशों में लगभग 25 करोड़ लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा (बोली) है. हैरत की बात यह है कि इस भाषा को मॉरिशस और नेपाल में संवैधानिक दर्जा हासिल है, लेकिन भारत में जन्मी और पली-बढ़ी भोजपुरी को संवैधानिक दर्जा अभी तक नहीं मिल पाया है. इसमें रोचक बात यह है कि सभी भारतीय भाषाओं और बोलियों का जन्म संस्कृत भाषा से हुआ है. इस लिहाज से संस्कृत सभी भारतीय भाषाओं और बोलियों की जननी है. जाहिर है मराठी भाषा का जन्म भी संस्कृत भाषा से हुआ है और हिंदी भाषा का भी. ऐसे में राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे का यह दोगलापन समझ से परे है कि महाराष्ट्र में गैर मराठी भाषी लोगों को इसलिए मारो-पीटो कि वह हिंदी या फिर अन्य अपनी स्थानीय भाषा बोलते हैं. मराठी भाषा हो या फिर अन्य कोई भाषा, कोई भी संवेदनशील भारतीय भाषा के प्रति नफरत नहीं कर सकता है.
बदले आठ कोस पर वाणी
भाषा हो या फिर संस्कृति भारत की खासियत ही उसकी विविधता (अनेकता) में एकता है. विश्व की नजर में यह खासियत ही भारत को अलग देशों में शुमार करती है. ‘कोस कोस पर पानी बदले, चार कोस पर वाणी’ एक प्रसिद्ध कहावत है जिसका अर्थ है कि भारत में हर कुछ किलोमीटर पर पानी का स्वाद बदल जाता है और हर चार किलोमीटर पर भाषा या बोलने का तरीका बदल जाता है. यह कहावत भारत की भाषाई और सांस्कृतिक विविधता को दर्शाती है. दरअसल, महान नाटककार और लेखक भारतेंदु हरिश्चंद का कथन ‘चार कोस पर पानी बदले, आठ कोस पर वाणी, बीस कोस पर पगड़ी बदले, तीस कोस पर धानी, आज भी चरितार्थ हो रहा है. यह भी सही है कि दुनिया का कोई भी देश सिर्फ एक भाषा के सहारे नहीं रह सकता है, उसे अन्य भाषा की जरूरत पड़ती है. इसे इस तरह समझना होगा कि विदेशों से व्यापार करने के लिए संप्रेषण के लिए आवश्यकतानुसार भाषा अपनानी पड़ती है. यही वजह है कि सामान्य तौर पर लोगों को एक से अधिक भाषाएं आती हैं, लेकिन यह भी कतई जरूरी नहीं है कि हम दूसरी भाषा को सीखें और बोलें. कहने को 22 भाषाओं को संविधान की आठवीं सूची में शामिल किया गया है. इन 22 में से 8 भाषाएं ऐसी हैं, जिन्हें देश के 90 प्रतिशत से अधिक लोग बोलते हैं.
देश में 19,000 से ज्यादा बोली और भाषा
कोई ठोस आंकड़ा तो उपलब्ध नहीं है, लेकिन देश में 19,000 से अधिक भाषाएं और बोलियां चलन में हैं. किसी को भी यह जानकर हैरत हो सकती है कि 44 प्रतिशत लोगों की मातृभाषा हिंदी है. इसके अलावा, करीब 8 लोग बांग्ला भाषा बोलते हैं. बांग्ला भाषा की खूबी यह है कि यह विदेशों में भी खूब बोली जाती है. अब आते हैं मराठी भाषा पर, जिसे 6.8 प्रतिशत लोग बोलते हैं. यहां पर यह बताना जरूरी है कि महाराष्ट्र की आबादी 12.83 करोड़ के आसपास है. इस लिहाज से महाराष्ट्र भारत का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है. वहीं, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में बोली जाने वाली भाषा तेलुगु को 6.7 प्रतिशत लोग बोलते हैं और इसके बाद 5.7 लोग तमिल बोलने वाले हैं. गुजराती को बेहद मधुर भाषा बोला जाता हैं , जिसे 4.5 प्रतिशत लोग बोलते हैं. यह जानकर आपको हैरत होगी कि इस देश में 4.1 प्रतिशत लोग उर्दू में संवाद करते हैं. मुख्य रूप से कर्नाटक में बोली जाने वाली कन्नड़ को 3.6 प्रतिशत लोग बोलते हैं. इसके बाद उड़िया को 3.1 प्रतिशत लोग बोलते हैं. फिर 2.8 प्रतिशत लोगों के बीच मलयालम और 2.7 प्रतिशत लोग पंजाबी भाषा बोलते हैं. इस लिहाज से देखें तो देश की 140 करोड़ में से करीब 60 करोड़ से अधिक लोग हिंदी बोलते हैं.
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