जगन्नाथ रथ यात्रा 2025: क्यों खास है यह उत्सव, क्या है गजानन वेश और 3 रथों की कहानी
जगन्नाथ रथ यात्रा 2025: क्यों खास है यह उत्सव, क्या है गजानन वेश और 3 रथों की कहानी
Authored By: Ranjan Gupta
Published On: Wednesday, June 25, 2025
Updated On: Thursday, June 26, 2025
Jagannath Rath Yatra भारत का एक पवित्र और भव्य धार्मिक उत्सव है, जो हर साल ओडिशा के पुरी शहर में अपार श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है. इस महापर्व में भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा विशाल रथों पर सवार होकर भक्तों को दर्शन देने निकलते हैं. ऐसी मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने के बाद भक्तों की सारी पीड़ाएं और समस्याएं दूर होती है. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि भगवान जगन्नाथ की मूर्ति सामान्य देवताओं की तरह नहीं होती, उनके हाथ-पैर अधूरे होते हैं तथा मूर्ति लकड़ी की बनी होती है. ऐसी ही कई रोचक रहस्य भगवान जगन्नाथ और रथ यात्रा से जुड़ी हुई हैं. इस लेख में हम जगन्नाथ रथ यात्रा से जुड़ी कई अद्भुत बातों को जानेंगे.
Authored By: Ranjan Gupta
Updated On: Thursday, June 26, 2025
भारत एक ऐसा देश है जहां आस्था केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं रहती, बल्कि त्योहारों और परंपराओं के माध्यम से जीवंत रूप में सड़कों पर उतर आती है. इन्हीं परंपराओं में एक है जगन्नाथ रथ यात्रा, जो न केवल ओडिशा के पुरी शहर की पहचान है, बल्कि भारतीय आध्यात्मिक संस्कृति की धरोहर भी है. यह यात्रा उस समय की याद दिलाती है जब ईश्वर स्वयं भक्तों के बीच आते हैं, बिना किसी भेदभाव के, और सबको अपने निकट आने का अवसर देते हैं. रथ यात्रा केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता, भक्ति और भारतीय सांस्कृतिक गौरव का जीवंत प्रतीक है. हर साल आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाने वाला यह उत्सव न केवल धार्मिक उत्साह का प्रतीक है, बल्कि सामाजिक एकता, समर्पण और सेवा भाव की मिसाल भी है. इस लेख में हम जानेंगे कि रथ यात्रा क्या है, इसका ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व क्या है, यह कैसे मनाई जाती है और इसमें जुड़ी विशेष परंपराएं क्या हैं.
जगन्नाथ रथ यात्रा क्या है ? (What is Jagannath Rath Yatra)

रथ यात्रा भारत के सबसे प्रसिद्ध धार्मिक आयोजनों में से एक है, जो हर वर्ष जगन्नाथ भगवान की आराधना में श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है. ‘रथ यात्रा’ का अर्थ है ‘रथ पर यात्रा’, यानी जब भगवान स्वयं भक्तों के बीच आते हैं और नगर भ्रमण करते हैं. यह यात्रा विशेष रूप से ओडिशा के पुरी शहर में जगन्नाथ मंदिर से जुड़ी हुई है, लेकिन भारत के अन्य हिस्सों में भी इसे उत्साह के साथ मनाया जाता है. इस महापर्व में भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ भव्य रथों में सवार होकर अपने भक्तों को दर्शन देने के लिए बाहर आते हैं.
श्रेणी | विवरण |
उत्सव का नाम | जगन्नाथ रथ यात्रा |
स्थान | पुरी, ओडिशा (मुख्य आयोजन) |
समय | आषाढ़ शुक्ल द्वितीया (जून-जुलाई) |
मुख्य देवता | भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण), बलभद्र (बलराम), सुभद्रा |
मुख्य उद्देश्य | भगवान द्वारा भक्तों को दर्शन देना, समाज में समानता, समरसता और सेवा का भाव जाग्रत करना |
प्रमुख रथ | नंदीघोष (जगन्नाथ), तालध्वज (बलभद्र), दर्पदलन/देवदलन (सुभद्रा) |
रथ की ऊंचाई | नंदीघोष: 45.5 फीट |
कब मनाया जाता है जगन्नाथ रथ यात्रा ?
रथ यात्रा हर वर्ष आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाई जाती है, जो आमतौर पर जून या जुलाई महीने में आती है. इस दिन को “रथ द्वितीया” भी कहा जाता है. मान्यता है कि इस दिन भगवान जगन्नाथ अपनी मौसी के घर ‘गुंडिचा मंदिर’ जाते हैं और वहां नौ दिनों तक विश्राम करते हैं. इसके बाद वे वापस अपने मुख्य मंदिर लौटते हैं, जिसे “बहुदा यात्रा” कहा जाता है
क्यों मनाया जाता है जगन्नाथ यात्रा ? (Why Rath Yatra Celebrated)

रथ यात्रा को मनाने के पीछे आध्यात्मिक उद्देश्य यह है कि भगवान स्वयं भक्तों के बीच आकर उन्हें अपने दिव्य दर्शन देते हैं. इस पर्व में ईश्वर और मानव के बीच की दूरी समाप्त हो जाती है और हर जाति, धर्म, वर्ग और लिंग के व्यक्ति को भगवान के निकट आने का अवसर मिलता है.
भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा का महत्व (Significance of Jagannath Rath Yatra)

भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने के बाद भक्तों की सारी पीड़ाएं और समस्याएं दूर होती है. वे अपना जीवन अच्छे से जी सकते हैं और अंत में मोक्ष प्राप्त करते हैं. वहीं, कई भक्त अपनी मनोकामनाओं को पूरा कराने की इच्छा के साथ भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा में शामिल होते हैं. भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा से जुड़ी एक और धार्मिक मान्यता यह है कि रथ यात्रा में दान करने से इसका अक्षय फल प्राप्त होता है.
भगवान जगन्नाथ किसके अवतार हैं?
भगवान जगन्नाथ को हिंदू धर्म में भगवान विष्णु के दशावतारों में से एक रूप माना जाता है. विशेष रूप से, वे श्रीकृष्ण के अवतार के रूप में पूजे जाते हैं. ओडिशा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजमान हैं. इन्हें त्रिदेव के रूप में भी पूजा जाता है, जिसमें श्रीकृष्ण (जगन्नाथ), बलराम (बलभद्र) और सुभद्रा (शक्ति का प्रतीक) हैं. भक्तजन इन्हें प्रेम, करुणा और समर्पण का प्रतीक मानते हैं
गजानन वेश का रहस्य क्या है?
पुरी रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ के विविध वेशों में से एक “हातीस वेश” या “गजानन वेश” होता है, जिसमें भगवान को गज (हाथी) के रूप में सजाया जाता है. इस वेश में भगवान का रूप भगवान गणेश जैसा प्रतीत होता है. इस रहस्य के पीछे मान्यता है कि भगवान को सभी देवताओं का स्वरूप माना जाता है और यह रूप दर्शाता है कि वे गणेश सहित सभी देवताओं में समाहित हैं. यह भी कहा जाता है कि जब आदिवासी जनजातियों ने सबसे पहले भगवान को देखा, तो उन्हें वह हाथी जैसे दिखे, इसलिए उनके रूप को गजानन से जोड़ा गया.
भगवान जगन्नाथ से जुड़े रोचक रहस्य (Facts about Jagannath Yatra)
- अधूरा रूप, लेकिन पूर्ण आराध्य:
भगवान जगन्नाथ की मूर्ति सामान्य देवताओं की तरह नहीं होती उनके हाथ-पैर अधूरे होते हैं, आंखें बड़ी और गोल होती हैं, और मुखाकृति भी असामान्य होती है. फिर भी, भक्त इन्हें संपूर्ण रूप में पूजते हैं. मान्यता है कि यह रूप स्वयं भगवान विष्णु ने राजा इंद्रद्युम्न को स्वप्न में दिखाया था और मूर्ति का निर्माण उसी रूप में कराया गया. - काठ की मूर्तियां और उनका नवीनीकरण:
पुरी मंदिर में भगवान जगन्नाथ की मूर्ति लकड़ी की बनी होती है और हर 12 से 19 वर्षों में इसे बदला जाता है, जिसे ‘नवकलेवर’ कहते हैं. इस प्रक्रिया में पुरानी मूर्ति का रहस्यमयी तरीके से अंतिम संस्कार किया जाता है और नई मूर्ति को विशेष नियमों के तहत स्थापित किया जाता है. यह प्रक्रिया रात में, रहस्यपूर्ण ढंग से की जाती है और इसमें भाग लेने वाले पुजारियों को भी विशेष नियमों का पालन करना होता है. - रथ यात्रा का अद्भुत आयोजन:
पुरी की रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ को उनके रथ पर बैठाकर नगर भ्रमण कराया जाता है. यह परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है. माना जाता है कि इस दिन भगवान स्वयं भक्तों के पास आते हैं और उनका हाल जानते हैं. यह विश्व का एकमात्र पर्व है जिसमें देवता मंदिर से बाहर आते हैं. - मंदिर का झंडा सदैव हवा के विपरीत लहराता है:
पुरी के जगन्नाथ मंदिर पर लगा ध्वज हमेशा हवा के विपरीत दिशा में लहराता है, जो आज तक एक रहस्य बना हुआ है. वैज्ञानिक इसका स्पष्ट कारण नहीं बता पाए हैं, लेकिन भक्त इसे चमत्कार मानते हैं. - मंदिर का ‘सुदर्शन चक्र’ और रहस्यमयी परछाईं:
मंदिर के ऊपर स्थित ‘नीलचक्र’ को किसी भी दिशा से देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि वह देखने वाले की ओर ही है. साथ ही, मंदिर की छाया दोपहर के समय ज़मीन पर नहीं पड़ती, जो वास्तुकला का आश्चर्यजनक रहस्य है. - समुद्र की ओर जाती हवा का उल्टा नियम:
पुरी में सामान्यतः समुद्र से भूमि की ओर हवा बहती है, लेकिन मंदिर के ऊपर से उड़ता ध्वज इस नियम को तोड़ता है. यह हमेशा हवा के उल्टी दिशा में लहराता है.
रथ यात्रा का इतिहास क्या है?(History of Jagannath Rath Yatra)

रथ यात्रा की परंपरा बहुत प्राचीन है, जिसकी शुरुआत हजारों साल पहले मानी जाती है. ऐतिहासिक रूप से यह परंपरा पुरी (ओडिशा) के प्रसिद्ध श्री जगन्नाथ मंदिर से जुड़ी हुई है, जिसे 12वीं शताब्दी में गंग वंश के राजा अनंतवर्मन चोड़गंग देव ने बनवाया था. हालांकि रथ यात्रा की परंपरा इससे भी पहले प्रचलित थी.
स्कंद पुराण, ब्रह्म पुराण और पद्म पुराण जैसे प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में भी इस यात्रा का वर्णन मिलता है. इन ग्रंथों के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण (जगन्नाथ) अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ यात्रा पर निकले थे, जिससे प्रेरित होकर यह उत्सव हर वर्ष आयोजित किया जाता है.
एक मान्यता यह भी है कि द्वारका नगरी के विनाश के बाद जब श्रीकृष्ण का शरीर समुद्र में बह गया था, तब वह ओडिशा के तट पर मिला था. वहीं पर भगवान के शरीर के अवशेषों को लकड़ी के एक पिंड में समाहित कर मंदिर में स्थापित किया गया. इसी से जुड़ी मूर्तियों की यात्रा को ही रथ यात्रा कहा जाता है
रथ यात्रा लोग कैसे मनाते हैं (How Jagannath Rath Yatra Celebrated)
पुरी की रथ यात्रा पूरे देश और दुनिया के श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है. इस दिन लाखों की संख्या में भक्त पुरी में एकत्र होते हैं और भगवान के विशाल रथ को खींचने का सौभाग्य प्राप्त करने के लिए लालायित रहते हैं. यह रथ यात्रा महज एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता और लोक आस्था का प्रतीक है.
तीनों देवताओं के लिए तीन भव्य और भिन्न आकार के रथ बनाए जाते हैं—भगवान जगन्नाथ के लिए ‘नंदीघोष’ रथ, बलभद्र के लिए ‘तालध्वज’ रथ और सुभद्रा के लिए ‘दर्पदलना’ रथ. इन रथों को पारंपरिक कारीगर कई महीने पहले से तैयार करना शुरू कर देते हैं. रथों का निर्माण खास किस्म की लकड़ियों से किया जाता है और इन्हें सजाने के लिए रंग-बिरंगे वस्त्र, झंडे, छत्र और चित्रों का उपयोग होता है.
जब रथ यात्रा का दिन आता है, तो मुख्य मंदिर से तीनों मूर्तियों को विधिवत उतारकर, ‘पहंडी’ नामक विशेष प्रक्रिया से रथ तक लाया जाता है. हजारों भक्तों की उपस्थिति में यह प्रक्रिया अत्यंत उल्लासमयी होती है. रथ यात्रा की सबसे विशेष बात यह है कि इन रथों को श्रद्धालु अपने हाथों से खींचते हैं. ऐसा माना जाता है कि रथ को खींचने से पाप नष्ट होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है.
रथ यात्रा के रिवाज विस्तार से (Rituals of Jagannath Rath Yatra)
रथ यात्रा के कई धार्मिक अनुष्ठान होते हैं जो इसे आध्यात्मिक रूप से समृद्ध और सांस्कृतिक रूप से विशेष बनाते हैं. इन रिच्युअल्स को जानना रथ यात्रा को गहराई से समझने के लिए जरूरी है:
श्री गुंडिचा यात्रा के अनुष्ठान
आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तिथि को देवताओं के मंगला आरती, अबकाश, बल्लभ, खेचड़ी भोग आदि जैसे सुबह के अनुष्ठान पूरे होने के बाद “मंगलार्पण अनुष्ठान” किया जाता है. चारों देवता एक के बाद एक पहांडी (उत्सव यात्रा) में आते हैं और पवित्र रथों पर सवार होते हैं. भगवान सुदर्शन, भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा और भगवान श्री जगन्नाथ क्रमिक रूप से पहांडी में आते हैं और अपने रथों पर सवार होते हैं. पहांडी के बाद, महाजन सेवक रमा और कृष्ण जैसी प्रतिनिधि मूर्तियों (बेजे प्रतिमाएं) को क्रमशः ‘तालध्वज’ रथ और ‘नंदीघोष’ रथ पर मदनमोहन के साथ स्थापित करते हैं.
छेर पहंरा अनुष्ठान
देवताओं के अपने-अपने रथों पर सवार होने के बाद, देवताओं को ‘मालचूला’ और रथ पर वेशभूषा से सजाया जाता है. छेर पहंरा (सोने की झाड़ू से रथों को साफ करना) अनुष्ठान गजपति महाराजा द्वारा किया जाता है, जिन्हें श्रीनहर (राजा के महल) से एक तामजान (पालकी) में एक औपचारिक जुलूस में लाया जाता है. गजपति देवताओं को एक सोने के दीये में कपूर का दीपक अर्पित करते हैं. इसके बाद अलत और चामर अनुष्ठान होता है. राजा सोने की झाड़ू से रथ के फर्श को साफ करते हैं और उसके बाद रथ पर चंदन का लेप छिड़कते हैं.
रथों को खींचना
परंपरा के अनुसार, छेर पहंरा के बाद भोई सेवक रथों से चर्मला हटाते हैं. प्रत्येक रथ को घोड़ों की चार लकड़ी की मूर्तियों से बांधा जाता है. कहलिया सेवक कहली (तुरही) बजाता है. इसके बाद घंटों की ध्वनि होती है. उसके बाद रथों को खींचा जाता है. रथ दहुक (विदूषक जैसा गायक) भीड़ को उत्साहपूर्वक रथ खींचने के लिए कई गीत गाता है. रथों को श्री गुंडिचा मंदिर की ओर खींचा जाता है, जो तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. उसके बाद भगवान सुदर्शन, भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा और भगवान श्री जगन्नाथ जैसे देवताओं को दइतापति द्वारा पहांडी में गुंडिचा मंदिर के अंदर सिंहासन तक क्रमिक रूप से ले जाया जाता है. उक्त मंदिर में देवताओं के सात दिनों के प्रवास के दौरान श्रीगुंडिचा मंदिर में श्रीमंदिर के समान सभी अनुष्ठान किए जाते हैं.
हेरा पंचमी
हेरा पंचमी श्री गुंडिचा यात्रा के दौरान एक महत्वपूर्ण उत्सव है. आषाढ़ शुक्ल (पूर्णिमा का चरण) के छठे दिन हेरा पंचमी मनाई जाती है.
संध्या दर्शन
पुराणों में वर्णित है कि शाम (संध्या दर्शन) के दौरान आडाप मंडप पर चार देवताओं की एक झलक पाने से एक भक्त को अथाह आनंद मिलता है. ‘नीलाद्रि महोदय’ में वर्णित है कि नीलाचल (श्रीमंदिर) में 10 साल तक लगातार देवताओं को देखने के बराबर है गुंडिचा मंदिर में आडाप मंडप में केवल एक दिन देवताओं को देखना. विशेष रूप से, यदि कोई शाम / रात के घंटों के दौरान देवताओं को देखता है तो उसे वांछित परिणामों से दस गुना अधिक मिलता है. संध्या दर्शन अनुष्ठान प्राचीन काल से बहुदा यात्रा (वापसी रथोत्सव) से एक दिन पहले किया जाता है.
बहुदा यात्रा
वापसी रथोत्सव या बहुदा यात्रा को “दक्षिणाभिमुखी यात्रा” (रथ का दक्षिण की ओर बढ़ना) के रूप में जाना जाता है. आषाढ़ शुक्ल दशमी को, बहुदा यात्रा को सेनापातालगी, मंगलार्पण और बंदपाना आदि जैसे कुछ अनुष्ठानों के साथ मनाया जाता है. जब तीनों रथ श्रीमंदिर वापस जा रहे होते हैं, तो देवताओं को मौसिमा मंदिर में एक विशेष प्रकार का केक (पोडा पिठा) चढ़ाया जाता है. उसके बाद बलभद्र और सुभद्रा के रथ आगे बढ़ते हैं और सिंहद्वार के सामने खड़े होते हैं. लेकिन भगवान श्री जगन्नाथ का नंदीघोष रथ श्रीनहर पर रुकता है. देवी लक्ष्मी को एक पालकी में श्रीनहर ले जाया जाता है और वहां दहीपति अनुष्ठान और ‘लक्ष्मी नारायण भेटा’ अनुष्ठान किए जाते हैं.
बहुदा यात्रा के दौरान दक्षिण की ओर यात्रा में देवताओं की एक झलक पाने से अथाह आनंद मिलता है और सभी पाप और कष्ट दूर हो जाते हैं.
सुना वेश
गुंडिचा यात्रा के अंतिम चरण के दौरान, देवताओं को शुक्ल एकादशी तिथि को सिंह द्वार के सामने रथों पर सोने के आभूषणों से सजाया जाता है और भक्त देवताओं के ‘सुना वेश’ का दर्शन करते हैं.
अधर पाणा
आषाढ़ शुक्ल द्वादशी (उज्ज्वल चंद्रमा चरण का 12वां दिन) पर, अधर पाणा (एक विशेष प्रकार का मीठा पेय जिसमें पनीर, दूध, चीनी, मसाले मिश्रित होते हैं) रथों पर देवताओं को चढ़ाया जाता है.
नीलाद्रि बिजे
नीलाद्रि बिजे एक विशेष घटना है, यानी श्री गुंडिचा यात्रा का अंतिम चरण. आषाढ़ के शुक्ल पक्ष की तेरहवीं तिथि को चारों देवता एक औपचारिक जुलूस में रत्नजड़ित मंच पर लौटते हैं.
पुरी में श्री गुंडिचा यात्रा को दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक त्योहारों में से एक माना जाता है और इसे अनादि काल से मनाया जा रहा है.
विशेष रथ का निर्माण

भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा में विशेष रथों की व्यवस्था की जाती है. जगन्नाथ रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा तीन अलग रथों पर बैठते हैं. भगवान जगन्नाथ का रथ, जिसे नंदीघोष कहते हैं, लाल और पीले रंग का होता है. यह लगभग 45.5 फीट ऊंचा होता है. इस रथ को बनाने में कील या धातु का इस्तेमाल नहीं होता. यह सिर्फ नीम की लकड़ी से बनता है. इसकी तैयारी अक्षय तृतीया से शुरू हो जाती है. रथ में 16 पहिए होते हैं. यह बलभद्र और सुभद्रा के रथ से थोड़ा बड़ा होता है.
जगन्नाथ रथ यात्रा में होते हैं 3 रथ
- बलभद्र का तालध्वज रथ
- सुभद्रा का दर्पदलन रथ
- भगवान जगन्नाथ का नंदीघोष रथ
किसके द्वारा होता है रथों का निर्माण?
जगन्नाथ रथ यात्रा के रथों का निर्माण एक-दो नहीं बल्कि पूरे सात समुदाय के लोगों के द्वारा किया जाता है. रथ बनाने की प्रक्रिया अक्षय तृतीया से शुरू हो जाती है.
- विश्वकर्मा समुदाय- इन्हें महाराणा भी कहा जाता है. इस समुदाय के लोग तीनों रथों के आकार और ढांचे पर ध्यान देते हैं. इनके द्वारा ही रथ की ऊंचाई भी तय की जाती है.
- माली समुदाय- यह समुदाय तीनों रथों की सजावट के लिए फूल, माला आदि का निर्माण करता है.
- दर्जी समुदाय- तीनों रथों के कपड़ों का निर्माण इसी समुदाय के द्वारा किया जाता है. ये भगवान के वस्त्रों के साथ ही रथ के अन्य स्थानों पर लगे कपड़ों का भी निर्माण करते हैं.
- बढ़ई समुदाय- लकड़ी का सारा काम बढ़ई समुदाय के लोगों के द्वारा किया जाता है. रथों के अलग-अलग हिस्सों को भी यही लोग जोड़ते हैं.
- चित्रकार समुदाय- ये लोग रथों को रंग बिरंगे चित्रों और सजावट की सामग्री लगाने के लिए जिम्मेदार होते हैं.
- लोहार समुदाय- इस समुदाय के लोगों के द्वारा रथों पर लगने वाले लोहे के हिस्सों का निर्माण किया जाता है.
- कुम्हार समुदाय- कुम्हार लोग तीनों रथों के पहियों का निर्माण करते हैं.
इन सात समुदाय के लोगों के अलावा अन्य लोग भी रथ यात्रा को सफल बनाने के लिए जिम्मेदार होते हैं, लेकिन आकर्षक रथ का निर्माण करने में मुख्य भूमिका इनकी हो रहती है.
Jagannath Rath Yatra Quotes in Hindi
2 पंक्तियों वाले कोट्स
- “जगन्नाथ की कृपा अनंत है, भक्तों का जीवन शांत है.”
- “रथ पर चढ़े जब भगवान, खुलते हैं सब भाग्य के द्वार.”
- “प्रभु जगन्नाथ की राह चले, दुख सारे जीवन से टले.”
- “चक्रधर की छाया में, हर मन पाता माया में.”
- “जब रथ यात्रा आती है, श्रद्धा की बयार छा जाती है.”
- “नयन जिनके विशाल हैं, कृपा भी उनके कमाल है.”
- “जो पुकारे जगन्नाथ को, वो कभी नहीं रहता अकेला.”
- “रथ यात्रा का है ये त्योहार, हर दिल में जगाए प्यार.”
- “जब रथ चले पुरी की गली, भक्तों की आंखों में चमके नयी जली.”
- “जगन्नाथ हैं जीवन का सार, भक्ति से खुलते सब द्वार.”
- “प्रभु के चरणों में है शांति, वही देते हैं आत्मा को क्रांति.”
- “पुरी का पर्व सबसे न्यारा, रथ यात्रा है सुख का सहारा.”
- “रथ की डोरी पकड़ ले भक्त, दूर हो जीवन का हर संकट.”
- “जिनके दर्शन से मिटे अज्ञान, वे हैं हमारे श्री भगवान.”
- “रथ पर बैठे जब प्रभु प्यारे, भक्त बिछाते मन के द्वारे.
4 पंक्तियों वाले कोट्स
“जगन्नाथ के चरणों में जो रखे अपना सिर,
जीवन के हर दुख का वो पा जाएगा निस्तर.
रथ यात्रा का ये पर्व है बड़ा पावन,
इसमें छुपा है भक्तों का समर्पण भावन.”
“पुरी की गलियों में जब रथ निकले,
हर भक्त प्रेम और श्रद्धा में पिघले.
जय जगन्नाथ की गूंज हो चारों ओर,
रथ यात्रा लाए खुशियों का भंडार भरपूर.”
“रथ पर बैठे जब विश्व के नाथ,
झुकते हैं सारे, हो जाते हैं साथ.
यह पर्व नहीं, ईश्वर की अनुभूति है,
हर भाव में उनकी ही मूर्ति है.”
“न जग में कोई ऐसा ठौर,
जैसा पुरी में जगन्नाथ का भव्य भोर.
रथ यात्रा में जब झूमे जन,
तब महसूस हो प्रभु का दर्शन.”
“प्रभु जगन्नाथ की है ये सवारी,
जिसमें भक्तों की हो रही तैयारी.
रथ खींचना है पुण्य का काम,
इससे मिलता है प्रभु का नाम.”
“जो करे प्रभु से सच्चा प्यार,
उसके जीवन में न रहे अंधकार.
रथ यात्रा है प्रभु का आमंत्रण,
चलो, करें हम पूर्ण समर्पण.”
“प्रभु के रथ की धूल जब मिल जाए,
जन्मों-जन्म का पाप भी धुल जाए.
बस एक नजर हो जगन्नाथ की,
फिर क्या चिंता, क्या बाधा भारी.”
“रथ यात्रा की जब बजे शंखनाद,
हर्षित हो जाए समस्त समाज.
पुरी नगरी बनती स्वर्ग समान,
जब निकलें जगन्नाथ भगवान.”
“रथ की रस्सी को जब पकड़ें हाथ,
भाग्य के दरवाजे दें प्रभु के साथ.
ये यात्रा है आत्मा की ओर,
जिसमें जगन्नाथ हैं हमारे भव्य शौर.”
“जगन्नाथ की है अनंत लीला,
उनके दर्शन से मिलता है जीला.
रथ यात्रा लाती है पर्व महान,
इसमें मिलता है मोक्ष का दान.”
“जब रथ पर चढ़ें बलराम,
सुभद्रा संग हो सबका काम.
तीनों के दर्शन का ये पर्व,
जीवन को दें नया गर्व.”
“प्रभु को देखे जो हर्षित भाव से,
जीवन सवर जाए क्षण भर में जैसे.
रथ यात्रा है भक्ति की मिसाल,
इसमें छिपा है प्रेम का ज्वाल.”
“जब जगन्नाथ नगर भ्रमण करें,
सारे भक्त उनके संग चलें.
ये है पर्व आत्मा के मेल का,
जहां हर पल होता है खेल का.”
“रथ पर सवार हैं जग के नाथ,
कर रहे हैं सबका उद्धार साथ.
रथ यात्रा की हो जय जयकार,
खुले हर भक्त का बंद व्यवहार.”
“जब प्रभु जगन्नाथ आए द्वार,
मिट जाए सब मन का भार.
रथ यात्रा है ईश्वर का वरदान,
जिसमें मिलते हैं मोक्ष के प्रमाण.”
निष्कर्ष
रथ यात्रा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक विरासत और भक्ति परंपरा का प्रतीक है. यह पर्व समाज में एकता, समानता और सेवा का संदेश देता है. रथ यात्रा में भाग लेना न केवल आध्यात्मिक अनुभव होता है बल्कि यह जीवन के उन मूल्यों की भी याद दिलाता है जो आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जैसे विनम्रता, समर्पण और सामूहिकता.
जब भगवान स्वयं रथ पर सवार होकर सड़कों पर उतरते हैं, तो यह भक्तों के लिए आशीर्वाद का एक ऐसा अवसर होता है जिसे शब्दों में नहीं बांधा जा सकता. रथ यात्रा हर वर्ष यह सिखाती है कि ईश्वर केवल मंदिरों में नहीं, बल्कि अपने भक्तों के बीच भी विराजते हैं. यही कारण है कि रथ यात्रा आज विश्वभर में श्रद्धा और भक्ति के एक अद्वितीय उत्सव के रूप में प्रतिष्ठित है.
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