क्या गुलाम कश्मीर का मुद्दा भाजपा को देगा चुनावी बढ़त

Authored By: संजय श्रीवास्तव

Published On: Wednesday, May 15, 2024

Last Updated On: Thursday, May 16, 2024

loksabha chunav me gulam kashmir ka mudda
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गुलाम कश्मीर के मुद्दे ने आम चुनाव में जगह बना ली है। मतदान के अगले तीन चरणों में यह मुद्दा बहुत अहम रहने वाला है। बेशक यह भाजपा के पक्ष में प्रभाव डालने वाला होगा। पर सवाल अब भी यही है कि ग़ुलाम कश्मीर कब और कैसे होगा हमारा।

Authored By: संजय श्रीवास्तव

Last Updated On: Thursday, May 16, 2024

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ-साथ गृहमंत्री अमित शाह, विदेश मंत्री एस जयशंकर, हिमंत बिश्व सरमा जैसे भाजपा के कई स्टार प्रचारकों ने अपने चुनावी भाषणों में गुलाम कश्मीर के मुद्दे का जिक्र छेड़ दिया है, ताकि यह जनमानस में चर्चा का केंद्र बन सके।

प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान के बारे में कांग्रेस के एक पूर्व बयान का संदर्भ लेते हुये इस मुद्दे पर अप्रत्यक्ष तौर पर कहा, ‘भारत ने भी चूडियां नहीं पहन रखी हैं।’ तो केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने साफ शब्दों में घोषणा की कि ‘हम पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर यानी पीओके को भारत का हिस्सा मानते हैं और इसे वापस लेंगे”।

इस पर हालिया बयान विदेश मंत्री जयशंकर ने दिया है। उन्होंने कहा कि भारत की नीति स्पष्ट है। पीओके पर अवैध कब्जे को हटाना है और इसका भारत में विलय करना है। वरिष्ठ भाजपा नेता एवं असम के मुख्यमंत्री हिमंत अपने भाषणों में कह रहे हैं कि 400 सीटें लाना इसलिये बहुत आवश्यक है, क्योंकि हमको पीओके को वापस लाना है।

यह चुनावी जुमला नहीं है

भाजपा की इस पर शुरू से स्पष्ट नीति रही है। पीओके पर भाजपा ने कभी गोलमोल बात नहीं की। संसद में भी वह इस बात को स्पष्ट कर चुकी है कि उसके अनुसार गुलाम कश्मीर देश की अभिन्न अंग है और वह इसे पाकिस्तान के कब्जे से छुड़ा कर अपने साथ लाएगी। केंद्रशासित प्रदेश में जब कुछ समय पहले विधानसभा का परिसीमन हुआ तो नए परिसीमन में पीओके के लिए भी सीटें निर्धारित की गई हैं। इसलिए यह भाजपा का चुनावी जुमला नहीं है।

पाकिस्तानी मीडिया कहती है

पीओके में इन दिनों हिंसा अपने चरम पर है। पीओके में पाकिस्तान सरकार और सेना के खिलाफ हिंसात्मक आंदोलन लगातार चल रहा है। इसमें कई लोगों की जानें भी गई हैं। यहां हो रही हिंसा से उसकी फजीहत दुनिया भर में हो रही है। इसलिए सेना यहां ज्यादा सख्ती नहीं कर सकती है। वर्षों बाद यह पहली बार हुआ है कि पाकिस्तानी मीडिया और उनके सोशल नेटवर्क पर इसे लेकर सरकार की आलोचना जारी है। पाकिस्तानी मीडिया भी सरकार पर आरोप लगा रही है कि अपने कब्जे वाले कश्मीर के लोगों से लगातार भेदभाव किया जा रहा है।

पाकिस्तान सरकार यहाँ हिंसा और न भड़के इसके लिए सख्त कार्यवाही नहीं की। खुद कर्ज में डूबे होने, 80 सरकारी कंपनियों को बेचने की मजबूरी के बावजूद पीओके को 23 अरब रुपये का फंड के साथ खास आर्थिक पैकेज का ऐलान किया है।

गुलाम कश्मीर की चाहत, भारत विलय

पीओके के लोग पहले पाकिस्तान से आज़ादी चहते थे। लेकिन भारत में कश्मीर से धारा 370 हटने और भारत के साथ कश्मीर के चहुंमुखी विकास, मुसलमानों की भारत में बेहतर स्थिति और प्रधानमंत्री मोदी की संसार में मजबूत होती साख को देखकर आज वहां के लोग भरत में विलय को ज्यादा  तरजीह दे रहे हैं। अब वहां जुलूसों में आज़ादी के नारे भले ही लगाये लेकिन वह जानती है कि उसके लिये आज़ादी मिलने के बाद भी खुद मुख्तारी मुश्किल होगी इसलिए बेहतर है कि भारत में विलय हो जाये। यही वजह है कि आंदोलन के दौरान लोग प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से इस बात की मांग करते नजर आये कि वह उन्हें पाकिस्तान के अवैध कब्जे से मुक्ति दिलाएं।

अत्याचार का सिलसिला पुराना है

यह हालिया घटना बस बानगी है। पाकिस्तान का गुलाम कश्मीर के साथ दोहरा भेदभावपूर्ण और दमनकारी रवैया पुराना है। पीओके को अपने हिस्से की जो 2,600 मेगावाट बिजली मिलनी चाहिए थी, कभी नहीं मिली। दोनों देशों के बीच 37 अरब डॉलर के व्यापार की संभावना 2 अरब डॉलर पर आ गयी। जाहिर है इससे पाकिस्तान की इकॉनमी डगमगाई और इसका परोक्ष असर गुलाम कश्मीर के विकास और व्यवस्था पर भी पड़ा।

ग़ुलाम कश्मीर हमारा होगा, पर कब

पिछले दिनों रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि, ‘पाकिस्तान से अब बस पीओके पर बात होगी।’ प्रधानमंत्री कार्यालय में मंत्री जितेंद्र सिंह ने भी तब कहा था कि पीओके वापस लेने का समय आ गया है। पर क्या गुलाम कश्मीर को वापस लाना आसान है। इसके लिए क्या करना होगा? क्या आने वाली सरकार इस ओर कदम बढ़ाएगी। यह देखना होगा।

संजय श्रीवास्तव प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया में 15 वर्षों से अधिक अनुभव रखने वाले एक कुशल और अनुभवी पत्रकार हैं। वैश्विक मुद्दों की गहरी समझ और विविध विषयों पर तार्किक व संतुलित लेखन उनकी प्रमुख विशेषताएं हैं। संजय श्रीवास्तव ने अपने करियर में संवेदनशील और विवादास्पद मामलों को भी निष्पक्ष और तथ्यात्मक रूप से प्रस्तुत किया है। उनका लेखन न केवल सूचनात्मक है, बल्कि पाठकों को सोचने और समकालीन मुद्दों को बेहतर ढंग से समझने के लिए प्रेरित करता है। उन्होंने राजनीति, समाज, अर्थशास्त्र, और वैश्विक घटनाओं जैसे विषयों पर अपनी गहन पकड़ और निष्पक्ष दृष्टिकोण के साथ पत्रकारिता जगत में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है।
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