Reel Vision Syndrome: अधिक रील देखते हैं तो जान लीजिए इसके खतरे, जा सकती है आंखों की रोशनी भी

Reel Vision Syndrome: अधिक रील देखते हैं तो जान लीजिए इसके खतरे, जा सकती है आंखों की रोशनी भी

Authored By: JP Yadav

Published On: Tuesday, April 8, 2025

Updated On: Tuesday, April 8, 2025

Reel Vision Syndrome: अधिक रील देखते हैं तो जान लीजिए इसके खतरे, जा सकती है आंखों की रोशनी भी

Reel Vision Syndrome: लगातार रील देखने से बच्चों में नेत्र संबंधी समस्याएं बढ़ रही हैं. लगातार स्क्रीन पर ध्यान केंद्रित करने से पलक झपकने की दर 50% कम हो जाती है.

Authored By: JP Yadav

Updated On: Tuesday, April 8, 2025

Reel Vision Syndrome: यंगस्टर्स अब मोबाइल फोन में अपनी जिंदगी को तलाशने लगे हैं. उनका बहुत बड़ा समय मोबाइल फोन पर ही गुजरता है. इसके साइट इफेक्ट्स भी सामने आने लगे हैं. जानकारों का कहना है कि सोशल मीडिया का ज़्यादा इस्तेमाल करना मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है. यह अवसाद और चिंता का कारण बन सकता है और आत्म-सम्मान को कम कर सकता है. 16-35 वर्ष के युवा अधिक समय सोशल मीडिया पर गुजारने लगे हैं. यही वजह है कि सोशल मीडिया पर स्क्रॉलिंग से लेकर अपना पसंदीदा शो लगातार देखने का स्क्रीन टाइम अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर है.

इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस से बढ़ रही समस्या

इस बीच सोशल मीडिया पर बढ़ती निर्भरता और आदत के चलते इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस एक गंभीर बीमारी को बढ़ावा दे रही है और वह है रील विजन सिंड्रोम. दरअसल, मोबाइल, फोन और लैपटॉप की स्क्रीन पर हर जगह आंख है. ऑफिस में काम के दौरान, स्कूल में और यहां तक की खेलते समय भी स्क्रीन पर नजरें रहती हैं. इससे आंखों पर बुरा असर पड़ता है.

क्या होती है दिक्कत?

सोशल मीडिया के अधिक इस्तेमाल से आंखों में तनाव, धुंधलापन और रोशनी कम होने के मामले बढ़ रहे हैं. ज्यादातर परेशानियां बढ़ते स्क्रीन टाइम की वजह से हैं. दुनियाभर की तमाम रिसर्चों के मुताबिक स्क्रीन से निकलने वाली ब्लू रेज खास कर बच्चों के नींद का पैटर्न खराब कर सकती है. आंखों के डॉक्टर इसे डिजिटल आई स्ट्रेन (Digital Eye Strain) कहते हैं.

लक्षणों का न करें नजरअंदाज

लंबे समय तक स्क्रीन देखने के लक्षण आंखों में सूखापन, जलन और धुंधलापन हैं. इसकी वजह से लोगों को अन्य कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. जानकारों का कहना है कि रील विजन सिंड्रोम को अनदेखा किया जाए तो आंखों की रोशनी और नींद- दोनों पर असर पड़ सकता है. खास कर कम उम्र के लोगों में, क्योंकि यह वर्ग सबसे ज्यादा स्क्रीन पर समय गुजार रहा है. रील्स में आर्टिफिशियल लाइट्स होती हैं. इससे लगातार बदल रहे विजुअल आंखों को नुकसान पहुंचाते हैं. इसे रील विजन सिंड्रोम नाम दिया गया है.

यह भी जानें

  • आंखें कुल मिला कर स्वस्थ जीवन की कुंजी है, इस मंत्र को याद रखें
  • समस्या का उपाय संतुलन में है. इसका मतलब सिर्फ जरूरी चीजें ही देखें
  • स्क्रीन टाइम की सीमा तय करें
  • नियमित ब्रेक लेना जरूरी है.
  • ऑफलाइन गतिविधियों पर जोर दें.

दुनियाभर में बढ़ रही समस्या

मायोपिया की शिकायत दुनिया भर में बढ़ रही है. इसलिए डॉक्टर माता-पिता से बच्चों का स्क्रीन टाइम कम करने और आंखों को नियमित आराम देने को कहते हैं. जिन लोगों का स्क्रीन टाइम ज्यादा होता है, उन्हें डॉक्टर खास सावधानी बरतने की सलाह देते हैं. सेहत की सुरक्षा और जोखिम कम करने के लिए स्क्रीन टाइम एक दिन में चार-पांच घंटे तक ही सीमित रखने को कहा जाता है.

About the Author: JP Yadav
जेपी यादव डेढ़ दशक से भी अधिक समय से पत्रकारिता में सक्रिय हैं। वह प्रिंट और डिजिटल मीडिया, दोनों में समान रूप से पकड़ रखते हैं। अमर उजाला, दैनिक जागरण, दैनिक हिंदुस्तान, लाइव टाइम्स, ज़ी न्यूज और भारत 24 जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में अपनी सेवाएं दी हैं। कई बाल कहानियां भी विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं. मनोरंजन, साहित्य और राजनीति से संबंधित मुद्दों पर कलम अधिक चलती है। टीवी और थिएटर के प्रति गहरी रुचि रखते हुए जेपी यादव ने दूरदर्शन पर प्रसारित धारावाहिक 'गागर में सागर' और 'जज्बा' में सहायक लेखक के तौर पर योगदान दिया है. इसके अलावा, उन्होंने शॉर्ट फिल्म 'चिराग' में अभिनय भी किया है।
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