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‘रेवड़ियों’ में छिपी सत्ता की चाबी, फिर भी विशेषज्ञों ने क्यों बताया सबसे बड़ा खतरा
‘रेवड़ियों’ में छिपी सत्ता की चाबी, फिर भी विशेषज्ञों ने क्यों बताया सबसे बड़ा खतरा
Authored By: JP Yadav
Published On: Wednesday, January 15, 2025
Last Updated On: Wednesday, January 15, 2025
Freebies Culture in Indian Politics: आम आदमी पार्टी की बात करें तो पानी और बिजली 'फ्री' करके और इसके बाद मोहल्ला क्लीनिक जैसी योजनाएं लाकर दिल्ली में एक दशक से सत्ता में काबिज है. आम आदमी पार्टी ही क्यों कई राज्यों में लोकलुभावनी योजनाओं के जरिये राजनीतिक दल हारी हुई बाजी जीतकर बाजीगर साबित हुए हैं. हाल ही में महाराष्ट्र चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में महायुति गठबंधन ने बंपर जीत हासिल की.
Authored By: JP Yadav
Last Updated On: Wednesday, January 15, 2025
इस लेख में :
- 19 राज्यों में बांटी जा रही मुफ्त की ‘रेवड़ी’
- जीत का गारंटी बनीं मुफ्त की योजनाएं
- 1500 रुपये की स्कीम से कांग्रेस की हिमाचल में फतह
- मध्य प्रदेश में भी हुआ कमाल, खिला कमल
- महाराष्ट्र में लाडकी बहिण योजना कर गई गेम चेंज
- झारखंड में मैया सम्मान योजना से हेमंत को मिली विजय
- दिल्ली में अरविंद केजरीवाल कर रहे कमाल
- मुफ्त रेवड़ी का इतिहास
- रेवड़ियों से बिगड़ रहा राज्यों का बजट
19 राज्यों में बांटी जा रही मुफ्त की ‘रेवड़ी’
भारतीय राजनीति में पिछले एक दशक के दौरान चुनावी रेवड़ियों का चलन बढ़ा है. भले ही मुफ्त की योजनाओं के मुद्दे पर चुनाव आयोग से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक सवाल उठा चुके हैं, लेकिन राजनीतिक दलों के लिए ये गेम चेंजर साबित हुई हैं. हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh), कर्नाटक (Karnataka), दिल्ली (Delhi), महाराष्ट्र (Maharashtra) और झारखंड (Jharkhand) समेत कुल 19 राज्य हैं, जहां विधानसभा चुनाव में लोकलुभावनी योजनाओं के जरिये राजनीतिक दलों ने सत्ता हासिल की. इन्हीं चुनावी रेवड़ियों की वजह से मतदाताओं ने अप्रत्याशित फैसले भी दिए. जानकारों की मानें तो राज्यों के विधानसभा चुनाव में ऐसी योजनाओं ने राजनीतिक दलों की जीत की राह आसान की, जिसमें लड़कियों और महिलाओं के फायदे या सीधे-सीधे आर्थिक हित की बात थी. अब दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी ने रेवड़ियों की बरसात कर दी है.
जीत का गारंटी बनीं मुफ्त की योजनाएं
लड़कियों और महिलाओं के बैंक खाते में सीधे नगद ट्रांसफर की जाने वाली स्कीम का मतलब जीत की गारंटी. यह कई राज्यों में राजनीतिक दलों ने आजमाया और सफलता 100 प्रतिशत मिली. मध्य प्रदेश में लाडली बहन (Ladli Behna Yojana), महाराष्ट्र में लाडकी बहिण योजना (Mukhyamantri Majhi Ladki Bahin Yojana) और झारखंड में मैया सम्मान योजना (Maiya Samman Yojana) ने सत्तारूढ़ दलों की सत्ता में वापसी कराई. इसी तरह कर्नाटक में गृहलक्ष्मी, ओडिशा में शुभद्रा योजना, पश्चिम बंगाल में लक्ष्मी भंडार और असम में मुख्यमंत्री महिला उद्यमिता योजना भी सत्ता पाने का आसान उपाय बनीं. एसबीआई की रिसर्च रिपोर्ट में सामने आया है कि महिला केंद्रित योजना लागू करने वाले प्रदेशों की संख्या 19 हो गई है. इनमें दिल्ली, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, असम और कर्नाटक अग्रणी राज्यों में शामिल हैं.
1500 रुपये की स्कीम से कांग्रेस की हिमाचल में फतह
नवंबर, 2022 में हुए हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पुरानी पेंशन की वापसी समेत कई लोकलुभावनी योजनाओं के साथ मैदान में उतरी थी. नतीजे आए तो भारतीय जनता पार्टी की जमीन खिसक चुकी थी और कांग्रेस को जीत का आसमान मिल चुका था. पांच साल से विपक्ष में बैठी कांग्रेस ने 68 में से 40 सीटों पर जीत हासिल की, जबकि भाजपा को सिर्फ 25 सीटें ही हासिल हुईं. राजनीतिक पंडितों की मानें तो कांग्रेस को सत्ता वापस दिलाने में बहुचर्चित ‘इंदिरा गांधी प्यारी बहना सुख सम्मान निधि योजना’ का सबसे बड़ा हाथ रहा. इस योजना में महिलाओं को 1500 रुपये दिए जाते हैं. इस योजना की कामयाबी ने एक बात तो तय कर दी कि ऐसी योजनाएं चुनावी बाजी पलटने की झमता रखती हैं, जिनमें लड़कियों और महिलाओं के सीधे-सीधे फायदे की बात हो.
मध्य प्रदेश में भी हुआ कमाल, खिला कमल
मध्य प्रदेश में ‘लाडली बहना योजना’ को भारतीय जनता पार्टी के लिए गेम चेंजर माना जाता है. मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 में भाजपा को बंपर जीत दिलाने और सत्ता तक पहुंचाने में इस योजना का बड़ा हाथ रहा. इस योजना के तहत लाभार्थी महिलाओं को 1250 रुपये मासिक दिए जाते हैं. फिलहाल 1.27 करोड़ लाडली बहनों को प्रत्येक महीने 1250 रुपये दिए जाते हैं. 2023 के विधानसभा चुनाव में खुद तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि जीतने पर इस योजना में दी जाने वाली 1250 रुपये की राशि को बढ़ाकर 3 हजार किया जाएगा. बताया जाता है कि इस योजना ने बंपर जीत के साथ भारतीय जनता पार्टी को सत्ता में वापसी करा दी.
महाराष्ट्र में लाडकी बहिण योजना कर गई गेम चेंज
महाराष्ट्र में महायुति की जीत का आधार अगस्त, 2024 में शुरू की गई लाडकी बहिण योजना थी. इसमें 2.50 लाख रुपये सालाना से कम आय वाली महिलाओं को 1500 रुपये प्रति महीने जाते हैं. यह योजना महायुति के लिए गेमचेंजर साबित हुई. तत्कालीन मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने एलान भी कर दिया था कि यह सहायता राशि बाद में बढ़ाकर 2100 रुपये कर दी जाएगी. इतना नहीं, एकनाथ शिंदे ने यह भी घोषणा की थी कि पुलिस बल में 25,000 महिलाओं की भर्ती भी जाएगी. महाराष्ट्र में लाडकी बहिण योजना ने महायुति का बेड़ा पार लगा दिया. इस जीत के बाद पूर्व मुख्यमंत्री ने खुद स्वीकार किया था कि ‘लाडकी बहिण योजना’ से महाराष्ट्र चुनाव में महायुति की जीत की राह आसान हुई. इससे पहले लोकसभा चुनाव 2024 में भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई में महाराष्ट्र में महायुति गठबंधन बुरी तरह से हारा. महा विकास आघाड़ी ने बंपर जीत हासिल की थी. इसके बाद लगने लगा था कि महा विकास आघाड़ी गठबंधन महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में सत्ता में वापसी करेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. जनहित की योजनाओं के जरिये महायुति सत्ता में बरकरार रही.
झारखंड में मैया सम्मान योजना से हेमंत को मिली विजय
झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 में झारखंड मुक्ति मोर्चा की अगुवाई में इंडिया ब्लॉक को स्पष्ट बहुमत हासिल हुआ. राज्य विधानसभा चुनाव में जीत की अहम भूमिका महिला केंद्रित योजनाओं ने निभाई. झारखंड में सत्तासीन हेमंत सोरेन सरकार ने अगस्त, 2024 में ‘मैया सम्मान योजना’ की शुरुआत की. इसके तहत 21 से 50 वर्ष की महिलाओं को प्रत्येक महीने 1000 रुपये वित्तीय मदद के तौर पर दिए जाते हैं. इस योजना से 50 लाख महिलाओं को लाभ मिला. इसका नतीजा यह हुआ कि झारखंड विधानसभा चुनाव में इतिहास रचा गया. इस योजना ने झारखंड मुक्ति मोर्चा की झोली वोटों से भर दी और हेमंत सोरेन फिर से मुख्यमंत्री बने. यह जानकर लोगों को हैरत होगी की झारखंड में महिला मतदाताओं की भागीदारी में इजाफा हुआ. 81 में से राज्य की 68 सीटों पर महिलाओं ने अधिक मतदान किया, जिसका फायदा इंडिया ब्लॉक गठबंधन को मिला.
दिल्ली में अरविंद केजरीवाल कर रहे कमाल
चुनावी रेवड़ियों की बात करें तो आम आदमी पार्टी के मुखिया ने विरोधियों को चित कर दिया है. लगातार दो चुनाव (दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 और 2020) में अरविंद केजरीवाल ऐसी लोकलुभावनी योजनाएं लेकर आए, जिसके चलते भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों हासिए पर आ गए. मुफ्त बिजली-पानी और मोहल्ला क्लीनिक समेत कई अन्य योजनाओं के बाद अरविंद केजरीवाल ने 2020 के चुनाव से कुछ महीने पहले महिलाओं के लिए बसों में फ्री यात्रा की योजना लॉन्च की तो इसका फायदा सीधे-सीधे चुनाव नतीजों में दिखा. दिल्ली में आम आदमी पार्टी को महिलाओं के वोट मिले. जनहित से जुड़ी योजनाओं को ही असर है कि अब अन्य पार्टियां भी अपने-अपने राज्यों में चुनावी रेवड़ी बांटने के लिए अरविंद केजरीवाल की नकल करने लगी हैं. केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने गरीबों को मुफ्त राशन 2028 तक देने का एलान कर दिया है. कुछ जानकार इसे भी मुफ्त रेवड़ियों में गिनते हैं. यह अलग बात है कि कुछ अर्थशास्त्री लोक कल्याणाकारी योजना में शामिल करते हैं.
मुफ्त रेवड़ी का इतिहास
मुफ्त की रेवड़ी का चलन नया नहीं है. दक्षिण भारत में अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम और द्रमुक मुनेत्रकणगम मुफ्त की रेवड़ियां बांटकर सत्ता में वापसी कर चुकी हैं. इससे भी पहले 1954-1963 के दौरान मद्रास के तत्कालीन मुख्यमंत्री कुमारस्वामी कामराज ने मुफ्त रेवड़ी की शुरुआत की थी. उन्होंने पहली बार मुफ्त शिक्षा और मुफ्त भोजन की योजना बनाई थी. यहां से फ्रीबीज यानी मुफ्त की रेवड़ियों की परंपरा शुरू हो गई. वर्ष 1967 में डीएमके के मुखिया सीएन अन्नादुरई ने चुनावी रेवड़ी के तहत साढे़ चार किलो चावल मुफ्त में देने की घोषणा की थी. इसके बाद सत्ता पाने के लिए मुफ्त की रेवड़ियों की शुरुआत हो गई. वर्ष 2006 में एआईएडीएमके कलर टीवी देना का चुनाव झुनझुना दिया. इससे भी आगे बढ़कर डीएमके ने कलर टीवी के साथ साथ केबल कनेक्शन देने का चुनावी जुमला दिया. दक्षिण भारत का यह चलन उत्तर भारत में वर्ष 2015 में आया, जब आम आदमी पार्टी ने फ्री बिजली फ्री पानी के नाम पर दिल्ली में एतिहासिक प्रदर्शन करते हुए कांग्रेस को शून्य पर समेट दिया और भारतीय जनता पार्टी सिर्फ 3 सीटें हासिल कर पाई. अब उत्तर भारत में चुनाव में फ्रीबीज आम हो गया है. मुफ्त रेवड़ियों का बांटने के मामले उत्तर भारत और दक्षिण भारत के राज्य एक हैं. पिछले एक साल के दौरान हुए विभिन्न राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में मुफ्त रेवड़ियों की बरसात हुई थी. राजनीतिक दलों की जीत में मुफ्त रेवड़ियों की अहम भूमिका रही थी.
रेवड़ियों से बिगड़ रहा राज्यों का बजट
आम आदमी पार्टी की मुफ्त की योजनाओं से राजधानी दिल्ली कर्ज में डूबती जा रही है. वर्ष 2020 में दिल्ली पर 3631 करोड़ रुपये का कर्ज था. 2021 में कर्ज बढ़कर 9464 हो गया. 2022 की बात करें तो दिल्ली पर कर्ज 15689 तक हो गया. अब यानी 2025 में यह कर्ज 15,881 करोड़ रुपये तक जा सकता है. भारतीय जनता पार्टी शासित मध्य प्रदेश का भी कुछ-कुछ ऐसा ही हाल है. इस राज्य में बजट से 20 प्रतिशत से अधिक कर्ज है. हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में मुफ्त की योजनाओं से आर्थिक संकट की स्थिति बन रही है. इसके चलते टैक्स में इजाफा करना पड़ा रहा है या फिर सामान की कीमतें बढ़ानी पड़ रही हैं. राजनीतिक दलों को समझना चाहिए कि फ्रीबीज और जनकल्याण में फर्क है. जनकल्याण की योजनाओं से लोगों का अप्रत्यक्ष रूप से विकास होता है, जबकि मुफ्त की रेवड़ियों से सीधे-सीधे राज्य के खजाने पर असर होता है. मुफ्त की योजनाओं से आने वाले समय संबंधित राज्य आर्थिक संकट में आ सकते हैं. इसको लेकर आर्थिक संगठन और आर्थिक विशेषज्ञ चेताते रहते हैं.
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