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पश्चिमी यूपी-2 महाभारत का चक्रव्यूह
Authored By: Raj Kaushik,Political Analyst and Senior Journalist
Published On: Thursday, April 18, 2024
Last Updated On: Wednesday, June 19, 2024
पहले चरण में भाजपा को कितनी मिलेगी चुनौती! 1- जीत के प्रति आश्वस्त प्रधानमंत्री और भाजपा चाहते हैं उनके पक्ष में बढे मतदान का प्रतिशत। 2- 2014 में जहां भाजपा को 282 सीट मिलीं, वही मतदान का प्रतिशत 31.34 रहा। 3- 2019 में भाजपा की सीट बढ़कर 303 हो गईं और मतदान का प्रतिशत भी बढ़कर 37.36 हो गया।
Authored By: Raj Kaushik,Political Analyst and Senior Journalist
Last Updated On: Wednesday, June 19, 2024
पश्चिम उत्तर प्रदेश के जिन आठ लोकसभा क्षेत्रों में पहले चरण में 19 अप्रैल को मतदान है, वहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सभा या रोड शो न करके, दूसरे चरण वाली दो सीटों गाजियाबाद और मेरठ में रोड शो व सभा करके पहले चरण के चुनाव को खासा दिलचस्प बना दिया है। जहां पहले मतदान है, वहां न जाकर जहां दूसरे चरण में मतदान है, वहां पहुंचकर प्रधानमंत्री मोदी ने या कहें कि भारतीय जनता पार्टी ने कुछ स्पष्ट संदेश देने की कोशिश की है। हालांकि भाजपा के विरोधी मान रहे हैं कि पहले चरण की आठ सीटों पर भाजपा की स्थिति अच्छी नहीं है, इसलिए प्रधानमंत्री उधर नहीं गए जबकि भाजपाइयों का कहना है कि इन आठ में से चार सीट पहले से ही भाजपा के पास हैं। ये सीटें पुनः बीजेपी जीतेगी और बाकी की चार सीटों पर भी भाजपा के समीकरण बहुत अच्छे हैं। इन सीटों पर भाजपा के पक्ष में परिणाम आने की संभावनाओं के चलते ही प्रधानमंत्री ने दूसरे चरण वाली सीटों पर काम करना शुरू कर दिया है। भाजपाइयों की इस बात में दम हो भी सकता है मगर ऐसे में एक सवाल ये भी उठ रहा है कि गाजियाबाद और मेरठ, दोनों ही सीट भाजपा के लिए बहुत ज्यादा आरामदायक मानी जा रही हैं। फिर इन क्षेत्रों में प्रधानमंत्री का रोड शो और सभा का औचित्य क्या है?
इसका जो जवाब भाजपा और राजनीति के जानकारों की तरफ से दिया जा रहा है, वो भी खासा महत्वपूर्ण है। कहा जा रहा है कि जहां भाजपा की जीत सुनिश्चित है, वहां प्रधानमंत्री इसलिए जा रहे हैं ताकि वहां मतदान का प्रतिशत भाजपा के पक्ष में अधिक से अधिक हो सके। पूरे देश में भाजपा के पक्ष में अधिक मतदान होगा तो उससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की छवि और बेहतर एवं मजबूत होगी।
दरअसल, 2014 और 2019 के चुनाव में भाजपा के पक्ष में पड़े वोटो की संख्या भी बढ़ी थी और भाजपा की सीटें भी। इससे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का क़द पूरी दुनिया में बढ़ा। 2014 में जहां भाजपा को 282 सीट मिलीं, वही मतदान का प्रतिशत 31.34 रहा। 2019 में भाजपा की सीट बढ़कर 303 हो गईं और मतदान का प्रतिशत 37.36 हो गया। खास बात ये है कि उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र ऐसे राज्य रहे जहां भाजपा को पहले से अधिक वोट मिले और इनमें सर्वाधिक चार करोड़ 28 लाख वोट उत्तर प्रदेश में ही भाजपा के पक्ष में अधिक पड़े। इस आंकड़े को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दौरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा के पक्ष में मतदान का प्रतिशत बढ़ाने के उद्देश्य से लगाए गए हैं, न कि सिर्फ प्रत्याशी को विजयी बनाने के लिए।
पहले चरण में देश की जिन 102 सीटों पर मतदान होगा, उनमें से आठ पश्चिम उत्तर प्रदेश की हैं। ये सीटें हैं- मुजफ्फरनगर, कैराना, बिजनौर, नगीना, मुरादाबाद, रामपुर, सहारनपुर और पीलीभीत। 2019 में भाजपा ने विपरीत परिस्थिति के बीच तीन सीट मुजफ्फरनगर, कैराना और पीलीभीत पर जीत दर्ज की थी और चौथी सीट रामपुर के उप चुनाव में हासिल कर ली थी। आम चुनाव में रामपुर और मुरादाबाद सीट समाजवादी पार्टी के और बिजनौर, नगीना व सहारनपुर सीट बसपा ने जीती थीं। विशेष बात ये है कि 2014 में ये आठों सीट भाजपा ने जीती थीं। 2019 में जिस विपरीत परिस्थिति का जिक्र किया, वो ये थी थी कि सपा, बसपा व रालोद तीनों मिलकर बीजेपी के खिलाफ लड़े थे और उन्होंने आठ सीट वाली भाजपा को तीन सीट पर ही समेट दिया था और उनके गठबंधन ने पांच सीट जीत ली थी। भाजपा के लिए इस बार राहत की बात यह है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की प्रमुख पार्टी रालोद जहां उसके साथ गठबंधन में है, वहीं 2014 में गठबंधन में अहम भूमिका निभाने वाली बसपा 2019 में पुराने गठबंधन से अलग होकर स्वतंत्र रूप से ताल ठोंक रही है। समाजवादी पार्टी कांग्रेस के साथ इंडि गठबंधन में है और कांग्रेस की स्थिति पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कुछ भी विशेष नहीं है। इस बदले हुए समीकरण में भाजपा 2019 के मुकाबले 2024 में बेहतर प्रदर्शन कर पाएगी, ऐसी उम्मीद की जा रही है।
भाजपा ने अपने कब्जे वाली कैराना सीट पर मौजूदा सांसद प्रदीप कुमार में ही विश्वास जताया है। प्रदीप कुमार ने पिछले चुनाव में जिस रालोद को हराया था, वो इस बार उनके समर्थन में है। इस वजह से उनकी स्थिति मजबूत मानी जा रही है। रालोद की इस क्षेत्र में क्या भूमिका है इसका अनुमान इस बात से भी लगाया जा सकता है कि 2009 से पहले इस सीट पर रालोद का ही कब्जा था। 2009 में बसपा ने ये सीट जीती लेकिन 2014 में मोदी की आंधी में ये सीट भाजपा के कब्जे में आ गई थी। भाजपा सांसद हुकुम सिंह के निधन के बाद 2018 के उपचुनाव में रालोद को ये सीट मिली जिस पर 2019 में फिर से भाजपा ने जीत हासिल कर ली थी। इस बार कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही समाजवादी पार्टी ने यहां से कैराना के विधायक नाहिद हसन की बहन इकरा हसन को और बसपा ने श्रीपाल सिंह को प्रत्याशी बनाया है।
मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर भी भाजपा ने मौजूदा सांसद एवं मोदी मंत्रिमंडल के सदस्य संजीव बालियान में ही भरोसा जताया है। पिछले दोनों चुनाव बालियान ने जीते हैं। उससे पहले 2009 में ये सीट बसपा के और 2004 में सपा के हिस्से में आई थी। 2019 में संजीव बालियान की जीत का अंतर बहुत कम रहा था लेकिन इस बार रालोद के साथ होने से स्थिति फिर से उनके लिए अनुकूल बन सकती है। समाजवादी पार्टी ने पूर्व राज्यसभा सदस्य हरेंद्र मलिक को टिकट दिया है। वो भी जाट बिरादरी के हैं और उन्हें एक मजबूत प्रत्याशी के रूप में देखा जा रहा है। मायावती ने इस सीट पर दारा सिंह प्रजापति को टिकट दिया है।
भाजपा का गढ़ माने जाने वाली पीलीभीत सीट वरुण गांधी का टिकट कटने के कारण चर्चा में है। भाजपा ने कांग्रेस छोड़कर आए और योगी सरकार में लोक निर्माण मंत्री बने जितिन प्रसाद को और सपा ने पूर्व मंत्री भगवत शरण गंगवार व बसपा ने पूर्व मंत्री अनीस अहमद खान को चुनावी रण में उतारा है। वरुण गांधी का टिकट कटने को जहां सपा और बसपा अपने पक्ष बनाने की कोशिश में लगी हैं, वही जितिन प्रसाद को भाजपा के इस गढ़ में मजबूत प्रत्याशी के रूप में देखा जा रहा है।
भाजपा ने उपचुनाव में जीती रामपुर संसदीय सीट पर भी मौजूदा सांसद घनश्याम लोधी में ही विश्वास जताया है। वैसे तो ये संसदीय क्षेत्र मुलायम सिंह यादव के समय से ही आज़म खान के कारण सपा का गढ़ माना जाता है लेकिन इस समय आज़म खान के जेल में बंद होने और उनकी इच्छा न होने के बावजूद मौलाना मोहिबुल्लाह नदवी को अखिलेश यादव ने सपा का टिकट दिया है। एक तरफ सपा प्रत्याशी की राह में जहां आज़म खान की अनिच्छा कांटे बन सकती है, वहीं बसपा ने मुस्लिम समाज से ही जीशान खान को टिकट देकर मुस्लिम मतों में बंटवारे की आशंकाएं पैदा कर दी हैं। रामपुर के मतदाताओं के बीच ये संदेश भी काम कर रहा है कि आज़म खान के बुरे वक्त में अखिलेश यादव ने उनका अपेक्षित साथ नहीं दिया। ये सब बातें भाजपा के लिए लाभदायक हो सकती हैं।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यूं तो कांग्रेस का जनाधार कहीं भी दिखाई नहीं देता लेकिन प्रियंका गांधी और राबर्ट वाड्रा के कारण चर्चित मुरादाबाद संसदीय सीट 2009 में क्रिकेटर मोहम्मद अजहरूद्दीन को टिकट देकर कांग्रेस ने जीती थी। 2014 में कांग्रेस को हराकर भाजपा के सर्वेश सिंह सांसद चुने गए थे जो 2019 में समाजवादी पार्टी के डॉ. एसटी हसन से हार गए थे। भाजपा ने जहां पिछला चुनाव हारे सर्वेश सिंह में ही भरोसा जताया है, वहीं सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अपने मौजूदा सांसद डॉ. एसटी हसन को नाटकीय परिस्थितियों में बदल कर पूर्व विधायक रुचि वीरा को प्रत्याशी बनाया है। पहले चरण की अपने कब्जे वाली एकमात्र सीट मुरादाबाद से जहां सपा ने मुस्लिम प्रत्याशी हटा दिया है, वहीं बसपा ने मोहम्मद इरफान सैफी को प्रत्याशी बनाकर मुसलमानों को अपनी तरफ आकर्षित करने की कोशिश की है। इन परिस्थितियों का कितना फायदा भाजपा उठा सकती है, ये देखना खासा दिलचस्प होगा।
अब बात करते हैं बसपा के कब्जे वाली बिजनौर, नगीना और सहारनपुर सीट की। पहले चरण की आठ सीटों में से एकमात्र बिजनौर की सीट भाजपा ने एनडीए में शामिल अपने सहयोगी दल रालोद को दी है। रालोद ने सांसद रहे संजय चौहान के बेटे चंदन चौहान को प्रत्याशी बनाया है जो मुजफ्फरनगर जनपद की मीरापुर सीट से विधायक हैं। चंदन चौहान की शानदार राजनीतिक पृष्ठभूमि है। उनके दादा उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री रह चुके हैं। बसपा ने जहां मौजूदा सांसद मलूक नागर का टिकट काटकर रालोद से आए जाट नेता विजेंद्र सिंह को टिकट दिया है, वहीं सपा ने नूरपुर के अपने विधायक राम अवतार सिंह के बेटे दीपक को प्रत्याशी बनाया है। बिजनौर की सीट रालोद को क्यों दी गई, इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि 2004 और 2009 में ये सीट रालोद ने ही जीती थी। 2014 की मोदी लहर में यहां भाजपा का भगवा झंडा लहराया मगर 2019 में सपा, बसपा, रालोद गठबंधन के आगे बीजेपी परास्त हो गई थी और बसपा के मलूक नागर चुनाव जीत गए थे। इस सीट के त्रिकोणीय मुकाबले में भाजपा के समर्थन के साथ रालोद के चंदन चौहान की स्थिति फिलहाल आरामदायक दिखाई दे रही है।
2009 से अस्तित्व में आई नगीना सीट पहले चरण की आठ सीटों में इकलौती अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट है। इस सीट के नतीजे का आकलन फिलहाल राजनीतिक दिग्गज भी नहीं कर पा रहे। इसका मुख्य कारण यह है कि अब तक के तीन बार के चुनाव में यह सीट अलग-अलग दलों के हिस्सों में गई है। 2009 के पहले चुनाव में समाजवादी पार्टी, 2014 की मोदी लहर में भाजपा और 2019 में बसपा ने इस सीट को जीता। बसपा ने मौजूदा सांसद गिरीश चंद्र के स्थान पर सुरेंद्र पाल सिंह को हाथी पर बैठाया है तो सपा ने पूर्व न्यायिक अधिकारी मनोज कुमार को साइकिल पर सवार किया है। भाजपा ने नेहटोर के अपने विधायक ओम प्रकाश कुमार को चुनावी रणभूमि में उतारा है। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित ये सीट बसपा के लिए फिर से सुविधाजनक हो सकती थी मगर आज़ाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर रावण भी यहां चुनावी मैदान में उतरे हुए हैं। हालांकि वह सीट को जीतने की स्थिति में नहीं हैं लेकिन उनके कारण किसी भी दल का और खासतौर पर बसपा का हिसाब-किताब किसी भी हद तक बिगड़ सकता है। बसपा ने अपने कब्जे वाली सहारनपुर सीट पर मौज़ूदा सांसद हाजी फजल उर रहमान का टिकट काटकर और जिला पंचायत सदस्य माजिद अली को उम्मीदवार बना कर चुनाव को दिलचस्प बना दिया है।
समाजवादी पार्टी ने पहले चरण की पश्चिमी उत्तर प्रदेश की आठ सीटों में से एकमात्र सहारनपुर सीट सहयोगी दल कांग्रेस को दी है। कांग्रेस ने सपा बसपा में घूमने के बाद फिर से लौटे इमरान मसूद में ही भरोसा जताया है। भाजपा ने मोदी लहर में जीते पूर्व सांसद राघव लखन पाल को उम्मीदवार बनाया है। 2004 में ये सीट सपा के पास, 2009 में बसपा के पास, 2014 में भाजपा के पास और 2019 में फिर से बसपा के पास आई थी। 2019 में बसपा का साथ देने वाला रालोद इस बार भाजपा के साथ है। इससे ये चुनाव खासा दिलचस्प हो गया है।