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Chaiti Chhath 2025 : परिवार के सुख-शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति के लिए पूजा
Chaiti Chhath 2025 : परिवार के सुख-शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति के लिए पूजा
Authored By: स्मिता
Published On: Monday, March 24, 2025
Updated On: Monday, March 24, 2025
Chaiti Chhath 2025: सूर्योपासना और छठी मैया की पूजा-आराधना का महापर्व है चैती छठ. इस वर्ष यह 1 अप्रैल 2025 को नहाय खाय के साथ शुरू हो जाएगा. सूर्य देव को 03 अप्रैल को पहला अर्घ्य संध्या अर्घ्य दिया जाएगा. चार दिन तक चलने वाले चैती छठ को यमुना छठ (Yamuna Chhath) के रूप में भी जाना जाता है.
Authored By: स्मिता
Updated On: Monday, March 24, 2025
सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित त्योहार है चैती छठ पूजा. छठ पूजा साल में दो बार चैत्र (मार्च-अप्रैल) और कार्तिक (अक्टूबर-नवंबर) महीनों के दौरान की जाती है. चैत्र के महीने में की जाने वाली पूजा को चैती छठ के रूप में जाना जाता है. छठी मैया और सूर्य भगवान को समर्पित यह उत्सव 4 दिनों की अवधि तक चलता है. इसकी शुरुआत नहाय खाय (Chaiti Chhath Nahay Khay 2025), जिसे कद्दू भात (Chaiti Chhth Kaddu Bhhat 2025) भी कहते हैं, से होती है. इसके बाद खरना (Chaiti Chhath Kharna 2025) या लोहंडा, संध्या अर्घ्य (Chaiti Chhath Sandhya Arghya 2025) और अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्पित किए जाने वाले अर्घ्य उषा अर्घ्य (Usha Arghya 2025) मनाया जाता है. चैती छठ पूजा (Chaiti Chhth 2025) का आध्यात्मिक महत्व भी है.
कब है चैती छठ (Kab hai Chaiti Chhath 2025)
वैदिक पंचांग अनुसार, चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठ पूजा मनाई जाती है. षष्ठी तिथि की शुरुआत 02 अप्रैल को देर रात 11 बजकर 49 मिनट पर शुरू होगी. वहीं 03 अप्रैल को रात 09 बजकर 41 मिनट पर यह तिथि समाप्त हो जाएगी. इसके बाद सप्तमी तिथि शुरू होगी.
- नहाय खाय – 01 अप्रेल
- खरना – 02 अप्रेल
- संध्या अर्घ्य – 03 अप्रेल
यमुना छठ (Yamuna Chhath 2025)
चैती छठ चैत्र नवरात्र (Navratri 2025) के दौरान मनाया जाता है. उत्सव को यमुना छठ (Yamuna Chhath 2025) के रूप में भी जाना जाता है. ऐसा माना जाता है कि इस दिन यमुना नदी धरती पर आई थी. इसलिए यह दिन यमुना देवी की जयंती या यमुना जयंती (Yamuna Jayanti 2025) के रूप में भी मनाया जाता है.
चैती छठ पूजा का आध्यात्मिक महत्व (Spiritual Significance of Chaiti Chhath puja)
जीवन को बनाए रखने के लिए छठ पूजा के माध्यम से सूर्य देव के प्रति आभार व्यक्त किया जाता है. यह स्वास्थ्य, समृद्धि और कल्याण, विशेष रूप से संतान के लिए आशीर्वाद मांगने के रूप में छठ आध्यात्मिक महत्व रखता है. भक्तगण इस अवसर पर 36 घंटे का उपवास (निर्जला व्रत) रखते हैं और सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं. सूर्य देव के साथ-साथ, भक्त छठी मैया की भी पूजा करते हैं. छठी मैया को लंबी आयु और अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करने वाली माना जाता है. मान्यता है कि व्रत, अनुष्ठान और जल अर्पण से शारीरिक और मानसिक दोनों की शुद्धि होती है. इससे आंतरिक शांति (Inner Peace) और आध्यात्मिक विकास (Spiritual Development) को बल मिलता है.
कार्तिक छठ और चैती छठ में अंतर (Kartik Chhath & Chaiti Chhath)
दोनों छठ साल के अलग-अलग समय पर मनाए जाते हैं. दोनों छठ के अनुष्ठान समान होते हैं. धार्मिक उत्सव नहाय-खाय से शुरू होता है, जहां व्रती पवित्र जल में स्नान करते हैं. नहाय खाय के अवसर पर स्नान के बाद चावल, चना दाल और लौकी की सब्जी तैयार कर खाई जाती है. छठ के दूसरे दिन खरना के दिन भक्त सुबह से रात तक उपवास रखते हैं. रात में वे पवित्रता के साथ मिट्टी के चूल्हे पर पीतल के बर्तन में रसिया खीर और रोटी पकाकर खाते हैं. गेहूं और चीनी या गुड़ से तैयार की हुई मिठाई ठेकुआ और मौसमी फल सूर्य देव और छठी मैया को अर्पित किया जाता है. तीसरे दिन तक 36 घंटे का कठिन उपवास शुरू होता है और चौथे दिन उगते हुए सूर्य को जल अर्पित कर पारण (Chhath Paran 2025) किया जाता है.
ब्रज क्षेत्र में यमुना छठ (Yamuna Chhath in Braj)
बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में छठ पूरी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है. छठ आमतौर पर हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक महीने में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन भारत के कई क्षेत्रों में यह उत्सव चैत्र माह में भी मनाया जाता है. इस महीने में छठ पूजा को चैती छठ भी कहा जाता है. उत्तर भारत के कुछ हिस्सों, खासकर ब्रज क्षेत्र में इसे यमुना छठ भी कहा जाता है.
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