Chhath Puja 2025: छठ पूजा और पीतल के बर्तनों का अद्भुत संगम

Authored By: Nishant Singh

Published On: Saturday, October 18, 2025

Last Updated On: Saturday, October 18, 2025

Chhath Puja 2025 में सूर्य देव की पूजा करते भक्त पीतल के बर्तनों का उपयोग करते हुए
Chhath Puja 2025 में सूर्य देव की पूजा करते भक्त पीतल के बर्तनों का उपयोग करते हुए

छठ पूजा सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि श्रद्धा, भक्ति और शुद्धता का प्रतीक है. इस पावन अवसर पर पीतल के बर्तनों का विशेष महत्व है, जो सूर्यदेव की ऊर्जा को आकर्षित करते हैं और पूजा को सफल बनाते हैं. पीतल नकारात्मक ऊर्जा दूर करता है, ज्ञान और समृद्धि बढ़ाता है, और पीले रंग की चमक से पूजा स्थल को दिव्यता और भक्ति की आभा देता है.

Authored By: Nishant Singh

Last Updated On: Saturday, October 18, 2025

Chhath Puja 2025: छठ पूजा सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि श्रद्धा, भक्ति और शुद्धता का प्रतीक है. इस पावन व्रत में सूर्य भगवान को अर्घ्य देने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। खास बात यह है कि इस पूजा में पीतल के बर्तनों का विशेष महत्व है. शास्त्रों के अनुसार, पीतल की धातु में अद्भुत ऊर्जा होती है जो सूर्यदेव की शक्ति को आकर्षित करती है. यही कारण है कि व्रती पीतल के बर्तनों में जल, अर्घ्य और प्रसाद रखते हैं, ताकि पूजा का फल कई गुना बढ़ सके.

पीतल के बर्तनों का धार्मिक महत्व

छठ पूजा में पीतल के बर्तनों का प्रयोग सिर्फ शुद्धता और शुभता के लिए नहीं, बल्कि श्रद्धा और भक्ति के प्रतीक के रूप में भी किया जाता है. पीला और चमकीला रंग सूर्य भगवान से जुड़ा माना जाता है, इसलिए पीतल के बर्तन सूर्यदेव को प्रसन्न करने का माध्यम बनते हैं. धार्मिक मान्यता के अनुसार, पीतल नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है और बृहस्पति ग्रह के शुभ प्रभाव को बढ़ाता है, जिससे ज्ञान, समृद्धि और सौभाग्य में वृद्धि होती है.

व्रती पारंपरिक रूप से पीतल के बर्तन ही इस्तेमाल करते हैं क्योंकि यह पवित्रता का प्रतीक मानी जाती है. छठ पूजा में भगवान सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते समय शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है. यही कारण है कि पीतल के बर्तन मंदिरों और पूजा स्थलों में भी बड़े सम्मान के साथ रखे जाते हैं.

भगवान सूर्य को प्रिय पीला रंग

छठ पूजा में पीले रंग का विशेष महत्व है. सूर्य देव का प्रतीक पीला रंग माना जाता है, इसलिए व्रती पूजा में पीले रंग की चीजों का प्रयोग करते हैं. पीतल और फुल्हा के बर्तन भी इसी कारण शुभ माने जाते हैं. प्राचीन समय से व्रती इन बर्तनों का उपयोग कर रहे हैं, ताकि सूर्य भगवान को अर्घ्य देने में पवित्रता और भक्ति बनी रहे.

पीतल का चमकीला रंग पूजा स्थल की शोभा भी बढ़ाता है और व्रतियों के मन में आध्यात्मिक भावना को जगाता है. यही कारण है कि छठ पूजा में पीतल के बर्तन सिर्फ परंपरा नहीं, बल्कि विश्वास और ऊर्जा का प्रतीक भी हैं.

पीतल का वैज्ञानिक महत्व

धार्मिक मान्यताओं के साथ-साथ पीतल के बर्तनों का वैज्ञानिक महत्व भी है. यह धातु एक प्राकृतिक शुद्ध और पवित्र धातु है, जो सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करती है. पीतल के बर्तन विद्युत का अच्छा चालक हैं और इनमें जीवाणुरोधी गुण पाए जाते हैं। यही कारण है कि गंगाजल जैसे पवित्र जल और प्रसाद को पीतल में रखा जाता है.

पीतल से बने बर्तन टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल भी होते हैं। इनकी मदद से न सिर्फ पूजा में शुद्धता बनी रहती है, बल्कि आसपास की आध्यात्मिक ऊर्जा भी संतुलित रहती है.

परंपरा और भक्ति का अनोखा संगम

छठ पूजा में पीतल के बर्तनों का प्रयोग सिर्फ प्राचीन परंपरा नहीं है, बल्कि यह भक्ति, शुद्धता और ऊर्जा का संगम है. पीतल के बर्तन सूर्यदेव को अर्घ्य देने की प्रक्रिया को और भी पावन बनाते हैं. यह बर्तन व्रती की श्रद्धा को दर्शाते हैं और पूजा की सफलता में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

इसलिए छठ पूजा में पीतल का प्रयोग सिर्फ औपचारिकता नहीं, बल्कि श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक है। पीतल के बर्तनों से भरी पूजा स्थल की झलक भक्तों के मन में आध्यात्मिक आनंद और विश्वास दोनों जगाती है.

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निशांत कुमार सिंह एक पैसनेट कंटेंट राइटर और डिजिटल मार्केटर हैं, जिन्हें पत्रकारिता और जनसंचार का गहरा अनुभव है। डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के लिए आकर्षक आर्टिकल लिखने और कंटेंट को ऑप्टिमाइज़ करने में माहिर, निशांत हर लेख में क्रिएटिविटीऔर स्ट्रेटेजी लाते हैं। उनकी विशेषज्ञता SEO-फ्रेंडली और प्रभावशाली कंटेंट बनाने में है, जो दर्शकों से जुड़ता है।
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