Palm Sunday 2025: ईसाई धर्म में क्यों मनाया जाता है पाम संडे? क्या है मान्यता? हैरान कर देगी इसके पीछे की असली कहानी

Palm Sunday 2025: ईसाई धर्म में क्यों मनाया जाता है पाम संडे? क्या है मान्यता? हैरान कर देगी इसके पीछे की असली कहानी

Authored By: JP Yadav

Published On: Sunday, April 13, 2025

Updated On: Sunday, April 13, 2025

Palm Sunday 2025: ईसाई धर्म में क्यों मनाया जाता है पाम संडे? क्या है मान्यता? हैरान कर देगी इसके पीछे की असली कहानी
Palm Sunday 2025: ईसाई धर्म में क्यों मनाया जाता है पाम संडे? क्या है मान्यता? हैरान कर देगी इसके पीछे की असली कहानी

Palm Sunday 2025: पाम संडे ईसाईयों का अहम त्योहार है. ईस्टर से पहले पड़ने वाले रविवार को पड़ता है. यह ईसा मसीह के यरूशलेम में विजयी प्रवेश की याद दिलाता है.

Authored By: JP Yadav

Updated On: Sunday, April 13, 2025

Palm Sunday 2025: रविवार (13 अप्रैल, 2025) को दुनियाभर में पाम संडे मनाया जा रहा है. यह ईस्टर से पहले आने वाले रविवार को मनाया जाता है. पाम संडे दरअसल, ईसाई धर्म का एक अहम त्योहार है. जानकारों का कहना है कि पाम संडे यानी इस दिन को यीशु मसीह के यरूशलेम में विजयी प्रवेश की याद में मनाया जाता है. पाम संडे को ‘जुनून का रविवार’ या ‘पीड़ा का रविवार’ भी कहा जाता है. कुल मिलाकर यह पवित्र सप्ताह का पहला दिन होता है, क्योंकि रविवार के दिन ही यीशु ने येरुशलम में प्रवेश किया था. अधिकांश विद्वानों का दावा है कि यीशु मसीह के यरूशलेम में विजयी प्रवेश की घटना 29 ईस्वी में हुई थी, जब प्रभु ईसा गधे पर सवार होकर येरुशलम पहुंचे. इस दिन को ‘पाम संडे’ के नाम से जाना जाता है. दुनिया भर के ईसाई पाम संडे को यीशु मसीह के धरती पर अंतिम दिनों, उनके परीक्षण और सूली पर चढ़ने की याद में मनाते हैं.

पाम संडे को पैशन का संडे भी कहा जाता है

मेलबर्न विश्वविद्यालय के ट्रिनिटी कॉलेज के अनुसार, परंपरागत रूप से पूजा करने वाले ईसाई पाम संडे पर ताड़ की शाखाएं या ताड़ के क्रॉस हासिल करेंगे. यह यीशु के यरूशलेम में ‘विजयी प्रवेश’ के मूर्त संकेत के रूप में होगा. कुछ चर्चों में पाम संडे को पैशन का संडे भी कहा जाता है, जब प्रार्थना के दौरान सुसमाचार के पैशन आख्यानों में से एक को जोर से पढ़ा जाता है.

चौथी शताब्दी में हुआ था पहला पाम संडे

पाम संडे सहित पवित्र सप्ताह के दौरान मनाए जाने वाले सभी कार्यक्रम दरअसल, यीशु के सूली पर चढ़ने और चमत्कारी पुनरुत्थान तक की घटनाओं का वर्णन करते हैं. इतिहासकारों की मानें तो पहला दर्ज पाम संडे समारोह यरूशलेम में चौथी शताब्दी में हुआ था, लेकिन इसे लगभग 9वीं शताब्दी तक पश्चिमी ईसाई धर्म में पेश नहीं किया गया था. मूडी बाइबिल संस्थान के अध्यक्ष और शिकागो में न्यू लाइफ कम्युनिटी चर्च के संस्थापक पादरी मार्क जोबे ने मार्च 2023 में बताया था कि पाम संडे का तब तक कोई मतलब नहीं है जब तक आप यह न समझ लें कि इसके कुछ समय बाद यीशु मर जाएगा और किसी भी व्यक्ति, चाहे वह वेश्या हो या धार्मिक व्यक्ति, के पापों को क्षमा करने और उन्हें स्वर्ग के राज्य नामक एक नए राज्य में प्रवेश देने की कीमत चुकाएगा.

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आधुनिक पाम संडे समारोह कैसा होता है

पाम संडे समारोह संप्रदाय के अनुसार अलग-अलग होते हैं. कुछ लोग लाल या बैंगनी रंग के कपड़े पहनते हैं और बहुत उत्सवपूर्ण पूजा सेवा में शामिल होते हैं, इस दौरा ईशू की स्तुति गीत गाते हैं और विभिन्न आकारों की ताड़ की शाखाएं उठाते हैं. सेवानिवृत्त बिशप और नेशनल काउंसिल ऑफ़ चर्च के पूर्व अध्यक्ष और महासचिव वश्ती मैकेंज़ी के मुताबिक, शाखाओं को आशीर्वाद दिया जाता है और सेवा के बाद घर ले जाया जाता है. दरअसल, घटना को याद रखने के लिए डेस्क या अलमारियों पर रखा जाता है. इस दौरान परंपरागत रूप से कुछ शाखाओं को बचा लिया जाता है. इन शाखाओं को लोगों को नहीं दिया जाता. उन्हें बचा लिया जाता है.

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क्या है मान्यता

विद्वानों का कहना है कि यीशु क्रूस पर मरे और जब वे क्रूस पर मरे तो वे हम सभी के लिए मरे. हममें से कुछ लोगों के लिए नहीं कुछ चुने हुए लोगों के लिए नहीं बल्कि हम सभी के लिए. ऐसी भी मान्यता है कि जब राजा शहर में आते थे या जब विजयी योद्धा आते थे, तो वे उनका स्वागत ताड़ की शाखाओं से करते थे, जिन्हें वे उनके सामने ज़मीन पर फेंक देते थे. यही वजह है कि ग्रीक खेलों के दौरान (जो ग्रीक खेल आयोजन थे) विजेताओं को उनकी उपलब्धियों के लिए ताड़ की शाखाओं से सम्मानित किया जाता था. यह हमने ओलंपिक के दौरान भी देखा है.

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About the Author: JP Yadav
जेपी यादव डेढ़ दशक से भी अधिक समय से पत्रकारिता में सक्रिय हैं। वह प्रिंट और डिजिटल मीडिया, दोनों में समान रूप से पकड़ रखते हैं। अमर उजाला, दैनिक जागरण, दैनिक हिंदुस्तान, लाइव टाइम्स, ज़ी न्यूज और भारत 24 जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में अपनी सेवाएं दी हैं। कई बाल कहानियां भी विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं. मनोरंजन, साहित्य और राजनीति से संबंधित मुद्दों पर कलम अधिक चलती है। टीवी और थिएटर के प्रति गहरी रुचि रखते हुए जेपी यादव ने दूरदर्शन पर प्रसारित धारावाहिक 'गागर में सागर' और 'जज्बा' में सहायक लेखक के तौर पर योगदान दिया है. इसके अलावा, उन्होंने शॉर्ट फिल्म 'चिराग' में अभिनय भी किया है।
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