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Sant Rajinder Singh ji Maharaj Satsang: विज्ञान में लगे लोग अध्यात्म की मदद से जान सकते हैं अपने प्रश्नों के उत्तर
Sant Rajinder Singh ji Maharaj Satsang: विज्ञान में लगे लोग अध्यात्म की मदद से जान सकते हैं अपने प्रश्नों के उत्तर
Authored By: स्मिता
Published On: Thursday, April 24, 2025
Last Updated On: Thursday, April 24, 2025
Sant Rajinder Singh ji Maharaj Satsang : विज्ञान और अध्यात्म की साझेदारी बेहतरीन है. अगर विज्ञान में लगे लोग अपने अंदर के मौन में समय बिताएं, तो अंतर्मन की प्रेरणा उन्हें उन उत्तरों तक ले जाएगी, जिनकी उन्हें तलाश है. इस विषय पर जानें आध्यात्मिक गुरु संत राजिंदर सिंह के विचार...
Authored By: स्मिता
Last Updated On: Thursday, April 24, 2025
Sant Rajinder Singh ji Maharaj Satsang : किसी भी विषय को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझने वाले व्यक्ति को अध्यात्म में भी रुचि हो सकती है. विज्ञान के प्रति रुचि रखने वाले लोग अपने शरीर की प्रयोगशाला में किसी परिकल्पना (hypothesis) का परीक्षण करते हैं और वैज्ञानिक नियम लागू करते हैं, तो उन्हें परिणाम अवश्य मिलेंगे. प्रत्येक व्यक्ति आध्यात्मिक सत्य को साबित करने में सफल हो सकता है. इस तरह की खोज दुनिया को बेहतर जगह बना सकती है. साथ ही हमारे जीवन के उद्देश्य को भी साकार कर सकती है. विज्ञान और अध्यात्म की साझेदारी पर संत राजिंदर सिंह जी महाराज (Sant Rajinder Singh ji Maharaj Satsang ) विस्तार से बता रहे हैं.
अध्यात्म का विज्ञान (Science of Spirituality)
अध्यात्म एक विज्ञान ही है, जो यह पता लगाने की कोशिश करता है कि हम कौन हैं? बहुत कम लोग जानते हैं कि यही सवाल विज्ञान की एक और शाखा के मूल में हैं, जिसे अध्यात्म के नाम से जाना जाता है. अध्यात्म अपने आप में एक विज्ञान है, जो उन्हीं उत्तरों को खोजने की कोशिश करता है, जिन्हें पारंपरिक वैज्ञानिक खोजने की कोशिश करते हैं. अध्यात्म इस बात का जवाब खोजने की कोशिश करता है कि हम कौन हैं, हम यहां क्यों हैं, हम कहां से आए हैं और इस भौतिक अस्तित्व के समाप्त होने के बाद हम कहां जाएंगे.
विज्ञान का अध्यात्म (Spirituality of Science)
आध्यात्मिकता सच्चे अर्थों में एक वैज्ञानिक अध्ययन है. इसमें हम उन शक्तियों के अस्तित्व की खोज करना चाहते हैं, जिन्होंने सभी ज्ञात पदार्थों, ग्रहों, पृथ्वी, लोगों, पशुओं, रसायनों, परमाणुओं और जीनों को अस्तित्व में लाया. रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान, खगोल विज्ञान, भूविज्ञान और भौतिकी के वैज्ञानिक यह पता लगाने में सक्षम रहे हैं कि हम भौतिक रूप से किस पदार्थ से बने हैं, लेकिन वे यह समझाने में असमर्थ हैं कि हम और भौतिक ब्रह्मांड यहां कैसे और क्यों आए. आध्यात्मिकता इन सवालों के जवाब देने की कोशिश करती है. यह इस सिद्धांत से शुरू होता है कि कोई शक्ति थी, जिसने सब कुछ अस्तित्व में लाया. विज्ञान की तरह आध्यात्मिकता भी केवल सिद्धांत से संतुष्ट नहीं है. यह ऐसे प्रमाण की तलाश करता है जिसे दोहराया जा सके.
अध्यात्म और विज्ञान का अध्ययन (Study of Spirituality and Science)
वैज्ञानिक पद्धति का उपयोग करके आध्यात्मिकता का अध्ययन किया जाता है. आध्यात्मिकता का अध्ययन उसी तरह किया जाता है जैसे विज्ञान का अध्ययन किया जाता है. वैज्ञानिक पद्धति में हम एक परिकल्पना से शुरू करते हैं. इसके बाद हम उस प्रक्रिया या सामग्री की योजना बनाते हैं जिसका उपयोग हम परिकल्पना का परीक्षण करने के लिए करना चाहते हैं. फिर हम उस योजना का ठीक से पालन करते हैं और डेटा या निष्कर्षों को रिकॉर्ड करते हैं. जब यह पूरा हो जाता है, तो हम डेटा का विश्लेषण करते हैं. परिणामों पर रिपोर्ट करते हैं. क्या हमारी परिकल्पना सही थी या गलत? डेटा या तो हमारी परिकल्पना को सही साबित करता है या फिर उसे गलत साबित करता है. हम अपनी परिकल्पना को तब साबित करते हैं जब हम उन्हीं परिस्थितियों में परिणामों को दोहरा सकते हैं.
अंधविश्वास पर आधारित नहीं है आध्यात्मिकता (Spirituality is not based on superstition)
इस पद्धति का उपयोग आध्यात्मिकता का अध्ययन करने के लिए किया जा सकता है. आध्यात्मिकता अंधविश्वास पर आधारित नहीं है. इसे वैज्ञानिक पद्धति के माध्यम से सत्यापित किया जा सकता है. आध्यात्मिकता इस परिकल्पना का व्यक्तिगत परीक्षण है कि हमारे भीतर एक उच्च शक्ति है और उस शक्ति का अनुभव किया जा सकता है।
स्वयं की प्रयोगशाला में जांच (Own Lab Testing)
विज्ञान का आधार अपने लिए परिकल्पना को साबित करना है. आध्यात्मिकता का विज्ञान हमसे इसे अपने लिए साबित करने के लिए कहता है. आध्यात्मिकता का विज्ञान आपको वह पद्धति प्रदान करेगा जो उसके लिए काम करती है. वह आपसे इसे स्वयं पर परखने के लिए कहेगा. अपने स्वयं के मानव रूप की प्रयोगशाला में परिकल्पना का परीक्षण करने के माध्यम से हम अपने लिए इसका प्रमाण देख सकते हैं.
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