Opinion: हर मन को भाए श्रीजेश

Authored By: विशेष खेल संवाददाता, गलगोटियाज टाइम्स

Published On: Friday, August 9, 2024

Updated On: Saturday, August 10, 2024

performance of indian hocky team in paris olympics

पेरिस में बुधवार की शाम को चेहरे उदास थे, महज 24 घंटे बाद वही चेहरे उल्लास और गौरव से खिले हुए थे। भारत ने 52 साल बाद लगातार दो ओलंपिक में कांस्य पदक जीते थे। भारतीय हाकी को पुराने दिन लौटाने की इस शुरुआत के पटकथा लेखक हैं गोलकीपर पीआर श्रीजेश और कप्तान हरमनप्रीत सिंह...

गुरुवार शाम हर मन बस पेरिस में खेले जा गए हाकी के कांस्य पदक मुकाबले पर रमा था। क्या होगा, क्या नहीं…सेमीफाइनल में जर्मनी के हाथों अंतिम समय में मिली हार ने जो सदमा दिया था, उसके कारण आशंका का भाव शायद अधिक बलवती था। फिर भी भरोसे का आधार थे दो नाम- हरमनप्रीत सिंह और पीआर श्रीजेश…बहुत बड़े नाम और उतना ही बड़ा काम। वह भी एक या दो मैच में नहीं…ओलंपिक सरीखे आयोजन में पूरे टूर्नामेंट में। स्पेन को 2-1 से हराकर भारत ने पेरिस ओलंपिक में कांसा नहीं जीता है, 140 करोड़ जनसंख्या वाले भारत में हर जन के मन को जीता है, हाकी की खोई गरिमा को जीता है, सुनहरे भविष्य की उम्मीदों को जीता है। और इतनी सारी जीत के नायक बने हैं हरमनप्रीत और श्रीजेश। टोक्यो के बाद पेरिस में भी कांसा। लगातार दो ओलंपिक पदक का संयोग और इतिहास भारतीय हाकी के लिए 52 साल के लंबे अंतराल के बाद बना है। यह भारतीय हाकी के लिए फिर से पुराने गौरव की ओर लौटने का शुभ संकेत है। ओलंपिक में सात स्वर्ण, एक रजत और चार कांस्य जीत चुकी भारतीय हाकी अब फिर सिरमौर बनने की ओर बढ़ेगी, यह उम्मीद परवान चढ़ रही है।

मैच का परिणाम तो आप सब जान ही चुके हैं, आइए जानते हैं हरमनप्रीत और श्रीजेश के संघर्ष, खेल और समर्पण को। पहले बात श्रीजेश की। वह भी भारत के उन तमाम खेल सितारों में से हैं जिन्हें खेल नैसर्गिक पसंद नहीं, किसी प्रशिक्षक की पारखी निगाह की वजह से मिला। श्रीजेश ने स्कूल के दिनों में बोर्ड के इम्तिहान में ग्रेस मार्क्स की वजह से खेल को चुना था, हालांकि वह एथलेटिक्स में थे न कि हाकी में, लेकिन कहते हैं न कि जब आप किसी मंशा से कार्य में जुटो को पूरा ब्रह्मांड आपको उसमें सफलता के लिए जुट जाता है। श्रीजेश के साथ भी यही हुआ। जब वह स्कूल में एथलेटिक्स का अभ्यास करते थे तो वहां के कोच ने उन्हें हाकी में गोलकीपर की भूमिका पर विचार करने की सलाह दी। तब क्रिकेट क्रेजी भारत में हाकी की स्थिति देखकर किसी भी किशोर के लिए यह बहुत आकर्षक सलाह नहीं रही होगी, लेकिन श्रीजेश ने इसे अपनाया और आगे बढ़े। नतीजा हम सबके सामने है। वह भारत ही नहीं, विश्व में हाकी के सर्वकालिक गोलकीपर के रूप में पहचाने जाते हैं।

टोक्यो और फिर पेरिस में जिस तरह उन्होंने गोल पोस्ट के सामने बचाव किया तो वह राहुल द्रविड़ की तरह हाकी की दीवार बनकर सामने आए। 2006 में श्रीजेश ने भारतीय टीम के लिए खेलना आरंभ किया, लेकिन पहचान बनी 2014 के एशियाई खेल से। फाइनल मैच था, वह भी पाकिस्तान से। इसमें श्रीजेश ने दो पेनास्टी स्ट्रोक रोके तो भारतीय हाकी के नए सितारे बन गए। फिर तो मानों गोल न करने देना उनकी आदत सी हो गई। एशियाई खेलों से लेकर ओलंपिक तक और अन्य विश्वस्तरीय प्रतियोगिताओं में श्रीजेश का मजबूत रक्षण हमारी टीम की ढाल बन गया। टोक्यो ओलंपिक में पदक मुकाबले में श्रीजेश ने जर्मनी के खिलाफ पेनाल्टी स्ट्रोक रोककर पदक पक्का किया था और पेरिस में पहले आस्ट्रेलिया और फिर ब्रिटेन के खिलाफ यही करिश्मा किया। टोक्यो ओलंपिक जीतने के बाद श्रीजेश का स्टारडम नए आकाश पर पहुंचा जो अब पेरिस के बाद चरम पर है। 36 वर्षीय यह गोलकीपर अब संन्यास ले चुका है और इससे बेहतर कोई अवसर अलविदा कहने के लिए हो भी नहीं सकता था। श्रीजेश तुम्हें सलाम…

अब बात भारतीय हाकी कप्तान हरमनप्रीत की। पेरिस ओलंपिक में हरमन ने 11 गोल ठोंके हैं, जिसमें कांस्य पदक मुकाबले में स्पेन के खिलाफ किए गए दोनों गोल भी शामिल हैं। और एक कप्तान से आपको क्या चाहिए। अमृतसर के तिम्मोवाल गांव के रहने वाले हरमन कभी पढ़ाई करते दिखे तो कभी खेतों में काम करते, लेकिन पंजाब के थे तो हाकी तो मन में ही बसी थी। दस साल की उम्र से ही खेलने लगे और अब विश्व के सबसे बेहतरीन ड्रैग फ्लिकर में से एक हैं। डिफेंडर के तौर पर पूरी दुनिया में तो उनकी ख्याति है ही, कप्तान के रूप में भी वह प्रेरित करते हैं। सेमीफाइनल में हारे तो लगा टूट गए, लेकिन कांस्य पदक मैच में फिर उठे और लीडिंग फ्राम द फ्रंट का उदाहरण पेश करते हुए दूसरे और तीसरे क्वार्टर में गोल करके भारत को जीत दिलाई। अब वह भारतीय हाकी को नए क्षितिज पर लेकर गए हैं और उम्मीद है कि नए खिलाड़ी इसे कायम ही नहीं रखेंगे, कांसे को सोने में भी बदलेंगे।

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