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Tourism in Kanger Valley National Park : विश्व धरोहर की अस्थाई सूची में शामिल होने से पर्यटन को मिलेगा बढ़ावा, बढ़ेंगे रोजगार के अवसर
Tourism in Kanger Valley National Park : विश्व धरोहर की अस्थाई सूची में शामिल होने से पर्यटन को मिलेगा बढ़ावा, बढ़ेंगे रोजगार के अवसर
Authored By: अंशु सिंह
Published On: Tuesday, March 18, 2025
Updated On: Wednesday, April 16, 2025
Tourism in Kanger Valley National Park : छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले की छवि हिंसा ग्रस्त क्षेत्र के रूप में रही है, जहां नक्सलवाद को लेकर एक भय का माहौल था. लेकिन पिछले कुछ समय में यहां के झील, झरनों ने पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित किया है. प्रति वर्ष लगभग 10 लाख से ज्यादा देशी-विदेशी पर्यटक बस्तर आ रहे हैं. इस बीच, यूनेस्को द्वारा कांगेर वैली नेशनल पार्क (Kanger Valley National Park) को विश्व धरोहर की अस्थाई सूची में शामिल करने से यहां के पर्यटन को और बढ़ावा मिलने की संभावना है. कांगेर वैली सिर्फ एक जंगल नहीं, बल्कि एक जादुई दुनिया है.
Authored By: अंशु सिंह
Updated On: Wednesday, April 16, 2025
Tourism in Kanger Valley National Park : छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के जगदलपुर में स्थित कांगेर घाटी नेशनल पार्क को साल 1982 में एक राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था. यह उद्यान 200 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. पार्क में एक विशिष्ट मिश्रित आर्द्र पर्णपाती जंगल है, जिसमें साल, सागवान (सागौन) और बांस के पेड़ प्रचुर मात्रा में हैं. यहां पक्षियों की 200 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें सबसे उल्लेखनीय प्रजाति बस्तर मैना है. ये मानव की भाषा की नकल करने की क्षमता के लिए प्रसिद्ध है. पार्क में कई जानवर रहते हैं, जिनमें ऊदबिलाव, चूहा हिरण, विशाल गिलहरी, लेथिस सॉफ्टशेल कछुआ, जंगली भेड़िया शामिल हैं.
रहस्यमयी गुफाओं के लिए प्रसिद्ध है पार्क
अपनी समृद्ध जैव विविधता से परे, यह राष्ट्रीय उद्यान अपनी भूमिगत चूना पत्थर की गुफाओं के लिए भी जाना जाता है, जो स्टैलेक्टाइट्स और स्टैलेग्माइट्स से सजी हैं. यहां 15 से अधिक रहस्यमयी गुफाएं हैं, जिनमें कुटुमसर, कैलाश और दंडक उल्लेखनीय हैं. पार्क का भूभाग निम्न समतल भूमि से लेकर खड़ी ढलानों, पठारों, गहरी घाटियों और घुमावदार धाराओं तक भिन्न है, जिनकी समुद्र तल से ऊंचाई 338 से 781 मीटर तक है. प्रमुख चट्टान संरचनाएं इंद्रावती समूह से संबंधित हैं, जिनमें दोमट, रेतीली, लैटेराइट और जलोढ़ जमाव वाली मिट्टी शामिल हैं. पार्क में मौसमी और बारहमासी धाराएं हैं जो अंततः कांगेर नदी में मिल जाती हैं, जिससे इसका पारिस्थितिक महत्व और बढ़ जाता है. पार्क का नाम भी इसी कांगेर नदी से लिया गया है.
होमस्टे की तर्ज पर विकसित हो रहा हीलिंग सेंटर
बस्तर जिले के इसी कांगेर वैली नेशनल पार्क में अब देश का पहला नैचुरोपैथी हीलिंग सेंटर खुलने जा रहा है, जिसे होम स्टे की तर्ज पर विकसित किया जा रहा है. लगभग 3 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाले इस सेंटर में 10 अलग-अलग पारंपरिक मिट्टी से बने हट बनेंगे. इनके 6 महीने में तैयार होने की संभावना है. इसके अंदर लोगों को बस्तर की जड़ी-बूटियों और प्राचीन उपचार पद्धति से इलाज दिया जाएगा. बस्तर के वन संरक्षक आरसी दुग्गा के अनुसार, मांझीपाल पंचायत के सहायक ग्राम टेकावाड़ा में एक एकड़ क्षेत्र में सेल्फ हीलिंग सेंटर का निर्माण करवाया जा रहा है. लोग यहां आकर कुदरती माहौल में रहकर प्राचीन जड़ी-बूटी से इलाज करवा सकें, इसकी व्यवस्था की जा रही है. इसमें स्थानीय आयुर्वेदिक डॉक्टरों और वैद्यों को तैनात किया जाएगा. इलाज के साथ-साथ उन्हें प्राकृतिक वादियों का भ्रमण भी करवाया जाएगा.
गांवों में बढ़ेंगे रोजगार के अवसर
कांगेर वैली नेशनल पार्क के यूनेस्को की अस्थायी सूची में शामिल होने से न केवल जंगल को फायदा होगा, बल्कि आस-पास के गांवों को भी लाभ मिलेगा. यहां के ध्रुव और गोंड जनजातियों के लिए यह जंगल सिर्फ जंगल नहीं, बल्कि उनकी संस्कृति और जीवन का हिस्सा है. अब जब दुनिया भर से लोग कांगेर घाटी को देखने आएंगे, तो इन गांवों को भी पहचान मिलेगी. साथ ही पर्यटन बढ़ने से रोजगार के नए अवसर भी खुलेंगे. पार्क के अलावा, बस्तर के धुड़मारस गांव ने भी अपनी सादगी से दुनिया का ध्यान खींचा है. इसे UNWTO के ‘बेस्ट टूरिस्ट विलेज’ के तौर पर दुनिया के शीर्ष 20 गांवों में शामिल किया गया है.