Dharmendra Iconic Dialogues in Hindi जो आज भी दिलों में बसे हुए हैं!
Authored By: Sharim Ansari
Published On: Saturday, July 5, 2025
Updated On: Saturday, July 5, 2025
"कुत्ते कमीने, मैं तेरा खून पी जाऊंगा!" से लेकर "बसंती इन कुत्तों के सामने मत नाचना" तक - धर्मेंद्र के ये मशहूर डायलाग (Dharmendra Famous Dialogues) आज भी हर हिंदुस्तानी की जुबान पर हैं. शोले से लेकर सत्यकाम तक, जानिए बॉलीवुड के हीमैन की उन यादगार पंक्तियों को जो 6 दशक बाद भी दिलों को छूती हैं.
Authored By: Sharim Ansari
Updated On: Saturday, July 5, 2025
जब भी बॉलीवुड के सुनहरे दौर की बात आती है, तो धर्मेंद्र का नाम सबसे पहले जुबान पर आता है. देवेंद्र सिंह देओल उर्फ धर्मेंद्र, जिन्हें प्यार से ‘हीमैन’ कहा जाता है, ने भारतीय सिनेमा में एक ऐसी छाप छोड़ी है जो आज भी लाखों दिलों में बसी हुई है. 1960 के दशक से लेकर आज तक, उनके किरदार और डायलाग फिल्म प्रेमियों के दिलों में जिंदा हैं.
धर्मेंद्र सिर्फ एक अभिनेता नहीं बल्कि एक पूरा युग हैं. उनकी आवाज़ में जो दम था, उनके अंदाज़ में जो बात थी, वो आज के दौर में दुर्लभ है. उन्होंने रोमांस से लेकर एक्शन तक, कॉमेडी से लेकर ड्रामा तक, हर विधा में अपना जलवा दिखाया. आइए याद करते हैं उन धर्मेंद्र के मशहूर डायलाग की जो आज भी हमारे दिलों में बसे हुए हैं.
धर्मेंद्र के अमर डायलाग
“मैं जिसे चाहता हूं, वो मुझसे शादी नहीं करना चाहती, और जो मुझसे शादी करना चाहती है, मैं उससे प्यार नहीं करता.”- सत्यकाम (1969)
“तुम्हारा नाम क्या है बसंती?”- शोले (1975)
“बेटा, जिंदगी में सच्चाई से बड़ा कोई धर्म नहीं.”– समाधि (1972)
“उमा जी शायद आपने खुद को कभी हँसते हुए नहीं देखा… कभी चुपके से आईने के सामने जाकर देखिये और देखिये ये हसी कितनी खूबसूरत है.”- अनुपमा (1966)
“कुत्ते कमीने, मैं तेरा खून पी जाऊंगा.”- यादों की बारात (1973)
“अगर t-o ‘to’ होता है तो g-o ‘gu’ क्यों नहीं होता?” – चुपके चुपके (1975)
“कुत्ते, कमीने, मैं तेरा खून पी जाऊंगा!”- शोले (1975)
“अगर तक़दीर में मौत लिखी है तो कोई बचा नहीं सकता. अगर ज़िन्दगी लिखी है तो कोई माई का लाल मार नहीं सकता.”- धरम वीर (1977)
“ये तो सो रहा था अमन के बादलों को अपना तकिया बनाकर इसे जगाया भी तुमने है और उठाया भी तुमने.”- जीने नहीं दूंगा (1984)
“कभी ज़मीन से बात की है ठाकुर, ये ज़मीन हमारी मां है.”- गुलामी (1985)
“ओये इलाका कुत्तों का होता है, बहन के टके, शेर का नहीं.”-यमला पगला दीवाना (2011)
“पहले एक हिंदुस्तानी को समझ लो. हिंदी अपने आप आ जाएगी.”- अपने (2007)
“वेन आई डेड, पुलिस कमिंग… पुलिस कमिंग, बुढ़िया गोइंग जेल… इन जेल बुढ़िया चक्की पीसिंग, एंड पीसिंग, एंड पीसिंग, एंड पीसिंग, एंड पीसिंग.”- शोले (1975)
“हरामीपन की बदबू आ रही है तेरी बातों से… अब तो पक्की हो गयी तेरी मौत मेरे हाथों से.”- लोहा (1987)
“बसंती, इन कुत्तों के सामने मत नाचना!”- शोले (1975)
“मर्द का खून और औरत के आसूं जब तक न बहे… उनकी कीमत नहीं लगायी जा सकती.”- धरम वीर (1977)
“ज़िन्दगी बिल्कुल इन बर्फ के रेशों की तरह ही तो है… पल भर के लिए ठहरती है और पिघल जाती है… पर कम्बख़्त जितनी देर रहती है, बड़ी खूबसूरत लगती है.”- अपने (2007)
“मर्द का दिल उस ही के पास होता है… जिसकी माँ के दूध में दम होता है.”- लोहा (1987)
“अब कोई गन्दी हरकत तुमने की… तो फैसला पंचायत नहीं… मैं करूंगा.”- प्यार किया तो डरना क्या (1998)
“कितनी बार कहा है… ऐश कर, इश्क़ मत कर.”- यमला पगला दीवाना 2 (2013)
“कुछ और पाने की चाह, कुछ और बेहतर की तलाश… इस ही चक्कर में इंसान अपना सब कुछ खो बैठता है जो उसके पास होता है… तलाश कभी ख़तम नहीं होती… वक़्त ख़तम हो जाता है”- लाइफ इन आ मेट्रो (2007)
“दोस्ती की है तो निभानी पड़ेगी.”- शोले (1975)
“ये मिट्टी प्यासी है, जिस दिन इसकी प्यास बुझ जाएगी… यह मिट्टी सोना बन जाएगी.”- आदमी और इंसान (1969)
“जिसके पासपोर्ट पर शंकर मौत का ठप्पा लगा देता है… उसे सिर्फ ऊपर का वीज़ा मिलता है.”- लोहा (1987)
“इस दुनिया में आये हो तो कुछ ऐसा कर जाओ कदरदान… गली, कूचे से आवाज़ आये, अब्बा जान अब्बा जान अब्बा जान.”- यमला पगला दीवाना (2011)
“तुझे मैं मरने से पहले अगर देख लूँगा… तो मर जाने के बाद भी मेरी आँखें ज़िंदा रह जाएँगी.”- रज़िया सुल्तान (1983)
“शरीफ आदमी इंग्लैंड तो क्या किसी भी लैंड में चला जाये… अपनी मदरलैंड को कभी नहीं भूलता.”- आया सावन झूम के (1969)
“लालच इंसान को एक पागल कुत्ता बना देती है… जो अपने मालिक को भी काट लेता है.”- चरस (1976)
“आप जिस रोटी को सोने और चांदी के बर्तनों में खाकर घमंड का डकार लेते है… हम गरीब उसी रोटी को मिट्टी के टूटे-फूटे बर्तनों में खाकर भगवान का गुन-गान करते है.”- धरम वीर (1977)
“यह दुनिया बहुत बुरी है शांति. जो कुछ देती है बुरा बनने के बाद देती है.”- फूल और पत्थर (1966)
धर्मेंद्र के ये डायलाग सिर्फ फिल्मी पंक्तियां नहीं हैं, बल्कि एक पूरे युग की आवाज़ हैं. उनके हर डायलाग में जिंदगी का अनुभव छुपा हुआ है. चाहे वो प्रेम की मिठास हो या गुस्से का जोश, दोस्ती का प्यार हो या न्याय की लड़ाई, धर्मेंद्र ने हर भावना को अपनी आवाज़ दी है.
आज जब हम धर्मेंद्र के डायलाग सुनते हैं, तो हमारे मन में बचपन की यादें ताज़ा हो जाती हैं. वो दौर, जब फिल्में सिर्फ मनोरंजन नहीं बल्कि जिंदगी की पाठशाला होती थीं. धर्मेंद्र ने अपने अभिनय और संवादों से न सिर्फ दर्शकों का मनोरंजन किया, बल्कि उन्हें जिंदगी जीने का तरीका भी सिखाया.
उनके डायलाग आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उस वक्त थे. यही है धर्मेंद्र की महानता, यही है उनके संवादों की ताकत. वो सिर्फ बॉलीवुड के हीमैन नहीं, बल्कि करोड़ों दिलों के बादशाह हैं और हमेशा रहेंगे.
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