मेक इन इंडिया प्रोग्राम से भारत बना यूनिसेफ का सबसे बड़ा वैक्सीन आपूर्तिकर्ता

मेक इन इंडिया प्रोग्राम से भारत बना यूनिसेफ का सबसे बड़ा वैक्सीन आपूर्तिकर्ता

Authored By: स्मिता

Published On: Tuesday, April 15, 2025

Updated On: Tuesday, April 15, 2025

भारत अब यूनिसेफ का सबसे बड़ा वैक्सीन आपूर्तिकर्ता - मेक इन इंडिया की सफलता
भारत अब यूनिसेफ का सबसे बड़ा वैक्सीन आपूर्तिकर्ता - मेक इन इंडिया की सफलता

‘मेक इन इंडिया यानी भारत में ही तैयार हों दवाइयां’ प्रोग्राम (Make in India Program) अपनाने से भारतीय औषधि विज्ञान का क्षेत्र मजबूत हुआ है. भारत पिछले छह-सात वर्षों से यूनिसेफ का सबसे बड़ा वैक्सीन आपूर्तिकर्ता लगातार बना हुआ है. साथ ही, 8 अप्रैल, 2025 तक देश भर में कुल 15,479 जन औषधि केंद्र हैं.

Authored By: स्मिता

Updated On: Tuesday, April 15, 2025

Make in India Program : आज दुनिया में भारत के फार्मास्युटिकल क्षेत्र या औषधि विज्ञान की छवि तेजी से बदल रही है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘मेक इन इंडिया’ के आह्वान से यह इंडस्ट्री पहले से कई गुना सुदृढ़ हुई है. ब्रांडेड जेनेरिक दवाओं, प्रतिस्पर्धी मूल्य निर्धारण और स्वदेशी ब्रांडों के मजबूत नेटवर्क में मजबूती आई है. इसमें चिकित्सा उपकरण उद्योग के कई क्षेत्र अत्यधिक पूंजी-प्रधान हैं. वह इसलिए क्योंकि इस क्षेत्र में नई प्रौद्योगिकियों का निरंतर समावेशन किया जा रहा है.

यूनिसेफ का सबसे बड़ा वैक्सीन आपूर्तिकर्ता भारत 

भारत पिछले छह-सात वर्षों से यूनिसेफ का सबसे बड़ा वैक्सीन आपूर्तिकर्ता रहा है. भारत ने इस अवधि में यूनिसेफ की कुल खरीद में 55 प्रतिशत से 60 प्रतिशत योगदान दिया. भारत डीपीटी, बीसीजी और खसरे के टीकों के लिए डब्ल्यूएचओ की मांग का 99 प्रतिशत, 52 प्रतिशत और 45 प्रतिशत पूरा करता है. रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय का औषध विभाग सस्ती दवाओं की उपलब्धता, अनुसंधान, विकास और अंतरराष्ट्रीय दायित्वों का निर्वहन करता है. भारत सरकार के पत्र एवं सूचना कार्यालय (पीबीआई) की वेबसाइट पर इस आशय के आंकड़े साझा किए गए हैं. इनमें कहा गया है कि भारत उचित मूल्य पर गुणवत्तापूर्ण दवाओं का विश्‍व का सबसे बड़ा प्रदाता बन सकता है. इसकी सबसे बड़ी वजह मेक इन इंडिया पर जोर देना है.

अधिक बन रहीं कम लागत वाली प्रभावी दवा

भारतीय दवा उद्योग घरेलू और वैश्विक दोनों बाजारों के लिए उच्च गुणवत्ता वाली, कम लागत वाली प्रभावी दवाओं के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. वित्तीय वर्ष 2024-25 में अप्रैल 2024 से दिसंबर 2024 तक एफडीआई प्रवाह (फार्मास्युटिकल्स और चिकित्सा उपकरणों दोनों में) 11,888 करोड़ रुपये रहा है. इसके अलावा, औषध विभाग ने वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान ब्राउन फील्ड परियोजनाओं के लिए 7,246.40 करोड़ रुपये के 13 एफडीआई प्रस्तावों को मंजूरी दी.

उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (PLI)

भारत सरकार की 2020 में शुरू की गई उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना ने भी इसमें क्रांतिकारी पहल की है. पीएलआई का प्रमुख उद्देश्य घरेलू उत्‍पादन को बढ़ावा देना, निवेश आकर्षित करना, आयात पर निर्भरता कम करना और निर्यात बढ़ाना है. आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया पहल के दृष्टिकोण के अनुरूप यह योजना उत्पादन में प्रदर्शन के आधार पर वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करती है.

कैंसर रोधी और ऑटो इम्यून जैसी दवाओं का उत्पादन अधिक

फार्मास्यूटिकल्स के लिए पीएलआई योजना को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 24 फरवरी 2021 को मंजूरी दी थी. इसका वित्तीय परिव्यय 15,000 करोड़ रुपये है. यह तीन श्रेणियों के तहत पहचाने गए उत्पादों के उत्‍पादन के लिए 55 चयनित आवेदकों को छह साल की अवधि के लिए वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करती है. इस योजना में कैंसर रोधी और ऑटो इम्यून जैसी दवाओं का उत्पादन शामिल है. पीएलआई के तहत एक महत्वपूर्ण उपलब्धि लक्षित निवेश को पार करना है. प्रारंभिक प्रतिबद्धता 3,938.57 करोड़ रुपये आंकी गई थी. वास्तविक प्राप्त निवेश पहले ही 4,253.92 करोड़ रुपये (दिसंबर 2024 तक) तक हासिल हो चुका है.

बल्क ड्रग पार्क योजना (Drug Park Yojna)

इसके अलावा मार्च 2020 में स्वीकृत बल्क ड्रग पार्क योजना (वित्त वर्ष 2020-21 से वित्त वर्ष 2025-26) का उद्देश्य उत्‍पादन लागत को कम करने और बल्क ड्रग्स में आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए विश्वस्तरीय सामान्य बुनियादी ढांचे वाले पार्क स्थापित करना है. इस योजना के तहत गुजरात, हिमाचल प्रदेश और आंध्र प्रदेश के प्रस्तावों को मंजूरी दी दी जा चुकी है. वित्तीय सहायता प्रति पार्क 1,000 करोड़ रुपये या परियोजना लागत का 70 फीसद (पूर्वोत्तर और पहाड़ी राज्यों के लिए 90 फीसद) तक सीमित है.इसका कुल परिव्यय 3,000 करोड़ रुपये है.

देश भर में कुल 15,479 जन औषधि केंद्र (Jan Aushadhi Kendra)

सबसे खास प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना है। इसका लक्ष्य पूरे देश में किफायती और गुणवत्तापूर्ण जेनेरिक दवाओं तक पहुंच सुनिश्चित करना है. इसके तहत लोगों को समझाया जा रहा है कि इन दवाओं के उत्पादन में गुणवत्ता से कई समझौता नहीं किया जाता. यह धारणा गलत है कि महंगी दवा का मतलब बेहतर प्रभाव होता है. सरकारी अस्पतालों में बीमारी का प्रभावी विकल्प लिखने में जेनेरिक दवाओं को प्राथमिकता दी जाती है. अच्छी बात यह है कि 8 अप्रैल, 2025 तक देश भर में कुल 15,479 जन औषधि केंद्र हैं. करोड़ों लोग इनके माध्यम से सस्ती दवाओं का लाभ प्राप्त कर रहे हैं.

(हिन्दुस्थान समाचार के इनपुट के साथ)

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About the Author: स्मिता
स्मिता धर्म-अध्यात्म, संस्कृति-साहित्य, और स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर शोधपरक और प्रभावशाली पत्रकारिता में एक विशिष्ट नाम हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में उनका लंबा अनुभव समसामयिक और जटिल विषयों को सरल और नए दृष्टिकोण के साथ प्रस्तुत करने में उनकी दक्षता को उजागर करता है। धर्म और आध्यात्मिकता के साथ-साथ भारतीय संस्कृति और साहित्य के विविध पहलुओं को समझने और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने में उन्होंने विशेषज्ञता हासिल की है। स्वास्थ्य, जीवनशैली, और समाज से जुड़े मुद्दों पर उनके लेख सटीक और उपयोगी जानकारी प्रदान करते हैं। उनकी लेखनी गहराई से शोध पर आधारित होती है और पाठकों से सहजता से जुड़ने का अनोखा कौशल रखती है।
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