लालू प्रसाद यादव की जीवनी: जन्म, शिक्षा, परिवार, राजनीतिक करियर, मुख्यमंत्री और रेल मंत्री से लेकर चारा घोटाला तक का सफर
लालू प्रसाद यादव की जीवनी: जन्म, शिक्षा, परिवार, राजनीतिक करियर, मुख्यमंत्री और रेल मंत्री से लेकर चारा घोटाला तक का सफर
Authored By: Nishant Singh
Published On: Tuesday, July 8, 2025
Updated On: Thursday, July 10, 2025
लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) भारत की राजनीति के सबसे रंगीन, विवादास्पद और लोकप्रिय नेताओं में से एक हैं. एक साधारण किसान परिवार से निकलकर वे मुख्यमंत्री, रेल मंत्री और सामाजिक न्याय के प्रतीक बने. छात्र राजनीति से शुरुआत कर उन्होंने गरीबों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की आवाज़ उठाई. जहां एक ओर उन्होंने मंडल आयोग लागू कर इतिहास रचा, वहीं चारा घोटाले में दोषसिद्धि ने उनकी छवि को झटका दिया. इस लेख में उनके जीवन, संघर्ष, राजनीतिक यात्रा, घोटालों, उपलब्धियों और पारिवारिक भूमिका की संपूर्ण झलक है.
Authored By: Nishant Singh
Updated On: Thursday, July 10, 2025
लालू प्रसाद यादव का नाम लेते ही आंखों के सामने एक ऐसी छवि उभरती है जो राजनीति के साथ-साथ हास्य, संघर्ष और जनता से सीधे संवाद की मिसाल है. मिट्टी की खुशबू से जुड़े इस नेता ने बिहार की राजनीति में ऐसा प्रभाव डाला जिसे आज भी लोग याद करते हैं. एक साधारण परिवार से उठकर देश के बड़े नेता बनने तक का सफर कोई आसान नहीं था, लेकिन लालू ने इसे अपने अंदाज़ में जिया. वे न सिर्फ़ गरीबों और पिछड़ों के हक़ की लड़ाई लड़े, बल्कि अपने बोलचाल और चुटीले बयानों से जनता का दिल भी जीत लिया. उनका जीवन बताता है कि सच्ची राजनीति वो है जो ज़मीन से जुड़ी हो, और जनता की आवाज़ को सत्ता तक पहुंचाए.
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

लालू प्रसाद यादव का जन्म 11 जून 1948 को बिहार के गोपालगंज ज़िले के एक छोटे से गांव फुलवरिया में हुआ था. एक साधारण किसान परिवार में जन्मे लालू ने गरीबी और संघर्ष के बीच बचपन बिताया. परिवार में सात भाई-बहनों के बीच वे सबसे अधिक जुझारू और जिज्ञासु स्वभाव के थे. प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही स्कूल में हुई और बाद में पढ़ाई के लिए पटना गए. यहीं से उनके जीवन की दिशा बदली. छात्र जीवन में ही उन्होंने राजनीति में कदम रखा और आम लोगों की आवाज़ बनने का सपना देखना शुरू किया.
लालू यादव का व्यक्तिगत विवरण
विवरण | जानकारी |
---|---|
पूरा नाम | लालू प्रसाद यादव |
जन्मतिथि | 11 जून 1948 |
जन्मस्थान | फुलवरिया, गोपालगंज, बिहार |
माता का नाम | मराछिया देवी |
पिता का नाम | कुंदन राय |
शिक्षा | बी.ए., एल.एल.बी., एम.ए. (राजनीति विज्ञान) |
विवाह | राबड़ी देवी से 1973 में |
बच्चे | 9 (जिनमें तेजस्वी और तेजप्रताप प्रमुख हैं) |
प्रमुख पद | बिहार के मुख्यमंत्री, भारत सरकार में रेल मंत्री |
राजनीतिक दल | राष्ट्रीय जनता दल (RJD) |
लालू प्रसाद यादव का बचपन और संघर्ष

लालू प्रसाद यादव का बचपन अभावों से भरा था, लेकिन सपनों से कभी खाली नहीं रहा. गांव की कच्ची गलियों में पले-बढ़े लालू ने बहुत कम उम्र में ही मेहनत का महत्व समझ लिया था. उनके पिता किसान थे और घर की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी. स्कूल की पढ़ाई के दौरान उन्हें किताबों से ज्यादा खेत और गाय-भैंसों का साथ मिला. लेकिन लालू का मन पढ़ाई और लोगों की बातों को समझने में हमेशा लगा रहता था. गरीबी ने उन्हें तोड़ने की बजाय गढ़ा — और यहीं से शुरू हुई एक नेता बनने की कहानी.
बचपन से सीखी बातें
- संघर्ष में सीखा धैर्य: कठिनाई आई, पर हिम्मत नहीं हारी
- मिट्टी से जुड़ाव: पशुपालन और खेतों से बना जीवन का मजबूत आधार
- गांव की सादगी: सादा जीवन, उच्च विचार की शुरुआत यहीं से
- कठिनाई में नेतृत्व: छोटी उम्र में ही जिम्मेदारियों का बोझ उठाया
- शिक्षा का प्रेम: सीमित साधनों में भी पढ़ाई जारी रखी
राजनीतिक यात्रा की शुरुआत: जनता का नेता बनने की पहली सीढ़ी
लालू प्रसाद यादव की राजनीति में एंट्री कोई संयोग नहीं थी, बल्कि यह उनके भीतर पल रही सामाजिक बदलाव की ललक का नतीजा थी. पढ़ाई के दौरान ही वे छात्र राजनीति से जुड़ गए और 1970 में पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष बने. उनके तेज़-तर्रार भाषण और जमीन से जुड़ी भाषा ने छात्रों के बीच उन्हें लोकप्रिय बना दिया. इसके बाद 1974 के जेपी आंदोलन में उन्होंने भाग लिया, जो उनके लिए बड़ा मोड़ साबित हुआ. यहीं से उन्हें राजनीतिक मंच मिला और वे आम जनता की आवाज़ बनते चले गए.
- रचनात्मक बिंदु — शुरुआत की राजनीति में खास बातें
- छात्र राजनीति से शुरुआत: 1970 में यूनिवर्सिटी अध्यक्ष बने
- जेपी आंदोलन के नायक: 1974 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के साथ जुड़े
- जनता की भाषा अपनाई: आम बोलचाल और देसी अंदाज़ से सीधे दिलों तक पहुंचे
- पहली बार विधायक: 1977 में मात्र 29 साल की उम्र में सांसद बने
- राजनीति में युवा चेहरा: गरीबों, पिछड़ों और युवाओं के लिए उम्मीद की किरण
लालू प्रसाद यादव — मुख्यमंत्री बनने की कहानी

लालू प्रसाद यादव ने 1990 में बिहार की राजनीति में ऐतिहासिक मोड़ लाया जब वे पहली बार मुख्यमंत्री बने. वे राज्य के ऐसे नेता बने जो सीधे गरीबों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की आवाज़ थे. पहली बार वे 10 मार्च 1990 को मुख्यमंत्री बने और 3 अप्रैल 1995 तक पांच साल सफलतापूर्वक शासन किया. उनकी लोकप्रियता के चलते वे दोबारा 4 अप्रैल 1995 को मुख्यमंत्री बने और 25 जुलाई 1997 तक इस पद पर रहे. इस दौरान उन्होंने सामाजिक न्याय को प्राथमिकता दी और मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू कर ऐतिहासिक कदम उठाए.
मुख्यमंत्री कार्यकाल की सारणी
कार्यकाल संख्या | अवधि | कुल कार्यकाल |
---|---|---|
पहली बार | 10 मार्च 1990 – 3 अप्रैल 1995 | लगभग 5 वर्ष |
दूसरी बार | 4 अप्रैल 1995 – 25 जुलाई 1997 | लगभग 2 वर्ष 3 महीने |
राबड़ी देवी — बिहार की पहली महिला मुख्यमंत्री
जब लालू प्रसाद यादव को 1997 में चारा घोटाले के चलते मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा, तो उन्होंने एक चौंकाने वाला फैसला लिया, अपनी पत्नी राबड़ी देवी को बिहार की मुख्यमंत्री बनाया. यह राजनीति में एक अप्रत्याशित मोड़ था, क्योंकि राबड़ी देवी ने इससे पहले कभी कोई राजनीतिक पद नहीं संभाला था. आलोचकों ने इसे ‘रबर स्टैम्प’ सीएम कहा, लेकिन उन्होंने 1997 से 2005 तक राज्य का नेतृत्व किया. 2002 में लालू यादव राज्यसभा के सदस्य बने और 2004 तक इस भूमिका में रहे, तब तक राबड़ी देवी पार्टी और सरकार दोनों का चेहरा बनी रहीं. उनका कार्यकाल महिला सशक्तिकरण का प्रतीक भी माना गया.
लालू प्रसाद यादव ने 1997 में जब चारा घोटाले के चलते मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया, तो उन्होंने राजनीति से पीछे हटने की बजाय एक नया रास्ता चुना. उन्होंने 5 जुलाई 1997 को राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की स्थापना की. यह पार्टी खास तौर पर पिछड़े वर्ग, दलितों और अल्पसंख्यकों की आवाज़ बनने के मकसद से बनाई गई थी. राजद ने बिहार की राजनीति में नया समीकरण खड़ा किया, जिसमें लालू की लोकप्रियता और जनता से जुड़ाव सबसे बड़ी ताकत बने. राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाकर उन्होंने परिवार और पार्टी, दोनों को मज़बूती दी.
राजद का जन्म और मकसद
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) का गठन: अपनी पार्टी, अपनी राह
- 5 जुलाई 1997: राष्ट्रीय जनता दल की स्थापना
- कारण: जनता दल से मतभेद और चारा घोटाले के बाद की राजनीतिक स्थिति
- लक्ष्य: पिछड़ों, दलितों, अल्पसंख्यकों और गरीबों को नेतृत्व देना
- पहली महिला मुख्यमंत्री: राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाकर नया इतिहास रचा
- लालू की पकड़: पार्टी पर पूरी तरह से लालू का प्रभाव और दिशा
लालू प्रसाद यादव और राजद का पतन: जनाधार का धीरे-धीरे खिसकना
2005 में हुए बिहार विधानसभा चुनावों ने लालू प्रसाद यादव और उनकी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की गिरती राजनीतिक पकड़ को उजागर कर दिया. दो बार चुनाव हुए, लेकिन आरजेडी को केवल 54 सीटें मिलीं और सत्ता हाथ से निकल गई. नीतीश कुमार की अगुवाई में जेडी(यू)-बीजेपी गठबंधन सत्ता में आया. इसके बाद 2009 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को सिर्फ 4 सीटें मिलीं और 2010 के विधानसभा चुनाव में महज़ 22 सीटों पर सिमट गई. लालू ने पार्टी को फिर से खड़ा करने की कोशिश की, लेकिन चारा घोटाले में दोषसिद्धि ने उन्हें कमजोर कर दिया. 2015 में महागठबंधन से एक बार फिर वापसी हुई, मगर नीतीश कुमार ने जल्द ही बीजेपी से गठबंधन कर लिया, जिससे आरजेडी एक बार फिर विपक्ष में आ गई.
राजद के पतन की प्रमुख घटनाओं की समयरेखा
वर्ष | घटना / परिणाम |
---|---|
2005 | विधानसभा चुनाव में दो बार हार, आरजेडी को सिर्फ 54 सीटें |
2009 | लोकसभा चुनाव में 44 में से सिर्फ 4 सीटें |
2010 | विधानसभा चुनाव में आरजेडी मात्र 22 सीटों पर सिमटी |
2013 | लालू यादव की चारा घोटाले में दोषसिद्धि, राजनीतिक असर गहरा |
2015 | महागठबंधन से वापसी, नीतीश और लालू साथ आए, जीत हासिल की |
2017 | नीतीश कुमार ने गठबंधन तोड़कर बीजेपी के साथ सरकार बनाई |
रेल मंत्री के रूप में कार्यकाल

लालू प्रसाद यादव 2004 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार में भारत के रेल मंत्री बने. सबको हैरानी हुई कि यह देहाती अंदाज़ वाला नेता इतने बड़े मंत्रालय को कैसे संभालेगा, लेकिन उन्होंने आलोचकों को गलत साबित कर दिया. उनके नेतृत्व में रेलवे घाटे से निकलकर मुनाफे में आ गया. उन्होंने मालगाड़ियों की बुकिंग, खाली सीटों की भरपाई और यात्रियों की सुविधा को प्राथमिकता दी. IIM और हार्वर्ड जैसे संस्थानों ने उनके फैसलों को ‘मैनेजमेंट केस स्टडी’ के रूप में पढ़ाया. लालू का रेलमंत्री कार्यकाल भारतीय राजनीति में प्रशासनिक चमत्कार माना गया.
रेल मंत्री के रूप में लालू की उपलब्धियां
- कार्यकाल: 2004–2009 (UPA-1 सरकार में)
- रेलवे को लाभ में लाना: कई वर्षों के घाटे के बाद रेलवे ने भारी मुनाफा कमाया
- ‘गरीब रथ’ ट्रेनों की शुरुआत: सस्ती और आरामदायक यात्रा का विकल्प
- IIM और हार्वर्ड में केस स्टडी: प्रबंधन की दुनिया में भी सराहना
- भाषण और बजट शैली: सरल भाषा में रेल बजट प्रस्तुत कर जनता को जोड़ा
- यात्री सुविधा में सुधार: खानपान, सफाई और सीट आरक्षण प्रणाली में बदलाव
भ्रष्टाचार के मामले और दोषसिद्धि: राजनीति से जेल की चौखट तक
लालू प्रसाद यादव का राजनीतिक सफर जितना संघर्षपूर्ण और रंगीन रहा, उतना ही विवादों से भी घिरा रहा. 1996 में उभरकर आए बहुचर्चित चारा घोटाले ने उनके करियर पर गहरा दाग छोड़ा. यह घोटाला बिहार में पशु चारे की खरीद के नाम पर सरकारी खजाने से अरबों रुपये की अवैध निकासी से जुड़ा था. लालू यादव पर विभिन्न कोषागारों से पैसे निकालने का आरोप था और उन्हें एक के बाद एक मामलों में दोषी ठहराया गया. इन मामलों में उन्हें 5 से 7 साल तक की सजा, लाखों रुपये का जुर्माना और राजनीतिक नुकसान झेलना पड़ा. फिर भी उन्होंने अपनी लोकप्रियता और जमीनी पकड़ बनाए रखी.
चारा घोटाले के प्रमुख मामले — सारणीबद्ध विवरण
क्रम | वर्ष | कोषागार (स्थान) | निकाली गई राशि | दोषसिद्धि / सजा |
---|---|---|---|---|
1️ | 1996 | बांका और भागलपुर | ₹47 लाख | प्रथम मामला; सीबीआई ने आरोप तय किए |
2️ | 2017 | देवघर | ₹89 लाख | दोषी ठहराए गए, ₹10 लाख जुर्माना |
3️ | 2018 | चाईबासा (झारखंड) | ₹37.62 करोड़ | 5 साल जेल, ₹10 लाख जुर्माना |
4️ | 2018 | दुमका | ₹3.13 करोड़ | दो बार 7-7 साल की सजा (IPC + भ्रष्टाचार अधिनियम) |
5️ | 2022 | डोरंडा (रांची) | ₹139.35 करोड़ | 5 साल कैद, ₹60 लाख जुर्माना |
व्यक्तित्व और लोकप्रियता
- लालू यादव अपने हास्य, व्यंग्य, और देसी अंदाज के लिए प्रसिद्ध हैं.
- वे जनता के बीच सीधे संवाद और जमीन से जुड़े नेता के रूप में पहचाने जाते हैं.
- उनका जीवन संघर्ष, आत्मविश्वास और जमीनी राजनीति का प्रतीक है.
लालू प्रसाद यादव पर पुस्तकें
- लालू प्रसाद, भारत का चमत्कार
- लालू प्रसाद यादव: एक करिश्माई नेता
- द मेकिंग ऑफ लालू यादव, द अनमेकिंग ऑफ बिहार; शीर्षक के अंतर्गत अद्यतन और पुनर्मुद्रित: सबाल्टर्न साहिब: बिहार और लालू यादव का निर्माण.
- गोपालगंज से रायसीना रोड (आत्मकथा)
लालू प्रसाद यादव पर फिल्में
- पद्मश्री लालू प्रसाद यादव (बॉलीवुड)
- लालटेन (भोजीवुड)
लालू प्रसाद यादव का जीवन संघर्ष, साहस, हास्य और विवादों का मिश्रण है. उन्होंने साधारण किसान परिवार से निकलकर देश की राजनीति में अपना नाम बनाया. उनकी राजनीति ने बिहार और देश को सामाजिक न्याय और राजनीतिक चेतना की नई दिशा दी. वे आज भी भारतीय राजनीति के सबसे चर्चित और रंगीन नेताओं में गिने जाते हैं.
“बिहार में कोई वाटरलू नहीं है, बिहार में सिर्फ लालू है.” – लालू यादव
FAQ
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