Mahakumbh 2025 : महाकुंभ के प्रतीक चिह्न के हैं विशेष अर्थ, यह जुड़ा है कुंभ की पौराणिक कथा से
Authored By: स्मिता
Published On: Monday, October 7, 2024
Updated On: Monday, October 7, 2024
महाकुंभ 2025 के लिए एक विशेष प्रतीक चिह्न को सामने लाया गया। चिह्न के डिजाइन में एक मंदिर, एक ऋषि, एक कलश, अक्षयवट वृक्ष और भगवान हनुमान की एक छवि है। यह सनातन सभ्यता में प्रकृति और मानवता के संगम का प्रतिनिधित्व करती है।
13 जनवरी से शुरू हो रहे प्रयागराज कुंभ की तैयारियों की शुरुआत अभी से हो चुकी है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्वयं महाकुम्भ-2025 की तैयारियों का जायजा ले रहे हैं। इस दौरान मुख्यमंत्री ने महाकुम्भ के प्रतीक चिह्न (लोगो) का अनावरण किया। इस प्रतीक चिह्न के विशेष अर्थ हैं। इस अवसर पर मेगा धार्मिक मेले के लिए वेबसाइट और ऐप भी लॉन्च किया गया। साथ ही, यह भी तय हुआ कि किस-किस दिन शाही स्नान किया जाएगा। शाही शब्द संस्कृत नहीं है, इसलिए शाही स्नान के लिए संस्कृत और हिंदी भाषा में उत्तम शब्द (Mahakumbh 2025) खोजे जा रहे हैं।
प्रकृति और मानवता के संगम का प्रतीक चिह्न (Mahakumbh 2025 Logo)
महाकुंभ 2025 (Mahakumbh 2025) के लिए एक विशेष प्रतीक चिह्न (Mahakumbh 2025 Logo) को सामने लाया गया। चिह्न के डिजाइन में एक मंदिर, एक ऋषि, एक कलश, अक्षयवट वृक्ष और भगवान हनुमान की एक छवि है। यह सनातन सभ्यता में प्रकृति और मानवता के संगम का प्रतिनिधित्व करती है। यह लोगो धार्मिक और आर्थिक समृद्धि का प्रतीक है, जिसमें पौराणिक समुद्र मंथन से निकले पवित्र बर्तन अमृत कलश को दर्शाया गया है। यह आत्म-जागरूकता और लोक कल्याण के सतत प्रवाह का भी प्रतीक है। यह महाकुंभ 2025 के लिए एक प्रेरणादायक प्रतीक के रूप में कार्य करेगा।
त्रिवेणी संगम पर कुंभ मेला (Mahakumbh Mela 2025)
प्रयागराज को सभी देवताओं की भूमि माना जाता है। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज शहर में तीन पवित्र नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर हर 12 साल के अंतराल पर पूर्ण कुंभ मेला लगता है। पूर्ण कुंभ मेला से छह साल पहले अर्द्ध कुंभ मेल लगता है। नदियों के संगम को त्रिवेणी संगम कहा जाता है। इसलिए लोग इसका बहुत भक्ति भाव से इंतजार करते हैं। इस अत्यंत पवित्र अवधि के दौरान भक्त त्रिवेणी संगम पर स्नान करते हैं। कुंभ मेला उत्सव में कई पारंपरिक और धार्मिक अनुष्ठान भी आयोजित होते हैं।
क्या है कुंभ की पौराणिक कथा (Mahakumbh Mythological Story)
कुंभ का पौराणिक महत्व समुद्र मंथन की कथा से जुड़ा हुआ है। सुर और असुर ने अमरता का अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया था। इसके लिए मंदराचल पर्वत को मथानी बनाया गया और नागराज वासुकी से रस्सी का काम लिया गया। जब मंथन से अमृत का कलश समुद्र से निकला तो उसे पाने के लिए दोनों लड़ने लगते हैं। इस लड़ाई में अमृत चार स्थानों पर गिर जाता है। यहीं से चार कुंभ मेलों की उत्पत्ति होती है। देवताओं और असुरों के बीच कुंभ यानी पवित्र घड़े के लिए लड़ाई 12 दिव्य दिनों तक जारी रही। इसे मनुष्यों के लिए 12 साल के बराबर माना जाता है। यही कारण है कि कुंभ मेला 12 वर्षों में एक बार मनाया जाता है। इस तरह से पवित्र स्थानों या तीर्थ स्थलों पर लोग एकत्रित होते हैं। ये चार स्थल प्रयागराज, हरिद्वार, त्र्यंबक-नासिक और उज्जैन के रूप में मान्यता प्राप्त हैं।
कब से शुरू है शाही स्नान (Mahakumbh 2025 Shahi Snan)
कुंभ मेला 2025 प्रयागराज में 13 जनवरी को शुरू होने वाला है। यहां गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती नदियां मिलती हैं। हर 12 साल में आयोजित होने वाला यह भव्य धार्मिक आयोजन दुनिया भर से लाखों तीर्थयात्रियों, साधुओं और आध्यात्मिक साधकों को आकर्षित करता है। कुंभ मेला 2025 की महत्वपूर्ण तिथियों में प्रमुख स्नान दिवस शामिल हैं, जिन्हें शाही स्नान के रूप में जाना जाता है। इस साल शाही स्नान के नाम को भी बदलने की कोशिश की जाएगी। मान्यता है कि कुंभ में डुबकी लगाने से भक्तों को सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। स्नान की तिथियां ग्रहों की स्थिति, विशेष रूप से मकर राशि में सूर्य और चंद्रमा के संरेखण के आधार पर निर्धारित की जाती हैं।
विशेष दिन और स्नान तिथि (Kumbha 2025 Bathing Date)
- पौष पूर्णिमा (महत्वपूर्ण स्नान)
13 जनवरी 2025 - मकर संक्रांति (शाही स्नान)
14 जनवरी 2025 - मौनी अमावस्या (शाही स्नान)
29 जनवरी 2025 - बसंत पंचमी (शाही स्नान)
3 फरवरी 2025 - अचला सप्तमी (महत्वपूर्ण स्नान)
4 फरवरी 2025 - माघी पूर्णिमा (महत्वपूर्ण स्नान)
12 फरवरी 2025 - महा शिवरात्रि (महत्वपूर्ण स्नान)
26 फरवरी 2025
यह भी पढ़ें
news via inbox
समाचार जगत की हर खबर, सीधे आपके इनबॉक्स में - आज ही हमारे न्यूजलेटर को सब्सक्राइब करें।