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Jakh Mandir : उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के जाख मंदिर के पास पांडवों ने किया था विश्राम
Jakh Mandir : उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के जाख मंदिर के पास पांडवों ने किया था विश्राम
Authored By: स्मिता
Published On: Wednesday, April 16, 2025
Updated On: Wednesday, April 16, 2025
Jakh Mandir: उत्तराखंड के गुप्तकाशी के निकट स्थित है जाख मंदिर. जाख मंदिर के बारे में मान्यता है कि महाभारत युद्ध के बाद मोक्ष की कामना के लिए केदारनाथ धाम की ओर जाते हुए इस स्थान पर द्रौपदी सहित पांडवों ने विश्राम किया था. मान्यता के अनुसार, देवता के पुजारी देव पश्वा के साथ जाख मंदिर के देवता अग्निकुंड से होकर गुजरते हैं और अपने भक्तों को आशीर्वाद देते हैं.
Authored By: स्मिता
Updated On: Wednesday, April 16, 2025
Jakh Mandir : उत्तराखंड के गुप्तकाशी के निकट है जाख मंदिर. रुद्रप्रयाग जिले की केदारघाटी में गुप्तकाशी से 5 किमी दूर जाखधार में जाख मंदिर स्थित है. जाख मंदिर के देवता को भगवान यक्ष भी कहा जाता है. मान्यता है कि महाभारत युद्ध के बाद मोक्ष की कामना के लिए केदारनाथ धाम की ओर जाते हुए इस स्थान पर द्रौपदी सहित पांडवों ने विश्राम किया था. इस मंदिर की परंपरा के अनुसार, जाख देवता के पुजारी देवता को लेकर (Jakh Mandir ) दहकते अंगारों के बीच गुजरते हैं.
क्या है जाख मंदिर की पौराणिक कथा (Mythological Story of Jakh Mandir)
उत्तराखंड के गुप्तकाशी स्थित जाख मंदिर के देवता के साथ कई मान्यतायें जुड़ी है. पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत युद्ध के बाद पांचों पांडव और द्रौपदी ने यहां विश्राम किया था. मान्यता के अनुसार, नर देवता को उनके मूल गांव से देवशाल स्थित विंध्यवासिनी मंदिर तक पहुंचाया जाता है. यहां पर विंध्यवासिनी मंदिर की परिक्रमा पूर्ण कर देवता जाख की कंडी और जलते दिए के साथ जाख मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं. मंदिर पहुंचने के बाद कुछ देर बांज (Oak) के पेड़ के नीचे सागर की थाप पर देवता अवतरित होते हैं. देव स्वरूप में आने के बाद मंदिर में पहुंचकर जाख देवता को तांबे की गागर में भरे हुए पुण्य जल से स्नान करवाते हैं. इसके बाद पूरे वेग से देवता देखते ही देखते दहकते अंगारों (जाख देवता के पुजारी पश्वा देवता को लेकर दहकते अंगारों के बीच गुजरते हैं) पर तीन बार नृत्य करने के बाद लोगों को आशीर्वाद देते हैं.
सत्यवादी युधिष्ठिर को मिला आशीर्वाद (Mahabharata Yaksh Mandir)
गुप्तकाशी से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जाख मंदिर. इसे भगवान यक्ष के रूप में भी जाना जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद मोक्ष की कामना के लिए केदारनाथ धाम की ओर गमन करने से पूर्व इस स्थान पर द्रौपदी सहित पांडवों ने विश्राम किया था. द्रौपदी को प्यास लगी तो, उन्होंने पांडवों से निकट स्थित जल कुंड से जल लाने का आग्रह किया. सबसे पहले भीम और उसके बाद उनके तीन भाई जब जल लेने के लिए जल कुंड के पास जाते हैं, वहां पर भगवान यक्ष उनसे एक प्रश्न पूछते हैं, जिनका उत्तर न देने पर भगवान यक्ष पांडवों के चार भाइयों को मृत्यु का श्राप दे देते हैं. कुछ देर बाद सत्यवादी युधिष्ठिर जब जल कुंड के पास आते हैं, तो अपने भाइयों की दुर्दशा देख कर व्याकुल हो जाते हैं. जैसे ही भगवान यक्ष उनसे भी वही प्रश्न करते हैं, जिसका उत्तर सत्यवादी युधिष्ठिर दे देते हैं. प्रसन्न होकर भगवान सभी पांडवों को पुनर्जीवित कर देते हैं.
जल कुंड का अग्नि कुंड में परिवर्तन (Agni Kund of Jakh Mandir)
मान्यताओं के अनुसार वहां पर जल कुंड था, जो वर्तमान में मानवों द्वारा निर्मित अग्निकुंड में परिवर्तित हो गया है. बताया जाता है कि जब जाख देव इस अग्नि कुंड में प्रवेश करते हैं, तो उन्हें अग्नि कुंड में अंगारों के स्थान पर शांत जल दिखाई देता है. इस दृश्य को देखने के बाद हजारों श्रद्धालुओं की आंखों में आंसू भर जाते हैं. देवता के मंदिर में जाने के बाद श्रद्धालु विशाल अग्निकुंड से प्रसाद स्वरूप भभूत लाते हैं. मान्यता है कि इस भभूत का लेप लगाने से कई चर्म रोगों से मुक्ति मिल जाती है. संक्रांति के दिन रात्रि भर विशाल अग्निकुंड में लकड़ियों को एकत्रित कर अग्नि प्रज्वलित की जाती है. रात्रि जागरण कर भगवान जाख के जयकारे और भजन गाए जाते हैं.
(हिन्दुस्थान समाचार के इनपुट के साथ)
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