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Shrimad Bhagwat Katha : श्रीमद्भागवत कथा कथा सुनने से मिल सकती है हर दुख से मुक्ति: कथावाचक रामप्रताप शास्त्री
Shrimad Bhagwat Katha : श्रीमद्भागवत कथा कथा सुनने से मिल सकती है हर दुख से मुक्ति: कथावाचक रामप्रताप शास्त्री
Authored By: स्मिता
Published On: Thursday, September 26, 2024
Last Updated On: Thursday, September 26, 2024
नारायण की भक्ति में ही परम आनंद मिलता है। उसकी वाणी सागर का मोती बन जाता है। भगवान प्रेम के भूखे हैं। वासनाओं का त्याग करके ही प्रभु से मिलन संभव है।
Authored By: स्मिता
Last Updated On: Thursday, September 26, 2024
जीवन में यदि मान, बड़ा पद या प्रतिष्ठा मिला जाए, तो उसे ईश्वर की कृपा मानकर भलाई के कार्य करना चाहिए। यदि दूसरों की भलाई करने का जीवन में थोड़ा भी अभिमान हुआ, तो वह पाप का भागीदार बन सकता है। कथावाचक आचार्य रामप्रताप शास्त्री महाराज के अनुसार, श्रीमद्भागवत कथा बड़े से बड़े पापियों को भी पापमुक्त कर देती है। इसलिए जहां कही भी कथा हो रही हो इसका श्रवण (Shrimad Bhagwat Katha Benefits) करना चाहिए।
राजा परीक्षित की साधना
अहंकार से भरे राजा परीक्षित (King Parikshit) ने जंगल में साधना कर रहे शमीक ऋषि (Shamik Rishi) के गले में मरा हुआ सर्प डाल दिया। परिणामस्वरूप राजा परीक्षित को एक सप्ताह के अंदर मृत्यु हो जाने का शाप मिला। जब परीक्षित ने अपने सिर से स्वर्ण मुकुट को उतारा, तो उन पर से कलियुग का प्रभाव समाप्त हो गया। उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
भवसागर से पार लगाते हैं भगवान
जब-जब भगवान के भक्तों पर विपदा आती है तब भगवान उनके कल्याण के लिए सामने आते हैं। परीक्षित को भवसागर से पार लगाने के लिए अब भगवान शुकदेव के रूप में प्रकट हो गए। उन्होंने श्रीमद्भागवत कथा सुनाकर परीक्षित को अपने चरणों में स्थान प्रदान किया। उन्होंने महाभारत का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि युद्ध के दौरान जब कर्ण की भगवान कृष्ण से चर्चा हुई, तो कर्ण ने कहा कि मृत्यु के बाद इस तरह मेरा दाह संस्कार हो, जिस तरह आज तक किसी का नहीं हुआ। भगवान ने उसकी मृत्यु के बाद कर्ण का अंतिम संस्कार अपने हाथों से किया।
नारायण की भक्ति में मिलता है परम आनंद
रामप्रताप शास्त्री (Ram Pratap Shastri) ने कहा कि नारायण की भक्ति में ही परम आनंद मिलता है। उसकी वाणी सागर का मोती बन जाता है। भगवान प्रेम के भूखे हैं। वासनाओं का त्याग करके ही प्रभु से मिलन संभव है। वासना को वस्त्र की भांति त्याग देना चाहिए। भागवत कथा का जो श्रवण करता है, उसपर भगवान का आशीर्वाद बना रहता है।
(हिन्दुस्थान समाचार के इनपुट के साथ)