होमस्टे : लुभा रहे घुमक्कड़ों को, यात्रा के दौरान मिल रहा घर जैसा एहसास

होमस्टे : लुभा रहे घुमक्कड़ों को, यात्रा के दौरान मिल रहा घर जैसा एहसास

Authored By: अंशु सिंह

Published On: Thursday, December 12, 2024

Updated On: Thursday, December 12, 2024

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यात्राएं अनुभव देती हैं। हम अपनी दुनिया से इतर एक अलग संसार देख पाते हैं। ऐसे में जब स्थानीय लोगों के बीच, उनके संग रहने का अवसर मिले, तो उस स्थान, वहां की संस्कृति, व्यंजन आदि से जान-पहचान होती है सो अलग। कई बार अनजाने परिवारों के साथ रहने से एक आत्मीय रिश्ता भी बन जाता है। यही वजह है कि इन दिनों घुमक्कड़ों को होमस्टे काफी लुभा रहे हैं।

Authored By: अंशु सिंह

Updated On: Thursday, December 12, 2024

लाहौल स्फीति के आखिरी गांव मूढ़ में कुछ वर्ष पहले तक ठहरने का इंतजाम नहीं रहने के कारण सैलानी शाम ढलने से पहले ही वापस लौट जाते थे। लेकिन आज यात्रियों को होमस्टे का विकल्प मिल गया है। कुछ वैसे ही जैसे, लद्दाख की सबसे प्रसिद्ध झील पैंगॉन्ग देखने आने वाले पर्यटकों के लिए झील के समीप स्थानीय ग्रामीणों ने होमस्टे शुरू कर दिए हैं। जानकारी के अनुसार,आज स्फीति घाटी के सभी छह गांवों (डेमुल, लांग्जा, दनकार, किब्बर, लालुंग, कोमिक) में कई होमस्टे खुल गए हैं।

जहां यात्रा के दौरान मिलता घर का भोजन

जम्‍मू–कश्‍मीर में हिमालय की गोद में बसी स्फीति घाटी की यात्रा कहीं से आसान नहीं, लेकिन रोमांच पसंद हर मुसाफिर को यह लुभाती है। विशेषकर ट्रेकर्स यहां खिंचे चले आते हैं। वहीं, एकांत की तलाश में भी दूर-दूर से यात्री यहां आते हैं। सोलो ट्रैवलर शुभांगी (Solo Traveler Shubhangi) को भी लद्दाख का बर्फीला रेगिस्तान आकर्षित करता है। वह बताती हैं, ‘मैं काफी यात्राएं करती हूं। कई बार सुदूर, अनजाने इलाकों में जाना होता है, जहां होटल वगैरह नहीं होते। ऐसी स्‍थिति में होमस्टे में ठहरना सुरक्षित और सुकून भरा होता है।

जैसे, मुनसियारी के एक होमस्टे का किस्सा याद आता है। मेरी होस्ट सोनम एक घरेलू महिला थीं। गांव से ज्यादा बाहर निकलना नहीं हुआ था। लेकिन उनके पास कहानियों का खजाना था, जो शायद किसी टूरिस्ट गाइड के पास भी न हो। सबसे बड़ी बात यह कि वह लाजवाब व्यंजन बनाती थीं। उनके हाथ में जादू था। दरअसल, होमस्टे की विशेषता होती है कि आपको वहां घर का बना भोजन मिलता है। आप खुद से भी रसोई में पसंद का भोजन बना सकते हैं या स्थानीय पाक कला सीख सकते हैं। जैसे-लेह-लद्दाख या हिमाचल प्रदेश के अन्य इलाकों में तिब्बती रसोई के थुकपा, मोमोज, क्यू, थेंथुक आदि लजीज व्यंजन चखने से लेकर सीखने का मौका भी मिलता है। वहीं, अगर आप किसी खास मौके यानी उत्सव के दौरान पहुंचते हैं, तो अरक, चांग, मिल्क टी, स्वीट लेमन एवं चाजा जैसे ड्रिंक्स चखने को मिलेंगे।

पारंपरिक रिहायश का आनंद

आपको बता दें कि अधिकांश होमस्टेज सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में अवस्थित होते हैं। लेकिन जब उनके मेहमान खाने यानी गेस्ट रूम में दाखिल होते हैं, तो वहां का परिवेश देखकर ही एक अलग अनुभूति होती है। साफ-सुथरे, चटक रंगों की चादर, पर्दे और स्थानीय हैंडीक्राफ्ट से सजा-संवरा कमरा दिल खोलकर आपका स्वागत करता प्रतीत होता है। बिस्तर भी कुछ पारंपरिक किस्म के ही होते हैं, जिस पर आरामदायक मैट्रेस बिछा होता है। दरअसल, होमस्टे में मेजबान की निजी रुचि-अभिरुचि परिलक्षित होती है। इसका अपना अर्क या कहें सुगंध होती है, जो आमतौर पर होटलों में नहीं मिलती। सुबह-सुबह कमरे की खिड़की से ही बाहर का खूबसूरत प्राकृतिक दृश्य हृदय को ऐसे स्पर्श कर लेता है, जिसे शब्दों में बयां करना थोड़ा मुश्किल है। कई बार तो होमस्टे तक पहुंचने के लिए सड़कें तक नहीं होतीं, जिससे कुछ दूरी पर ही गाड़ियां पार्क करनी पड़ती हैं। कहने का मतलब यह कि होमस्टे बेशक एक ऑफबीट एकोमोडेशन में रहने का अवसर देता है, लेकिन वहां अत्याधुनिक सुविधाएं तलाशना सही नहीं होगा। कई बार तो ये ऐसे इलाके में होते हैं, जहां दूरसंचार का भी कोई साधन या टेलीफोन सेवा तक नहीं होती है। बिजली भी आती-जाती रहती है। फिर भी घूमंतू आना बंद नहीं करते।

ग्रामीणों को मिला कमाई का जरिया

एक ओर होमस्टे पर्यटकों-यात्रियों को लुभा रहा है, तो वहीं स्थानीय ग्रामीणों को इससे घर पर ही उद्यमिता के रूप में आय का कहीं बेहतर वैकल्पिक स्रोत भी मिल रहा है। जो महिलाएं खुद कभी गांव से बाहर नहीं गई, आज उनके दरवाजे पर देश-विदेश के सैलानी पहुंच रहे हैं। इनके फार्मर्स होमस्टे में रहकर लौटे दीपक बताते हैं कि लहलहाते खेतों एवं पहाड़ों की गोद में बसे घरों में रहने का आनंद ही कुछ और है। आपको रसायन मुक्त फल, सब्जियां खाने और इंजेक्शन रहित, शुद्ध दूध पीने को मिले, इससे ज्यादा अच्छा क्या हो सकता है। इतना ही नहीं, उनसे बेहतर ट्रैवल गाइड भी कोई नहीं। सोलो ट्रैवलर्स इनके साथ अच्छा समय व्यतीत कर सकते हैं। नए दोस्त बना सकते हैं।

स्थानीय संस्कृति एवं खानपान से होते रू-ब-रू

रिपोर्ट्स बताती हैं कि बीते कुछ वर्षों से भारतीय पहले से कहीं अधिक यात्राएं कर रहे हैं। वे पुराने या लोकप्रिय स्थानों की जगह, नए डेस्टिनेशंस की खाक छान रहे हैं। उन्हें सिर्फ सैर-सपाटा नहीं, बल्कि किसी खास पर्यटक स्थल के प्राकृतिक संसाधनों के साथ-साथ वहां की भौगोलिक परिस्थितियों, गलियों, सांस्कृतिक गतिविधियों आदि के बारे में जानने की दिलचस्पी भी है। वे स्थानीय संस्कृति, खानपान का लुत्फ उठाने की ख्वाहिश रखते हैं। यही कारण है कि वे लग्जरी एकोमोडेशन की बजाय बजट होटल या स्थानीय लोगों के घरों में ठहरने को तवज्जो दे रहे हैं, जिन्हें होमस्टे कहते हैं। यहां कम खर्च पर सैलानियों की ख्वाहिशें पूरी हो रही हैं। यही कारण है कि जयपुर, देहरादून, गोवा, केरल, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु जैसे अनेक राज्यों में होमस्टे की संख्या लगातार बढ़ रही है। यूं कहें कि देश के हॉस्पिटैलिटी मार्केट में होमस्टे सेगमेंट तेजी से अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है। बीते कई वर्षों से ट्रैवल फोटोग्राफी कर रहे और ऑनलाइन कंपनी होमस्टेज ऑफ इंडिया के संस्थापक विनोद वर्मा कहते हैं, ‘अगर घूमने-फिरने के अलावा स्थानीय संस्कृति से परिचित होना चाहते हैं, तो स्थानीय परिवारों के साथ ठहरना उत्तम होता है।’

प्रकृति प्रेमियों को भी लुभा रहे होमस्टे

विनोद के अनुसार, गांव कभी नहीं बदलते। बेशक तरक्की होने से कच्चे घऱ पक्के हो जाते हैं। गाड़ियां आ जाती हैं। लेकिन लोगों की जीवनशैली नहीं बदलती। इसलिए जब कोई सैलानी किसी होमस्टे में रुकता है, तो ग्राम्य दिनचर्या, वहां की संस्कृति आदि के बारे में विविध जानकारियों के अलावा सुकून से नैसर्गिक सुंदरता को निहारने का अवसर मिल जाता है। जैसे, भारत की अपनी सिलिकन वैली, बेंगलुरु से तकरीबन चार घंटे की दूरी पर है कुर्ग। पश्चिमी घाट के बीच बसे इस खूबसूरत, हरे-भरे इलाके में आकर शरीर और मन की थकान गायब ही हो जाती है। अगर कहीं ट्रेकिंग,फिशिंग, व्हाइट वॉटर राफ्टिंग जैसी एडवेंचर एक्टिविटी में शामिल हो गए, तो शेष बची सुस्ती भी स्फूर्ति में परिवर्तित हो जाती है। चाय-कॉफी के शौकीनों के लिए तो यह एक ख्वाबगाह सरीखा है। ऐसे में प्रकृति प्रेमी एवं प्रयोगधर्मी युवा यात्री, कुर्ग आने पर किसी होमस्टे में ठहरना ही पसंद करते हैं। यहां उन्हें भोजन बनाने से लेकर मछली पकड़ने तक की पूरी आजादी मिलती है।

हमेशा से कॉफी के पौधों को खिलते हुए देखने की चाहत रखने वाली बेंगलुरु की सॉफ्टवेयर इंजीनियर बबली शर्मा कहती हैं, ‘मेरा यह सपना कुर्ग जाकर पूरा हुआ। वहां कॉफी बागान के मध्य स्थित होमस्टे में रुकना यादगार रहा। फिजा में सफेद फूलों की महक का एहसास ही अनोखा था। हरी कालीन (कॉफी के पौधे) पर बर्फ की चादर (कॉफी के फूल) बिछा देखना भी लाजवाब था। यह मजा होटल में रहकर नहीं मिल सकता था।’

About the Author: अंशु सिंह
अंशु सिंह पिछले बीस वर्षों से हिंदी पत्रकारिता की दुनिया में सक्रिय रूप से जुड़ी हुई हैं। उनका कार्यकाल देश के प्रमुख समाचार पत्र दैनिक जागरण और अन्य राष्ट्रीय समाचार माध्यमों में प्रेरणादायक लेखन और संपादकीय योगदान के लिए उल्लेखनीय है। उन्होंने शिक्षा एवं करियर, महिला सशक्तिकरण, सामाजिक मुद्दों, संस्कृति, प्रौद्योगिकी, यात्रा एवं पर्यटन, जीवनशैली और मनोरंजन जैसे विषयों पर कई प्रभावशाली लेख लिखे हैं। उनकी लेखनी में गहरी सामाजिक समझ और प्रगतिशील दृष्टिकोण की झलक मिलती है, जो पाठकों को न केवल जानकारी बल्कि प्रेरणा भी प्रदान करती है। उनके द्वारा लिखे गए सैकड़ों आलेख पाठकों के बीच गहरी छाप छोड़ चुके हैं।
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