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बिहार में है यह लालू का दांव, NDA के साथी रहे पशुपति पारस ने मायूस होकर छोड़ा साथ
बिहार में है यह लालू का दांव, NDA के साथी रहे पशुपति पारस ने मायूस होकर छोड़ा साथ
Authored By: सतीश झा
Published On: Monday, April 14, 2025
Updated On: Monday, April 14, 2025
बिहार की सियासत में एक और बड़ा उलटफेर सामने आया है. राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (RLJP) के नेता और केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस (Pashupati Kumar Paras) ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) से नाराज होकर गठबंधन से नाता तोड़ दिया है. सीट बंटवारे और उपेक्षा के चलते वे लंबे समय से असंतुष्ट थे. इस बीच राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) ने उन्हें साधने की कोशिशें तेज कर दी थीं, जिसका असर अब दिखने लगा है.
Authored By: सतीश झा
Updated On: Monday, April 14, 2025
Pashupati Kumar Paras NDA Exit : पशुपति पारस (Pashupati Kumar Paras) एनडीए (NDA) के पुराने सहयोगी और दिवंगत नेता रामविलास पासवान (Ramvilas Paswan) के भाई हैं. वे केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री भी रह चुके हैं. उन्होंने सार्वजनिक मंचों से भी भाजपा नेतृत्व पर उपेक्षा के आरोप लगाने शुरू कर दिए थे. राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (RLJP) के नेता पशुपति पारस ने अब आगामी चुनाव में राजद (RJD) या विपक्षी गठबंधन के साथ जाने का मन बना लिया है. लालू यादव (Lalu Yadav) की ओर से उन्हें सम्मानजनक राजनीतिक पेशकश दी गई है, जिससे NDA को बड़ा झटका लग सकता है.
पशुपति पारस ने ऐसे जाहिर की है अपनी नाराजगी
राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (RLJP) के अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस (Pashupati Kumar Paras) ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) से असंतोष जाहिर करते हुए बड़ा बयान दिया है. उन्होंने गठबंधन से बाहर निकलने के संकेत देते हुए कहा कि अगर महागठबंधन (RJD) समय रहते सम्मानजनक प्रस्ताव देता है, तो वे भविष्य की राजनीति को लेकर बड़ा फैसला ले सकते हैं. पारस ने कहा, “2014 से लेकर आज तक मैं NDA गठबंधन में था. हमारी पार्टी NDA की एक वफादार और ईमानदार सहयोगी रही है. लेकिन जब लोकसभा चुनाव का समय आया, तो बिना किसी कारण, केवल इसलिए कि हमारी पार्टी दलितों की पार्टी है, हमारे साथ अन्याय किया गया.” उन्होंने स्पष्ट किया कि इसके बावजूद उन्होंने लोकसभा चुनाव में NDA का साथ दिया.
NDA नेताओं पर लगाया उपेक्षा का आरोप
RLJP प्रमुख ने यह भी आरोप लगाया कि चुनाव के बाद जब बिहार में NDA की बैठकें हुईं, तो भाजपा और जेडीयू के प्रदेश अध्यक्षों ने खुद को ‘पांच पांडव’ बताया, लेकिन उनमें हमारी पार्टी का नाम नहीं लिया गया. उन्होंने इसे जानबूझकर किया गया अपमान करार दिया. पशुपति पारस ने यह भी कहा, “हम बिहार की 243 विधानसभा सीटों के लिए तैयार हैं. अगर महागठबंधन के लोग हमें सही समय पर उचित सम्मान देंगे, तो हम भविष्य की राजनीति पर विचार करेंगे.” इसके साथ ही उन्होंने राजद और लालू परिवार से अपने पुराने संबंधों का जिक्र करते हुए कहा कि उस परिवार और उस पार्टी से मेरे रिश्ते शुरुआत से अच्छे रहे हैं.
बिहार में दलितों की ये है राजनीति में भागीदारी
बिहार की कुल जनसंख्या का लगभग 16% से अधिक हिस्सा दलित समुदाय से आता है. इनमें पासवान, मुसहर, चमार, धोबी, दुसाध जैसी जातियां प्रमुख हैं. दलित मतदाता राज्य की अधिसंख्य विधानसभा और लोकसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं, विशेषकर उत्तर और दक्षिण बिहार के क्षेत्रों में.
रामविलास पासवान ने दलित राजनीति को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई थी. उनकी पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) ने दलितों के बीच एक राजनीतिक आवाज दी. आज उनके भाई पशुपति कुमार पारस और बेटे चिराग पासवान (Chirag Paswan) अलग-अलग राह पर चल रहे हैं.
राज्य की दलित राजनीति को मजबूती देने में बहुजन समाज पार्टी (BSP) और जनाधिकार मंच जैसी पार्टियों ने भी प्रयास किए, लेकिन उनकी पकड़ सीमित रही. RJD और JDU जैसे बड़े दलों ने भी दलित चेहरों को टिकट और पद देकर प्रतिनिधित्व देने की कोशिश की, लेकिन यह कई बार प्रतीकात्मक ही साबित हुआ.
बिहार की सियासत में नए समीकरणों की ओर इशारा
पारस का यह बयान बिहार की सियासत में नए समीकरणों की ओर इशारा कर रहा है. NDA के एक सहयोगी द्वारा इस तरह की नाराजगी जाहिर किया जाना आगामी विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा और जेडीयू के लिए चिंता का विषय बन सकता है. अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि RLJP का अगला कदम क्या होगा और क्या यह लालू यादव के नेतृत्व वाले महागठबंधन में एक नया साथी जुड़ने की भूमिका बनेगा.
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पारस (Pashupati Kumar Paras) का यह फैसला दलित वोटबैंक पर सीधा असर डालेगा, खासकर बिहार के उन इलाकों में जहां एलजेपी की मजबूत पकड़ रही है. यह कदम NDA की चुनावी रणनीति को कमजोर कर सकता है.