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ऑटोइम्यून एपिलेप्सी: समय पर पहचान होने पर लक्षणों पर नियंत्रण किया जा सकता है
ऑटोइम्यून एपिलेप्सी: समय पर पहचान होने पर लक्षणों पर नियंत्रण किया जा सकता है
Authored By: स्मिता
Published On: Monday, July 7, 2025
Last Updated On: Monday, July 7, 2025
ऑटोइम्यून एपिलेप्सी न्यूरोलॉजिकल बीमारी है कई बार शरीर का इम्यून सिस्टम जो गलती से मस्तिष्क पर हमला कर देता है. ऐसी स्थिति को ऑटोइम्यून मिर्गी या ऑटोइम्यून एपिलेप्सी कहा जाता है.समय पर इसकी पहचान होने पर लक्षणों पर नियंत्रण किया जा सकता है.
Authored By: स्मिता
Last Updated On: Monday, July 7, 2025
Auto immune Epilepsy: कुछ लोगों को अचानक दौरे या मिर्गी पड़ जाता है. इसे आमतौर पर न्यूरोलॉजिकल बीमारी के तौर पर देखा जाता है. कई बार इसका कारण शरीर का इम्यून सिस्टम होता है, जो गलती से मस्तिष्क पर हमला कर देता है. ऐसी स्थिति को ऑटोइम्यून मिर्गी या ऑटोइम्यून एपिलेप्सी कहते हैं. यह एक दुर्लभ लेकिन खतरनाक स्थिति है. अगर समय पर इसकी पहचान और इलाज नहीं किया गया, तो यह मिर्गी की समस्या को अधिक गंभीर और जटिल बना सकता है.
क्यों होता है ऑटोइम्यून एपिलेप्सी (Causes of Auto immune Epilepsy)
ऑटोइम्यून एपिलेप्सी आमतौर पर तब होता है, जब शरीर के अपने ही प्रोटीन हमारे मस्तिष्क के खिलाफ काम करने लगते हैं. इस बीमारी में शरीर का इम्यून सिस्टम ऐसा एंटीबॉडी बनाता है, जो मस्तिष्क की कोशिकाओं और न्यूरोट्रांसमीटर को नुकसान पहुंचाते हैं. इससे न्यूरॉन की कार्यप्रणाली बाधित होती है. इसके कारण व्यक्ति को मिर्गी जैसे दौरे पड़ने लगते हैं. न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. आकाश खुराना बताते हैं कि गंभीर समस्या से बचने के लिए इसका इलाज जरूरी है.
क्या है ऑटोइम्यून एपिलेप्सी (What is Auto immune Epilepsy)
डॉ. आकाश खुराना बताते हैं, ‘यह एक न्यूरो-इम्यूनोलॉजिकल बीमारी है. इसमें शरीर का इम्यून सिस्टम गलती से मस्तिष्क की कोशिकाओं को दुश्मन मान लेता है और एंटीबॉडी बना लेता है. ये एंटीबॉडी न्यूरोट्रांसमीटर को प्रभावित करते हैं. इससे मस्तिष्क की कार्यप्रणाली बिगड़ जाती है और मिर्गी जैसे दौरे पड़ते हैं.
क्या हैं कारण (Auto immune Epilepsy Causes)
यह बीमारी वायरल इंसेफेलाइटिस जैसे संक्रमण, कुछ प्रकार के कैंसर, खासकर लिम्फोमा या ओवेरियन टेराटोमा, टीकाकरण के बाद दुर्लभ मामलों और पहले से मौजूद ऑटोइम्यून बीमारियों के कारण हो सकती है. ऑटोइम्यून मिर्गी की पहचान करना मुश्किल है, जिसके कारण कई बार इलाज में देरी भी हो जाती है. इसका मुख्य कारण यह है कि एमआरआई, एसओटीआई या ईईजी जैसी आम जांचों में इसके बारे में पता नहीं चल पाता है. जब पारंपरिक मिर्गी की दवाएं काम नहीं करतीं और दौरे पड़ते रहते हैं, तो ऑटोइम्यून कारणों की जांच करना जरूरी होता है. इसके लिए सीएसएफ विश्लेषण, ऑटोइम्यून एंटीबॉडी टेस्ट और पीईटी स्कैन करवाना पड़ता है.
ऑटोइम्यून एपिलेप्सी का उपचार (Auto immune Epilepsy Treatment)
अगर समय रहते इसकी पहचान हो जाए तो इसका इलाज संभव है. इसे पूरी तरह से ठीक तो नहीं किया जा सकता, लेकिन इसे नियंत्रित किया जा सकता है. इसके इलाज की मुख्य लाइन इम्यूनोथेरेपी है. इसमें स्टेरॉयड, आईवीआईजी, प्लास्मफेरेसिस या रीटक्सिमैब जैसी दवाइयां दी जाती हैं. इससे मिर्गी के लक्षणों से राहत मिलती है. इसे नियंत्रित करने के लिए एंटी-एपिलेप्टिक दवाएं भी दी जाती हैं. न्यूरोलॉजिस्ट और इम्यूनोलॉजिस्ट की संयुक्त देखरेख में इलाज करवाना बेहतर होता है.
ऑटोइम्यून मिर्गी के लक्षण (Auto immune Epilepsy Symptoms)
बिना किसी स्पष्ट कारण के बार-बार दौरे पड़ना, व्यवहार में अचानक बदलाव या चिड़चिड़ापन, याददाश्त में कमी या भ्रम होना जैसे लक्षण इस बीमारी के कारण दिखते हैं. वहीं, बुखार या संक्रमण के कुछ दिनों बाद मिर्गी शुरू हो सकती है और मरीज को डिप्रेशन हो सकता है. पहचान में देरी होने पर बार-बार गंभीर दौरे पड़ सकते हैं, मस्तिष्क को नुकसान पहुंचने की संभावना रहती है. मानसिक कामकाज में स्थायी गिरावट, आईसीयू में भर्ती होने की जरूरत पड़ सकती है या कुछ मामलों में कोमा जैसी स्थिति भी हो सकती है.
ऑटोइम्यून मिर्गी के लिए सावधानियां ( Precautions for Auto immune Epilepsy)
मिर्गी के लक्षण दिखने पर तुरंत विशेषज्ञ डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। पारंपरिक उपचार (जैसे झाड़-फूंक-तांत्रिक) में समय बर्बाद नहीं करना चाहिए. मिर्गी के इलाज में अगर दवाइयां काम न करें तो ऑटोइम्यून टेस्ट करवाएं. अगर संक्रमण या टीकाकरण के बाद अचानक दौरे पड़ने लगें तो विशेष ध्यान देने की जरूरत है.