गर्मी में क्यों बढ़ जाते हैं हार्ट अटैक के मामले

गर्मी में क्यों बढ़ जाते हैं हार्ट अटैक के मामले

Authored By: अरुण श्रीवास्तव

Published On: Tuesday, June 4, 2024

Last Updated On: Sunday, April 27, 2025

garmi me badhte hai heart attack ke mamle
garmi me badhte hai heart attack ke mamle

वैसे तो किसी भी मौसम में हार्ट अटैक या हार्ट से जुड़ी दूसरी बीमारियां हो सकती हैं। लेकिन ज्यादा गर्मी और अधिक सर्दी के मौसम में दिल का दौरा पड़ने और हार्ट फेल की घटनाएं काफी बढ़ जाती हैं।

Authored By: अरुण श्रीवास्तव

Last Updated On: Sunday, April 27, 2025

इन्दौर में एक भूतपूर्व फ़ौजी योग कार्यक्रम में परफार्म करते हुए अचानक कार्डियक अरेस्ट के शिकार हो गए। उन्हें सीपीआर देने के बाद भी अस्पताल में मौत हो गई। बताया गया कि ये रेगुलर योग करते रहे हैं। एक 19 साल के लड़के की मौत ट्रेडमिल पर चलते समय हार्ट अटैक से हो गई। नाचते गाते या सामान्य स्थिति में लोगों की हार्ट अटैक होने से मौत होने की खबरें लगभग हर रोज ही आ रही हैं। ऐसे में हर आदमी हार्ट अटैक ‘साइलेंट किलर’ को लेकर फिक्रमंद है।

तेज गर्मी और लू की तपिश से दिल का दौरा पड़ने और हार्ट फेल की घटनाएं काफी बढ़ी हैं। जाने-माने हार्ट सर्जन डॉ संजीव कुमार खुल्बे का कहना है कि वैसे तो किसी भी मौसम में हार्ट अटैक या हार्ट से जुड़ी दूसरी बीमारियां हो सकती हैं। लेकिन ज्यादा गर्मी और अधिक सर्दी के मौसम में दिल का दौरा पड़ने और हार्ट फेल की घटनाएं काफी बढ़ जाती हैं।

पिछले कुछ वर्षों में हार्ट अटैक से जान गंवाने वालों के डेटा ये बताता है कि भारत में हार्ट अटैक या सडेन कार्डियक अरेस्ट से होने वाली मौतें करीब 75 प्रतिशत तक बढ़ गई हैं। हृदय रोग के खतरे से सबसे अधिक 19-40 आयु वर्ग के लोग प्रभावित हैं। इस आयु वर्ग के लोग अक्सर अस्वास्थ्यकर जीवनशैली, धूम्रपान, शराब जैसी आदतों में लिप्त रहता है। शायद यही वजह है कि जो हार्ट अटैक कभी बुजुर्गों की मौत का कारण होता था पर अब युवाओं की जान भी ले रहा है।

गर्मियों में अटैक के मामले क्यों बढ़ते हैं

गर्म मौसम का मतलब है कि आपके शरीर को अपने मुख्य तापमान को सामान्य स्तर पर बनाए रखने के लिए अधिक मेहनत करनी पड़ती है। यह आपके हृदय, फेफड़ों और गुर्दे पर अतिरिक्त दबाव डालता है। इसका अर्थ है कि यदि आपको दिल की बीमारी है तो आप अधिक जोखिम में हो सकते हैं।

जानी मानी फीजिशियन डॉ अपर्णा इसे समझाते हुए बताती हैं, ‘जब गर्मी अधिक पड़ती है तो शरीर में पानी की कमी हो जाती है। शरीर में पानी कम होने से खून का वॉल्यूम कम होने लगता है, इस कारण दिल पर दबाव बढ़ जाता है। तब दिल का दौरा पड़ने का रिस्क होता है। शरीर से पसीना ज्यादा निकलने से भी शरीर में सोडियम की मात्रा कम हो जाती है। जिस कारण हार्ट की इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी अनियमित हो जाती है और हार्ट रेट बढ़ जाता है। इसका भी दिल पर असर पड़ता है।

कुल मिलाकर तेज गर्मी में हार्ट अटैक का कारण हीट स्ट्रेस, डिहाइड्रेशन, इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन, बहुत अधिक और हाई इंटेंसिटी की फिजिकल एक्टिविटी, ज्यादा शारीरिक श्रम और ब्लड प्रेशर में बदलाव हैं। हीट स्ट्रेस की वजह से तनाव भी बढ़ता है।

कोविड महामारी के बाद तो सडेन कार्डियक अरेस्ट के मामले काफी होने लगे हैं। हालांकि ऐसा क्यों हो रहा है? यह एक रिसर्च का विषय है। अभी इसपर कोई टिप्पणी अनधिकृत होगी।

अपोलो हॉस्पिटल हैदराबाद के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ संजीव कुमार खुल्बे के अनुसार कार्डियक अरेस्ट और हार्ट अटैक हृदय के दो भिन्न बीमारियों को दर्शाने वाले शब्द हैं। हृदय जब स्पन्दन करना बंद कर दे तो उसे कार्डियक अरेस्ट कहते हैं। और ऐसा जब एकाएक होता है तब उसे सडेन कार्डियक अरेस्ट कहा जाता है। ऐसी स्थिति में मनुष्य की मृत्यु अविलंब हो जाती हैं।

सडेन कार्डियक अरेस्ट में व्यक्ति एकाएक मूर्च्छित होकर उसी स्थान पर गिर जाता है। उसकी नाड़ी शिथिल हो कर बंद हो जाती है। उसकी सांस भी रुक जाती है। वह प्रतिक्रिया विहीन हो जाता है। यदि चंद मिनटों में उसे चिकित्सीय सहायता नहीं पहुंचाई गई तो मृत्यु अवश्य हो जाती है। इसकी प्राथमिक चिकित्सा सीपीआर है। फिर नजदीक के अस्पताल में पीड़ित व्यक्ति के पूर्ण इलाज होनी चाहिए। यहां उल्लेखनीय है कि देर से दिए गए सीपीआर यदि हृदय और फेफड़ा को पुनः क्रियाशील करने में सफल हो भी जाता है तो भी उस व्यक्ति की मष्तिष्क शिथिल हो जाती है। वह व्यक्ति एक जीवित लाश की तरह हो जाता है।

प्राथमिक चिकित्सा सीपीआर कैसे दिया जाता है

अमेरिका के आकस्मिक चिकित्सा विशेषज्ञ डॉ सागर बेदी के अनुसार सीपीआर बेसिक तकनीक है। इसमें हार्ट को रिस्टार्ट करना होता है। ताकि सरकुलेशन बना रहे। इसके लिये दो मुट्ठियां बनाकर चेस्ट के लोअर पार्ट में जल्दी-जल्दी तीस बार कसके दबाव डालते हैं। ये ध्यान रखने वाली बात है कि हार्ट काफी अंदर होता है. इसलिये दबाव ज्यादा देना होता है। इसके अलावा मुंह में गहरी सांस भर कर आर्टीफिशीयल ब्रीदिंग भी कराना होता है।

प्रसिद्ध चिकित्सा विशेषज्ञ डॉ राजेन्द्र कुमार का कहना है कि यह बहुत आवश्यक है कि प्रत्येक व्यक्ति को निश्चित रूप से सीपीआर का प्रशिक्षण दिया जाएं। विद्यालयों एवं महाविद्यालयों के समस्त शिक्षा पाठ्यक्रमों में इसे संलग्न किया जाए। नौकरियों के लिए की जा रही भर्तियों में इसे एक आवश्यक अंग माना जाए।

डॉ सागर बेदी कहते हैं कि अमेरिका सहित कई देशों में स्कूल पास का सर्टिफिकेट तभी दिया जाता है, जब विद्यार्थी आकस्मिक चिकित्सा के सफल प्रशिक्षण का प्रमाण प्रस्तुत करता है।

सडेन कार्डियक अरेस्ट की संभावना से बचने के लिए अभी तक सोशल स्क्रीनिंग की कोई अवधारणा सरकारी स्तर पर नहीं बनाई गई है। लेकिन समय-समय पर हृदय एवं रक्त संबंधी जांच कुछ सीमा तक इसमें सहायक हो सकती हैं।

अरुण श्रीवास्तव पिछले करीब 34 वर्ष से हिंदी पत्रकारिता की मुख्य धारा में सक्रिय हैं। लगभग 20 वर्ष तक देश के नंबर वन हिंदी समाचार पत्र दैनिक जागरण में फीचर संपादक के पद पर कार्य करने का अनुभव। इस दौरान जागरण के फीचर को जीवंत (Live) बनाने में प्रमुख योगदान दिया। दैनिक जागरण में करीब 15 वर्ष तक अनवरत करियर काउंसलर का कॉलम प्रकाशित। इसके तहत 30,000 से अधिक युवाओं को मार्गदर्शन। दैनिक जागरण से पहले सिविल सर्विसेज क्रॉनिकल (हिंदी), चाणक्य सिविल सर्विसेज टुडे और कॉम्पिटिशन सक्सेस रिव्यू के संपादक रहे। राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय, साहित्य, संस्कृति, शिक्षा, करियर, मोटिवेशनल विषयों पर लेखन में रुचि। 1000 से अधिक आलेख प्रकाशित।
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