45 साल के थेरेपिस्ट ने बताया वो ज़हर, जो चुपचाप आपकी ज़िंदगी निगल रहा है
Authored By: Galgotias Times Bureau
Published On: Friday, October 31, 2025
Updated On: Friday, October 31, 2025
45 सालों के अनुभव वाले थेरेपिस्ट जेरी वाइज़ ने बताया कि लोगों में एक ऐसा छिपा व्यवहार होता है जो धीरे-धीरे उनकी शांति, खुशी और आत्मविश्वास को खत्म कर देता है. उन्होंने कहा कि यह पैटर्न इतना सूक्ष्म होता है कि ज़्यादातर लोग इसे पहचान ही नहीं पाते, लेकिन इसका असर गहरा होता है.
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Updated On: Friday, October 31, 2025
Silent Poison Ruining Life: हम अक्सर अपनी नाखुशी का कारण हालात, तनाव या दूसरों के रवैये को मानते हैं, लेकिन असली वजह कहीं गहराई में, हमारे भीतर भी हो सकती है. 45 से अधिक सालों के अनुभव वाले थेरेपिस्ट और रिलेशनशिप एक्सपर्ट जेरी वाइज ने हाल ही में अपने इंस्टाग्राम पोस्ट में एक ऐसे अदृश्य व्यवहार पैटर्न के बारे में बताया है, जो धीरे-धीरे हमारी खुशी और मानसिक शांति को खत्म कर देता है. उनका कहना है कि यह आदत इतनी सूक्ष्म होती है कि हमें इसका एहसास तक नहीं होता, लेकिन यही चुपचाप हमारी ज़िंदगी को प्रभावित करती है और हमें भीतर से थका देती है.
एन्मेश्मेंट क्या है और यह कैसे शुरू होता है?
जेरी वाइज बताते हैं कि एन्मेश्मेंट यानी भावनात्मक उलझाव एक ऐसा बंधन है जो परिवार के सदस्यों को इतनी गहराई से जोड़ देता है कि व्यक्ति अपनी पहचान और दूसरों की भावनाओं के बीच फर्क नहीं कर पाता. आत्ममुग्ध या अव्यवस्थित परिवारों में यह स्थिति और गहरी होती है, जहाँ हर किसी की सोच, भावनाएँ और फैसले एक-दूसरे में घुल जाते हैं. धीरे-धीरे व्यक्ति की खुद की पहचान दूसरों की उम्मीदों का हिस्सा बन जाती है.
वे कहते हैं कि ऐसे माहौल में बच्चे को खुद की राय या भावनाएँ व्यक्त करने की आज़ादी नहीं मिलती. उसे वही सोचना और करना पड़ता है जो परिवार चाहता है, वरना उसे गुस्सा, अपराधबोध या अस्वीकृति झेलनी पड़ती है. इस तरह का भावनात्मक दबाव व्यक्ति को हमेशा आज्ञाकारी बनाए रखता है, लेकिन उसकी आत्म-अभिव्यक्ति को खत्म कर देता है. वाइज बताते हैं कि आत्ममुग्ध माता-पिता नियंत्रण बनाए रखने के लिए इस उलझाव का इस्तेमाल करते हैं, जिससे बच्चे दूसरों की खुशी के लिए खुद को दबाना सीख जाते हैं, कभी देखभाल करने वाले बनकर, कभी ‘परफेक्ट’ बच्चा बनकर, तो कभी अपनी भावनाओं को भीतर छिपाकर.
एन्मेश्मेंट का असर बड़े होने पर कैसे दिखता है?
जेरी वाइज बताते हैं कि बचपन की यह भावनात्मक उलझन वयस्कता में गहराई से असर डालती है. ऐसे लोग दूसरों की भावनाओं का बोझ अपने ऊपर लेने लगते हैं और हर किसी की खुशी या गम के लिए खुद को ज़िम्मेदार मानते हैं. वे अपने विचारों पर भरोसा खो देते हैं और जब खुद के लिए कुछ करने की कोशिश करते हैं, तो उन्हें अपराधबोध महसूस होता है, जैसे उन्होंने किसी को धोखा दिया हो.
वाइज कहते हैं कि यह उलझन धीरे-धीरे आपकी भावनात्मक आज़ादी छीन लेती है. छोटी-सी बात या किसी का लहजा भी आपको अस्थिर कर सकता है. इससे बचने का रास्ता है, ‘आत्म-विभेदन’ (Self Differentiation). इसका मतलब है कि आप दूसरों से जुड़ें, लेकिन खुद को खोए बिना. वाइज कहते हैं, ‘आप किसी से प्यार कर सकते हैं, उनके गुस्से या प्रतिक्रिया के बीच भी शांत रह सकते हैं, बस खुद को पहचानिए और अपनी सीमाएँ तय कीजिए. ‘
भावनात्मक उलझनों से खुद को कैसे आज़ाद करें
जेरी वाइज के मुताबिक, एन्मेश्मेंट यानी भावनात्मक उलझनों से बाहर निकलना संभव है, बस इसके लिए थोड़ी जागरूकता और अभ्यास की जरूरत होती है. वे कहते हैं कि सबसे पहले, अपने अंदर खिंचाव या तनाव को पहचानिए, लेकिन उसे अपने भीतर समा जाने मत दीजिए. जब आप किसी की भावनाओं या उम्मीदों के बोझ से दबने लगें, तो खुद को याद दिलाएँ, ‘ये मेरे नहीं हैं. ‘
वाइज सलाह देते हैं कि अपराधबोध से दूर रहकर अपनी पहचान खुद तय करें. अपने विचारों और भावनाओं को समझना शुरू करें, क्योंकि यही आत्म-जागरूकता की शुरुआत है. साथ ही, शांति का अभ्यास करें, यही वह ‘सर्किट ब्रेकर’ है जो पुरानी भावनात्मक आदतों को तोड़ सकता है. वे कहते हैं, ‘जब आप उलझनों से मुक्त हो जाते हैं, तो एक नई शांति महसूस होती है. अब आप दूसरों के भावनात्मक विस्तार के रूप में नहीं, बल्कि अपनी पहचान के साथ जीते हैं. आपके फ़ैसले डर से नहीं, बल्कि स्पष्टता से आते हैं और आप शांत रह पाते हैं, भले ही दूसरे न हों. ‘
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