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जगदीप धनखड़ ने SC के फैसले पर जताई नाराजगी, कहा- अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं
जगदीप धनखड़ ने SC के फैसले पर जताई नाराजगी, कहा- अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं
Authored By: सतीश झा
Published On: Thursday, April 17, 2025
Updated On: Thursday, April 17, 2025
एक कार्यक्रम के दौरान उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ (Vice President Jagdeep Dhankhar) का बयान चर्चा का विषय बन गया, जब उन्होंने एक न्यायाधीश को “सुपर संसद” कहकर संबोधित किया. इस बयान ने संविधान की तीनों प्रमुख संस्थाओं — विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका — के बीच संतुलन और अधिकारों की बहस को फिर से केंद्र में ला दिया है.
Authored By: सतीश झा
Updated On: Thursday, April 17, 2025
Vice President Jagdeep Dhankhar statement : कार्यक्रम में बोलते हुए उपराष्ट्रपति (Vice President Jagdeep Dhankhar) ने कहा, “जब कोई न्यायाधीश, जो जनता द्वारा निर्वाचित नहीं है, संसद द्वारा पारित कानून को रद्द करता है या उसकी व्याख्या करता है. वह खुद को ‘सुपर संसद’ समझने लगता है. यह लोकतंत्र के लिए एक गंभीर चुनौती है.” उन्होंने यह भी जोड़ा कि न्यायपालिका को अपनी सीमाओं में रहकर काम करना चाहिए और विधायिका की संप्रभुता का सम्मान करना चाहिए.
अदालतें राष्ट्रपति को निर्देश नहीं दे सकतीं
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ (Vice President Jagdeep Dhankhar) ने गुरुवार को न्यायपालिका की शक्तियों पर बड़ा बयान देते हुए कहा कि लोकतंत्र में ऐसा नहीं हो सकता कि अदालतें देश के राष्ट्रपति को निर्देश जारी करें. उनका यह बयान उस समय आया है जब सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐतिहासिक फैसले में अनुच्छेद 370 के संदर्भ में राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए संविधान लागू करने की समय सीमा तय की थी. धनखड़ ने राज्यसभा के प्रशिक्षुओं के छठे बैच को संबोधित करते हुए कहा, “लोकतंत्र में ऐसी स्थिति कभी स्वीकार नहीं की जा सकती जहां अदालतें राष्ट्र प्रमुख को आदेश दें. यह न केवल संवैधानिक संतुलन के विरुद्ध है बल्कि लोकतंत्र की मूल भावना को भी चुनौती देता है.”
नकदी विवाद पर भी साधा निशाना
उपराष्ट्रपति ने अपने संबोधन के दौरान हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के आवास से भारी मात्रा में नकदी बरामद होने की घटना का भी जिक्र किया. उन्होंने इस प्रकरण में न्यायपालिका की ओर से आई प्रतिक्रिया को असंतोषजनक बताया और कहा कि इस तरह की घटनाएं न्यायपालिका की पारदर्शिता और जवाबदेही पर सवाल खड़े करती हैं. धनखड़ ने कहा, “जब ऐसी संवेदनशील घटनाएं सामने आती हैं तो न्यायपालिका की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह स्पष्ट और भरोसेमंद प्रतिक्रिया दे. चुप्पी या बचाव का रवैया, जनविश्वास को कमजोर करता है.”
जज के खिलाफ FIR क्यों नहीं?
धनखड़ ने आगे सवाल उठाया कि जब अग्निशमन विभाग की टीम ने न्यायमूर्ति वर्मा के घर पर आग बुझाने के अभियान के दौरान इतनी बड़ी मात्रा में नकदी बरामद की, तब भी कोई प्राथमिकी दर्ज क्यों नहीं की गई? उन्होंने कहा कि यह स्थिति लोगों के मन में असहजता और अविश्वास पैदा कर रही है. उन्होंने कहा,“देश में किसी के खिलाफ भी मामला दर्ज किया जा सकता है, लेकिन अगर किसी न्यायाधीश के खिलाफ मामला दर्ज करना है तो विशेष अनुमति की आवश्यकता होती है.”
सियासी हलचल तेज
इन तीखे बयानों के बाद राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो गई है. विपक्षी दलों ने जहां इसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर हमला बताया है, वहीं सरकार समर्थकों ने उपराष्ट्रपति के बयान को संवैधानिक संतुलन की आवश्यकता बताते हुए उसका समर्थन किया है. उपराष्ट्रपति का यह बयान एक बार फिर यह बहस छेड़ गया है कि देश में न्यायपालिका और विधायिका के बीच सीमा निर्धारण कैसे हो ? लोकतंत्र की मजबूती इसी में है कि सभी संवैधानिक संस्थाएं अपने-अपने दायरे में रहकर काम करें और जनता के विश्वास को मजबूत करें.