Special Coverage
Ambedkar Jayanti 2025: कब है इस साल यह तिथि? क्या है इतिहास? डॉ. भीमराव आंबेडकर की जयंती पर जानें समानता, संघर्ष और संविधान का संदेश!
Ambedkar Jayanti 2025: कब है इस साल यह तिथि? क्या है इतिहास? डॉ. भीमराव आंबेडकर की जयंती पर जानें समानता, संघर्ष और संविधान का संदेश!
Authored By: Nishant Singh
Published On: Sunday, April 13, 2025
Updated On: Saturday, April 12, 2025
आंबेडकर जयंती (Ambedkar Jayanti 2025) पर जानिए कब मनाई जाती है यह प्रेरणादायक तिथि और क्या है इसका ऐतिहासिक व सामाजिक महत्व। यह दिन न केवल भारत के संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर की जन्मतिथि के रूप में मनाया जाता है, बल्कि यह समानता, अधिकार और सामाजिक न्याय के मूल्यों को भी उजागर करता है। डॉ. आंबेडकर का जीवन संघर्ष, शिक्षा और सामाजिक सुधार के अद्भुत उदाहरणों से भरा हुआ है। आइए, इस विशेष अवसर पर उनके योगदान, विचारों और उस संदेश को समझें, जो आज भी देश को न्याय और समानता की राह पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।
Authored By: Nishant Singh
Updated On: Saturday, April 12, 2025
हर साल 14 अप्रैल को एक ऐसी रौशनी का उत्सव मनाया जाता है, जिसने भारत के अंधेरे कोनों को ज्ञान, समानता और न्याय की किरणों से रोशन किया. ये दिन केवल एक जन्मतिथि नहीं, बल्कि एक विचार की विजय है – डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की सोच, जिसने न केवल संविधान को जन्म दिया, बल्कि करोड़ों लोगों को इंसान होने का हक भी दिलाया. अगर आज हम बराबरी की बात करते हैं, तो उसकी नींव इसी महान आत्मा ने रखी थी.
अंबेडकर जयंती न केवल उनके जीवन का उत्सव है, बल्कि उस संघर्ष की याद है जो उन्होंने सामाजिक भेदभाव, जातिवाद और अन्याय के खिलाफ लड़ा. उन्होंने किताबों को हथियार बनाया, और अपने विचारों से समाज की नींव हिला दी. आज जब हम इस दिन को मनाते हैं, तो ये ज़रूरी है कि हम केवल फूल चढ़ाकर न रुकें, बल्कि उनके विचारों को समझें, अपनाएं और आगे बढ़ाएं.
डॉ. भीमराव आंबेडकर का जीवन परिचय
14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव “महू” में एक ऐसा सितारा जन्मा, जिसने आगे चलकर पूरे भारत के समाजिक आकाश को रौशन किया. डॉ. भीमराव आंबेडकर का जन्म एक दलित महार जाति में हुआ था, जिसे उस समय समाज में सबसे नीचा समझा जाता था. बचपन से ही उन्होंने भेदभाव, तिरस्कार और असमानता का कड़वा स्वाद चखा, लेकिन इन कठिनाइयों ने उनके हौसले को कमजोर नहीं किया – बल्कि उन्हें और मजबूत बना दिया. उनके पिता सेना में थे और शिक्षा के महत्व को अच्छे से समझते थे, इसी वजह से भीमराव जी की पढ़ाई पर खास ध्यान दिया गया.
अंबेडकर जी का मन किताबों में खूब लगता था. शुरुआती पढ़ाई के बाद उन्होंने बॉम्बे यूनिवर्सिटी से डिग्री ली और फिर आगे की पढ़ाई के लिए विदेश गए – कोलंबिया यूनिवर्सिटी (अमेरिका) और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स जैसी विश्वप्रसिद्ध संस्थाओं से उन्होंने शिक्षा प्राप्त की. जिस दौर में दलितों को स्कूल की दहलीज़ तक जाने की इजाज़त नहीं थी, उस दौर में अंबेडकर ने दुनिया के सबसे बड़े विश्वविद्यालयों में भारत का नाम रोशन किया.
आंबेडकर जयंती का महत्व: समानता, न्याय और आत्मसम्मान का पर्व
हर साल 14 अप्रैल को मनाई जाने वाली आंबेडकर जयंती सिर्फ एक जन्मदिन नहीं, बल्कि एक क्रांति का प्रतीक है. यह दिन उस महापुरुष के जन्म की याद दिलाता है, जिसने समाज के हाशिए पर खड़े लोगों को आवाज़ दी, उन्हें सम्मान दिलाया और देश को एक ऐसा संविधान दिया जिसमें सभी के लिए समान अधिकार की गारंटी थी. डॉ. भीमराव आंबेडकर के विचार, उनके संघर्ष और उनके योगदान को सम्मान देने के लिए यह दिन राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी श्रद्धा और गर्व से मनाया जाता है.
यह दिन हमें याद दिलाता है कि बदलाव किसी एक आदमी से भी आ सकता है – बशर्ते उसके इरादे मजबूत हों. आंबेडकर जयंती का महत्व इस बात में छिपा है कि यह हमें बराबरी, शिक्षा और न्याय के मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा देती है. यह दिन सिर्फ एक महापुरुष को याद करने का नहीं, बल्कि उनके सपनों को साकार करने का वादा करने का दिन है.
डॉ. भीमराव आंबेडकर की शिक्षा और संघर्ष: ज्ञान की लौ से अंधकार को हराने वाला योद्धा

डॉ. आंबेडकर का जीवन इस बात का जीता-जागता उदाहरण है कि कठिन हालात भी एक मजबूत इरादे वाले इंसान को उसकी मंज़िल से नहीं रोक सकते. एक दलित बच्चे के रूप में उन्होंने समाज की घोर असमानता, तिरस्कार और भेदभाव को बहुत करीब से झेला. स्कूल में उन्हें क्लास के बाहर ज़मीन पर बैठाया जाता था, पानी तक छूने नहीं दिया जाता था, लेकिन उन्होंने कभी पढ़ाई से मुंह नहीं मोड़ा. उनका सपना था – “ज्ञान के ज़रिए मुक्ति”.
कुछ प्रमुख बिंदु जो उनके शैक्षणिक संघर्ष और उपलब्धियों को दर्शाते हैं:
- बॉम्बे विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन के बाद उन्हें बड़ौदा राज्य की छात्रवृत्ति मिली, जिससे वे आगे पढ़ाई के लिए विदेश जा सके.
- उन्होंने कोलंबिया यूनिवर्सिटी (अमेरिका) से अर्थशास्त्र में मास्टर्स और पीएचडी की डिग्री प्राप्त की.
- फिर लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स और ग्रेज़ इन लॉ (लंदन) से कानून और अर्थशास्त्र की पढ़ाई पूरी की.
- पढ़ाई के दौरान उन्होंने कई बार आर्थिक तंगी, नस्लीय भेदभाव और मानसिक तनाव का सामना किया, लेकिन हार नहीं मानी.
डॉ. आंबेडकर की शिक्षा यात्रा सिर्फ व्यक्तिगत सफलता की कहानी नहीं थी, बल्कि यह एक पूरे समुदाय को अंधकार से निकालकर रोशनी की ओर ले जाने की शुरुआत थी. उन्होंने साबित कर दिया कि शिक्षा सबसे बड़ी ताकत है, जिससे समाज की बुनियाद बदली जा सकती है.
भारतीय संविधान में आंबेडकर का योगदान: क़लम से गढ़ी गई एक नई आज़ादी की कहानी
डॉ. भीमराव आंबेडकर को यूं ही ‘भारतीय संविधान का शिल्पकार’ नहीं कहा जाता. उन्होंने न सिर्फ संविधान की रूपरेखा तैयार की, बल्कि उसमें ऐसा दर्शन भरा जो हर भारतीय को बराबरी, सम्मान और न्याय का हक़ देता है. जब भारत आज़ाद हुआ और नए राष्ट्र की नींव रखी जा रही थी, तब संविधान सभा ने आंबेडकर को संविधान मसौदा समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया — क्योंकि उनमें न सिर्फ गहरी समझ थी, बल्कि समाज के हर तबके के दर्द को महसूस करने की संवेदनशीलता भी थी.
उनके योगदान की कुछ प्रमुख बातें:
- उन्होंने अनुच्छेद 14 से 18 के ज़रिए समानता का अधिकार सुनिश्चित किया.
- अनुच्छेद 15 और 17 के ज़रिए जातीय भेदभाव और अछूत प्रथा को खत्म करने का रास्ता साफ किया.
- उन्होंने संविधान में आरक्षण प्रणाली का प्रस्ताव रखा ताकि सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को मुख्यधारा से जोड़ा जा सके.
- उनके प्रयासों से न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व जैसे मूल्य संविधान के मूल स्तंभ बने.
डॉ. आंबेडकर का सपना था एक ऐसा भारत, जहाँ कोई भी व्यक्ति जन्म के आधार पर छोटा या बड़ा न माना जाए. उन्होंने जो संविधान रचा, वो सिर्फ कानूनों की किताब नहीं, बल्कि एक समान और न्यायपूर्ण समाज का सपना है – जिसे हर पीढ़ी को सहेज कर आगे ले जाना है.
आंबेडकर की समाज सुधारक भूमिका: जिसने समाज की जड़ें हिला दीं, और इंसानियत को नया चेहरा दिया
डॉ. भीमराव आंबेडकर केवल संविधान निर्माता ही नहीं थे, वे एक क्रांतिकारी समाज सुधारक भी थे, जिन्होंने उस दौर में आवाज़ उठाई जब बोलना भी पाप माना जाता था. उन्होंने दलितों के अधिकारों की लड़ाई नारे से नहीं, विचार और कर्म से लड़ी. छुआछूत और जातीय भेदभाव के खिलाफ उन्होंने खुलकर मोर्चा लिया और कहा – “मैं ऐसे धर्म को नहीं मान सकता जो मानवता को अपमानित करे.”
उनके प्रमुख सामाजिक प्रयासों में शामिल हैं:
- महाड़ सत्याग्रह (1927): जहां उन्होंने दलितों को सार्वजनिक जल स्रोतों से पानी पीने का अधिकार दिलाने के लिए आंदोलन चलाया.
- नासिक का कालाराम मंदिर सत्याग्रह: दलितों को मंदिर में प्रवेश दिलाने के लिए यह ऐतिहासिक कदम उठाया गया.
- उन्होंने ‘बहिष्कृत भारत’ जैसे पत्रों के माध्यम से दबे-कुचले वर्गों की आवाज़ पूरे देश तक पहुंचाई.
- 1932 का पूना समझौता: जिससे दलितों को राजनीतिक प्रतिनिधित्व का अधिकार मिला.
- अंत में उन्होंने बौद्ध धर्म अपनाकर एक शांतिपूर्ण और समतावादी रास्ता चुना और लाखों लोगों को आत्मसम्मान के साथ जीने की राह दिखाई.
डॉ. आंबेडकर ने न सिर्फ समाज के घावों को पहचाना, बल्कि उन्हें भरने के लिए पूरी ज़िंदगी लगा दी. उनका सामाजिक संघर्ष आज भी हमें सिखाता है कि जब तक समाज में एक भी व्यक्ति अपमानित है, तब तक चुप रहना भी अन्याय है.
आंबेडकर का धर्म परिवर्तन: आत्मसम्मान की नई सुबह

14 अक्टूबर 1956 का दिन भारतीय इतिहास में एक नई क्रांति की शुरुआत बन गया. इसी दिन डॉ. भीमराव अंबेडकर ने नागपुर में लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपनाया. यह केवल धर्म परिवर्तन नहीं था, बल्कि एक सशक्त सामाजिक और मानसिक विद्रोह था उस अन्यायपूर्ण व्यवस्था के खिलाफ, जो सदियों से दलितों को अपमान और तिरस्कार में जीने को मजबूर करती रही थी.
धर्म परिवर्तन के महत्व की कुछ झलकियाँ:
- बौद्ध धर्म ने उन्हें समानता, करुणा और अहिंसा का दर्शन दिया, जो उनके विचारों से मेल खाता था.
- यह कदम दलित समाज के आत्मसम्मान और आत्मनिर्भरता की प्रेरणा बन गया.
- उन्होंने 22 प्रतिज्ञाएं लेकर लोगों को पुराने अन्यायपूर्ण विश्वासों से मुक्त होने का संदेश दिया.
- इससे यह साबित हुआ कि मानवता और सम्मान का रास्ता सिर्फ परंपरा नहीं, सोच से तय होता है.
डॉ. आंबेडकर का धर्म परिवर्तन एक घोषणा थी – कि हम झुकेंगे नहीं, टूटेंगे नहीं, बल्कि अपनी पहचान खुद गढ़ेंगे. यह घटना आज भी सामाजिक बदलाव का सबसे बड़ा प्रतीक मानी जाती है.
आंबेडकर जयंती पर देशभर में आयोजन: श्रद्धा, सम्मान और समरसता का उत्सव
हर साल 14 अप्रैल को जब सूरज उगता है, तो देशभर में सिर्फ एक महान नेता की जयंती नहीं मनाई जाती — ये दिन होता है न्याय, समानता और मानवाधिकारों की जीत का पर्व. डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती पर पूरे भारत में गली-गली, शहर-शहर रैलियाँ निकलती हैं, झाँकियाँ सजती हैं, और उनके स्मारकों पर श्रद्धासुमन अर्पित किए जाते हैं.
मुंबई स्थित “चैत्यभूमि”, जहाँ डॉ. अंबेडकर की समाधि है, वहाँ लाखों लोग दूर-दूर से आकर पुष्पांजलि अर्पित करते हैं. बच्चे, बुज़ुर्ग, महिलाएँ सभी पारंपरिक वस्त्र पहनकर उनकी तस्वीरों के सामने दीप प्रज्वलित करते हैं.
भारत के हर राज्य में — चाहे वह महाराष्ट्र हो, उत्तर प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु या कर्नाटक — अंबेडकर जयंती एक सामाजिक चेतना का महापर्व बन चुका है. स्कूलों में भाषण, प्रतियोगिताएँ और निबंध लेखन जैसे आयोजन होते हैं. दलित समुदाय के साथ-साथ अन्य वर्गों के लोग भी इस दिन को बराबरी के हक़ की प्रेरणा के रूप में मनाते हैं.
आंबेडकर की प्रमुख रचनाएँ: शब्द जो समाज की सोच बदल गए
डॉ. भीमराव आंबेडकर ने केवल आंदोलन नहीं चलाए, बल्कि अपनी लेखनी से भी सामाजिक क्रांति की नींव रखी. उन्होंने जो लिखा, वो सिर्फ किताबें नहीं थीं, बल्कि वो विचारों की मशाल थी जिसने सदियों के अंधकार को चीरकर लोगों को सोचने की आज़ादी दी. उनकी रचनाओं ने जातिवाद, सामाजिक असमानता और आर्थिक शोषण पर तीखे सवाल उठाए और समाज को नया नजरिया दिया.
उनकी कुछ महत्वपूर्ण रचनाएँ हैं:
- “Annihilation of Caste” (जाति का उन्मूलन): इस ऐतिहासिक लेख में उन्होंने हिंदू समाज में फैले जातीय भेदभाव की खुली आलोचना की और समानता की बुलंद आवाज़ उठाई.
- “The Problem of the Rupee”: इस पुस्तक में उन्होंने भारतीय मुद्रा और अर्थव्यवस्था की जटिलताओं का विश्लेषण करते हुए भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना की सिफारिश की.
- “Thoughts on Linguistic States”: जिसमें उन्होंने राज्यों के भाषाई आधार पर पुनर्गठन की जरूरत पर विचार व्यक्त किए.
- “Who Were the Shudras?” और “The Untouchables”: इन कृतियों में उन्होंने शूद्रों और अछूतों के ऐतिहासिक उत्पीड़न की गहराई से पड़ताल की.
- “Buddha and His Dhamma”: उनके जीवन की अंतिम कृति, जो बौद्ध धर्म के सिद्धांतों और जीवन-दर्शन का सरल परिचय है.
इन रचनाओं का प्रभाव आज भी भारतीय राजनीति, समाज और संविधान की सोच में झलकता है. बाबा साहेब की कलम ने न केवल सवाल उठाए, बल्कि बदलाव के रास्ते भी दिखाए — और यही उन्हें युगद्रष्टा बनाता है.
आंबेडकर की विचारधारा: समानता का सपना, क्रांति की दिशा
डॉ. आंबेडकर की विचारधारा केवल किताबों या भाषणों तक सीमित नहीं रही, बल्कि वह एक जनांदोलन बनी — जिसने भारत को सामाजिक बदलाव की राह दिखाई. उनका सबसे बड़ा सपना था एक ऐसा भारत, जहाँ न कोई ऊँचा हो न नीचा, जहाँ हर इंसान को बराबरी का अधिकार मिले. उनके लिए ‘सामाजिक न्याय’ कोई नारा नहीं, बल्कि जीवन का मूल उद्देश्य था.
बाबा साहेब मानते थे कि जब तक समाज में बराबरी नहीं होगी, तब तक स्वतंत्रता अधूरी है. उन्होंने जातिवाद को सामाजिक बीमारी बताया और उसके इलाज के लिए शिक्षा, आत्म-सम्मान और संगठन का मंत्र दिया.
उनकी विचारधारा के कुछ महत्वपूर्ण पहलू:
- समान अधिकार: चाहे शिक्षा हो, नौकरी हो या कानून — हर व्यक्ति को बराबरी का अधिकार मिले, इसके लिए उन्होंने संविधान में विशेष प्रावधान करवाए.
- जातिविहीन समाज: उन्होंने हमेशा एक ऐसे समाज की कल्पना की जहाँ व्यक्ति की पहचान उसकी योग्यता से हो, न कि उसकी जाति से.
- राजनीतिक भागीदारी: उन्होंने दलितों और वंचित वर्गों को राजनीति में आवाज़ दिलाने के लिए संघर्ष किया और स्वतंत्र दलित राजनीति की नींव रखी.
- शिक्षा का हथियार: उनका प्रसिद्ध कथन “शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो” आज भी युवाओं के लिए प्रेरणा है.
डॉ. आंबेडकर की सोच ने न केवल दलित समाज को जागरूक किया, बल्कि पूरे देश को सोचने पर मजबूर कर दिया कि सच्चा लोकतंत्र तभी होगा जब हर नागरिक को बराबरी और सम्मान मिलेगा. उनकी विचारधारा आज भी भारत के सामाजिक सुधारों की दिशा तय करती है.
आंबेडकर की धरोहर और समकालीन समाज: विचार जो समय से आगे चले
डॉ. भीमराव आंबेडकर की धरोहर कोई पुरानी किताबों में बंद विचार नहीं, बल्कि एक जीवंत सोच है, जो आज भी भारत के दिल और ज़मीर में धड़कती है. उन्होंने जिस समानता, न्याय और आत्मसम्मान की बात की थी, वही आज के समाज की सबसे बड़ी ज़रूरत बन चुकी है.
आज जब देश में सामाजिक असमानता, लैंगिक भेदभाव, धार्मिक कट्टरता और वर्ग संघर्ष जैसी समस्याएँ उठती हैं, तो आंबेडकर की शिक्षाएँ रास्ता दिखाती हैं. “समान अधिकार”, “संविधान के प्रति निष्ठा” और “समाज में सबकी भागीदारी” जैसे सिद्धांत आज के हर न्यायप्रिय आंदोलन की नींव हैं. चाहे वह दलित अधिकार आंदोलन हो, महिला सशक्तिकरण की पहल हो या शिक्षा और रोजगार में समान अवसर की माँग — हर जगह आंबेडकर की सोच गूंजती है.
उनका यह कथन — “हम सबसे पहले भारतीय हैं, बाद में कुछ और” — आज के खंडित सामाजिक माहौल में राष्ट्रीय एकता की सबसे मजबूत आवाज़ है. बाबा साहेब की विचारधारा आज भी युवाओं को जागरूक नागरिक बनने की प्रेरणा देती है और लोकतंत्र को उसकी असली आत्मा से जोड़ती है.
आंबेडकर की धरोहर किसी एक समाज की नहीं, बल्कि हर उस इंसान की है जो न्याय, समानता और गरिमा के साथ जीना चाहता है.
आंबेडकर को समझना ही उनका सच्चा सम्मान है
डॉ. भीमराव आंबेडकर को केवल प्रतिमा पर फूल चढ़ाकर नहीं, बल्कि उनके विचारों को जीवन में अपनाकर सच्चा सम्मान दिया जा सकता है. आंबेडकर के योगदान को सराहने का सबसे सशक्त माध्यम है — शिक्षा, समाजसेवा और जागरूकता फैलाना.
हम उनके विचारों को इन तरीकों से अपना सकते हैं:
- शिक्षा के ज़रिए बदलाव: स्कूलों और कॉलेजों में आंबेडकर के विचारों, उनके संघर्षों और सिद्धांतों पर चर्चा होना चाहिए ताकि युवा उनकी सोच से प्रेरणा लें.
- सामुदायिक सेवा: समाज के पिछड़े और वंचित वर्गों की मदद करना, उनके अधिकारों के लिए आवाज़ उठाना और उन्हें सशक्त बनाना ही उनके कार्यों को आगे बढ़ाना है.
- सामाजिक जागरूकता: जातिवाद, भेदभाव और असमानता के खिलाफ खड़े होकर सामाजिक न्याय की नींव को और मज़बूत किया जा सकता है.
जब हम बाबा साहेब की बातों को अपने विचार और कर्म में उतारते हैं, तब ही हम उनके योगदान का सच्चा आदर करते हैं. यही अंबेडकर जयंती की असली सार्थकता है.
परदे से पन्नों तक: जीवित हैं आंबेडकर के विचार
डॉ. आंबेडकर का जीवन केवल इतिहास की किताबों तक सीमित नहीं है, बल्कि वह आज भी फिल्मों, नाटकों, पुस्तकों और डॉक्यूमेंट्रीज़ के माध्यम से जीवंत रूप में समाज को प्रेरित कर रहे हैं. इन सांस्कृतिक माध्यमों ने उनके संघर्षों और सिद्धांतों को आम जनता तक पहुँचाने का प्रभावी कार्य किया है.
कुछ प्रमुख उदाहरणों में शामिल हैं:
- फिल्म “Dr. Babasaheb Ambedkar” (2000) — यह फिल्म अंबेडकर के जीवन पर आधारित एक विस्तृत बायोपिक है, जिसमें उनके बचपन से लेकर संविधान निर्माण तक की यात्रा को भावनात्मक और तथ्यात्मक रूप से दर्शाया गया है.
- डॉक्यूमेंट्री “Jai Bhim Comrade” — यह फिल्म सामाजिक अन्याय और अंबेडकरवादी विचारधारा पर आधारित है, जो आज के समय में भी प्रासंगिक बनी हुई है.
- पुस्तकें जैसे: “Dr. Ambedkar: The Champion of Social Justice”, “Waiting for a Visa” (डॉ. अंबेडकर द्वारा लिखित), और “Annihilation of Caste” — ये किताबें अंबेडकर के सामाजिक दृष्टिकोण और क्रांतिकारी विचारों को गहराई से समझने में सहायक हैं.
- टीवी शोज़ और वेब सीरीज़: “Ek Mahanayak – Dr. B.R. Ambedkar” जैसे धारावाहिकों ने उनके जीवन को घर-घर तक पहुँचाया है.
इन सबके माध्यम से नई पीढ़ी आंबेडकर को केवल एक ऐतिहासिक शख्सियत नहीं, बल्कि एक जीवंत प्रेरणा के रूप में देख पाती है. जब कलाओं के ज़रिए विचार जनता के दिलों तक पहुँचते हैं, तब सामाजिक परिवर्तन की असली शुरुआत होती है.