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Happiness is inside us : कहां ढूंढ रहे हैं खुशी, छिपी है वह आपके अंदर !
Happiness is inside us : कहां ढूंढ रहे हैं खुशी, छिपी है वह आपके अंदर !
Authored By: अंशु सिंह
Published On: Wednesday, March 19, 2025
Updated On: Wednesday, March 19, 2025
Happiness is inside us : कहां-कहां नहीं ढूंढते हैं हम सभी खुशी. एक पल में मिलती है और फिर कहीं हो जाती है गुम. क्योंकि हम तलाश रहे हैं ये खुशी बाह्य जगत में. नहीं झांक रहे हैं खुद के अंदर. जरा ध्यान से देखें. महसूस करें. आपके ही भीतर छिपी है असली खुशी.
Authored By: अंशु सिंह
Updated On: Wednesday, March 19, 2025
Happiness is inside us : कहते हैं कि खुशी की तलाश सदियों से चली आ रही है. शायद मानव सभ्यता की शुरुआत के समय से. पश्चिमी समाज में 19वीं एवं 20वीं सदी में हर कोई धन अर्जन में संलग्न हो गया था. पति-पत्नी दोनों नौकरी किया करते थे. इसलिए वहां भौतिक विकास भी अपेक्षाकृत पहले हुआ. जब रिश्तों में अलगाव एवं विघटन होने लगा, तब उन्हें समझ में आया कि पैसे से सारी खुशियां खरीदी या हासिल नहीं की जा सकती हैं. इस विचार को वहां प्रचारित एवं प्रसारित करने में भारतीय आध्यात्मिक गुरुओं की बड़ी भूमिका रही. उन्होंने पश्चिमी देशों का भ्रमण कर जनसमुदाय को भौतिकता से परे खुशहाल जीवन जीने के लिए प्रेरित किया. आज इसी मॉडल को बहुसंख्य लोग एडॉप्ट करने का प्रयास कर रहे हैं. यह अच्छी परंपरा है. लेकिन हमें नहीं भूलना चाहिए कि खुशी का एहसास अंदर से आता है.
झांकें अपने भीतर
विडंबना यह है कि आमतौर पर एक इंसान बाह्य जगत में खुशी ढूंढता रहता है. वह इस सच से कहीं न कहीं बेखबर होता है कि खुशी तो उसके अंदर ही छिपी है. लेकिन उसका अनुभव उसे नहीं होता है. इसलिए मानव भौतिक वस्तुओं, साधनों एवं दूसरे लोगों में अपनी खुशी तलाशता रहता है. हालांकि, ये खुशी क्षणिक या कुछ समय के लिए ही होती है. अगर एक भी ख्वाहिश या अपेक्षा पूरी नहीं होती, तो खुशी को गुम होते देर नहीं लगती है. बाह्य जगत, व्यक्ति व परिस्थिति पर इसी निर्भरता के कारण अक्सर लोग अपने दुख व तकलीफ के लिए उन्हें जिम्मेदार भी मान लेते हैं. उन्हें लगता है कि दूसरे लोग एवं परिस्थितियां उनके मुताबिक होंगी, तभी खुशी मिलेगी. जबकि खुश रहना या नहीं रहना हर किसी की अपनी च्वाइस होती है. कोई भी शख्स या हालात हमारे मन को परेशान या अस्थिर नहीं कर सकते हैं, जब तक कि हम उन्हें स्वयं ऐसा करने की इजाजत दें. अगर हम खुश रहना चाहते हैं, तो कोई हमें ऐसा करने से रोक नहीं सकता है.
क्रोध करने का नहीं है कोई फायदा
इसमें दो मत नहीं कि हर व्यक्ति के जीवन में कुछ न कुछ चुनौतियां आती ही हैं. एक छात्र को अपने शिक्षक से शिकायत हो सकती है. पेशेवर को अपने सहकर्मी से प्रतिस्पर्धा या ईर्ष्या हो सकती है. ईमानदारी से काम करने के बावजूद किसी को प्रोन्नति नहीं मिलती है, तो वह तनाव में आ जाता है. कोई बीमार होते ही, बेचैन हो जाता है. इस तरह की अनेकानेक परिस्थितियों से गुजरते हुए, अधिकांश लोग क्रोध की अग्नि में जलने लगते हैं या फिर हताश व निराश हो जाते हैं. खुश रहना तो दूर की कौड़ी हो जाता है. लाइफ कोच शांभवी कहती हैं, ‘क्रोध करने या नाराज होने से किसी दूसरे को नुकसान नहीं होता है, बल्कि खुद की खुशी ही छिन जाती है. इंसान परिस्थिति का सही रूप से आंकलन नहीं कर पाते हैं. याद रखें कि खुशी आपकी खुद की संपत्ति है. कोई और उसे कैसे छीन सकता है?’
खुशी जैसी कोई दवा नहीं
मोटिवेशनल स्पीकर ईवी गिरीश के अनुसार, जब एक व्यक्ति मन से खुश रहता है, तो उसकी उन्नति होती है. कई बार किस्मत भी करवट ले लेती है. चाहे कैसी भी परिस्थिति आए, खुशमिजाज इंसान हमेशा स्वयं से संतुष्ट रहता है और दूसरों के लिए भी उदाहरण बनता है. कहते भी हैं कि खुशी जैसी कोई दवा नहीं है. यह स्वस्थ रहने का सबसे कारगर नुस्खा है. क्योंकि खुश रहने से शरीर का नाड़ी तंत्र एवं इंडोक्राइन सिस्टम बेहतरीन कार्य करता है. ब्रह्मा कुमारीज की पूर्व मुख्य प्रशासिका दादी जानकी कहा करती थीं कि खुश रहने का सबसे बड़ा राज है- हर व्यक्ति के प्रति स्नेह एवं शुभ भावना रखना. फिर वह कोई अपना हो या पराया. दोस्त हो या शत्रु.
पांच मिनट की नींद देती खुशी
प्रत्येक व्यक्ति के लिए खुशी की परिभाषा भिन्न हो सकती है. किसी के लिए खुशी का मतलब सकारात्मक एवं संतुष्ट रहना हो सकता है. इसके अनेक उदाहरण भी मिलते हैं, जहां आत्मिक खुशी के लिए युवा मोटे से मोटे पैकेज की नौकरी छोड़ने में जरा भी देर नहीं करते हैं. उन्हें अपने सपनों को पूरा करने में अधिक खुशी मिलती है. ‘एक नृत्य शिक्षिका होने के नाते जब मैं अपनी शिष्याओं को खुद से आगे बढ़ता देखती हूं, तो वह मुझे अत्यधिक खुशी देती है। इसी तरह, यात्राएं करने से एक अलग आनंद मिलता है. नई चीजों, स्थान, समूह, इतिहास, कला इत्यादि के बारे में जानना अच्छा लगता है.‘ ये कहना है कथक नृत्यांगना अंशिका का. इनकी मानें, तो हर वह कार्य जिससे एकरसता खत्म होती है, वह खुशी देती है. इसलिए प्रत्येक इंसान के पास कोई न कोई लक्ष्य का होना आवश्यक है. जीवन का नाम ही आगे बढ़ना है. हम दूसरों में तो निवेश करते हैं, लेकिन स्वयं के विकास को नजरअंदाज कर देते हैं. नामी-गिरामी उद्यमी सैरी चहल कहती हैं कि जिस दिन बिस्तर पर जाते ही उन्हें पांच मिनट में अच्छी नींद आ जाती है, वही उनकी खुशी का पल होता है. इसी प्रकार, जिस दिन लगता है कि उन्होंने कुछ प्राप्त किया, सबके साथ विनम्रता से पेश आईं, अपने विचारों को दूसरों से साझा किया, कुछ प्रोडक्टिव किया, वह उन्हें संतोष एवं खुशी देता है.
साझा होती हैं खुशियां
समाजसेवी सोनाली सिन्हा के शब्दों में एक इंसान खुशहाल एवं अर्थपूर्ण, दोनों प्रकार का जीवन व्यतीत कर सकता है. हां, ऐसा हमेशा हो, यह जरूरी नहीं. गरीब बच्चों को मुफ्त में पढ़ाना, सार्थक जीवन का सूचक है. लेकिन पेट में भोजन न होने पर शायद एहसास कुछ और हो. यह संदर्भ पर निर्भर करता है कि अमुक व्यक्ति कहां खुशी तलाश रहा है? किसी को मनपसंद नौकरी में, किसी को सफलता हासिल करने या समाज के लिए संघर्ष करने में सुख व संतुष्टि मिलती है. भारतीय समाज में वैसे भी देने की परंपरा रही है. सामुदायिकता की भावना प्रबल होने से खुशियां भी साझा हो जाती हैं.
परिवार है खुशियों का स्त्रोत
समाजशास्त्री सुभाष महापात्रा कहते हैं, ‘भारत में सदियों से खुशी का प्रमुख श्रोत परिवार रहे हैं. परिजनों के साथ संबंध जितने मधुर एवं स्वस्थ होते हैं,वे उतने संतुष्ट रहते हैं. परिवार की खुशी सर्वोपरि होती है. फिर चाहे वह सामाजिक रिश्तों को निभाने, रीति-रिवाज या पर्व-त्योहार-उत्सव का साथ में आनंद उठाने की बात ही क्यों न हो? भारतीय छोटे-छोटे क्षण को संपूर्णता में जीने एवं उससे अपने हिस्से की खुशी बटोरना जानते हैं. नि:संदेह हाल के वर्षों में तकरीबन हर क्षेत्र में बढ़ने वाली गला-काट प्रतिस्पर्धा ने दबाव एवं बेचैनी को जन्म दिया है. लेकिन किसी न किसी दौड़ या कहें रेस में लगी पीढ़ी भी अब गुणवत्तायुक्त जीवन को प्रमुखता दे रही है. कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी के अंतर्गत कंपनियां कर्मचारियों एवं जनसाधारण के जीवन में छोटे-बड़े सकारात्मक परिवर्तन लाने का प्रयास कर रही हैं.